Bajra
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
बाजरा एक प्रमुख फसल है। पश्चिमी राजस्थान में बाजरे का अधिक उत्पादन होता हैं| एक प्रकार की बड़ी घास जिसकी बालियों में हरे रंग के छोटे छोटे दाने लगते हैं। इन दानों की गिनती मोटे अन्नों में होती है। प्रायाः सारे उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी भारत में लोग इसे खाते हैं। बाजरा मोटे अन्नों में सबसे अधिक उगाया जाने वाला अनाज है।
History
Babar Kot is an archeological site belonging to Indus Valley Civilisation in Amreli district of Saurashtra region of Gujarat State, India. Findings from Babar Kot site include plant remains of millets,gram,[1] bajra (pennisetum typhoideum)etc.[2] Further, it is indicated that Bajra might be present at this site during third millennium BCE.[3] Babar kot provided evidence of two crops, one in summer and another during winter.[4]
बाजरे का इतिहास
इसे अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप में प्रागेतिहासिक काल से उगाया जाता रहा है, यद्यपि इसका मूल अफ्रीका में माना गया है। भारत में इसे बाद में प्रस्तुत किया गया था। भारत में इसे इसा पूर्व २००० वर्ष से उगाये जाने के प्रमाण मिलते है। इसका मतलब है कि यह अफ्रीका में इससे पहले ही उगाया जाने लगा था। यह पश्चिमी अफ्रीका के सहल क्षेत्र से निकल कर फैला है।
बाजरे की विशेषता है सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी उग जाना, तथा ऊँचा तापक्रम झेल जाना। यह अम्लीयता को भी झेल जाता है। यही कारण है कि यह उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहां मक्का या गेहूँ नही उगाये जा सकते। आज विश्व भर में बाजरा २६०,००० वर्ग किलोमीटर में उगाया जाता है। मोटे अन्न उत्पादन का आधा भाग बाजरा होता है।
बाजरे की खेती
इस अनाज की खेती बहुत सी बातों में ज्वार की खेती से मिलती जुलती होती है। यह खरीफ की फसल है और प्रायः ज्वार के कुछ पीछे वर्षा ऋतु में बोई और उससे कुछ पहले अर्थात् जाड़े के आरंभ में काटी जाती हैं। इसके खेतों में खाद देने या सिंचाई करने की विशेष आवश्यकता नहीं होती। इसके लिये पहले तीन चार बार जमीन जोत दी जाती है और तब बीज बो दिए जाते हैं। एकाध बार निराई करना अवश्य आवश्यक होता है। इसके लिये किसी बहुत अच्छी जमीन की आवश्यकता नहीं होती और यह साधारण से साधारण जमीन में भी प्रायः अच्छी तरह होता है। यहाँ तक कि राजस्थान की बलुई भूमि में भी यह अधिकता से होता है। गुजरात आदि देशों में तो अच्छी करारी रूई बोने से पहले जमीन तयार करने के लिय इसे बोते हैं।
बाजरे के प्रयोग
बाजरे के दानों का आटा पीसकर और उसकी रोटी बनाकर खाई जाती है। इसकी रोटी बहुत ही बलवर्धक और पुष्टिकारक मानी जाती है। कुछ लोग दानों को यों ही उबालकर और उसमें नमक मिर्च आदि डालकर खाते हैं। इस रूप में इसे 'खिचड़ी' कहते हैं। कहीं कहीं लोग इसे पशुओं के चारे के लिये ही बोते हैं। वैद्यक में यह वादि, गरम, रूखा, अग्निदीपक पित्त को कुपित करनेवाला, देर में पचनेवाला, कांतिजनक, बलवर्धक और स्त्रियों के काम को बढा़नेवाला माना गया है।
बाजरे का प्रयोग भारत तथा अफ्रीका में रोटी, दलिया तथा बीयर बनाने में होता है। फसल के बचे भाग का प्रयोग चारे, ईंधन तथा निर्माण कार्य में भी होता है। विश्व के विकसित भागों में इसका प्रयोग भोजन में ना होकर चारे के रूप में होता है। मुर्गी जो इसे चारे के रूप में खाती है/अंडो में ओमेगा ३ फैटी अम्ल ज्यादा पाया जाता है। दूसरे जंतु भी इसे चारे के रूप में खाकर अधिक उत्पादन करते है।
दही और बाजरे की रोटी
दही प्राय हर परिवार में मिलता है। आम-तौर पर सुबह दही और बाजरे की रोटी का नासता बहुत जल्दी से तैयार हो जाता है। दही में भूना हुआ जीरा और टेस्ट के अनुसार नमक मिलाओ। उसमें बाजरे की रोटी चूर कर खाओ। जहां बाजरा नहीं खाया जाता है वहाँ गेहूं अथवा मक्का की रोटी का प्रयोग भी किया जा सकता है।
गर्मी का पेय राबड़ी
लेखिका - गोमती बुरड़क
राबड़ी एक स्वादिष्ट पेय है. राबड़ी कोई बियर का नया ब्रांड नही है. ये एक अमृत है गर्मी से निजाद पाने के लिए. राबड़ी राजस्थान और हरयाणा का प्रमुख पेय है जो कि काफी लोकप्रिय और सस्ता भी है और स्थानीय रूप से आसानी से तैयार हो जाता है. राजस्थन में जहा 45-50 डिग्री तापमान रह्ता है वहां ये वरदान है. लू के थपेड़ों में भी लोग इसको पी कर दोपहर में आराम से सोते है. यह गरमी के मौसम में अधिक प्रयोग की जाती है. जो पहली बार राबड़ी पिएगा, एक गिलास मे बेहोश नींद में सो जाएगा. आजकल राबड़ी पाँच सितारा होटलों मे भी उपलब्ध है और विदेशी पर्यटक बड़े चाव से राबड़ी का लुत्फ उठा रहे है. इस राबडी के साथ बाजरे की रोटी चूर कर खा सकते हैं या ठंडी राबडी में छाछ या दही और जीरा मिलाकर पी सकते हैं.
राबड़ी के फायदे ही फायदे हैं:-
- यह तनाव कम कम करती
- इससे नींद अच्छी आती है
- कभी लू नही लगती है
- ब्लड प्रेशर नही होता है
- अस्थमा में भी लाभदायक है
- भूक अच्छी लगती है
- पेट की हर बिमारी में लाभ दायक है
- यह पथरी रोग ठीक करती है
राबड़ी बनाने की विधि
राबड़ी तीन प्रकार की होती है.
1. खाटे की राबड़ी 2. छाछ की राबड़ी 3. कुटेड़ी राबड़ी
खाटे की राबड़ी
यह राबड़ी बनाने के लिए २०० ग्राम बाजरे के आटे में ५० ग्राम मोठ का आटा मिलाएँ तथा लगभग २५० ग्राम छाछ में मिट्टी की हांडी में पाँच मिनट तक हाथ से फेंटें. इसमें ५ लीटर हलका गुनगुना पानी मिलाएं. इस घोळ को दोपहर को धूप में रखें. साम ५ बजे तक इसमें खमीर आ जाता है तब इसका पानी कपड़े से छानलें. नीचे जमा आटा अलग रख लें. निथारे पानी को आग पर चढा कर स्वाद के अनुसार नमक डालें. पानी जब उबलने लगे तब अलग रखे आटे को उबलते पानी में डाल कर लगभग २-४ मिनट पकाएं और साथ साथ लकडी के चाटू से हिलाते रहें ताकि गठान न पडें. इसमें दो-तीन उफान आजायें तब गाढ़ी होने पर उतार लें. यदि ज्यादा गाढ़ी हो जाए तो थोड़ा छाछ मिला लें . राबडी तैयार. अगर बाजरे का आटा या मोठ नही मिले तो गेंहू का आटा भी चल सकता है पर जो मजा बाजरे और मोठ के आटे की राबडी में है वो नही मिलेगा.
छाछ की राबड़ी
एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम बाजरे का आटा मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्य्य्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
कुटेड़ी राबडी
एक लीटर छाछ के लिए २०० ग्राम साबूत बाजरा भिगोयें. ३ घंटे बाद चलनी से पानी निकाल कर ओखली में मूसल से बाजरा कूटें. कूटने से बाजरा जब सफ़ेद दिखने लगे और आधा फूट जाए तो एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम कूटे बाजरे को मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
बाजरा : प्राचीन अनाज का आधुनिक पुनर्जन्म
रेगिस्तान की रानी, सूरज का साथी, गरीबों का सोना - ये सभी उपनाम एक साधारण से दिखने वाले अनाज के हैं, जिसका नाम है बाजरा। 4000 साल का इतिहास समेटे, बाजरा ने अफ्रीका से भारत की यात्रा तय की और यहां की संस्कृति में इस कदर रच बस गया कि दादी मां की कहानियों से लेकर खेतों के नज़ारों तक, हर जगह इसकी छाप देखने को मिलती है।
आज जब आधुनिक ज़िंदगी की भागदौड़ में हम पौष्टिकता की तलाश कर रहे हैं, तो बाजरा एक सुखद आवाज़ की तरह सामने आता है। ये वो हीरो है जो सूखे और कमज़ोर ज़मीन पर भी हंसते-हंसते फसल देता है। जहां गेहूं और मक्का प्यासे होकर हार मान लेते हैं, वहां बाजरा अपना हरा झंडा लहराता रहता है। ये गुण ही इसे पर्यावरण का आदर्श साथी बनाते हैं।
लेकिन बाजरा की असली ताकत तो उसके अंदर छिपी है। वो आयरन, कैल्शियम और विटामिन ई का खजाना है, जो आपके शरीर को हर जरूरी तत्व देता है। फाइबर, मैग्नीशियम, जिंक और विटामिन बी कॉम्प्लेक्स के साथ मिलकर ये आपके सेहत की पहरेदारी करता हैं।
एनीमिया को हराना हो, वज़न को कम करना हो, मधुमेह को कंट्रोल करना हो या हृदय को मज़बूत बनाना हो, बाजरा हर मोर्चे पर आपके साथ खड़ा है। एंटीऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर, ये कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और सांस की तकलीफें भी दूर भगाता है। यहां तक कि माइग्रेन के दर्द से भी ये निजात दिला सकता है।
लेकिन बाजरा सिर्फ डॉक्टर ही नहीं, बल्कि मास्टरशेफ भी है। खिचड़ी से लेकर रोटी, पराठे से लेकर भजिया, उपमा से लेकर इडली, डोसा और यहां तक कि केक और ब्राउनी तक, बाजरा हर रूप में स्वाद का जादू बिखेरता है। इसे अपने भोजन में शामिल करें और हर एक कौर के साथ सेहत और स्वाद का नया अनुभव लें।
बाजरा हमें याद दिलाता है कि पुरानी चीज़ों में भी नयापन तलाशने की कोशिश करें। तो ज़रा ठहरिए, अगली बार बाजार जाते समय आधुनिक पैकेजों के चकाचौंध में न खोएं, बल्कि बाजरा की ओर ज़रूर एक नज़र डालें। ये प्राचीन अनाज आपकी ज़िंदगी में स्वाद और सेहत का एक नया अध्याय लिखने को तैयार है।
इस पोस्ट में हमने बाजरा के बारे में कुछ कहने की कोशिश की है। उम्मीद है ये जानकारी आपको इस चमत्कारी अनाज को अपनाने और एक स्वस्थ ज़िंदगी की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। तो चलिए, आइए सब मिलकर बाजरा को अपनी रसोई और अपने भविष्य का हिस्सा बनाएं!
बाजरा कितना पौष्टिक
इसमें प्रोटीन तथा अमीनो अम्ल पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं, इसमे कैंसर कारक टाक्सिन नहीं बनते है, जो कि मक्का तथा ज्वार में बन जाते है।
बाजरा के 100 ग्राम में आप कितना पोषण पाएंगे, वो यहां देखें:
- कैलोरी: 361 (दैनिक ज़रूरत का 18%)
- कार्ब्स: 67.5 ग्राम (दैनिक ज़रूरत का 22.5%)
- प्रोटीन: 11.6 ग्राम (दैनिक ज़रूरत का 23.2%)
- फैट: 5.0 ग्राम (दैनिक ज़रूरत का 7.7%)
- फाइबर: 11.3 ग्राम (दैनिक ज़रूरत का 45.2%)
- कैल्शियम: 42 मिलीग्राम (दैनिक ज़रूरत का 4.2%)
- आयरन: 8.0 मिलीग्राम (दैनिक ज़रूरत का 44.4%)
- सोडियम: 10.9 मिलीग्राम (दैनिक ज़रूरत का 0.4%)
- पोटेशियम: 307 मिलीग्राम (दैनिक ज़रूरत का 8.6%)
- फॉस्फोरस: 296 मिलीग्राम (दैनिक ज़रूरत का 26.7%)
ये आंकड़े बताते हैं कि बाजरा कितना पौष्टिक और सेहतमंद है! खासकर आयरन और फाइबर में ये तो किसी पावरहाउस से कम नहीं! तो अपनी थाली में ज़रूर शामिल करें इस जादुई अनाज को!
तस्वीर गैलरी
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हनुमानाराम झूरिया बाजरे की पूंजली (ढेरी) के पास
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हनुमानाराम झूरिया बाजरे की बालियाँ लिए हुये
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हनुमानाराम झूरिया बाजरे की सिट्टीयों के साथ
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हनुमानाराम झूरिया बाजरे की सिट्टीयों से बुआई के लिए बीज तैयार करते हुये
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बाजरे की सिट्टीयों की पूंजळी
बाहरी कड़ियाँ
यह भी देखो
- Rabadi (राबड़ी)
- Jat food habits
- Hanumana Ram Jhuriya - Hanumana Ram Jhuriya is known for preserving Sulkhania variety of Bajra seeds. The village Sulkhania is famous for its unique variety of Bajra found in this village only.
सन्दर्भ
- ↑ Singh, Upinder (2008). A History of Ancient and Early Medieval India : from the Stone Age to the 12th century. New Delhi: Pearson Education. p. 222. ISBN 9788131711200.
- ↑ Agnihotri, V.K.(Ed.) (1981). Indian History. Mumbai: Allied Publishers. pp. A–82.
- ↑ McIntosh, Jane R. (2008). The Ancient Indus Valley : New Perspectives. Santa Barbara, Calif.: ABC-CLIO. p. 112. ISBN 9781576079072.
- ↑ Nicholas David,, Carol Kramer (2001). Ethnoarchaeology in Action (Digitally repr., with corr. ed.). New York: Cambridge University Press. p. 132. ISBN 9780521667791.