Rabadi
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Rabadi (राबड़ी) (Rabri, Rabdi) is a dish commonly used by Jats and other rural population. It is generally prepared with butter milk (छाछ) and Bajra (बाजरा) flour. But it can be prepared with wheat flour or corn flour also. In Rajasthan, it is usually prepared with Bajra flour. There are mainly three kind of Rabadi (राबड़ी) cooked by different methods and ingredients.
Types of Rabri
1. छाछ की राबड़ी (Buttermilk Rabadi) prepared with buttermilk and Bajra flour cooked in clay pot.
2. ओलेड़ी राबड़ी (Fermented buttermilk Rabadi) prepared with Bajra flour and buttermilk fermented for few hours and later cooked in a clay pot.
3. कूटेड़ी राबड़ी (कूट की राबड़ी) (Rabadi with crushed Bajra grains and buttermilk)- It is prepared with crushed bajra grains and buttermilk. Bajra grain are first made wet with water and then crushed. Then it is cooked in buttermilk in a clay pot traditionally.
Use
Mostly, Rabadi (राबङी) is cooked with dinner and taken at that time. Next day morning, remaining portion can be taken with curd and/or buttermilk either with breakfast or lunch or both. Some people mix milk with Rabadi at dinner time also.
James Tod[1] writes that Rabri and chhachh, or ' porridge and buttermilk,' form the grand fare of the desert. A couple of sers of flour of bajra, juar, and khejra is mixed with some sers of chhachh, and exposed to the fire, but not boiled, and this mess will suffice for a large family.
राबड़ी बनाने की विधि
राबड़ी तीन प्रकार की होती है.
- खाटे की राबड़ी
- छाछ की राबड़ी
- कुटेड़ी राबड़ी
खाटे की राबड़ी
यह राबड़ी बनाने के लिए २०० ग्राम बाजरे के आटे में ५० ग्राम मोठ का आटा मिलाएँ तथा लगभग २५० ग्राम छाछ में मिट्टी की हांडी में पाँच मिनट तक हाथ से फेंटें. इसमें ५ लीटर हलका गुनगुना पानी मिलाएं. इस घोळ को दोपहर को धूप में रखें. साम ५ बजे तक इसमें खमीर आ जाता है तब इसका पानी कपड़े से छानलें. नीचे जमा आटा अलग रख लें. निथारे पानी को आग पर चढा कर स्वाद के अनुसार नमक डालें. पानी जब उबलने लगे तब अलग रखे आटे को उबलते पानी में डाल कर लगभग २-४ मिनट पकाएं और साथ साथ लकडी के चाटू से हिलाते रहें ताकि गठान न पडें. इसमें दो-तीन उफान आजायें तब गाढ़ी होने पर उतार लें. यदि ज्यादा गाढ़ी हो जाए तो थोड़ा छाछ मिला लें . राबडी तैयार. अगर बाजरे का आटा या मोठ नही मिले तो गेंहू का आटा भी चल सकता है पर जो मजा बाजरे और मोठ के आटे की राबडी में है वो नही मिलेगा.
छाछ की राबड़ी
एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम बाजरे का आटा मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्य्य्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
कुटेड़ी राबडी
एक लीटर छाछ के लिए २०० ग्राम साबूत बाजरा भिगोयें. ३ घंटे बाद चलनी से पानी निकाल कर ओखली में मूसल से बाजरा कूटें. कूटने से बाजरा जब सफ़ेद दिखने लगे और आधा फूट जाए तो एक लीटर छाछ में लगभग २०० ग्राम कूटे बाजरे को मिलाकर आग पर चढावें और धीरे धीरे लकड़ी के चाटू से हिलाते रहें. जब यह गाढी हो जाए और उफनने लगे तब नीचे उतार कर स्वाद के अनुसार नमक मिलावें. यदि गाढी ज्यादा हो जाए तो इसमें ठंडा छाछ और मिलावें. यह राबडी प्राय शर्दी के मौसम में खाई जाती है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है. साम को गरम गरम खाई जाती है और सुबह इसमे ठंडी में दही मिलाकर बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है.
राबड़ी दिवस
आखिर, राबड़ी दिवस क्यों ?
सभी से आह्वान है कि दिनाँक 10 जून को ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी को राबड़ी दिवस का आयोजन किया जा रहा है । हम सब जानते हैं कि राबड़ी हमारी स्थानीय जलवायु के अनुकूल पेय है जिसके हमारे स्वास्थ्य व पर्यावरण को असंख्य लाभ हैं लेकिन बाज़ार आधारित समझ के शिकंजे में कसते जा रहे हम लोग कोल्ड ड्रिंक को ज़रूरी ड्रिंक समझने लगे हैं आम दिनों से लेकर किसी मेहमान के आने पर या किसी भी समारोह में हमें कोल्ड ड्रिंक पता नहीं क्यों ज़रूरी लगने लगा है । पहले खेतों में जाते किसानों के हाथों में छागल हुआ करता था और हुआ करती थी लोटड़ी, जिसमें पानी ग़ज़ब का ठंडा रहता था लेकिन अब सबके हाथों में दो लीटर वाली प्लास्टिक की गंदी बोतलें मिलेंगी जिनमें पानी बदबू मारता है और ठंडा होने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता । राबड़ी दिवस हमारी इस सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत बचाने, बढ़ाने और इस पर मान करने का एक अवसर है लिहाज़ा आप सबसे निवेदन है कि अपने आस-पड़ोस , यार -दोस्तों के साथ दस जून को सामूहिक रूप से राबड़ी का सबड़का लें एवं सोशल मीडिया पर सभी के साथ साझा भी करें क्योंकि बात को आगे बढ़ाने में इस मंच की अपनी उपयोगिता है । सादर
Author: Bhera Ram Bhakhar
External links
References
- ↑ James Todd Annals/Sketch of the Indian Desert, Vol. III,p. 1295
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