Amrit Nath Ji
लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (Retd.), Jaipur |
Amrit Nath Ji (1852-1916) son of Shri Chet Ram Gotra Nain was born at Pilani but later moved to Bau. Sect - Nath Panth. His Ashram is situated in Fatehpur Sikar, Rajasthan.
श्री अमृतनाथ जी का जीवन परिचय
स्वामी अमृतनाथ जी का जन्म बऊ निवासी चेतन जाट (नैन) के यहाँ पिलानी गाँव में चैत्र सुदी एकम संवत 1909 को बालक यशराम के रूप में हुआ। उन्होने किशोरावस्था में ही ब्रह्मचारी का व्रत ले लिया। संवत 1945 में अपनी माँ के देहावसान के बाद 36 वर्ष 9 माह 14 दिन की आयु में बालक यशराम भ्रमण को निकल पड़े। इस दौरान रिणी (बीकानेर) में महात्मा चंपानाथ से शिष्यवत दीक्षा ग्रहण कर अमृतनाथ रूप सन्यास साधना की ओर बढ़ गए। 24 वर्ष तक भ्रमण करते हुये कठोर योग साधना कर इस शहर आए। माघ शुक्ल 5 संवत 1969 सोमवार को यहाँ आश्रमवास किया। धीरे-धीरे इनके भक्तों की संख्या बढ्ने लगी। तत्कालीन रावराजा सीकर माधोसिंह भी इनकी कीर्ति सुन इनके भक्त बन गए। 4 वर्ष बाद अश्विन शुक्ल 15 संवत 1973 के दिन यहीं उन्होने शरीर छोड़ा। वहीं उनकी समाधि बना दी गई। कालांतर में विशाल खूबसूरत आश्रम बना दिया गया। [1]
श्री गोपाल दिनमणि [2] ने लिखा है कि स्वामीजी का जन्म बऊ से 20 कोस दूर पिलानी गाँव में हुआ जहां इनके पिताजी इनके जन्म के वक्त रह रहे थे, संवत 1909 की चैत्र सुदी 1 को। इनके जन्म के साढ़े 3 वर्ष बाद इनके पिताजी पुनः अपने गाँव बऊ आ गए और सपरिवार रहने लगे। स्वामीजी अपने पिताकी पाँचवीं संतान थे। इनसे छोटी 3 संतान ओर थी।
श्री अमृतनाथ आश्रम
एक संक्षिप्त परिचयः राजस्थान के फतेहपुर शेखावाटी अंचल में स्थित "श्री अमृतनाथ आश्रम" एक पवित्र समाधि स्थल और तपस्वी साधुओं का भव्य आश्रम है जहाँ आने वाले भक्तों और साधुओं को मानसिक एंव आत्मिक शांति का आभास होता है। आश्रम का शांत वातावरण और परिवेश लोगों को स्वर्ग के समान प्रतित होता है। गुरु गोरक्षनाथ सम्प्रदाय में अग्रणी,मन्नाथी पंथ के इस आश्रम ने समाज को अनेक महान सन्त दिए है,जिन्होंने इस आश्रम का ही नहीं बल्कि किसी न किसी समय मन्नाथी पंथ के प्रायः सभी आश्रमों का संचालन किया है तथा इनके द्वारा निरन्तर समाज कल्याण के कार्य होते रहे है।
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने योगाप्रचार के लिए गुरु गोरक्षनाथ का रुप धारण किया था। इसी प्रकार योगाचार्य गुरु गोरक्षनाथ ने "सहजयोग" तथा आहार-विहार के ज्ञान द्वारा मानव जीवन के कल्याण हेतु विलक्षण अवधूत बाबा श्री अमृतनाथ जी महाराज का रुप धारण किया, ऐसा उनके अनुयायी मानते है। बाबा श्री अमृतनाथ जी महाराज ने 24 वर्षों तक जंगलों में रहकर आहार-विहार तथा योग साधना से संबंधित प्रयोग अपने शरीर पर किये।
- "सुधरे आहार-विहार तव होवे वृत्ति पवित्र।
- रोगमुक्त काया रहे,'अमृत' विमल चरित्र॥"
इसी क्रम में परम पूज्य पीर श्री ज्योतिनाथ जी महाराज,योगीराज श्री शुभनाथजी महाराज,कृपा सिन्धु श्री हनुमाननाथ जी महाराज तथा वर्तमान पीठाधीश्वर महन्त श्री नरहरिनाथ जी महाराज ने भी इस अन्वेषण और अनुसंधान की परंपरा को जारी रखा है और अपने मार्गदर्शन और उपदेशों से हजारों श्रद्धालुओं का चरित्र उज्ज्वल बनाया है। आप एक सात्विक,अनुशासित,दृढ़निश्चयी एंव सम्पूर्ण कर्मयोगी हैं,जिन्होंने गुरुओं के वचनों पर चलते हुए अन्य बातों के अलावा समाज में फैली कुरीतियों एंव रुढ़ियों पर आघात किया है तथा सन्त समाज एंव अनुयायिओं के जीवन को अपने द्वारा अर्जित ज्ञान से प्रकाशित किया है। [3]
श्री गोपाल दिनमणि [4] ने लिखा है कि स्वामीजी के शिष्य ज्योतिनाथजी को इनका उत्तराधिकारी बनाया। उस समय ठाकुर चिमान सिंह ने 51 बीघा उदासर की जमीन आश्रम को दान दी, वह जमीन आश्रम के अधीन है।
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बाहरी कड़ियाँ
References
- ↑ फतेहपुर दर्पण (एक चित्रमय गाथा), लेखक: नलिन सराफ, प्रकाशक: जीवन प्रभार प्रकाशन, ए-209, साईं श्रद्धा, वीरा देसाई मार्ग, मुंबई-400058, वर्ष: 2012, ISBN: 81-85564-82-5, p.31
- ↑ फतहपुर परिचय - लेखक: श्री गोपाल दिनमणि, प्रकाशक: श्री गोपाल दिनमणि, दिनमणि कुटीर, फतहपुर-शेखावाटी (जयपुर), संवत 2002,p.167-68
- ↑ http://amritnathashram.org/hindi/index.php
- ↑ फतहपुर परिचय - लेखक: श्री गोपाल दिनमणि, प्रकाशक: श्री गोपाल दिनमणि, दिनमणि कुटीर, फतहपुर-शेखावाटी (जयपुर), संवत 2002,p.170
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