Azamgarh
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Azamgarh (आजमगढ़) is a city and district in Uttar Pradesh. Azamgarh is situated on the bank of Tamsa River (Tons). It is located 268 km east of the state capital Lucknow.
Origin
Azamgarh was founded in 1665 by Nawab Azam Khan, son of Vikramajit.
Variants
- Azamgarh (आजमगढ़) (उ.प्र.) (p.61)
History
Azamgarh, one of the easternmost districts of Uttar Pradesh, once formed a part of the ancient Kosala kingdom, except its north-eastern part. Azamgarh is also known as land of the sage Durvasa whose ashram was located in Phulpur tehsil, near the confluence of Tamsa and Majhuee rivers, 6 kms north of the Phulpur tehsil headquarters.
Azamgarh was founded in 1665 by Azam, son of Vikramajit. Vikramajit was a descendant of Gautam Rajputs of Mehnagar in pargana Nizamabad who like some of his predecessors had embraced the faith of Islam. He had a Muslim wife who bore him two sons Azam and Azmat. While Azam gave his name to the town of Azamgarh, and the fort, Azmat constructed the fort and settled the bazar of Azmatgarh in pargana Sagri.[1] After the attack of Chabile Ram, Azmat Khan fled northwards followed by the interior forces. He attempted to cross the Ghaghra into Gorakhpur, but the people on the other side opposed his landing, and he was either shot in mid stream or was drowned in attempting to escape by swimming.
In 1688 A.D. during Azmat's lifetime, his eldest son Ekram took part in the management of the state, and after Azam's death he was perhaps left in possession together with Mohhabat, another son. The remaining two sons were taken away and for a time detained as hostages for their brothers' 'good behaviour'.
The successor of Ikram finally confirmed the title of his family to the Jamidari. Ikram left no heirs and was succeeded by Iradat, son of Mohhabat. But the real ruler all along had been Mohhabat, and after Ikram's death, he continued to rule in his son's name.
आजमगढ़
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...आज़मगढ़ उत्तर प्रदेश का ज़िला है। 1665 ई. में फुलवारिया नामक प्राचीन ग्राम के स्थान पर आजम ख़ाँ द्वारा इस नगर की स्थापना की गई थी। यहाँ गौरीशंकर का मंदिर 1760 ई. में स्थानीय राजा के पुरोहित ने बनवाया था।
आजमगढ़ परिचय
तमसा नदी के पावन तट पर स्थित आज़मगढ़ अनेक ऋषियों की पावन पुण्य भूमि है। आज़मगढ़ उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है, जो गंगा और घाघरा के मध्य बसा हुआ है। यह जनपद आदि काल से ही मनीषियों, ऋषियों, चिन्तकों, विद्वानों और स्वतंत्रता सेनानियों की जन्म स्थली रही है। इस जनपद को नवाब आज़मशाह ने बसाया था, इसी कारण इसका नाम आज़मगढ़ पड़ा। 15 नवम्बर, 1994 को चौदहवें मण्डल के रूप में 'आजमगढ़ मण्डल' का सृजन किया गया।
भौगोलिक स्थिति: आजमगढ़ का नाम देश-विदेश में अनजाना नहीं है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित आजमगढ़ ज़िले के साथ-साथ एक मंडल भी है। बताते हैं कि इस शहर की स्थापना लगभग 1665 ई. में विक्रमजीत के पुत्र आजम ख़ाँ ने करवाई थी। आजम ख़ाँ के नाम पर ही यहाँ का नाम आजमगढ़ पढ़ा। शहर की पूर्व दिशा पर तमसा नदी के तट पर आजम ख़ाँ ने एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया था। भौगौलिक रूप से देखें तो आजमगढ़ की स्थिति 26°04′N 83°11′E / 26.06, 83.19. पर है। यहां की औसत ऊंचाई है 64 मीटर (209 फीट)।
साहित्य, संस्कृति: आजमगढ़ शहर अपनी साहित्य, संस्कृति, शिक्षा के लिए आरंभ से ही मशहूर रहा है। गंगा और घाघरा नदियों के मध्य बसा तमसा नदी के पवन तट पर स्थित आजमगढ़ अनेक ऋषियों की पुण्यभूमि रही है। आजमगढ़ को यह गौरव प्राप्त है कि वह राहुल सांकृत्यायन, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', मौलाना शिबली नोमानी और कैफ़ी आज़मी जैसे महापुरुषों की जन्म-स्थली रही है। आज भी यहाँ से तमाम राजनेता, प्रशासक, शिक्षाविद, साहित्यकार, कलाकार, व्यवसायी, खिलाडी देश-दुनिया में अपने नाम का डंका बजाते नजर आते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राम नरेश यादव यहीं की देन हैं, तो चंद्रजीत यादव, अमर सिंह जैसे तमाम चर्चित राजनेता भी यहीं की पैदाइश हैं। मशहूर हिन्दी अभिनेत्री और सोशल एक्टिविस्ट शबाना आज़मी का यहाँ से पुराना रिश्ता है।
पर्यटन स्थल
महाराजगंज: छोटी सरयू नदी के तट पर बसा महाराजगंज ज़िला मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आजमगढ़ में राजाओं की नामावली अधिक लम्बी है, यही वजह है कि इस जगह को महाराजगंज के नाम से जाना जाता है। यहां एक काफ़ी पुराना मंदिर भी है। यह मंदिर भैरों बाबा को समर्पित है। भैरों बाबा को 'देओतरि' के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त यह वही स्थान है, जहां भगवान शिव की पत्नी पार्वती दक्ष की यजन वेदी में सती हुई थीं। प्रत्येक माह पूर्णिमा के दिन यहां मेले का आयोजन किया जाता है।
मुबारकपुर: मुबारकपुर ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पूर्व से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहले इस जगह को कासिमाबाद के नाम से जाना जाता था। कुछ समय बाद इस जगह का पुर्ननिर्माण करवाया गया। इस जगह को दुबारा राजा मुबारक ने बनवाया था। यह जगह बनारसी साड़ियों के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। इन बनारसी साड़ियों का निर्यात पूरे विश्व में होता है। इसके अलावा यहां ठाकुर जी का एक पुराना मंदिर और राजा साहिब की मस्जिद भी स्थित है।
मेहनगर: यह जगह आजमगढ़ ज़िला मुख्यालय के पूर्व-दक्षिण में 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां एक प्रसिद्ध क़िला है, जिसका निर्माण राजा हरिबन ने करवाया था। इस क़िले में एक स्मारक और सरोवर है जो कि काफ़ी प्रसिद्ध है। इस सरोवर को मदिलाह सरोवर के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष सरोवर से तीन किलोमीटर की दूरी पर धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है।
दुर्वासा: यह स्थान आजमगढ़ जिले की फूलपुर तहसील मुख्यालय के उत्तर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह यहां स्थित दुर्वासा ऋषि के आश्रम के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। हज़ारों की संख्या में विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने यहां आया करते थे।
भवरनाथ मंदिर: यह मंदिर आजमगढ़ ज़िले के प्रमुख मंदिरों में से एक हैं। भवरनाथ मंदिर शहर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर लगभग सौ वर्ष पुराना है। माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से इस मंदिर में आता है, उसकी मुराद ज़रूर पूरी होती है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। हज़ारों की संख्या में भक्त इस मेले में एकत्रित होते हैं।
अवन्तिकापुरी: मुहम्मदपुर स्थित अविन्कापुरी काफ़ी प्रसिद्ध स्थान है। ऐसा माना जाता है कि राजा जन्मेजय ने एक बार पृथ्वी पर जितने भी सांप हैं, उन्हें मारने के लिए यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था। यहां स्थित मंदिर व सरोवर भी काफ़ी प्रसिद्ध है। काफ़ी संख्या में लोग इस सरोवर में डुबकी लगाते हैं।
संदर्भ: भारतकोश-आजमगढ़