Baba Pithaldev Maharaj

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बाबा पीथलदेव महाराज


बाबा पीथलदेव महाराज मंदिर, गौराऊ

Pithaldev Ji Jakhar (also called  pithalbaba or pithaji) is a folk-deity of Sirohi Sikar of Neem Ka Thana Tehsil of Rajasthan. 

बाब पीथलदेव सीकर व नागौर जिले में एक लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। सीकर जिले के सिरोही,धमोरा ओर आसपास के आसपास इनकी अलग अलग नामों से पूजा होती है। इनको कोई बाबा पृथ्वीराज, दादा पिरथीराज,पृथ्वीसिंह ओर पीथळ ओर पिथलदेव आदि नामों से पूजा जाता है। परन्तु गोराऊ (नागौर) में बाबा पिथलदेव ही सर्वमान्य नाम है।

यहां पर इन्हें पर दादा के नाम से सम्बोधित करते है, क्योंकि उनके कुलदेव है और पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा भी है तो आजकल इन्हें दादो जी महाराज भी बोलने लगे हैI

बाबा पीथळदेव का परिचय

बहन - सुरजा बाई

पिता - सालिग राम

माता - अमरा

गौत्र - जाखड़

सिरोही ओर धमौरा के जाखड़ ओर झाझड़िया इनको अपने कुल देवता के रूप में पुजते है। इसके पीछे एक लोकमान्यता है कि झाझड़िया ,धमोरा गांव में इनका ननिहाल है। इस लिये धमोरा के लोग भी समान रूप से इनकी आराधना करते है।

बाबा पीथळदेव के जन्म की कोई प्रमाणित तिथि नही है। जल्द ही शौध करके तीथि उपलब्ध करवादी जायेगी। परन्तु इनके देवलोकगमन का वर्ष लगभग सभी सन् 1638 को गणगौर के दिन बताते है। और उनके बलिदान के विषय मे गोराऊ ओर सिरोही दोनों ही जगहों पर समानता भी देखनी को मिलती है। अतः इसे प्रमाणिक तीथि माना जा सकता है। गणगौर पर्व के दिन सिरोही (सीकर) व गौराऊ (नागौर) में समान रूप से मेले का आयोजन होता है।

बाबा पीथळदेव की कथा

पीथळ एक अच्छे योद्धा थे। उनके पिताजी सालिगराम उस इलाके के शाषक थे ऐसा प्रमाण कुछ दोहों में है जो वहां पर जागरण में गाये जाते है।

बाबा पीथळदेव के रात्री जागरण को स्थानीय लोग झीरा बोलते है।

कहा जाता है कि दादा पिथलदेव जी के पास एक घोड़ी ओर एक घोड़ा था। घोड़ी का नाम सरतल घोड़ी ओर घोड़े का नाम लीलाधर था। युद्ध के समय वो अपने लीलाधर घोड़े पर सवार थे। इसका प्रमाण यह है कि गोराऊ में गाई जाने वाली एक छावली मे इसका जिक्र आता है।

युद्ध वृतांत में एक परिस्तिथि ऐसी आती है कि पीथळ का सामना डाकुओ से होता है। डाकू उसे बच्चा समझकर बोलते है कि आपकी माँ अमरा हमारी बहन है इस कारण आपसे युद्ध नही करना चाहते। इस पर वीर बालक का जवाब ये होता है कि- "आप पहले मुझ पर हमला करो, कहीं आपको अफसोस नही रह जाये कि हथियार उठाने से पहले ही हार गए।"

शुरूआती दो वार दुश्मन के खाली चले जाते है। उसके बाद लीलाधर असवारी उन पर तीव्र आक्रमण करता है और लगभग 75 लोगो को अकेले मौत के घाट उतारता है। बाबा पिथलदेव को रण में छल से हराया गया था। जब वो वापिस मुड़े तो किसी ने पीछे से वार किया और गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। लीलाधर पर असवार वीर योद्धा में सत का तेज था उन्हें लगा कि इसी अवस्था मे अगर मेरी बहन मुझे देखेगी तो प्राण त्याग देगी। पीथळ ने अपने इष्ट देव से प्रार्थना की तो सिर उनकी धड़ से जुड़ गया। वीर अपने गंतव्य को चला और रास्ते मे इंतजार कर रही बहन को घोड़े पर बिठाया।

एक अन्य दन्त कथा है कि जब पीथळ अपनी बहन को घोड़े पर ले जा रहे थे तब पास में खेतो में काम करने वाले लोग भांति भांति की बाते बोलने लगे। किसी ने बोला डाकू लड़की को उठा ले जा रहा है किसी ने बोला पति पत्नी है। ये शब्द सत्यवीर के कानों में पड़े तो अपने आप योद्धा का सत उतर गया और सिर धड़ से अलग हो कर गिर गया। जहाँ पर पीथळदेव महाराज का शीश गिरा है, वहां पर पिथलदेव के सिर की पूजा होती है और जगह का नाम सिरोही है। और यह स्थान सीकर जिले में स्थित है। लीलाधर वहां रुका नही ओर धड़ को लेकर गोराऊ (गौरया प्राचीन नाम) की ओरण से गुजर रहा था। वहां पर बिना सिर का योद्धा घोड़े पर देखा तो खेत मे काम करने वाली कुछ ओरतो ने घोड़े को रोका और बाद में योद्धा की अन्योष्टि करवाई। जिस जगह धड़ की अंत्योष्टि की गई वहां पर भी बाबा पीथल देव जी पूजे जाता है। यह गौराऊ स्थान नागौर जिले की जायल तहसिल में स्थित है।

बाबा पीथळदेव की पूजा

मान्यता है कि पीथळदेव महाराज को दूध खीर चूरमे का भोग लगाते है। प्रत्येक माह की चतुर्थी को पीथळदेव महाराज को भौग लगाये जाने की परंपरा है। तथा गणगौर पर्व पर उनके बलिदान दिवस पर मेले का आयोजन होता है। मगर सिरोही, धमोरा के मंदिर में शराब पिये हुवे अगर कोई मंदिर में प्रवेश कर जाए तो तुरंत पर्चा मिल जाता है। इसलिए ऐसी अपशिष्ट सामग्री को पीथळदेव महाराज के लिए उपयोग में लाना पूर्णतया वर्जित है।

गैलेरी

बहन सुरजा बाई

लेखक

बलवीर घिंटाला तेजाभक्त


> रामस्वरूप मंडा गौराऊ

संदर्भ


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