Barabar Cave

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View of Barabar Hills in Bihar

The Barabar (बराबर) Caves are the oldest surviving rock-cut caves in, Jahanabad District of Bihar, India , mostly dating from the Mauryan period (322–185 BCE), and some with Ashokan inscriptions.

Variants of name

Location

Located in the Jahanabad District of Bihar, India, 18 km north of Gaya. Barabar is situated 8 km of the railway station Bela on Gaya-Patna track. Its ancient name was Khalatika (खलतिक) hill. These caves are also known by the name Nagarjuni. There are seven caves here with present names Sudama, Lomash Rishi, Ramashrama, Vishvajhonpadi, Gopi, Vedathik etc. Due to presence of seven caves these are also called Satagharava (सतघरवा). [1]

History

बराबर (जिला गया, बिहार)

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है .....बराबर, जिला गया, बिहार, (p.610) प्राचीन नाम खलतिक पर्वत है. गया से पटना जाने वाले रेलपथ पर बेला स्टेशन से 8 मील पूर्व यह पहाड़ी स्थित है. इस पहाड़ी में लगभग सात प्राचीन गुफाएं विस्तीर्ण प्रकोष्ठों के रूप में निर्मित हैं. कहीं तो एक गुफा में 2 कोष्ठ हैं और कहीं एक ही दीर्घ प्रकोष्ठ है. इन गुफाओं में अशोक कालीन वज्रलेप की प्रमार्जा (पालिश) दिखाई पड़ती है. इन गुफाओं के वर्तमान नाम सुदामा, लोमश ऋषि, रामाश्रम, विश्वझोंपड़ी, गोपी, वेदाथिक आदि हैं. गुफाओं की संख्या सात होने से पहाड़ी को सतघरवा भी कहते हैं. इनमें से तीन में अशोक के अभिलेख अंकित हैं. इनसे विदित होता है कि मूलत: इनका निर्माण अशोक के समय में आजीवक (जैन) संप्रदाय के भिक्षुओं के निवास के लिए करवाया गया था. यह संप्रदाय बुध के समकालीन आचार्य मावली गौसाल ने चलाया था. अशोक के अभिलेखों से जो उसके शासनकाल के 12वें-21वें वर्ष के हैं उसकी सब धार्मिक संप्रदायों के साथ निष्पक्ष नीति का प्रमाण मिलता है. अशोक के अतिरिक्त उसके पुत्र दशरथ (जो जैन था) के अभिलेख भी इन गुफाओं में अंकित हैं. इन गुफाओं को नागार्जुनी गुफाएं [p.611}: भी कहा जाता है. इनमें परवर्ती काल के कई अन्य अभिलेख भी हैं जिनमें मौखरी वंश के नरेश अनंतवर्मन् का एक तिथिहीं अभिलेख उल्लेखनीय है. इस में अनंतवर्मन के पिता शार्दूलवर्मन् का भी नामोल्लेख है. इसका विषय अनंतवर्मन द्वारा गुहा मंदिर में कृष्ण की एक मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाना है

बराबर की गुफ़ाएँ

बराबर की गुफ़ाएँ बिहार के गया ज़िले में स्थित है। इस पहाड़ी में सात प्राचीन गुफ़ाएँ विस्तृत प्रकोष्ठों के रूप में निर्मित हैं। इन सात गुफ़ाओं में से तीन में अशोक के अभिलेख अंकित हैं। इनसे विदित होता है कि मूलतः इनका निर्माण अशोक के समय आजीवक सम्प्रदाय के भिक्षुओं के निवास के लिए करवाया गया था। मौर्य काल की बराबर गुफ़ाएँ देश की सबसे पुरानी पत्थरों से काटी गई गुफ़ाएँ हैं, जो आज भी विद्यमान हैं। बराबर की ज़्यादातर गुफ़ाओं में दो कक्ष हैं, जो पूरी तरह से ग्रेनाइट से काटे गये हैं। इनकी भीतरी सतह बहुत ही चमकदार होने के कारण आवाज़ की गूँज बहुत शानदार होती है। ये गुफ़ाएँ पत्थरों की कटाई वाली वास्तुकला शैली के शानदार उदाहरण हैं। इन गुफ़ाओं में परिवर्ती काल के कुछ अन्य अभिलेख भी हैं, जिनमें मौखरिवंशीय नरेश अनंतवर्मन का एक अभिलेख उल्लेखनीय है। बराबर गुफ़ाओं का निर्माण अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पू. में बराबर व नागार्जुनी चट्टानों को काटकर करवाया गया था। बराबर पहाड़ी पर स्थित सात में से तीन गुफ़ाओं में अशोक के शिलालेख होने से यह ज्ञात होता है कि दो गुफ़ाएँ अशोक द्वारा शासन के 12वें वर्ष और क्रमशः 19 वें वर्ष में भिक्षुओं को दान में दी गयीं। अशोक की प्रमुख गुफ़ाएँ हैं- 'कर्णचैपार', 'विश्वझोपड़ी' और 'सुदामा गुफ़ा'। दशरथ की गुफ़ाओं में लोमश ऋषि की गुफ़ा तथा गोपिका गुफ़ा उल्लेखनीय है। नागार्जुन पहाड़ी की तीनों गुफ़ाओं में अशोक के पौत्र देवानांप्रिय दशरथ के अभिलेख अंकित हैं, जो भिक्षुओं के आजीवक सम्प्रदाय के लिए दी गयी थीं।

संदर्भ: भारतकोश-बराबर की गुफ़ाएँ

खलतिक पर्वत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...खलतिक पर्वत = Barabar बराबर पहाड़ी (जिला जहानाबाद, बिहार) (AS, p.254): खलतिक पर्वत, जिसे बराबर पहाड़ी के नाम से भी जाता है, गया ज़िला, बिहार में स्थित है। खलतिक पर्वत (पाली नाम) का मौर्य सम्राट अशोक के बराबर गुहा अभिलेख में उल्लेख है। यहाँ की गुफ़ाओं को मौर्य सम्राट ने अपने शासन काल के 12वें और 19वें वर्ष में 'आजीवक सम्प्रदाय' के साधुओं को दान में दिया था, जिससे उसकी उदार धार्मिक नीति का ज्ञान होता है।

The twin hills of Barabar and Nagarjuni

These caves are situated in the twin hills of Barabar and Nagarjuni, dating back to the 3rd century BC, Maurya period[4], of Ashoka (r. 273 BC to 232 BC.) and his son, Dasharatha Maurya, though Buddhists themselves [5], who allowed various Jain sects, to flourish under his policy of religious tolerance, these caves were used by ascetics from the Ājīvika sect [6], founded by Makkhali Gosala, a contemporary of Siddhartha Gautama, the founder of Buddhism, and of Mahavira, the last and 24th Tirthankara of Jainism [7]. Also found at the site were several rock-cut Buddhist and Hindu sculptures [8].

The area was also the setting for the opening of E.M. Forster's book, A Passage to India, while the caves themselves are the site of a crucial, though ambiguous, scene at the book's symbolic core. The author visited the site, and later used it, as the Marabar caves in his book [6][9][10]

Barabar Hill Cave Inscription of Anantavarman Maukhari

  • Ôm! He, Anantavarman, who was the excellent son, captivating the hearts of mankind, of the illustrious Shârdûla, (and) who, possessed of very great virtues, adorned by his own (high) birth the family of the Maukhari kings,-he, of unsullied fame, with joy caused to be made, as if it were his own fame represented in bodily form in the world, this beautiful image, placed in (this) cave of the mountain Pravaragiri, of (the god) Krishna.
  • (Line 3.)-The illustrious Shârdûla, of firmly established fame, the best among chieftains, became the ruler of the earth;-he who was a very Death to hostile kings; who was a tree, the fruits of which were the (fulfilled) wishes of (his) favourites; who was the torch of the family of the warrior caste, that is glorious through waging many battles; (and) who, charming the thoughts of lovely women, resembled (the god) Smara.
  • (L. 5.)-On whatsoever enemy the illustrious king Shârdûla casts in anger his scowling eye, the expanded and tremulous and clear and beloved pupil of which is red at the corners between the up-lifted brows,-on him there falls the death-dealing arrow, discharged from the bowstrings drawn up to (his) ear, of his son, the giver of endless pleasure, who has the name of Anantavarman.
  • From: Fleet, John F. Corpus Inscriptionum Indicarum: Inscriptions of the Early Guptas. Vol. III. Calcutta: Government of India, Central Publications Branch, 1888, 223.


References