Barbaad
धर्म को हराने वाले बर्बाद होकर चले गये
पापी को इमदाद देने वाले भी शमशान गये
रोता रोता आप गया सोने के मकान गये
सीता कैद कराने वाले बर्बाद होकर चले गये
पाँचो भाई घर से निकाले द्रोपदी नचाई थी
18 रोज़ में जिसके घर की वही निशानी पाई थी
चीर तारने वाले बर्बाद होकर चले गये
कब्र खोदकर लिये रुपये तबारीख बतलाती है
सिकन्दर की दुनियाँ में नहीं निशानी पाती है
कबर फ़ोङने वाले बर्बाद होकर चले गये
जिन्होने छोटे छोटे बच्चे चिनवा दिये दीवार में
बेर बेचते उनके बेटे आज दिल्ली के बाजार में
जुल्म गुजारने वाले बर्बाद होकर चले गये
जिनके राज में लाखों गऊऎ सूरज निकलते मरती हैं
आज देख लो उनके घर पर रोज़ गोलियाँ बरसती है
गऊ मारने वाले बर्बाद होकर चले गये
आधे से ज्यादा काण पाये जिनकी डन्डी में
कहें पृथ्वीसिंह काग बोल गये उनकी मण्डी में
तराजू झारने वाले बर्बाद होकर चले गये
Digital text (Wiki version) of the printed book prepared by - Vijay Singh विजय सिंह |
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