Braj Kesari Raja Hathi Singh/Maharaja Anangpal Deo Parichay
महाराजा अनंगपाल देव परिचय |
मथुरा जिले में पाण्डववंशी तोमर जाटों को अर्जुन के नाम पर कौन्तेय(कुन्तल) भी बोला जाता है।आज भी यहां के तोमर जाट अपने प्राचीन नाम पाण्डव को जीवित किए हुए हैं।जगाओ(पारिवारिक रिकॉर्ड रखने वाले) के अनुसार खुटेलपट्टी तोमरगढ़ की स्थापना दिल्ली के जाट महाराजा अनंगपाल देव तोमर की थी।महाराजा अनंगपाल द्वितीय ने 1051 ई.-1081 ई. तक 29 साल 6 मास 18 दिन तक दिल्ली पर राज्य किया। इनका वास्तविक नाम अनेकपाल था। इनकी मुद्राएँ तोमर देश कहलाने वाले बाघपत जिले में जोहड़ी ग्राम से प्राप्त हुई। लेख के अनुसार "सम्वत दिहालि 1109 अनंगपाल बहि "
इसका अर्थ है कि अनंगपाल ने सन 1052 ईस्वी में दिल्ली बसाई। पार्श्वनाथ चरित के अनुसार भी 1070 ईस्वी में दिल्ली पर अंनगपाल था। इंद्रप्रस्थ प्रबंध के अनुसार भी इस बात की पुष्टि होती है।
गजनवी के पौत्र के इतिहासकारों के अनुसार जब दिल्ली पर कुमारपाल तोमर का शासन था। उस समय अनंगपाल देव मथुरा के प्रशासक थे। अनंगपाल तोमर/तँवर ने गोपालपुर के पास 1074 संवत में सोनोठ में सोनोठगढ़ का निर्माण करवाया। जिसको आज भी देखा जा सकता है। यह स्थान पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।महाराजा अनगपाल ने सोनोठ में एक खूँटा गाड़ा और पुरे भारतवर्ष के राजाओ को चुनोती दी की कोई भी राजा उनके गाड़े गए इस स्तम्भ (खुटे) को हिला दे या दिल्ली राज्य में प्रवेश करके दिखा दे। किसी की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए इनके वंशज वंशज खुटेला तोमर कहलाये।खुटेला शब्द का वास्तविक अर्थ दबंग यौद्धा से है।
दिल्ली के राजा अनंगपाल ने मथुरा के गोपालपुर गाँव में संवंत 1074 में मन्सा देवी के मंदिर की स्थापना की थी। महाराजा अनगपाल ने कुल 29 मंदिरों का निर्माण करवाया था।
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महाराजा अनंगपाल तोमर की रानी हरको देवी के दो पुत्र हुए। बड़े सोहनपाल देव बड़े पुत्र आजीवन ब्रह्मचारी रहेऔर छोटे जुरारदेव तोमर हुए जुरारादेव को सोनोठ गढ़ में गद्दी पर बैठे थे। सोहनपाल देव ने अपने पिता महाराजा अनंगपाल देव तोमर द्वारा जीवित अवस्था मे सन 1079 ईस्वी में वानप्रस्थ लेकर मनसा देवी की भक्ति में लीन रहने के कारण दिल्ली का शासन अपने पिता के नाम से चलाया था अपने पिता महाराजा अनंगपाल देव की मृत्यु 1081 ईस्वी में होने के उपरांत सोहनपाल देव दिल्ली की गद्दी पर बैठे थे।
महाराजा अनगपाल देव के जीवन का अंतिम समय सोनोठ गढ़ में मथुरा की पावन धरा पर व्यतीत हुआ था। सोनोठ गढ़ से ही प्रातः कालीन और संध्या कालीन देवी के दर्शन किया करते थे। सोनोठ गढ़ के किला और मनसा देवी का मंदिर इस तरह निर्मित था कि किले से ही महाराज देवी के दर्शन कर सकते थे।महाराजा अनंगपाल की मृत्यु चैत्र शुक्ल विक्रमी 1139 (1081 ईस्वी) को अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण और कुलदेवी मनसा की पावन ब्रज भूमि पर हुई थी।उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी समाधि मनसा देवी मंदिर के समीप बनाई गई थी।
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तब ही से उनकी स्मृति में मनसा देवी और अनंगपाल देव की समाधि पर चैत्र माह में मेले का आयोजन निरन्तर हो रहा है।। महाराजा अनंगपाल देव के दो पुत्र सोहनपाल देव और जुरारदेव थे सोहनपाल देव आजीवन ब्रह्मचारी रहे थे इसलिए अपने छोटे भाई केदो पुत्र सोनदेव,सुखपाल को गोद ले लिया था।छोटे भाई जुरारदेव तोमर के आठ पूत्र (सोनदेव,मेघसिंह,फौन्दा सिंह,ज्ञानपाल देव,सुखपाल देव,चेतनसिंह,अजयपाल,बच्छराज सिंह) हुए महाराजा अनगपाल देव ने अपने आठ पौत्रों में अपने आठ मुख्य गढ़ो व 52 गढ़ियों का बंटवारा निम्नप्रकार से किया था। सोहनपाल देव ने गोद लिए सुखपाल देव को सौंखगढ़ और सोंसा और सोन नामक गढ़ियां दी सोनपाल देव तोमर को सोनोठ गढ़ , मेघसिंह को मगोर्रा गढ़ी,फोन्दा सिंह फोंडर गढ़, गन्नेशा (ज्ञानपाल) गढ़ गुनसारा,अजयपाल तोमर ने अजान (अजयगढ़),चेतसिंह को चेतनगढ़(चेतोखेरा) ,बत्छराज बछगांव (वत्सगढ़) दिया गया था।इनकी सम्पूर्ण वंशावली आगे के पृष्ठों पर लिखी गई है।इस सौंखगढ़ मे राजा नाहरदेव सिंह,प्रहलाद सिंह बड़े प्रसिद्ध हुए थे।
- महाराज अनंगपाल मंदिर और समाधि
महाराजा अनगपाल की मृत्यु चैत्र शुक्ल विक्रमी 1139(1081 ईस्वी) को सोनोठ गढ़ में हुई थी।यहां उनकी समाधि और मंदिर उनके वंशजो द्वारा
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निर्मित किए गए थे प्राचीन मंदिर मुस्लिम आक्रान्ताओ के हमलों में नष्ट होने पर नए मंदिर का निर्माण करवाया गया है।इनके समीप ही इनके पुत्र का मंदिर का भी निर्माण किया गया है।पूरी दुनिया मे महाराजा अनंगपाल देव और उनके पुत्र का एक मात्र मंदिर है। जिसका निर्माण खुटेला तोमर जाटों ने करवाया था।मंदिर की दीवारों पर सम्पूर्ण वंशावली और इतिहास दर्ज है। मंदिर के समीप ही पांडवो का मंदिर भी निर्मित है।महाराजा अनगपाल की पुण्यतिथि (प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला-पूर्णमासी ) पर कुल देवी माँ मनसा देवी के मंदिर अनंगपाल की समाधी और किले के निकट हज़ार वर्षो से होती आ रही है। इस का उद्देश्य पूरे वर्ष के सुख दुःख की बाते करना, अपनी कुल देवी पर मुंडन करवाना, साथ ही आपसी सहयोग से रणनीति बनाना था। वर्तमान में यह अपने उद्देश्य से दूर होता दिख रहा है। मंशा देवी के मंदिर पर प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला-पूर्णमासी को एक विशाल मेला लगता है जिसमे सिर्फ तोमर वंशी कुन्तल जाते हैं।
ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-16,17