Braj Kesari Raja Hathi Singh/Raja Hathi Singh Ke Pramukh Durg

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राजा हठी सिंह के प्रमुख दुर्ग

सौंखगढ़ मथुरा

राजा हठी सिंह ने इस किले का पुनः निर्माण करवाया था। यह एक मात्र ब्रज जटवाड़ा क्षेत्र का ऐसा किला है जिस पर विदेशी इतिहासकार (जर्मन) ने शोध किया है। जर्मन इतिहासकार की पुस्तक एक्सकैवशन एट सौंख में इस शोध का पूर्ण वर्णन किया है।यह पुस्तक इंग्लिश(अंग्रेजी) और जर्मन भाषा मे उपलब्ध है। इतिहासकार डॉ. हरवट हर्टल और फेडरिक ग्राउस के अनुसार राजा अनंगपाल तोमर के समय इसका निर्माण किया गया था| उनके पुत्र सोहनपाल के नाम पर इसको सौनक बोला जाता था। उनके वंशज कुंतल (तोमर) आज भी यहाँ(सौंख) निवास करते है | अनुसंधान से यह किला पांडव कालीन प्रतीत होता है| इस किले के प्रथम निर्माता अर्जुन के वंशज कौन्तेय जाट थे जिनके द्वारा किए गए निर्माण कार्यो के अवशेष आज भी यहां खुदाई में मिलते है कुषाणों ने भी इसका जीणोद्धार करवाया था इसलिए कुषाणकालीन अवशेष भी यहां मिलते है|यह किला मोहम्मद गौरी,कुतुबुद्दीन, अलाउदीन ख़िलजी ,सिकन्दर लोधी और औरंगजेब ,नजीब खान के हमलों का भी साक्षी रहा है।


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चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस किले के बारे में बताया है उस समय यहाँ एक बोद्ध विहार भी था चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार यहाँ के लोग गणतांत्रिक व्यवस्था को ज्यादा महत्व देते थे खुद के झगड़ो को खुद ही सुलझा लेते थे यहाँ का राजा किसी को भी प्राणदंड नहीं देता था क्रय विक्रय में सिक्को और कोडियो का प्रचलन था|

डॉ. हरवट हर्टल के निर्देशन में खुदाई का कार्य शुरू हुआ जो 1966 से 1974 ई. तक लगातार चला था । टीले से प्राप्त मूर्ति, पाषाण कुषाण ,गुप्त जाट( तोमर कालीन ) बर्तन, सिक्के, राजकीय संग्रहालय मथुरा की शोभा बढ़ा रहे हैं।खुदाई में त्रिशूल, टेराकॉटा की मूर्तियां भी मिलीं।| तोमरवंशी कौन्तेय की वीरता का प्रतीक यह किला आज उत्तर प्रदेश सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित क्षेत्र घोषित है|

प्राचीन समय में इस किले का निर्माण जल्दी नष्ट होने वाली वस्तुओ से किया गया था| इसके निर्माण में लाल पत्थर और ईटो का उपयोग किया गया था| इसके चार मुख्य दरवाजे बनाए गये थे|


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जिनमे से दिल्ली दरवाजा मुख्य था ऐसा बताया जाता है इस किले से एक सुरंग यमुना नदी के पार तक जाती थी| जर्मन पुराविद डॉ. हरवट हर्टल के अनुसार यहाँ 3000 ईस्वी पूर्व (पांच हज़ार साल पुराने पांडव कालीन) के साक्ष्य प्राप्त हुए है सबसे निचले स्तर से चित्रित सलेटी मृदभांड कृष्ण लोहित मृदभांड के साथ प्राप्त हुए है हरवट हर्टल को यहाँ आहत के अलिखित सिक्के मिले है। सौंख किले के 28 वे स्तर पर एक सिक्का भी मिला है। जिस पर मोमितस लिखा हुआ है जो किसी राजा गोमित्र का है| डॉ हरवट हर्टल के अनुसार यहाँ पक्की ईटो का प्रयोग किया गया है। उत्खनन में यहाँ दो भवन भी मिले है जो सम्भवत: अनंगपाल कालीन किले के अवशेष है इसमें एक 2.70 x 6.50 मीटर बड़ा सभा भवन है जहाँ दरबार का आयोजन होता होगा इसके सामने एक आँगन में बाग़ था इसकी उत्तर दक्षिण लम्बाई 10 मीटर और पूर्व पश्चिम की लम्बाई 5 मीटर थी इस किले में 16 कक्षों का अवशेष प्राप्त हुए है।


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राजा अनंगपाल के समय यह व्यापार का केंद्र भी था यहाँ से दुकानों के भी चिन्ह प्राप्त हुए है| सौंख में अनंगपाल कालीन दो मंदिरों के अवशेष भी प्राप्त हुए है| कुछ इतिहासकार इन मंदिरों को दूसरी शताब्दी के बताते है परन्तु उस काल में यहाँ मंदिरों का निर्माण नहीं हुआ था।

यहाँ से देवी की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है जो अनंगपाल के कुलदेवी की हो सकती है देवी की पूजा पांडव वंश दुवारा ही की जाती थी|

मंदिर संख्या एक का निर्माण खुले मैदान में किया गया है।मंदिर संख्या दो के सामने अश्वपाद आकर के गर्भ गृह का निर्माण किया गया था।गर्भ गृह के चारो तरफ पदक्षीनापथ के प्रमाण मिले हैं।इन मंदिरों को कुषाणकालीन बताना इतिहास के साथ एक धोखा है। कनिष्क खुद बौद्ध धर्मी था और बौद्ध धर्म मूर्ति पूजा के खिलाफ था अतः एक बौद्ध धर्मी राजा हिन्दू मंदिर का निर्माण क्यों करवाता यह हो सकता है यह उस समय बौद्ध विहार रहा होगा जिस पर मंदिर निर्माण जाट राजा अनगपाल ने करवाया हो


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मंदिर संख्या दो को मंदिर संख्या एक से अधिक प्राचीन माना गया है।इसका प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में था।मंदिर की लंबाई 3.80 मीटर थी इसके स्तम्भो का निर्माण 0.84 मीटर की दूरी पर किया गया था।मंदिर में पत्थर की रेलिंग के कुछ अवशेष मिले हैं। मंदिर संख्या दो से नाग आकृति का प्राप्त होना इसके शिव या नाग मंदिर होने के प्रमाण हैं।तोमर वंश के राजा भी सिक्को पर शिव के नंदी का अंकन करवाते थे यहाँ कांसे की एक युगल मूर्ति और विष्णु भगवान की पत्थर की प्रतिमा और देवी की प्रतिमा प्राप्त हुई है|

सौंख से सात भवनों के निर्माण की योजना स्पष्ट रूप से प्राप्त होती है| इस किले का सबसे अंत में पुनःनिर्माण अनंगपाल के वंशज राजा हाथी (हठी) सिंह ने करवाया था यह किला नाजिम खान के साथ चार महीने चले युद्ध में नष्ट हुआ था| इस किले में खुदाई में तोप के गोले भी प्राप्त हुए है| जो मुगलों और जाटों के मध्य हुए संघर्ष के प्रतीक चिन्ह मात्र है| राजा हठी सिंह ने किले के समीप ही तीन किलेनुमा हवेलीयों का भी निर्माण करवाया था| इन हवेलियो को सुरंग दुवारा किले से जोड़ा गया था| इन में से दो हवेली पूर्णतया नष्ट हो चुकी है जबकि एक हवेली की दीवार अभी तक मौजूद है


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सौंख किले और गोवर्धन क्षेत्र के पुन निर्माण के बारे में विभिन्न इतिहासकारों के कथन

1. जर्मन इतिहासकार Annette Achilles-Brettschneider ने अपनी बुक die besonderen scherben" von sonkh में लिखा है- Die Nachkommen von Anangpal Tomar ließen sich in Sonkh nieder Zu seinen Nachkommen gehörte Jat Raja Ahlad Singh Ahlad Singh und König von Anangpals Nachkommen hatten Raja gesungen, der das Fort von Sonkh wiederaufgebaut hatte

अर्थ – अनंगपाल तोमर के वंशज सौंख में बस गए उनके वंशजों में जाट राजा अहलाद सिंह हुए थे. अहलाद सिंह और अनंगपाल के वंश में हठी सिंह राजा थे, जिन्होंने सौंख किले का पुनःर्निर्माण किया था.

2. जर्मन बुक Jahrbuch der Stiftung Preussischer Kulturbesitz, Volume 12 में लेखक gebr पेज 136 पर लिखता है- Saunkh altes Fort, das von einem named hathi singh jat wieder aufgebaut wurde. Maharaja Hati Singh Soukch war zeitgenössisch für Maharaja Surajmal von Bharatpur.

अर्थ – सौंख के पुराने किला जिसका पुन निर्माण जाट राजा हठी सिंह ने करवाया था जो महाराजा सूरजमल के समकालीन थे.।

3. German scholars on India contributions to Indian studies Volume 2 page 70-76-77 (लेखक -Friedrich Max Müller) - हिंदी रूपांतर – सौंख का किला मजबूत किला था जिसका निर्माण हठी सिंह ने करवाया था।


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4. रत्न चन्द्रिका – ओरिएंटल स्टडीज में लेखक देवेन्द्र हंडा और अश्वनी अग्रवाल पेज 76 पर लिखते हैं कि सौंख के किले पर राजा हठी सिंह राज करता था।

5. Indian Archaeological Survey of India, 1975 phase 11 पेज 43 पर लिखा है कि सौंख के किले का पुन निर्माण जाट राजा हठी सिंह ने करवाया था।

6. Mathura-Brindaban-The Mystical Land Of Lord Krishna नामक बुक के पेज 421 पर सौंख के किले का पुनःनिर्माण जाट राजा हठी सिंह ने करवाया था।

7. बुद्धिस्ट इंडिया नामक बुक में रमेश चन्द्र शर्मा लिखते हैं - राजा हठी सिंह ने सौंख के किले का दुबारा से निर्माण करवाया था।

8. Cultural News from India, Volume 17 – 1976 सौंख के किले का अंतिम निर्माण हाथी सिंह नाम के जाट राजा ने करवाया था।


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9. एक्सकैवशन एट सौंख के लेखक हेर्बेट हर्टल ने लिखा है कि सौंख के किले का पुनः निर्माण राजा हठी सिंह ने करवाया था।यह दिल्ली के राजा अनंगपाल सिंह के वंशज है।

10. संग्रहालय पुरातत्व पत्रिका वॉल्यूम 14 के अनुसार सौंख के किले का पुनः निर्माण राजा हठी सिंह ने करवाया था।


सोनोठ गढ़ अनंगपाल का किला

इस किले का निर्माण भी राजा अनगपाल देव तोमर ने करवाया था। उनके पूत सोहनपाल देव के नाम से यह किला सोनोठ गढ़ के नाम स प्रसिद्ध हुआ था। सोहनपाल देव के बाद उनके गोद लिए पुत्र सोनदेव को यह किला जागीरी में मिला था।इस किले के समीप ही महाराजा अनंगपाल देव ने अपनी कुल देवी माँ मनसा के मंदिर का निर्माण करवाया था।पुरातत्व विभाग द्वारा यह क्षेत्र संरक्षित घोषित है।वर्तमान में यहां 384 ग्राम खुटेलपट्टी में अनगपाल के वंशज निवास करते हैं।


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जगाओ की हस्त लिखित पोथी से भी इस किले का निर्माण राजा अनंगपाल द्वारा करवाये जाने का उल्लेख है। इसी के समीप मंदिर कुल देवी का मंदिर भी राजा अनंगपाल ने बनवाया था।किले और मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है। की राजा अनंगपाल अपने किले से ही देवी के दर्शन कर सके इसी किले में राजा अनंगपाल देव अपने जीवन के अंतिम दिनों में भक्ति किया करते थे। यही पर राजा अनंगपाल की मृत्यु चैत्र शुक्ल 1081 ईस्वी में हुई थी।यह किला अधिक ऊँचाई पर होने के कारण कई सौ किलोमीटर का क्षेत्र यहां से दिखाई देता था।किले में तीन मुख्य दरवाजे थे । किले के चारो तरह पानी से भरी हुई खाइयाँ थी।गुलामवंशी सुल्तान बलवन के हमले का यह दुर्ग साक्षी रहा था। अंग्रेज़ो के समय मे खजाने के लालच में किले की खुदाई कर के नष्ट कर दिया गया है। यह क्षेत्र वर्तमान में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित था।


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सोंसा की गढ़ी:

सोंसा की गढ़ी का निर्माण भी राजा अनंगपाल तोमर ने करवाया था।वर्तमान में यह अस्तित्व में नही है।

गोवर्धन किला:

गोवर्धन के किले का वर्तमान में स्वतंत्र अस्तित्व नही मिलता है। लेकिन इस किले का वर्णन ग्रोवस ने अपनी पुस्तक में किया है।

फराह किला:

वर्तमान में फराह में कोई भी किले का अस्तित्व नही है लेकिन इतिहासकारो ने यहां किले के होने का ज़िक्र किया है


अडींग किला:

अडिंग में किले का निर्माण जाट राजा अनंगपाल देव ने करवाया था| अपने शासको की वीरता अडिंगता के कारण अडिंग नाम से प्रसिद्ध हुआ अडिंग के किले का पुनः निर्माण करवाने का श्रेय अनंगपाल के वंशज जाट राजा अडिंग फौंदासिंह को जाता है।इस किले पर अनूपसिंह ,अतिराम सिंह,फौदा सिंह,जैत सिंह ने शासन किया था।यह किला ऊंचे टीले पर स्थित है। इस किले के निर्माण में ब्रज की जाट स्थापत्य कला की झलक देखने को मिलती है।


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यह किला छोटी छोटी पक्की ईटो से निर्मित है। किले के अंदर एक प्राचीन जल कुण्ड है। यह किला वर्तमान में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।


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राजा हठी सिंह के दुर्ग अध्याय समाप्त