Braj Kesari Raja Hathi Singh/Raja Hathi Singh Ke Pramukh Yuddh

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
मुख्य पृष्ठ और विषय सूची पर वापस जायें
अगले भाग (भूमिका) पर जायें


राजा हठी सिंह के प्रमुख युद्ध

राजा हठी सिंह बड़े वीर थे।अपने जीवन काल मे उन्होंने अनेको युद्ध किए और उन युद्धों में विजय प्राप्त की थी।"The Jats - Their Role in the Mughal Empire" के लेखक पंडित गिरीशचन्द्र द्विवेदी लिखते हैं कि तोमर खुटेल जाट सरदार सुखपाल सिंह, हठी सिंह, फौदासिंह अडिंग ने चुरामन के साथ मिलकर मुगलों के नाक में दम कर दिया था। इन घटनाओं से तंग आकर बाद में मुगलों ने हिम्मत हार कर के चूरामणि , सरदार हठी सिंह, फौदासिंह अडिंग ने जिन के क्षेत्रो पर अधिकार किया था।उन क्षेत्रों को इनके अधीन मानकर इन्हें राजा घोषित किया था।

'दस्तरूल इंसा’ के लेखक ‘यार मोहम्मद’ के अनुसार “आगरा तथा दिल्ली का शाही मार्ग दो महीने तक इन जाटों वीरों के विद्रोह के कारण पूर्णतः बन्द रहा, जिससे हजारों यात्रियों को अपनी सरायों में ही रुकना पड़ा। इन काफिलों में सुप्रसिद्ध योद्धा अमीन्नुद्दीन सम्भाली की पत्नी भी शामिल थी। उसे भी जाट वीरों के कारण मार्ग में दो महीने तक रुकना पड़ा।ब्रज क्षेत्र को मुगलों के आतंक से मुक्ति दिलवाने में इन वीरों का बड़ा योगदान रहा.


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-39


सौंख युद्ध,सितम्बर सन 1688 ईस्वी 1688 ईस्वी तक ब्रज के जाट वीरों ने मुगलों की सभी सैनिक चौकियां ब्रज क्षेत्र में नष्ट कर दी थी।ऐसा करके इन्होंने ब्रज क्षेत्र से मुगल साम्राज्य का नामोनिशान मिटा दिया गया था। ऐसे में मुगलों ने जाटों से युद्ध करने के लिए अपने मुगल सेनापति विशन सिंह आमेर को जाटों से लड़ने सौंखगढ़ भेजा था। मुगलों द्वारा नियुक्त बिशनसिंह आमेर विशाल मुगल फौज लेकर सितम्बर 1688 ईस्वी में सौंखगढ़ पहुँचा था। विशन सिंह का यह मानना था कि विशाल फौज देखकर जाट आत्मसमर्पण कर देंगे लेकिन शीघ्रता से उसका यह भ्रम भी दूर हो गया जब जाटों ने विशाल मुगल सेना के सामने अपने मोर्चे लगा दिए थे। चार महीनों तक जाट-मुगल संघर्ष चलता रहा लेकिन कम संख्या में होते हुए भी जाटों ने बड़ी वीरता से मुगलों की विशाल फौज को रोके रखा था। सौंखगढ़ को जीतने में मुगलों की शक्तिशाली सेना को भी चार महीने का समय लग गया। हठी सिंह के पिता उस समय यहाँ के अधिपति थे। जनवरी सन 1689 ईस्वी में बड़े संघर्ष और अपने कई अजेय योद्धाओं को खोने के बाद ही मुग़ल सेनापति बिशन सिंह इस पर कब्ज़ा कर पाए परन्तु कुछ ही वर्ष बाद हठी सिंह ने इस पर पुनः कब्ज़ा कर लिया था।

गावत विजय गीत सुहागने चली आई बहि था

जहाँ खड़े रण रस में सने वीर बहादुर खुटेल जट्ट जवान


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-40


राजोरगढ़ ,बसवा का युद्ध 1689 ईस्वी

जाट वीरों ने राजोरगढ़ और दौसा, बसवा को निशाना बनाया था| जाटों ने 1689 ईस्वी में रैनी को लूट लिया था| यहाँ से योद्धाओं की टुकड़ी बसवा पहुंची यहाँ इन वीरों ने मुगलों और जयपुर की सभी निकटवर्ती सैनिक चौकियों से कर वसूल किया था| इतिहासकार डॉ राघवेंद्र सिंह राजा हठी सिंह और मुगल सेनापति विशनसिंह आमेर की सेनाओं के मध्य बसवा नामक स्थान पर भीषण युद्ध होना लिखते हैं। डॉ राघवेंद्र सिंह के अनुसार यह जाट मथुरा क्षेत्र (सौंख) के निवासी थे। इस युद्ध के साक्षी बहुत सी छतरी और चबूतरे आज भी यहां मौजूद हैं। प्राचीन दस्तावेजों के आधार यह युद्ध कार्तिक माह में संवत 1746 (1789 ईस्वी) को हुआ था। युद्ध का तत्कालीन कारण राजा हठी सिंह की सैनिक टुकड़ी द्वारा मुगलिया राजपूत सैनिकों से कर वसूली करना था। इस टुकड़ी ने अपनी विजय को अक्षुण्य बनाये रखने के लिए अपने नाम से खुटेला (खुटला) नाम जगह बसाई जो वर्तमान में एक गाँव के रूप में आज भी अस्तित्व में है।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-41


यहां से एक टुकड़ी रणथम्भोर क्षेत्र में चली गई उन्होंने जिस जगह पड़ाव डाला। आज भी वो क्षेत्र कुंतलपुर जाटान कहलाता है। इन में से कुछ लोग टोंक जिले में स्थाई रूप से बस गए। अधिकांश पुनः सौंखगढ़ लौट आये थे।

सौंख युद्ध 1694 ईस्वी

सौंख पर पुनः अधिकार करने के पश्चात मुगलो का आसपास के क्षेत्र से सफाया करना अत्यधिक आवश्यक कार्य था। इसी कार्य के तहत जाटों का मुगल सैनिकों से पुनः 1694 ईस्वी में सौंख के निकट युद्ध हुआ था। इस युद्ध 80 से ज्यादा मुगल सैनिक बंदी बनाए गए थे जबकि इससे ज्यादा मुगल सैनिक अल्लाह को प्यारे हो गए थे।

सन 1701 ईस्वी का मुगल विरोधी अभियान

सौंख के हठी सिंह और थून के चूड़ामणि ने सिन-खूंट -सोंग-चाह संगठन के माध्यम से मुगल समर्थक रियासतों को सबक सिखाने की योजना बनाई थी इस योजना के अंतर्गत मुगलो के अधीन कोटा,बूंदी,जयपुर रियासत के ठिकानों से कर वसूल करके मुगलो को ताकत का अहसास करवाना मुख्य उद्देश्य था। सौंख के हठी सिंह और थून के चूड़ामणि के नेतृत्व में ब्रज जटवाड़ा की सयुक्त सेना ने बूंदी रियासत में प्रवेश किया और बूंदी रियासत में पहुँचकर इन वीरो ने मुगल समर्थन ठिकानेदारों से कर वसूल किया मुगलो कि सैन्य चौकियों को नष्ट करते हुए यह लोग रणथम्भोर के रास्ते पुनः ब्रज जटवाड़ा क्षेत्र में लौट आये थे।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-42


चम्बल युद्ध(सन 1707 ईस्वी)

औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्रो मुअज्जम(शाह आलम) और आजमशाह(बहादुर शाह) के मध्य दिल्ली की गद्दी पर उत्तराधिकार को लेकर जाजऊ का युद्ध हुआ था। इस युद्ध के बाद शाहआलम की सेना ग्वालियर की तरफ भाग खड़ी हुई थी।लेकिन ग्वालियर से पहले ही चम्बल नदी के बीहड़ खन्द्ररो में जाट छापेमार सैनिक राजा हठी सिंह व अन्य जाट सरदारों के साथ मोर्चा जमाए हुए थे। बहादुरशाह नामा के पृष्ठ 164 के अनुसार जब ग्वालियर जाने के लिए मुगल सेना चम्बल के नजदीक पहुँची तो यहां पहले से ही मोर्चा लगाए हुए जाट सैनिकों से 9 जून 1707 ईस्वी के दिन मुगलो का घनघोर युद्ध हुआ था। यह युद्ध चम्बल नदी के बीहड़ों में होने के कारण इतिहास में यह युद्ध "चम्बल का युद्ध " नाम से प्रसिद्ध है। बहादुर शाह नामा के अनुसार इस युद्ध मे जाटों (हठी सिंह के नेतृत्व में)ने मुगलो का भीषण नरसंहार किया था। चम्बल की घाटी(बीहड़) मुगल सेनिको के शवो से भर गई थी।इतिहासकार इर्विन के अनुसार जाटों ने मुगलो को इस युद्ध(चम्बल का युद्ध) मे करारी शिकस्त दी जाटों ने मुगलो के खजाने को जीत लिया था।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-43


युद्ध मे घायल मुगल सैनिकों की चीत्कारे चारो तरफ सुनाई दे रही थी। यह चीत्कारें ऐसे प्रतीत हो रही थी की मानो जाटों के विजय और शौर्य का संजीव गुणगान हो

मुगलो से खिराज वसूल करना

सन 1708 ईस्वी में हठी सिंह ने मथुरा परगने में मुगल अफगान लोगो से खिराज कर वसूलने करने का अभियान चलाया था। इस क्षेत्र में मुगल काल से कुछ गांवों में बलूच ,अफगान लोग मुगलिया मुलाजिम के रूप में निवास करते थे| यह लोग मुगलो के लिए कर वसूल और सैनिक सहायता प्रदान करते थे।ब्रज क्षेत्र से जब मुगलो का नाश हो चुका था तब भी यह लोग कभी कभी अपना सिर उठाने का प्रयास करते थे इनका समूल विनाश के उद्देश्य से हठी सिंह ने आहुआपुर और ओल ग्राम में निवास करने वाले अफगान लोगो पर हमला किया था। इतिहासकार नरेंद्र सिंह पृष्ठ 86 पर लिखते हैं आहुआपुर और ओल के अफगानों को युद्ध मे हराकर के राजा हठी सिंह ने अपने अधीन करने के बाद इन से कर वसूल किया था| इसके साथ बेरी ग्राम में हठीसिंह ने एक सैनिक चौकी स्थापित की और परखम गाँव मे धर्म परिवर्तन कराके पुनः बहुत से परिवारो को हिन्दू बनाया इस काल में अफगानों के गाँव के गाँव के नष्ट कर दिए गए थे|


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-44


इसी समय शेरपुर के बलूच मुस्लिमो ने मथुरा के सभी बलूच और थिरावली के अफगानी मुस्लिमो को साथ लेकर विद्रोह कर दिया था।थिरावली और शेरपुर के मुस्लिमो को हठी सिंह ने युद्ध मे हराकर इनकी बस्तियों को यहां से उजाड़ दिया था।शेरपुर को नौह क्षेत्र के नौहवार जाटों के अधीन दे दिया गया जबकि थिरावली ,जुड़ावई और औल में बमरौलिया राणा जाटों को जमीन देकर बसाया गया था।

मेवात विजय (1716 ईस्वी)

दिल्ली के मुग़ल बादशाह फर्खुसियार द्वारा नियुक्त सूबेदार सैय्यद गैर मुस्लिम प्रजा पर अत्याचार करता था| उसके आतंक से तंग होकर मेवात के हिन्दुओ का एक दल सौंख ,थून के विद्रोही जाटों से मदत मांगने के लिए दिसम्बर 1715 ईस्वी में पाल पंचायत में पहुँचा पंचायत में राजा हठी सिंह ने मेवात के हिन्दुओ की सहायता की जिम्मेदारी ली थी |


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-45


कविवर ने इस घटना वर्णन अपने शब्दों में निम्न प्रकार से किया है -

जब मुस्लिमो ने हिन्द में आततायी फैलाई थी।

तब हठी सिंह हिन्दुओ को तेरी याद आई थी।।

जब मेवात का जख्मी हिन्दू रोया होगा।

हठी सिंह तब तू ना सोया होगा।।

राजा हठी सिंह ने जनवरी 1716 ईस्वी में अपने सैनिको के साथ सौंख गढ़ से प्रस्थान कर मेवात पर आक्रमण कर दिया इस लड़ाई में सौंख के चार हज़ार जाट सैनिको के साथ 3000 अन्य हिन्दू खापे पालो के योद्धाओ ने भाग लिया था। जाटों ने मुगलों पर प्रथम हमला तावडू में किया था|

इस लड़ाई में जाट वीरो ने अपार साहस दिखाते हुए तावडू की मुग़ल चौकी पर कब्ज़ा कर लिया था | इस लड़ाई में अनेक जाट वीरो ने अपने प्राणों की कुर्बानी दी lजिनमे फोंडर का हरपालसिंह,करना सिनसिनवार, चरणपाल चाहर ,धारीवाल,सौरोत ,रावत,डागर, छोंकर व अन्य जाट गोत्र के वीरो ने बलिदान दिया इस प्रथम हमले में विजयी सेना ने आगे बढ़ते हुए खासेरा की गढ़ी पर कब्ज़ा कर लिया था।

उद्दार करो ए पाण्डवराज मेवात ने यह आवाज़ लगाई थी।

तब हठी सिंह ने मेवात की छाती पर जंगी तलवार लहराई थी।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-46


इस युद्ध मे मुगलो के 1200 से ज्यादा सैनिक युद्ध में मारे गए इस विजय के बाद जाट सेना ने राजा हठी सिंह तोमर के नेतृत्व में मेवात के प्रमुख किले जहाँ सैय्यद छुपा बैठा था,उस जगह को प्रस्थान किया और किले पर मजबूत घेरा डाल दिया सैय्यद की सेना ने नूंह के निकट जाटों का सामना करने का अंतिम असफल प्रयास किया लेकिन जाटों ने सैय्यद को बंदी बना लिया राजा हठी सिंह ने जनवरी 1716 को मेवात पर पूर्णरूप से कब्ज़ा कर लिया था।यहाँ के मुग़ल समर्थक लोगो से कर वसूला गया मुगलो की चौकिया नष्ट कर दी गई थी। इस विजय के बाद नूह के गोरवाल ब्राह्मणों ने राजा हठी सिंह को एक पोशाक और भगवान् कृष्ण का मोर पंख उपहार स्वरूप दिया था। राजा हठी सिंह ने कब्ज़े में आये मुग़ल खजाने से मंदिरों की मरम्मत के लिए धन राशि की व्यवस्था की हठी सिंह की शौर्य वीरता से पूरा विश्व गुंजयमान हो रहा था । जाट राजा हठीसिंह ने पूरे सात महीने तक मेवात पर कब्ज़ा बनाए रखा था|


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-47


  • मेवात विजय के संदर्भ में कुछ इतिहासकारों के कथन-

“मरू भारती वॉल्यूम - 42 राजस्थान साहित्य बिडला एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित के अनुसार”-

सौंख के शासक हठी सिंह ने मेवात के मुग़ल फौजदार सैयद को हरा के मेवात पर कब्ज़ा कर लिया तब नारनौल का मुग़ल फौजदार गैरत खान को मेवात भेजा गया था| तब सैय्यद गैरत और हठी सिंह के मध्य में युद्ध हुआ इस युद्ध में गैरत खान परास्त होकर युद्ध स्थल से भाग गया था| नारनौल का मुग़ल फौजदार गैरत खान ने दिल्ली में मुगलों से सहायता भेजने को कहा तब मुगलों ने 16 मार्च 1716 को दुर्गादास के साथ एक बड़ी फ़ौज मेवात भेजी गई मार्च महीने में शुरू हुई इस मुग़ल सैनिक अभियान को जुलाई में तब सफलता मिली जब सौंख और थून की तरफ मुगल सेना भेजी गई ।

नागरी प्रचारिणी पत्रिका वॉल्यूम 72 के अनुसार राजा हठी सिंह ने मेवात पर कब्ज़ा कर लिया था| 16 मार्च 1716 ईस्वी को अतरिक्त मुग़ल सेना को दिल्ली से भेजने का आदेश बादशाह ने दिया था | 31 मार्च 1716 ईस्वी को इस सेना की खासेरा नामक गढ़ी पर हठी सिंह से युद्ध हुआ था|

दुर्गादास राठोड ग्रंथमाला के अनुसार सौंख के जाट राजा हाथी सिंह ने मेवात पर कब्ज़ा कर लिया था |18 फरबरी 1716 को दुर्गादास मुगलों के दरबार में उपस्थित हुआ


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-48


तब दुर्गादास को जाट राजा हाथी सिंह के विरुद्ध युद्ध अभियान मार्च महीने में मेवात भेजा पर भेजा । लेकिन आधे रास्ते से ही दुर्गादास मुगलों को छोड़ सादड़ी लौट आया स्वतंत्रता प्रेमी दुर्गादास राठोड नामक किताब---

इस किताब में इस घटना उल्लेख है दुर्गादास 18 फरबरी 1716 ईस्वी में मुग़ल दरबार में उपस्थित हुआ और यहाँ से बादशाह ने हठी (हाथी) सिंह के विरुद्ध युद्ध में मुगलों की सहायता करने के लिए मेवात भेजा यह अभियान जुलाई 1716 ईस्वी तक चला

16 मार्च 1716 ईस्वी से जुलाई 1716 ईस्वी तक पांच महीने 20 दिन तक यह युद्ध अनवरत चला था | राजा हठी सिंह ने मुस्लिम बाहुल्य मेवात में अपने गढ़ सौंख से कई सौ किलोमीटर दूर मुगलों के गढ़,किले अपने अधीन कर लिए थे| इतिहास में यह घटना कम ही देखने को मिलती है जब धर्म परायण राजा ने हिन्दुओ की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवा किए बिना ही शक्तिशाली शत्रु को उसी के घर में धुल चटा दी हो

राजा हठी सिंह द्वारा दिल्ली की नाक के नीचे कब्ज़ा जमाय रखना बड़ी बहादुरी का काम था। राजा हठी सिंह के वीर रणबांकुरो ने मुगलों के सीने छलनी कर दिए रोज-रोज़ होने वाली मुठभेड़ में मुगलों को ज्यादा नुकसान उठाना पड रहा था ।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-49


इस समय थून के अधिपति ठाकुर चूड़ामणि सिनसिनवार भी खुल कर मुगलों की नाक में दम कर रहा था निराश मुग़ल यह समझ चुके थे की इनसे लड़ कर जीतना लगभग असंभव है इसलिए जब हठी सिंह को हराया नहीं जा सका तब मुगलों ने दबाब की नीति अपनाई उन्होंने मुग़ल सेनापति आमेर के जय सिंह के साथ 14 हज़ार की फ़ौज भरतपुर थून गढ़ और सौंख गढ़ की तरफ रवाना की ताकि जाट राजा चूड़ामणि और राजा हठी सिंह पर दबाब बना सके मुग़ल जानते थे की हठी सिंह के परिवार जन सौंख गढ़ में है और यह जाट जो मौत से भी नहीं डर रहे अपने परिवार जन की सुरक्षा के लिए अवश्य जायेगे ।

तब कही जाकर हठी सिंह मेवात गढ़ी को खाली कर सकुशल ब्रज में पंहुचा जहाँ जाट डूगो की विशाल पंचायत में वो सम्मलित हुआ था | जुलाई माह में ही जाट वीरो ने जय सिंह को सबक सिखाने की तैयारी कर ली थी| सितम्बर में जय सिंह ने बूंदी के राजा और मुग़ल सूबेदार के साथ मिलकर युद्ध अभियान को तेज कर दिया लेकिन लाख प्रयासों के बाद भी मुगलों के हाथ पराजय ही लगी थी|


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-50


  • मेवात विजय को समर्पित कविता

मुगलो की बर्बादी कैसे भूल जाए।

हठी सिंह तेरी कुर्बानी कैसे भूल जाये।।

जब मुस्लिमो ने हिन्द में आततायी फैलाई थी।

तब हठी सिंह हिन्दुओ को तेरी याद आई थी।।

जब मेवात का जख्मी हिन्दू रोया होगा।

हठी सिंह तब तू ना सोया होगा।।

करदो उद्दार ए पाण्डवराज मेवात ने यह आवाज़ लगाई थी।

तब हठी सिंह ने मेवात की छाती पर जंगी तलवार लहराई थी।।

मेवात में खुशी मनाई थी.......

मत डरो इन मुगलिया अँधियारे से अब भोर होने वाला है।

गर्जना सुन पा रहा हूँ हठी सिंह शेर आने वाला है।।

जल रहा है पूरा मेवात अब मुगलिया शासन हिलने वाला है।

सुना है अपने कानों से अब हठी सिंह राजा आने वाला है।।

तब मेवात की धरती पर ब्रज का शेर दहाड़ा था।

मुगलो के नरमुंडों का पर्वत वहाँ बनाया था।।

तब डर के सैय्यद वहां से भागा था।

तावडू की धरती पर विजय फताका लहराती है।।

मेवात विजय की यह गाथा घर घर मे गाई जाती है.


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-51


सौंख गढ़ के राजा हठी सिंह के मेवात विजय को समर्पित कवि इक़बाल सिंह की रागनी

जुल्म के सताये लोगो की ली अड़कर खुली हिमायत सुनो

समय -समय पर जाट वीरों ने,की बड़ी-बड़ी शुरुआत सुनो(टेक)

राजा हठी सिंह ने सौंखगढ़ में, एक पंचायत बुलाई थी

दिवंगत जाट वीरों की उन्होंने जाटों को याद दिलाई थी

वीरों के बलिदान पर,जाट वीरों की नज़र टिकाई थी

जालिमो के विरुद्ध आर पार की, जंगी आवाज़ उठाई थी

फिर तावडू को कूच किया ,देने दुश्मनों को मात सुनो(1)

होड़ लगाकर जाट वीरों ने ,रणभूमि में बलिदान दिए थे

हर मोर्चे ओर राजा हठी सिंह ने गौरवशाली ऐलान किये थे


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-52


गद गद हो हिन्दू गौरवाल पंडितों ने,सेना के सम्मान किये थे

नूंह के निकट विभिन्न मोर्चो पर बड़े बड़े घमासान हुए थे

नबाब सैय्यद के काम ना आई थी, कोई भी करामात सुनो (2)

फिर नारनौल से नबाब की मदत को गैरत खान आया था

हर मोर्चे पर गैरत खान ने,अपना अपमान करवाया था।

पीट पीट कर रणभूमि से उसे ,जाट वीरों ने भगाया था

डर के सात महीने तक कोई मुगल मेवात में नही आया था

कई सौ मील दूर जाटों ने यूँ फतेह की मेवात सुनो(3)

आर पार की जंग का सदा संकल्प लिया है जाटों ने

शोषित पीड़ित जनता को सदा न्याय दिया है जाटों ने

विपत्तियों में भी अपना जीवन शान से जिया है जाटों ने

राजा हठी सिंह की इक़बाल कवि , है ऐसी अनेको बात सुनो

जुल्म के सताये लोगो की ली अड़कर खुली हिमायत सुनो

समय -समय पर जाट वीरों ने,की बड़ी-बड़ी शुरुआत सुनो(टेक)


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-53


मुगलो ने अपनी फौज को मुगल सेनापति जयसिंह के नेतृत्व में हिंदुओं के विद्रोह को कुचलने के लिए ब्रज जटवाड़ा क्षेत्र में भेजा

सौंख की गढ़ी को जीतने के लिए एक शाही सेना दिल्ली से रवाना की गयी इसकी सुचना चूड़ामणि को गुप्तचरों से मिलने पर सिन खुंट की पंचायत की गयी जिसमे फौदासिंह को गोवर्धन से सिनसिनवार सरदारी के जंगल तक अपने छापामार सैनिको को तैनात करने का आदेश पंचायत में दिया गया मुगलों की शाही सेना ने राधाकुंड पर कैम्प लगाया सौंखगढ़ के जाट वीरो ने मुगलो के सैनिक कैम्प को लूटकर नेस्तनाबूद कर दिया था। मुगलो के जाट गढ़ियों को जीतने के इस अभियान में आमेर के मुगल सेनापति जयसिंह और आगरा के मुगल प्रशासक नुसरतयार खान सम्मलित थे।इतिहासकार इरविन के अनुसार सन 1716 ईस्वी से 1718 ईस्वी तक चले इस अभियान में मुगलो को असफलता ही हाथ लगी थी।

बहज का युद्ध(नवम्बर 1716)

इतिहासकार इर्विन के अनुसार मुगल सेना जब थून की गढ़ी पर आक्रमण करने जा रही थी।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-54


तब सिनसिनवार वतन में प्रवेश करने से पहले ही मुग़ल सेना की टुकड़ी को बहज गाम के पास सौंख के जाट राजा हठी सिंह ने घेर लिया था। इस समय हाथी सिंह के साथ अडिंग के जाट ठाकुर (राजा )फौदासिंह के बड़े कुंवर अनूप सिंह ,हाथी सिंह के पुत्र श्याम सिंह ,मोहकम सिंह(चूड़ामणि के पुत्र) और पांच सहस्त्र सैनिको की एक टुकड़ी ने इस युद्ध मे भाग लिया था।मुगल और जाट सेना के मध्य भीषण लड़ाई हुई जिसमे मुगलों के बहुत से सैनिक मारे गए थे। बहादुर खुटेल वीरो के आगे मुगलो की शाही सेना भी पीछे हट गई थी। फारसी लेखको ने इस लड़ाई को 13 जिल्हज के दिन होना लिखा है।यह युद्ध 1716 ईस्वी में नवम्बर माह में हुआ था। इस युद्ध के कुछ समय बाद ही मोकहम सिंह और मुगलों की शाही सेना के मध्य थून के जंगलो में एक बार पुनः संघर्ष (युद्ध) हुआ था। शिवदास सिंह कृति के अनुसार जाटों के डुंग सरदारों ने मुगलों और जय सिंह के इस अभियान को असफल बना दिया था।

रणभूमि भूमि में हठी सिंह और उनके साथीयों की वीरता के लिए ब्रज के कवि लिखते हैं।की

मुगलों की छाती भी दहल उठी

जब हठी सिंह रण भूमि में


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-55


सन 1720 ईस्वी में जाट खाप(पालों) की ब्रज में पंचायत हुई. जिसमें ठाकुर चूडामणि को अध्यक्ष और हठी सिंह को मुख्य पंच चुना गया. मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह ने ब्रज के जाटों की सभी शर्त मान ली थी।हिंदुओ के धार्मिक स्थल मुगलों के कब्ज़े से मुक्त हो गये. सम्राट् मुहम्मदशाह ने इस समय चाहर, कुंतल, सिनसिनवार, सोगरवार पालों के मुखिया को को अधिकार देकर सम्मानित किया.लंबे समय से चले आरहे जाट मुगल संघर्ष कुछ समय के लिए थम गया था।


उत्तराधिकारी संघर्ष सन 1721ईस्वी

थून के राजा चूड़ामणि की 1721 ईस्वी में आकस्मिक मृत्यु हो जाने के कारण सिनसिनवार पाल की सरदारी के प्रश्न पर सभी जाट गोत्र की पाले दो भागों में विभाजित हो चुकी थी।चूड़ामणि के पुत्र मोहकम सिंह के पक्ष में सोगरवार पाल के मुखिया ठाकुर खेमकरण सिंह ,गढ़ासिया पाल के विजयसिंह,मांडू के जाट सरदार भूरीसिंह, दयाराम और डेहरा के तुलाराम सिंह थे। तो चूड़ामणि के भतीजे के पक्ष में खुटेला पाल के सौंख के हठी सिंह और अडींग के ठाकुर फौदा सिंह जाट,नाहरवार पाल के मुखिया और देशवाल पाल के मुखिया थे।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-56


26 जून 1724 को सिन-खूंट सम्मलेन

उत्तराधिकारी के संघर्ष में विजयी होने के बाद बदनसिंह ने अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए सिनसिनवार और खुटेला तोमर जाटों के एक संगठन की स्थापना करने के उद्देश्य से सौंख के हठी सिंह और अडींग के फोन्दा सिंह के साथ कुछ समझौते किए थे। उत्तराधिकारी युद्ध के दौरान ब्रज क्षेत्र के जाटों की मुख्य चार डुंगो का संगठन सिन-सोंग-खूंट-चाहर पूर्णतः टूट चुका था। ऐसा समय मे सिन -खूंट संगठन की आवश्यकता थी।


खुटेला तोमर और सिनसिनवार जाटों ने अपनी अपनी सरदारी की सीमा निर्धारित की जिसके अंतर्गत फराह क्षेत्र के आसपास के गांव सौंखगढ़ में और हेलक का क्षेत्र सिनसिनी के अंतर्गत मिला दिया गया था। ब्रज की चार प्रमुख डुंग जिसमे सिनसिनवार जाटों का डीग,सिनसिनी, थून में, कुन्तल(खुटेला तोमर) सौंख, अडींग,गोवर्धन, फराह में,सोगरवार जाट फतेहगढ़ी,सोगर में,चाहर जाट अकोला,चैकोरा पर अधिकार किए हुए थे।इनके अतिरिक्त ठेनुवा लोग हाथरस,मांडू ,और नौहवार जाट बाजना, नौह झील पर सक्रिय रूप से अधिकार किए हुए थे।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-57

मुगल जाटों के आगे झुकना(मुगल जाट समझौता 23 जनवरी 1726 ईस्वी)

सिनसिनवार पाल के मुखिया बदनसिंह और कुंतल(खुटेला तोमर) पाल के मुखिया फौदासिंह ,राजा हठी सिंह की बढ़ी हुई शक्ति से भयभीत होकर दोनों को 23 जनवरी 1726 को राजा (ठाकुर) स्वीकार करते हुए सिरोपाव मुग़ल बादशाह ने प्रदान किया था। जयपुर इतिहास में यह तारीख भादो वदी 2 संवत 1783 अंकित है. साथ ही यह भी दर्ज है कि हठी सिंह और फौदाराम के पास 10 लाख आय का क्षेत्र इस समय मोजूद था. जयपुर इतिहास के अनुसार इसी वर्ष समझोते के बाद 1726 में कुम्हेर किले की नींव रखी.

सिन-खुंट संघ से जाटों की ताकत इतनी बढ़ गयी कि आमेर के राजा ने मालवा अभियान में उनसे सहायता मांगी. महाराजा सूरजमल ने अडिंग के राजा फौदासिंह कुंतल के पुत्र जैतसिंह और अपने पुत्र के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी सहायता के लिए भेजी.


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-58


मराठो को सशर्त चम्बल पार करने देना

"तारीखे के हिन्द" नामक मुग़ल कालीन दस्तावेज में इस घटना का ज़िक्र किया गया है. आमेर नरेश जयसिंह ने जाटों से सहायता की याचना करते हुए लिखा कि मराठा पेशवा आगरा के रास्ते मथुरा होते हुए दिल्ली जा रहा है. वह जाट मुल्क में लूट-पाट कर सकता है. आप हमारी सहायता करें.

बदन सिंह ने जाट सरदारों की सभा बुलाकर यह निर्णय किया कि जाटों की मुख्य चार पाल अपने अपने योद्धा भेजें जिसमे कौन्तेय (तोमर) पाल और सौंख के राजा हठीसिंह ने अपने पुत्र श्याम सिंह और अडिंग के राजा फौदासिंह के नेतृत्व में 3 हज़ार की सेना भेजी थी।सिनसिनवार पाल की तरफ से डीग महाराजा बदन सिंह ने कुंवर सूरजमल, तुलाराम, अखैसिंह के नेतृत्व में, सोगरिया पाल ने महाबल और रामबल के नेतृत्व में और चाहर पाल ने अमर सिंह और दयासिंह के नेतृत्व में सेनिक भेजे. जिनको पेशवा का रास्ता आगरा से आगे जाकर चम्बल के तट पर रोका. सेना पहुँच गया पर कुछ दिन वह वहीं डेरा डाले रहा, जाटों की मोर्चा बंदी के कारण आगे नहीं बढ़ा.

क्योंकि मराठो की सेना का रास्ता खुटेल पट्टी से गुजरता है तो मराठो ने जाट पालों के प्रधानों को आश्वासन दिया कि जाट मुल्क जटवाडा में उसके सिपाही किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं करेंगे. उनके उत्तर से संतुष्ट हो कर पेशवा को मथुरा के रास्ते दिल्ली जाने दिया. पेशवा की सेना ने किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं किया था साथ ही दिल्ली से वापसी के समय उन्होंने जयपुर रियासत में लालसोट होते हुए जाना उचित समझा, जहाँ मराठा सैनिकों ने मुग़ल और राजपूत थानों में लुट पाट की थी।

राजा हठी सिंह की मृत्यु ब्रज वैभव पुस्तक के लेखक पंडित गोकुलप्रसाद चौबे जी के अनुसार राजा हठी सिंह की मृत्यु सन 1741 ईस्वी में हुई थी। जगाओ की हस्तलिखित पोथी के अनुसार विक्रमी संवत सुदी सोमवार मार्गशीर्ष 1798 होना लिखा है।


ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-59


राजा हठी सिंह के प्रमुख युद्ध अध्याय समाप्त