Braj Kesari Raja Hathi Singh/Raja Hathi Singh Parichay
राजा हठी सिंह परिचय |
राजा हठी सिंह को कुछ इतिहासकारो ने राजा हाथी सिंह भी लिखा है।यह ब्रज के अजेय पहलवान भी थे। इनमें हाथियों जितना बल होने के कारण ही इनको हाथी सिंह भी बोला जाता था। इनकी वीरता का वर्णन समकालीन (तत्कालीन) ब्रज साहित्य में भी मिलता है।जिनमे से सुजान चरित्र एक मुख्य स्रोत है।
कवि ने राजा हठी सिंह की वीरता का चित्रण निम्न प्रकार से किया है।
जीत रण हथिसिंह वीर बड्डा है
पाखर सुमल्ल जो करतु रण हडाक
जब होत असवार भुव मार के निवारक
तब खुटेला झुझार वीर वार दे
सुजान चरित्र में कवि लिखता है कि राजा हठी सिंह महावीर हुए हैं उनके नेत्रों
ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-23
में अग्नि समान ज्वाला शत्रु नाश के लिए लालायित रहती थी।मूंछो पर ताव देते हुए वो दुश्मन पर सिंह समान गर्जना करते हुए उनका संहार कर देते थे।
सस्त्र्ज वस्त्र बधाई जान चढ़ दीये नर वाहन
झलझलात रस रूद्र नैन मानो कन दाहन
धरिय मुच्छ पर हथ्थ तथ्थ सैधुहि घुराहीय
गुण गाइक गावत चिरद गिर्द सुभट संघट्ट हुव
बल बढ़िय कधीय पुनि सदन तै महाधीर हाथीसिंह हूव
- पाण्डव गाथा नामक पुस्तक में राजा हठी सिंह द्वारा ब्रज से दृष्टो के संहार और शांति स्थापित करने के संबंध में लिखा गया है कि
जग को दुष्ट विहीन बना दिया,तलवारों की धार से
रक्तिम नदी बही धरती पर बर्छी और कटारो से
कोलाहल मच गया जग में,राजा हठी की हुंकारों से
ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-24
- ब्रज के वैभव नामक पुस्तक में पंडित गोकुलप्रसाद चौबे लिखते हैं कि ब्रज का खोया हुआ वैभव राजा हठी सिंह ने मोहम्मदपुर को पुनः गोर्वधन करके लौटा दिया था उन्होंने ना केवल ब्रज की रक्षा की बल्कि मंदिरों के संरक्षण में योगदान दिया था सच्चे अर्थों में राजा हठी सिंह ब्रज केसरी थे।
- मुगलो को सौंख घेरे के दौरान अल्पायु में ही ऐसे करारे हाथ दिखाए की मुगल 4 माह तक सौंख घेरे में असफल रहे थे।
- फ़ारसी अखबारात के अनुसार मात्र 13 वर्ष की आयु में राजा हठी सिंह ने ब्रज भूमि गोवर्धन से मुगलो की सैन्य चौकियां नष्ट कर दी थी।
यह वह दौर था जब वीर गोकुला धर्म के लिए बलिदान हो चुके थे. उनके साथ खुटेल पट्टी के सैकड़ों वीर बलिदान हुए. उनकी वीरता के किस्सों ने हाथी सिंह के बाल मन पर गहरा असर किया. उनके अन्दर जन्मजात विद्रोह के बीज अंकुरित हो गये थे. राजा हठीसिंह ने मथुरा में मुगलिया सल्तनत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया था। औरंगज़ेब ने ब्रज की हिन्दू संस्कृति को खत्म करने के लिए ब्रज के प्राचीन नगरों के नाम तक बदल डाले थे. उसने मथुरा को इस्लामाबाद, वृन्दावन को मेमिनाबाद और गोवर्धन को मुहम्मदपुर का बना दिया था गोवर्धन में मानसी गंगा पर निर्मित मनसा देवी का भव्य मंदिर भी तोड़ दिया गया था।
ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-25
तब राजा हठी सिंह ने गोवर्धन को पुनः उसके प्राचीन नाम से पहचान दिलवाई थी।
कवि इक़बाल सिंह ने लिखा है कि
- मथुरा,वृंदावन, गोवर्धन आज अपना नाम लिए ना होते
- राजा हठी सिंह ने यदि आर पार के संग्राम,किए ना होते
औरंगजेब के काल मे तोड़े गए मनसा देवी मंदिर का ब्रह्म घाट पर पुनः निर्माण राजा हठी सिंह ने करवाया था।राजा हठी सिंह ने सौंखगढ़ ,गोवर्धन के किले का पुनः निर्माण करवाया था।
मथुरा मैमयर्स नामक पुस्तक में राजा हठी सिंह के राज्य को सम्पन्न और पाँच मुख्य भागो में विभक्त बताया गया है। यह पाँच भाग सौंखगढ़, सोनोठ, अडींग ,गोवर्धन और फराह है।
ब्रज केसरी राजा हठी सिंह,पृष्ठान्त-26