Braj Kesari Raja Hathi Singh/Raja Hathi Singh Vansh Parichay
राजा हठीसिंह वंश परिचय |
राजा हठी सिंह सौंख गढ़ मथुरा के शासक थे। इनका जन्म सौंखगढ़ के जाट अधिपति सुखपाल सिंह के घर चैत्र शुक्ल अष्टमी विक्रमी 1737 संवत ( 6 अप्रैल 1680 ईस्वी) को हुआ था।इनकी माता रानी इंद्रा कौर आगरा चाहरवाटी के चैकोरा के गढ़पति मोझिया चाहर की सबसे छोटी बहिन थी।ब्रज वैभव नामक पुस्तक में पंडित गोकुल प्रसाद चौबे जी ने राजा हठी सिंह को ब्रज केसरी कहकर संबोधित किया है।
- "इत दिल्ली उत आगरे इत थून उत मथुरा बीचे ही गढ़ी सौंख
- विक्रमी सत्रह सो सैत्तीस सौंखगढ़ हठी सिंह लियो अवतार"
राजा हठी सिंह का जन्म दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल की 22 वी पीढ़ी में हुआ था। यह महान कौन्तेय राजवंश महाभारत के नायक पाण्डु पुत्र अर्जुन का वंशज है।इस ही वंश में अर्जुन से कई सौ पीढ़ी पूर्व राजा भरत हुए थे इनके नाम से यह देश भारत कहलाता है।इसी भरतवंश में राजा पाण्डु का जन्म हुआ था। राजा पाण्डु के कुंती और माद्री नामक दो पत्नियां थी। इनके पांच पुत्र(युधिष्ठिर, भीम ,अर्जुन,नकुल ,सहदेव) थे।यह वंश पाण्डव कहलाता था। युधिष्ठिर के वंशज यौधेय और अर्जुन के वंशज अर्जुनायन कौन्तेय कहलाते हैं।सम्राट समुंद्रगुप्त ने भी अपने लेखों में
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इनको अर्जुनायन कौन्तेय कहकर संबोधित किया है।अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु हुए और अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित हुए जिनके वंश में महाराजा अनगपाल देव तोमर हुए थे इनके पुत्र सोहनपाल देव हुए उनके वंश में आगे राजा नाहरपाल,प्रहलाद सिंह हुए थे इसी पाण्डव कुल में राजा हठी सिंह का जन्म हुआ था।
सौंख के जाट राजवंश के पाण्डव वंशी होने के सम्बंध में कुछ तथ्य निम्नलिखित है।
अर्जुनायन(कौन्तेय) लोगो का उल्लेख पाणिनि की अष्टाध्यायी और पंतजलि की महाभाष्य में मिलता है।
अर्जुन से तोमर वंश की उत्पत्ति के संबंध में कहा गया है कि
- अर्जुन के सूत सो भयो,अभिमन्यु नाम उदार
- तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर जाट उदार
गोपाचल आख्यान में तोमरो को पाण्डव वंशी कहा गया है।
- अब सुनियो तोमर उत्पत्ति,क्षत्रियो में सो उत्तम जाति
- कछु कछु कथा हेतु श्रुत भयो,सोमवंश अब वरन में लायो
- पाण्डव वंश जग तेज निदान,महाराज बंशी बरवान
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राजा समुंद्रगुप्त(335-375 ई•) जो स्वयं जाट थे । राजा समुंद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में अर्जुनायन गणराज्य का उल्लेख है। पाण्डव पुत्र अर्जुन के वंश होने के कारण ही इनको अर्जुनायन कहा गया है।
समतट-डवाक-कामरूप-नेपाल-कर्त्तृपुरादि-प्रत्यन्त-नृपतिभिर्म्मालवार्जुनायन-यौधेय-माद्रकाभीर-प्रार्जुन-सनकानीक-काक-खरपरिकादिभिश्च सर्व्व-कर -दानाज्ञाकरण-प्रणामागमन-
इतिहासकार तेजराम शर्मा और अग्रवाल जी ने तोमरोको पाण्डववंशी अर्जुन का वंशज लिखा है।
रोहतासगढ़ के शिलालेख में भी तोमरो को पाण्डववंशी लिखा गया है।
कवि चन्द्र ने भी तोमरो को पाण्डववंशी लिखा है।
कवि खड़गराय ने गोपांचल आख्यान में तोमरो को पाण्डववंशी लिखा है।
गुप्तकालीन इतिहास में तोमरो को कौन्तेय(अर्जुनायन) लिखा गया है।
राजा हर्षवर्धन ने तोमरो(कौन्तेय) को वीर यौद्धा लिखा है।इसलिए हर्षवर्धन की शक्तिशाली अश्व सेना का प्रधान भी कुन्तल(कौन्तेय) था।
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पंडित गोकुलप्रसाद चौबे जी ने अपनी पुस्तक में राजा हठी सिंह को पाण्डववंशी और ब्रज केसरी लिखा है।
अनुशासन पर्व में कौन्तेयो का वर्णन निम्न रूप में हुआ है।
- महान ऋषिश च कपिलस तथर्षिस तारकायनः,
- तथैव चॊपगहनस तदर्षिश चार्जुनायनः
- पौण्ड्रकॊ वासुथेवश च वङ्गः कालिङ्गकस
- तदा आकर्षः कुन्तलश चैव वानवास्यान्ध्रकास तदा
उपरोक्त प्रमाणों के आधार पर सौंख का राजवंश पाण्डववंशी सिद्ध होता हैं। यह एक प्राचीन जाट वंश था जिसका इंद्रप्रस्थ और दिल्ली पर हजारों साल तक शासन रहा था।
कुल देवी:
पांडवो की कुलदेवी मंशा देवी (मनसा देवी) है। जिनका वास्तविक नाम योगमाया है। अर्जुन की मनोकामना पूर्ण करने के कारण ही यह मनसा देवी कहलाती है।दिल्ली के तोमर राजाओ ने अपनी कुलदेवी का एक मंदिर योगनीपुर में बनवाया था।मनसा देवी के वर्तमान में तोमरो द्वारा
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निर्मित मनसा देवी के तीन मंदिर अस्तित्व में है।जिनका निर्माण दिल्ली के राजा रहते हुए तोमर जाट राजाओ ने करवाया था।जिनमे से एक मंदिर मथुरा जिले में खुटेलपट्टी के गोपालपुर में है। इस मंदिर का निर्माण दिल्ली के जाट शासक अनगपाल तोमर ने फाल्गुन वदी सोमवार 1074 ईस्वी में करवाया था।
दूसरा मंदिर तोमर देश(जिला बागपत) के बड़ा गाँव मे स्थित है।बागपत के तोमर आर्य समाजी होने से मूर्ति पूजा नही करते हैं। दिल्ली में स्थित योगनीपुर के मंदिर को मुस्लिम शासकों ने नष्ट कर दिया था।
वर्तमान में तोमर जाट गोत्र की बिजारनिया उपगोत्र शाखा ने अपनी कुलदेवी मनसा देवी के प्राचीन मंदिर का पुनःनिर्माण लढ़ाना गढ़ के समीप करवाया है।यह तीसरा सबसे प्राचीन मंदिर है।
तोमर और अर्जुनायन के सिक्कों पर एक देवी की प्रतिमा का चित्र प्राप्त होता है। कुछ इतिहासकार बिना प्रमाण के इस को धन की देवी लक्ष्मी मानते हैं। जबकि यह तोमरो की कुल देवी मनसा देवी हैं।
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कुल देव:
तोमर(अर्जुनायन) जाटों ने भगवान शिव को अपना कुल देव माना है। भगवान शिव के प्रिय नाग राज के कई मंदिरों का निर्माण तोमर जाट शासको ने करवाया था।महाभारत युद्ध मे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का साथ दिया था।तभी से भगवान शिव और श्रीकृष्ण दोनों ही तोमर जाटों के कुल देव माने जाते हैं। अर्जुनायन(तोमरो) के प्राचीन सिक्को पर भगवान शिव के नंदी का चित्र का अंकन मिलता हैं।महाराजा अनगपाल देव तोमर तो भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे इनके सिक्को पर श्री माधव नाम लिखा मिलता है।
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शमीवृक्ष (छोंकड़ा) की पूजा:
जाटों में छोंकड़ा(जांटी/खेजड़ी) की पूजा है। खेजड़ी की पूजा करने का कारण जाटों की तरफ से यह बताया जाता है कि वब्रुवाहन का सिर जिससे पांडवो की सेना को हानि होने की संभावना थी इस सिर को भगवान श्रीकृष्ण ने खेजड़ी पर टांगा था। दूसरी बात यह भी कहते हैं कि अज्ञातवास में पांडवो ने अपने शस्त्र इसी वृक्ष पर रखे थे ।तब से यह वृक्ष जाटों में पूजनीय है।
राजध्वज:
भगवा पर अर्द्ध चन्द ,कपिध्वज. इस ध्वज में अर्द्ध चंद्र ,चंद्रवंशी होने का प्रतीक है।जबकि कपिध्वज महाभारत में अर्जुन का ध्वज है।
राज्य चिन्ह :
मध्य में मंशा देवी, दोनों तरह सिंह, अर्जुनायन जय अंकित
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