Changiz Khan

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Changiz Khan or Genghis Khan or Chinghis Khan or Changez Khan (चंगेज खान) (1162? – 1227), born Temüjin, was the founder and Great Khan (emperor) of the Mongol Empire, which became the largest contiguous empire in history after his demise. Some historians consider him to be of Bogdawat Jat clan.[1] [2]

His ancestry

Temüjin was born in 1155 or 1162 in Delüün Boldog, near Burkhan Khaldun mountain and the Onon and Kherlen rivers in modern-day northern Mongolia, not far from the current capital Ulan Bator.

Temüjin was related on his father's side to Khabul Khan, Ambaghai, and Hotula Khan, who had headed the Khamag Mongol confederation and were descendants of Bodonchar Munkhag (c. 900). When the Chinese Jin Dynasty switched support from the Mongols to the Tatars in 1161, they destroyed Khabul Khan.

He was the third-oldest son of his father Yesügei, a Khamag Mongol's major chief of the Kiyad and an ally of Toghrul Khan of the Kerait tribe, and the oldest son of his mother Hoelun. According to the Secret History, Temüjin was named after a Tatar chieftain, Temüjin-üge, whom his father had just captured.

Yesukhei's clan was called Borjigin (Боржигин), and Hoelun was from the Olkhunut, the sub-lineage of the Onggirat tribe.[3][4]

History

Temüjin's father, Yesügei (leader of the Borjigin clan and nephew to Ambaghai and Hotula Khan), emerged as the head of the ruling clan of the Mongols. This position was contested by the rival Tayichi’ud clan, who descended directly from Ambaghai. When the Tatars grew too powerful after 1161, the Jin switched their support from the Tatars to the Keraits.


He came to power by uniting many of the nomadic tribes of northeast Asia. After founding the Mongol Empire and being proclaimed "Genghis Khan," he started the Mongol invasions that resulted in the conquest of most of Eurasia. By the end of his life, the Mongol Empire occupied a substantial portion of Central Asia and China.

Vilified throughout most of history for the brutality of his campaigns, Genghis Khan is also credited with bringing the Silk Road under one cohesive political environment. This increased communication and trade from Northeast Asia to Muslim Southwest Asia and Christian Europe, thus expanding the horizons of all three cultural areas.

Clan of Changiz Khan : Bogdawat

Bhim Singh Dahiya refers the article "Chinghiz Khan and his Ancestors" by Henry H. Howarth, even Chinghiz Khan is addressed as "The Valiant Bogda". [5] There is an Indian Jat clan called Bogdawat. A composition of Chinghiz Khan's army is given which mentions that it had 30,000 Jats, and further, 20,000 soldiers of 'Indian' origin, were commanded by one Bela Noyan. As shown above this Noyan is the same as the existing Indian Jat clan 'Nayan'/Nain. We are not sure whether Chinghiz Khan belonged to the Bogdawat clan of the Jats but the epithet Bogda is striking. It may be an honorific title, like 'high', brave, etc. and points to the Central Asian origin of Jats. In the autobiography of Taimurlung (Tamerlane) also we find repeated references of his fights with the Jats.[6]

बोगदावत जाट

दलीप सिंह अहलावत[7] के अनुसार “चंगेजखां और उसके पूर्वपुरुष” नामक पुस्तक में हैनरी एच. होवर्थ ने लिखा है कि चंगेजखां बोगदा शूरवीर था (इण्डियन अन्टिक्वारी, 1886; जिल्द 15, पृ० 129)। यह बोगदावत जाट गोत्र है। चंगेजखां की सेना में 30,000 जाट एवं 20,000 भारतीय मूल के सैनिक थे, जिनका सेनापति बेला नौयन था जो कि नैण जाट गोत्र है।

चंगेजखां का आक्रमण

दलीप सिंह अहलावत[8] ने लिखा है:

अरब आक्रमणों से बल्ख नगरी का विनाश हो गया था। तुखार देश (तुषार-ऋषिक जाटों का देश) की इस प्रसिद्ध बल्ख नगरी का अन्तिम रूप से विनाश चौदहवीं सदी में चंगेजखां की मंगोल सेनाओं ने किया था[9]

चंगेजखां बोगदावत गोत्र का जाट था जिसका जन्म मंगोलिया देश में उमन नदी के निकट


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-374


दिलूम वोल्दक नामक स्थान पर हुआ था। 13 वर्ष की अवस्था में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। उसने बड़ी कठिनाईयों का सामना करके सन् 1203 ई० में खान का पद प्राप्त किया।

यह बड़ा वीर, निर्भय और साहसी योद्धा था। इसकी सेना में 30,000 जाट सैनिक तथा 20,000 भारतीय मूल के सैनिक थे जिनका सेनापति बेला नैन (गोत्र नैन) जाट था। चंगेजखां के विषय में कहावत प्रसिद्ध है कि वह युद्धकला में सर्वश्रेष्ठ था। उसने मंगोलिया को विजय कर लिया और अपनी विशाल व शक्तिशाली सेना के साथ आक्रमण करके चीन को रौंद डाला तथा मध्यएशिया के मुस्लिम प्रदेशों को लूट लिया और उजाड़ दिया। बल्ख, बोखारा, समरकन्द तथा अनेक सुन्दर नगरों को नष्ट कर दिया। जब चंगेजखां ने ख्वारिज्म के अन्तिम शाह जलालुद्दीन पर आक्रमण किया तो वह भारत की ओर भाग गया। उसने सिन्ध नदी पर पड़ाव डाला और मंगोलों से युद्ध करने के लिए प्रस्तुत हुआ। उसने दिल्ली सल्तनत के बादशाह अल्तमश (सन् 1211-1236 ई०) से सहायता मांगी परन्तु उसने इन्कार कर दिया। अन्त में सन् 1221 ई० में जलालुद्दीन को चंगेजखां की सेना ने हरा दिया। कुछ सैनिकों को साथ लेकर उसने भागकर जान बचाई। खोखरों (जाटवंश) से मिलकर उसने नासिरूद्दीन कुबैचा पर आक्रमण किया और उसे मुलतान के दुर्ग में से भगा दिया। कुछ समय बाद वह फारस पहुंचा। वहां समाचार मिला कि इराक की सेना उसकी सहायता के लिए प्रस्तुत है। परन्तु एक क्रोधित व्यक्ति ने उसको मार डाला, जिसके भाई का पहले उसने वध करा दिया था।

चंगेजखां ने अफगानिस्तान को उजाड़ दिया और हिरातपैशावर पर अधिकार कर लिया। उसने भारतवर्ष पर आक्रमण करके लूटमार का इरादा किया परन्तु मंगोलों से भारत की गर्मी सहन न हुई और वे सिन्ध नदी के पश्चिम की ओर से ही लौट गये। इस प्रकार भारत एक बड़ी विपत्ति व तबाही से बच गया, और अब अल्तमश देश के अन्य शत्रुओं से युद्ध करने की ओर दत्तचित्त हुआ1

चंगेजखां के आक्रमण के समय अब्बासी वंश के खलीफा का शासन अरब देशों पर था जिसकी राजधानी बगदाद थी। अब्दुल अब्बास के नाम पर इस अब्बासी वंश के लोगों ने सन् 749 ई० में उमैया वंश के मुसलमान बादशाहों (खलीफा) की राजधानी दमिष्क पर आक्रमण करके उन्हें हरा दिया और दमिष्क शहर को फूंक दिया और इस खानदान के 14 बादशाहों की कब्रों से हड्डियां निकालकर जला दीं तथा इस वंश के सब बाल बच्चों को कत्ल कर डाला। इस अब्बासी वंश के खलीफाओं ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाकर सन् 749 से 1256 ई० तक अरब देशों पर शासन किया।

चंगेजखां के आक्रमण के बाद सन् 1256 ई० में उसके पौत्र हलागू (हलाकूखां) ने आक्रमण करके अब्बासी वंश के अन्तिम खलीफा अलमुस्तासिम को युद्ध में परास्त कर दिया और बगदाद पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार खलीफा के पद का अन्त हो गया और उसके उत्तराधिकारी मिश्र


1. सहायक पुस्तक - (1) मध्यकालीन भारत का संक्षिप्त इतिहास, पृ० 80-81, लेखक ईश्वरीप्रसाद। (2) हिन्दुस्तान की तारीख उर्दू पृ० 74-75. (3) जाट्स दी ऐनशनट् रूलर्ज पृ० 60 लेखक बी० एस० दहिया।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-375


में चले गये। [10]

चंगेजखां के आक्रमण से डरकर बग़दाद के खलीफा ने उसके आने से पहले बग़दाद से धार्मिक एवं ऐतिहासिक साहित्य, शिल्पकला तथा वैद्यक से सम्बन्धित सामग्री मिश्र की राजधानी काहिरा पहुंचा दी थी जो आज भी वहां के विशाल विश्वविद्यालय में विद्यमान है। 1959 में हमारी नं० 2 ग्रेनेडियरज़ पलटन गाज़ा पट्टी (मिश्र) में थी। वहां से मैं कुछ सैनिकों सहित काहिरा गया था। वहां मैं इस प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में गया और वहां के तत्कालीन उपकुलपति प्रोफेसर मुस्तफाखां ने मुझे यह सब बातें बताईं तथा सब सामग्री भी दिखलाई (लेखक)।

External links

References

  1. Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/The Jats, p. 60
  2. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV, p.329
  3. Guida Myrl Jackson-Laufer, Guida M. Jackson, Encyclopedia of traditional epics, p. 527
  4. Kahn, Paul (adaptor) (1998). Secret History of the Mongols: The Origin of Chingis Khan (expanded edition): An Adaptation of the Yüan chʾao pi shih, Based Primarily on the English Translation by Francis Woodman Cleaves. Asian Culture Series. Boston: Cheng & Tsui Co. p. 192. ISBN 0-88727-299-1.
  5. IA, 1886; Vol. XV,p.129
  6. Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/The Jats, p. 60
  7. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-329
  8. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.374-376
  9. मध्य एशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति पृ० 84-86, लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार।
  10. सर्वखाप पंचायत के रिकार्ड शोरम जि० मुजफ्फरनगर (उ० प्र०) चौ० कबूलसिंह मन्त्री सर्वखाप पंचायत के घर पर।