Daljeet Singh Narang
Daljeet Singh Narang (Major) (20.05.1935 - 21.11.1971), Mahavir Chakra, (posthumous), became martyr on 21.11.1971 during Indo-Pak War-1971. Unit: 45 Cavalry Regiment (Armed Corps). He was from Peshawar now in Pakistan.
मेजर दलजीत सिंह नारंग
मेजर दलजीत सिंह नारंग
20-05-1935 - 21-11-1971
महावीर चक्र (मरणोपरांत)
यूनिट - 45 कैवेलरी रेजिमेंट (आर्मर्ड कॉर्प्स)
गरीबपुर का युद्ध
ऑपरेशन कैक्टस लिली
भारत-पाक युद्ध 1971
मेजर दलजीत सिंह नारंग का जन्म 20 मई 1935 को, ब्रिटिश भारत में, पेशावर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। 9 दिसंबर 1956 को उन्हें भारतीय सेना के आर्मर्ड कॉर्प्स की 45 कैवेलरी रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त हुआ था। वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान से बढ़ते संकट से निपटने के लिए मेजर नारंग की रेजिमेंट को पूर्वी सेक्टर में तैनात किया गया था। युद्ध आरंभ होने से पूर्व ही भारत और पाकिस्तान के मध्य सीमा पर असंख्य संघर्ष हो रहे थे। पूर्वी सीमा पर, गरीबपुर गांव एक महत्वपूर्ण चौराहे पर था और इसका नियंत्रण महत्वपूर्ण था।
21 नवंबर को, 14 पंजाब बटालियन, 45 कैवेलरी के 14 पीटी-76 टैंकों के एक स्क्वाड्रन के साथ पाकिस्तानी क्षेत्र में गरीबपुर के समीप के क्षेत्रों पर अधिकार करने के लिए आगे बढ़ी। इस लड़ाई में मेजर नारंग 45 कैवलरी के इस स्क्वाड्रन की कमान संभाल रहे थे। इस चाल को आश्चर्य माना जा रहा था, परंतु पिछले दिन दोनों सेनाओं के गश्ती दलों के मध्य हुई झड़प के पश्चात, पाकिस्तान को इस आसन्न आक्रमण का आभास था।
पाकिस्तान ने त्वरित भारी संख्या में प्रत्युत्तर दिया। उसके M-24 चाफी लाइट टैंकों से लैस 3 स्वंतत्र आर्मर्ड स्क्वाड्रन ने 107 इंफेंट्री ब्रिगेड को समर्थन दिया। संख्यात्मक श्रेष्ठता होने के कारण, पाकिस्तानी सैनिक भारतीय घुसपैठ को रोकने की स्थिति में थे। किंतु भारतीय सेना की पंजाब बटालियन अपने वीरता के विस्तृत इतिहास के लिए जानी जाती है, पंजाबियों ने खंदक खोदे और स्वयं को पलटवार करने के लिए तैयार कर लिया।
इंफेट्री को रक्षात्मक स्थिति में रखते हुए, मेजर नारंग की कमान में C स्क्वाड्रन के टैंकों को आने वाले पाकिस्तानी आक्रमण पर घात लगाने के लिए आगे भेजा गया। आगामी अल्प घंटों में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी आक्रमण को बढ़ा दिया, कोहरे और अनुपयुक्त दृश्यता के कारण पाकिस्तानी इन आक्रमणों का स्रोत ज्ञात नहीं कर सके।
अति निकट से विस्तृत और प्रचंड युद्ध छिड़ गया। भयानक गोलाबारी में भी मेजर नारंग अपने टैंक के बुर्ज पर खड़े होकर टैंकों के संचालन का निर्देशन कर रहे थे और शत्रु के टैंकों को प्रभावी ढंग से रोक रहे थे। उनकी उपस्थिति से उत्साहित होकर, उनके सैनिकों ने इस स्थिति का वीरता से सामना किया, और शत्रु को गंभीर क्षति पहुंचाई। भारतीय सेना के 3 टैंकों की क्षति हुई, किंतु पाकिस्तान के 10 टैंकों को नष्ट कर दिया गया।
इसके पश्चात, शत्रु के 4 टैंक और नष्ट कर दिए गए। किंतु, शत्रु ने मेजर नारंग को निशाना बनाया और उन्हें मशीन गन से गोलियों की घातक बौछार लगी। मेजर नारंग गंभीर रूप से घायल हो गए। अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए, अपने टैंक के ऊपर ही वह वीरगति को प्राप्त हुए।
मेजर नारंग के अदम्य साहस, उत्कृष्ट नेतृत्व, अडिग संकल्प, कर्तव्य के प्रति समर्पण से उनके स्क्वाड्रन ने इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा किया। मेजर नारंग को मरणोपरांत "महावीर चक्र" से सम्मानित किया गया।
शहीद को सम्मान
मेजर नारंग को मरणोपरांत "महावीर चक्र" से सम्मानित किया गया।
स्रोत
चित्र गैलरी
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References
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