Deewan Ranjeet Rai

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Deewan Ranjeet Rai

Deewan Ranjeet Rai (Lt Col) (06.02.1913 - 28.10.1947), MVC (Posthumous), became martyr on 28.10.1947 during Indo-Pak War 1947. He was from Gujranwala (Pakistan). Unit: 1 Sikh Regiment.

लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय (Shergill)

लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय

06-02-1913 - 28-10-1947

महावीर चक्र (मरणोपरांत)

यूनिट - 1 सिख रेजिमेंट

भारत-पाक युद्ध 1947-48

लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय का जन्म 1 फरवरी 1913 को संयुक्त पंजाब प्रान्त के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) नगर में एक पंजाबी जाट परिवार में सूबेदार लाखा सिंह के घर में हुआ था। उन्होंने शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से अपनी शिक्षा पूर्ण की थी तथा बाद में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) देहरादून के प्रथम कोर्स में चुने गए थे।

1 फरवरी 1935 को उन्हें ब्रिटिश-भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त हुआ था। 24 फरवरी 1936 को उन्हें 11 सिख रेजिमेंट की 5 वीं बटालियन में तैनात किया गया। वर्ष 1944 में उन्हें एक्टिंग मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया था। वर्ष 1947 तक वह लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदौन्नत हो चुके थे। अक्टूबर 1947 में वह गुड़गांव में 1 सिख बटालियन की कमान संभाल रहे थे और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए व्यवस्थाएं करने में कार्यरत थे।

21 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान समर्थित कबाईलियों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। यह आक्रमण पाकिस्तानी सेना के मेजर जनरल अकबर खान की कमान में हुआ था और इसका कोड नाम 'ऑपरेशन गुलमर्ग' था। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह द्वारा आधिकारिक रूप से कश्मीर का भारतीय संघ में विलय करने से भारत को कश्मीर में सेना भेजने का अधिकार मिल गया। ऐसे में, 27 अक्टूबर 1947 को, लेफ्टिनेंट कर्नल राय के नेतृत्व में त्वरित 1 सिख बटालियन की दो कंपनियों को डकोटा विमान में दिल्ली से श्रीनगर भेजा गया। 27 अक्टूबर 1947 की प्रातः 9:30 बजे लेफ्टिनेंट कर्नल राय अपनी C और D कंपनियों के साथ श्रीनगर में उतरे और स्थिति का प्रारंभिक आकलन करने के पश्चात श्रीनगर शहर और उससे जुड़े हवाई अड्डे के रक्षण के लिए सक्रिय हो गए।

लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय ने बारामूला नगर की रक्षा के लिए कैप्टन कमलजीत सिंह के नेतृत्व में C कंपनी को बारामूला भेजा। मेजर हरवंत सिंह के नेतृत्व में D कंपनी को प्रजा में विश्वास स्थापित करने के लिए फ्लैग मार्च करने के लिए श्रीनगर भेजा गया। लेफ्टिनेंट कर्नल राय आनेवाली शेष दो कंपनियों की प्रतीक्षा में श्रीनगर हवाई अड्डे पर ही रूके और उन कंपनियों के आते ही उन्हें बारामूला ले जाने का निर्णय लिया।

C कंपनी के कैप्टन कमलजीत सिंह ने बारामूला नगर के निकट पहुंचने पर पाया कि बारामूला पर पूर्ण रूप से कबाईलियों का अधिकार हो चुका है अतः उन्होंने बारामूला से कुछ मील दूर 32 मील पर रक्षण स्थापित करने का निर्णय लिया। उधर D कंपनी के मेजर हरवंत सिंह ने श्रीनगर में फ्लैग मार्च के पश्चात एक प्लाटून को श्रीनगर से 7 मील पूर्व सोपोर में झेलम नदी के पुल की सुरक्षा के लिए छोड़ दिया और एक अन्य प्लाटून को श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा के लिए छोड़ दिया। 28 अक्टूबर 1947 की प्रातः 4:30 बजे एक प्लाटून के साथ मेजर हरवंत सिंह 32 मील पर C कंपनी से जुड़ गए।

उधर, लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय का अपने सैनिकों के साथ कोई संचार नहीं हो रहा था क्योंकि जो डकोटा विमान संचार उपकरण और दो शेष कंपनियों को ला रहा था उसमें तकनीकी समस्या आ जाने से उसे बीच में जम्मू में ही उतरना पड़ा। जब 28 अक्टूबर 1947 की प्रातः तक उनकी दो अन्य कंपनियां श्रीनगर नहीं पहुंचीं, तो उन्होंने 32 मील पर C कंपनी के सुदृढ़ीकरण लिए आगे बढ़ने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने एडजुटेंट को इस निर्देश के साथ वहीं छोड़ दिया कि जैसे ही शेष दो कंपनियां श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरे उन्हें अविलंब 32 मील स्थिति पर भेजा जाए।

28 अक्टूबर 1947 को प्रातः लगभग 11:30 बजे, हजारों कबाईलियों ने भारी मशीन गनों और 3 इंच मोर्टारों के साथ 32 मील की स्थिति पर भयानक आक्रमण किया। संख्या बल में अल्प होने पर भी, सिखों ने उस आक्रमण को सफलतापूर्वक खदेड़ दिया। जब शत्रु ने स्पष्ट देख लिया कि ऐसे तो वह लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय और उनके सैनिकों को परास्त नहीं कर सकता है। तो उसने पीछे से आक्रमण करके सिखों को परास्त करने का निर्णय लिया।

जब शेष दो कंपनियों का सुदृढ़ीकरण नहीं पहुंचा और हजारों कबाईलियों के समक्ष सीमित गोलाबारूद के साथ मात्र 140-150 सिखों का डटे रहना असंभव हो गया तो लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय ने अपने सैनिकों को 32 मील स्थिति से पीछे हटाने का निर्णय लिया। यद्यपि तब तक शत्रु ने पीछे हटने वाले मार्ग को भी घेर लिया था। ऐसे में, शत्रु की घेराबंदी से अपने सैनिकों को निकालने की अत्यंत कठिन लड़ाई में लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय को गोलियां लगी और वह वीरगति को प्राप्त हुए।

लेफ्टिनेंट कर्नल राय को उनके उत्कृष्ट नेतृत्व, युद्ध की अडिग भावना और सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

शहीद को सम्मान

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ


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