Dhanna Ram Dhaka
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Dhanna Ram Dhaka (born:1902) (धन्नाराम ढाका) from Dalmas, (Sikar), was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी धन्नाराम जी - [पृ.491]: डालमास के चौधरी ईसरराम जी के घर आज से 46-47 साल पहले संवत 1959 वि. (1902 ई.) में जिस लड़के का जन्म हुआ था आज वे चौधरी धनाराम जी के नाम से मशहूर हैं। आप ढाका गोत्र के जाट हैं। आप सीकर महायज्ञ के समय से प्रकाश में आए हैं। इस समय शेखावाटी किसान सभा का काम बड़ी दिलचस्पी से करते हैं।
आप पर लोगों का विश्वास है। आप परिश्रमी और लग्न सील कौमी सेवक नौजवान हैं। तो भी कौम को ऊंचा उठाने की आपके दिल में साध है।
जीवन परिचय
जाटों ने सीकर दिवस मनाया - 26 मई 1935
ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है....26 मई 1935 को अखिल भारतीय जाट महासभा के आदेशों से भारत भर में जाटों ने सीकर दिवस मनाया। जगह-जगह सभाएं की गई, जुलूस निकाले गए। महासभा के तत्कालीन मंत्री झम्मन सिंह जी एडवोकेट ने एक प्रेस वक्तव्य द्वारा सीकर के दमन की निंदा की।
11 मई 1935 को जाट महासभा का अधिवेशन रायबहादुर चौधरी सर छोटूराम जी की अध्यक्षता में जयपुर काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट सर बीचम साहब से मिला और उसने सीकर कांड की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की।
सर जौंस बीचम एक गर्वीले अंग्रेज थे उन्होंने यह तो माना की सीकर की घटनाएं खेद जनक है और उन्हें सुधारा जाएगा किंतु जांच कराने से साफ इंकार कर दिया और जाट डेपुटेशन को भी सीकर जाकर जांच करने की इजाजत नहीं दी।
जाट डेपुटेशन जयपुर से लौट गया और दमन में कोई कमी नहीं हुई। सीकर में त्राहि-त्राहि मच गई। कुँवर पृथ्वी सिंह गोठड़ा और गणेशराम कूदन, गोरु राम कटराथल बाहर के जाटों के पास दौड़-दौड़ कर जा रहे थे। इन लोगों के सीकर में
[पृ.293]: वारंट थे और पुलिस चाहती थी कि यह हाथ लग जाए तो इन्हें पीस दिया जाए। अंत में दमन का मुकाबला करने के लिए यह सोचा गया कि जयपुर राजधानी में सत्याग्रह किया जाए। पहले तो एक डेपुटेशन मिले, जो यह कह दे या तो जयपुर हमारे जान माल की गारंटी दे वरना हम मरेंगे तो गांवों में क्यों मरे जयपुर आकर यहां गोलियां खाएंगे। सत्याग्रह के लिए कुछ जत्थे बाहर से भी तैयार किए गए।
इधर जून के प्रथम सप्ताह कुंवर रतन सिंह, ईश्वर सिंह, धन्नाराम ढाका, गणेश राम, ठाकुर देशराज जी आदि मुंबई गए। वहां मुंबई में श्री निरंजन शर्मा अजीत और देशी राज्यों के आदी अधिदेवता अमृत लाल जी सेठ के प्रयतन से मुंबई के तमाम पत्रों में सीकर के लिए ज़ोरों का आंदोलन आरंभ हो गया और कई मीटिंग में भी हुई, जिनमें सीकर की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। मुंबई के बड़े से बड़े लीडर श्री नरीमान, जमुनादास महता आदि ने सीकर के संबंध में अपनी शक्ति लगाने का विश्वास दिलाया।
आखिरकार जयपुर को हार झक मारकर झुकना पड़ा और उसने सीकर के मामले में हस्तक्षेप किया। अनिश्चित समय के लिए राव राजा साहब सीकर को ठिकाने से अलग रहने की सलाह दी गई। गिरफ्तार हुए लोगों को छोड़ा गया। जिनके वांट थे रद्द किए गए। किंतु जाटों की नष्ट की हुई संपत्ति का कोई मुआवजा नहीं मिला और न उन लोगों के परिवारों को कोई सहायता दी गई जिनके आदमी मारे गए थे। इस प्रकार इस नाटक का अंत सीकर के राव राजा और दोनों को सुख के रूप में नहीं हुआ। किंतु यह अवश्य है कि सीकर के जाट को नवजीवन दे दिया।
बाहरी कड़ियाँ
संदर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.491
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.491
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949,p.292-93
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