Dhavala Maurya

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Dhavala Maurya or Raja Dhavala was a Maurya king in 738 AD

Kanswa Inscription of Raja Dhavala 738 AD

Kanswa Inscription of Raja Dhavala 738 AD tells about the Maurya King Raja Dhavala (Dhavala Maurya). [1] According to D R Bhandarkar this king is Dhavalapdeva who has been mentioned in Dabok (Mewar) inscription of about 725 AD. This Inscription reveals that even after fall of Maurya Dynasty at Magadha there were some small republics ruled by the Mauryas. [2]

This inscription in Kotah State, dated A.D. 738-39, refers to the local Maurya prince as a friend of king Dhavala of Maurya lineage. [see, IA,XIX, 57 as cited in The Classical Age, p. 162]

R.C. Majumdar comments on this : "This Dhavala is probably the same as Dhavalappadeva who is given imperial titles and is described as the suzerain of the feudatory Guhila-putra Dhanika who ruled in Udaipur. We may, therefore, give some credit to the tradition...that the Guhilot ruler Bappa conquered Chittor from the Mori King Manuraja or Raja Man Maurya.

कणसव

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...कणसव राजस्थान राज्य के कोटा ज़िले में स्थित था। कणसव से 738 ई. का एक महत्त्वपूर्ण अभिलेख प्राप्त हुआ था जिसका संबंध मौर्यवंशीय राजा धवल से है।[4] डॉ. दे.रा. भण्डारकर के मत में यह राजा धवलप्यदेव ही है जिसका उल्लेख दबोक (मेवाड़) के अभिलेख (लगभग 725 ई.) में हुआ है। कणसव अभिलेख से सिद्ध होता है कि मगध के प्रसिद्ध मौर्यवंश के कुछ छोटे-मोटे राजा, मौर्यवंश के पतन के पश्चात् भी पश्चिमी भारत में कई स्थानों पर राज्य करते रहे थे।

कणसवा का लेख 738 ई

कणसवा का लेख 738 ई. - कोटा के निकट कणसवा गांव के शिवालय में लगा हुआ यह लेख सं. 795 का है. [5]इसमें धवल नामक राजा का नाम है जो मौर्य वंशी राजा था. इस उल्लेख के बाद अन्य किसी मौर्य वंशी (मोरी) राजाओं का राजस्थान में वर्णन नहीं मिलता है, जिससे इस शिलालेख का महत्व और अधिक बढ जाता है.

इन प्रमाणों से मौर्यों का राजस्थान में अधिकार और प्रभाव स्पष्ट होता है। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत की राजनीतिक एकता पुनः विघटित होने लगी. इस युग में भारत में अनेक नये राजवंशों का अभ्युदय हुआ.

References

  1. Indian Antiquary, 13, 163
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.128
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.128-29
  4. इंडियन एंटिक्वेरी, 13,163; बंबई गजेटियर, भाग 2, पृ. 284
  5. डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ.53. टाड, राजस्थान, जि. 2, पृ.919-22