Kota

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District Map of Kota

Kota (कोटा) formerly known as Kotah, is a city in the northern Indian state of Rajasthan. Situated on the banks of Chambal River, the city is the trade centre.

Variants

  • Kota (कोटा) (राजस्थान) (p.230)
  • Kotah

Origin

Present Day Kota owes its foundations to a Kotya Bhil warrior who 800 years ago built a small fortification at akelgarh and put up a protective mud-wall around it all the way to Retwali.

Tahsils in Kota

History

कोटा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...कोटा (राजस्थान) - (AS, p.230) कोटा-बूंदी की रियासत का जन्म मध्यकाल में हुआ था. यहां के क्षेत्रीय हाड़ा कहलाते थे. बूंदी नरेश छत्रसाल हाड़ा दारा की ओर से औरंगजेब के साथ 1658 ई. के उत्तराधिकार युद्ध में लड़ा था. इसी युद्ध में वह लड़ता हुआ मारा गया था.

कोटा परिचय

कोटा, जिसे पहले 'कोटाह' नाम से जाना जाता था, राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 246 किमी. दक्षिण में स्थित है। कोटा की पहचान चम्बल नदी से भी है। इस नदी पर कोटा में 'कोटा डैम' के नाम से एक बाँध का निर्माण भी हुआ है, जिससे बिजली के उत्पादन में मदद मिल सके।

व्यापारिक केंद्र: कोटा एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है। साथ ही यह एक औद्योगिक नगरी भी है, यहाँ पर कॉटन टेक्सटाइल, केमिकल पावर प्लांट्स आदि कई उद्योग-धन्धे उपलब्ध है, जैसे - डी.सी.एम., सैमटेल, बिड़ला सीमेन्ट, श्रीराम फ़र्टिलाइजर आदि। इसे राजस्थान का 'पावर हाउस' भी कहा जाता है। यह शहर कोटा साड़ी के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। म्यूज़ियम, मन्दिर और पिकनिक स्पॉट से भरे इस शहर में अब मॉल भी खुल चुके हैं। गुमानपुरा और कोटरी रोड यहाँ के दो प्रमुख बाज़ार हैं। वर्तमान में यह एक शैक्षणिक नगरी के रूप में स्थापित हो चुका है। कोटा में यहाँ पर स्थित कोचिंग संस्थानों के कारण 'शैक्षणिक नगरी' का नाम मिला। इंजीनियरिंग और मेडिकल की परीक्षाओं में यहाँ के छात्रों को जितनी सफलता मिलती रही है, उतनी की कल्पना भी दूसरे शहर नहीं कर सकते।

इतिहास: इतिहास के पन्नों पर 12वीं सदी में भी कोटा की चर्चा है। 17वीं शताब्दी में मुग़ल शासक जहाँगीर के शासनकाल के दौरान बूँदी के राजा राव रतन सिंह ने कोटा का कुछ हिस्सा अपने बेटे माधो सिंह को दे दिया। 1631 में शाहजहाँ द्वारा राव रतन सिंह के बेटे को कोटा का शासक घोषित कर दिया गया, तब से कोटा स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगा। बाद में महाराव भीमसिंह ने कोटा के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

संदर्भ: भारतकोश-कोटा राजस्थान

Jat history

Maharaja Shalendra was a Jat King in early fifth century in Punjab. After the fall of Kushan empire in India Jats had many small republics. There was no prominent Jat king for about two centuries after Kushans. But Maharaja Shalendra in fifth century again established a kingdom, which extended from Punjab to Malwa and Rajasthan. James Tod found an inscription in 1820 AD at village ‘Kanswa’ in Kota state. Tod in ‘Tod Rajasthan’ has described it and salient features of this inscription are as under:[2]

1. Shalendra was a ruler of Shalpuri, the modern Sialkot. He got this state with his own strength.

2. He had a big army and possessed rich treasury.

3. He was Shuryavanshi Jat.

4. He left Buddhism and adopted Puranic religion.

5. The fort of Taxila was under his domains.

6. His son in law married with Yadav Vanshi girls indicates that he was a Taxak Suryavanshi Jat.

7. The chronology of the ruler Maharaja Shalendra is as under: 1. Maharaja Shalendra 2. Dogla 3. Sambuk 4. Degali 5. Veer Narendra.

8. Due to attack of Hunas, the kingdom of descendants of Shalendra was destroyed who moved to Malwa where in samvat 597 (540 AD) Veer Chandra’s son Shalichandra built a temple in village Kanswa on the bank of Taveli River and put inscription in memory of their rule.

List of protected monuments by archaeological survey of India in Rajasthan in kota district has three sites:[3]

  1. Charchoma-Shiva Temple and two unpublished Gupta Inscriptions
  2. Dara- Temple, Fortwall and Statues
  3. Kanswa - Kanswa or Kansua temple with a four faced Shiva Lingam. The Temple is with Inscription of Jat Raja Salindra. It is located at a distance of 6 km from Kota City. The Shiva temple was constructed by Mauryas in 8th century.[4]

Kanswa Inscription of Dhavala Maurya 738 AD

कणसवा का लेख 738 ई. - कोटा के निकट कणसवा गांव के शिवालय में लगा हुआ यह लेख सं. 795 का है. [5]इसमें धवल नामक राजा का नाम है जो मौर्य वंशी राजा था. इस उल्लेख के बाद अन्य किसी मौर्य वंशी (मोरी) राजाओं का राजस्थान में वर्णन नहीं मिलता है, जिससे इस शिलालेख का महत्व और अधिक बढ जाता है.

इन प्रमाणों से मौर्यों का राजस्थान में अधिकार और प्रभाव स्पष्ट होता है। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत की राजनीतिक एकता पुनः विघटित होने लगी. इस युग में भारत में अनेक नये राजवंशों का अभ्युदय हुआ.

Jat Gotras

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है ....चौधरी माधोसिंहजी - [पृ.176]: राय साहिब चौधरी हरिरामसिंह जी से मिलती जुलती सूरत के एक मारवाड़ी सज्जन हैं जो इस वृदधावस्था में अपनी भव्य सूरत से लोगों को आकर्षित करते हैं। उनका नाम चौधरी माधो सिंह जी है। आप जोधपुर राज्य के गंगानी गांव के रहने वाले चौधरी टिकु राम जी उपनाम चौधरी सूरत सिंह जी इनानिया गोत के जाट सरदार के सुपुत्र हैं। आप का जन्म संवत 1948 की अनंत चौदस को हुआ था । शिक्षा आपके घर पर ही हिंदी गुरमुखी में हुई।

आपने जवानी के आरंभ में फौजी सर्विस की किंतु उसे कुछ ही दिन बाद छोड़ दिया। इसके बाद एक जमीदार के यहां मुख्तार हुए और उसे भी छोड़ कर कुछ दिन आपने खेती का काम किया। इसके साथ ही PWD में ठेकेदारी आरंभ कर दी।

जन्मभूमि आपकी मारवाड़ है किंतु उन्नति स्थान आपका कोटा राज्य है। कोटा राज्य में आपकी बड़ी इज्जत है। सरकार और जनता दोनों ही में इसका प्रमाण यह है कि कंट्रोल के दिनों में कोटा सरकार ने आपको 10 निजामत का शुगर कोटा दिया। जनता ने आपको किसान सभा वह जमीदार सभा का प्रेसिडेंट और कोषाध्यक्ष चुना।

कोटा राज्य की ओर से चौधरी माधोसिंह इनाणिया को मौजा ऊदपुरा बक्सा हुआ है। आप महाराव साहब कोटा के दरबारी भी हैं। और दशहरा, होली तथा जन्माष्टमी के दरबारों में आप नजर पेश करते हैं। मौजा उदपुरा के अलावा आपकी मौजा बकनपुरा, गरढ़ा और मौज में हीवा जमीदारी है। जमीदारी में आपने पक्के मकान कुआं और बाग भी बनाए हुए हैं।


[पृ.177]: कोटा राज्य के बड़े-बड़े ठिकानेदारों, कोयला, पलायता और कुंदाड़ी के सरदारों के साथ आपके बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं। कोटा राज्य के जागिरदार जाटों के साथ प्रेम का व्यवहार संभवत: करते हैं। उनका रवैया मारवाड़ के जागीरदारों जैसा नहीं है।

आप कोटा राज्य में संवत 1961 से जमने की कोशिश में थे और संवत 1968 से कतई जाम गाय। यहीं से आपने ग्वालियर और टोंक तक धंधे किए हैं ।

कोटा राज्य में चार प्रकार के जाट आबाद हैं जटूनना, आंजना, बृजवासी और सिखा। आपने चारों के अंदर जो खाई थी उस को पाट दिया है और अब चारों में ही ब्याह शादी होने लगे हैं। आपने अपनी जमीदार के गाव गरडा मे एक स्कूल खोला था जिसको अपने खर्चे से 6 साल तक चलाया।

बाबू गुल्ला राम जी के गांव रतकुड़िया के स्कूल और जोधपुर जाट बोर्डिंग हाउस को भी आपने यथाशक्ति मदद दी है। आप समाज सुधार के मामलों में काफी दिलचस्पी लेते हैं और अपनी जन्मभूमि तथा जाति से खूब प्यार करते हैं।

आपके तीन लड़के हैं जिनमें से रणवीरसिंह (उम्र 16-17 वर्ष), सुखबीर सिंह (उम्र 9-10 वर्ष) पढ़ते हैं। तीसरे अभी छोटे हैं। आप पांच भाई थे जिनमें एक नागराज गुजर गया है। आप इस समय एक समृद्धिशाली और बाइज्जत आदमी है। अत्यंत सज्जन पुरुष हैं।

Notable persons

  • Hari Singh (Khokhiya) - DFO Forest, Date of Birth : 2-February-1949, Present Address : C-227, Talwandi, Kota,(Raj.) Phone: 0744-2411009, Mob: 9414364721
  • Jaswant Singh Choudhary (Jurela) - X. EN. PWD, Date of Birth : 28-June-1950,Present Address : 34, Railway Housing Society,Mala Road, Kota,Phone: 9414231088, Mob: 9413300818
  • Naveen Dhankhar (Dhankhar) - Manager Shriram Vinyl And Chemicals, Date of Birth : 22-September-1978, Permanent Address : HOUSE NO 2-M-13, Dadabari Additional ,Kota

Present Address : 719, Shivgyan Enclave ,Nirman Nagar ,Jaipur, Rajasthan, Mob: 9829028067 Email Address : ndhankhar@rediffmail.com

Gallery

Reference

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.230
  2. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 2nd edition 1992, pp. 208-211.
  3. http://museumsrajasthan.gov.in/mounment_11.htm
  4. मोहन लाल गुप्ता: राजस्थान ज्ञान-कोष, p.531
  5. डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ.53. टाड, राजस्थान, जि. 2, पृ.919-22
  6. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.176-177

External Links


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