Dungar Ram Mundan

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Dungar Ram Mundan

Dungar Ram Mundan (4.8.1995-16.12.2016) from village Khari Khurd, Baori, Jodhpur, Rajasthan, sacrificed his life on 16.12.2016 in Siachin defending the country.

ग्रेनेडियर डूंगर राम मूंडण

ग्रेनेडियर डूंगर राम मूंडण

04-08-1995 - 17-12-2016

वीरांगना - श्रीमती हवा देवी

यूनिट - 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट

ऑपरेशन मेघदूत

ग्रेनेडियर डूंगर राम मूंडण का जन्म 4 अगस्त 1995 को राजस्थान के जोधपुर जिले के भवाद ग्राम पंचायत के खारी खुर्द गांव में श्री अणदाराम मूंडण एवं श्रीमती जैती देवी के परिवार में हुआ था। बालक डूंगर राम का जीवन संघर्षमय रहा। वर्ष 2008 में सड़क दुघर्टना में उनकी माता, ज्येष्ठ भ्राता और भतीजी का निधन हो गया था। आगे चलकर उन्होंने बावड़ी के किसान छात्रावास में रहकर शिक्षा प्राप्त करना आरंभ किया।

शिक्षा प्राप्त करते हुए ही 1 जुलाई 2014 को वह भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में रंगरूट के रूप में भर्ती हुए थे। ग्रेनेडियर्स रेजिमेंटल सेंटर, जबलपुर में प्रशिक्षण पूर्ण करने के पश्चात उन्हें 18 ग्रेनेडियर बटालियन में ग्रेनेडियर के पद पर नियुक्त किया गया था।

कभी-कभी नियति शब्दों में ढलकर कैसे आगामी घटनाओं का संकेत देती है। यह ग्रेनेडियर डूंगर राम के जीवन की घटना से प्रदर्शित होता है। जब उन्होंने अपने प्रथम वेतन की राशि बावड़ी किसान छात्रावास को सहायता स्वरूप प्रदान की, तो उनसे पूछा गया कि यह सहयोग राशि किसके नाम से लिखी जाए ? तो उन्होंने कहा "अभी तो पिता अणदाराम जी के नाम से लिख दीजिए, यदि विधाता ने चाहा तो मेरा नाम भी लिखवा देगा।"

वर्ष 2016 में वह अपनी बटालियन के साथ सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में तैनात थे। ग्लेशियर में जलवायु की घोर विषम और अति कठोर परिस्थितियों में राष्ट्रसेवा का कर्तव्य निर्वहन करते हुए 16 दिसम्बर 2016 की रात्रि लगभग 7:00 बजे उनका स्वास्थ्य क्षीण हो गया। श्वास लेने में समस्या होने से डॉक्टर्स द्वारा उन्हें चिकित्सा दी गई। 16/17 दिसंबर की रात्रि 12:45 बजे वह वीरगति को प्राप्त हो गए।

17 दिसंबर की भोर में 5:00 बजे सैन्य अधिकारियों द्वारा परिजनों को सूचना दी गई। 19 दिसंबर की प्रातः 8:45 बजे उनका पार्थिव शरीर घर पहुंचा और पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

Source - Ramesh Sharma

शहीद डूंगरराम मुण्डन का जीवन परिचय

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पथ पर देना फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढाने,जिस पथ पर जाये वीर अनेक।।

कवि माखनलाल चतुर्वेदी की रचना पुष्प की अभिलाषा की ये पंक्तियां प्रत्येक देशभक्त का सपना है। सैनिक के लिए देश के काम आकर शहीद का दर्जा प्राप्त करना सर्वोच्च सम्मान होता है।

शहीद डूंगरराम मुण्डन

ऐसा ही सम्मान पाया है जोधपुर जिले के भवाद ग्राम पंचायत के खारी खुर्द गाँव के शहीद डूंगरराम मुण्डन ने। 4 अगस्त 1995 को गांव खारी खुर्द के अणदाराम जाट के घर स्व. श्रीमती जैती देवी की कोख से जाबाज डूंगरराम मुण्डन का जन्म हुआ।

सेना मे भर्ती

बचपन से ही देश की सेवा का जज्बा खून बनकर इनकी रगों मे दौड़ रहा था।इसीलिए ही तो गांव मे माध्यमिक विद्यालय नही होते हुवे भी 15 किमी दूर बावड़ी जाकर 12 वी तक की पढाई पूरी करने के साथ ही सेना मे भर्ती होने चल पड़े।

संघर्षो की कहानी यहाँ तक ही नही है 2008 मे इनके परिवार के सदस्य माँ जैतीदेवी , भाई भंवराराम और भतीजी ममता की एक सड़क हादसे मे दुखद मौत हो है और परिवार पर भयंकर दुखो का पहाड़ टूट गया। शहीद डूंगरराम उस समय पढाई कर रहे थे । इन विषम परिस्थितियों मे भी इनके पिता ने इनकी पढाई अनवरत जारी रखी और परिणाम स्वरूप डूंगरराम सेना मे चयनित हो गए।पढाई के वक्त आप बावड़ी के किसान (जाट) छात्रावास मे अपने साथियों के साथ हमेशा देशभक्ति की चर्चाएं ही करते रहते थे। छात्रावास मे रहते ही इनका चयन सेना मे हो गया।इसलिए अपनी पहली तनख्वाह (₹31000) छात्रावास को दे दी। और जब पूछा गया कि किसके नाम से लिखी जाये तो प्रतिउत्तर हर देशभक्त के जहन मे जोश पैदा करने वाला था , शहीद का उत्तर था "अभी तो पिता श्री अणदाराम जी के नाम से लिख दो , मगर विधाता ने चाहा तो मेरा नाम भी लिखवा देगा।"

ऐसी ही सोच के इस जाबाज ने 1 जुलाई 2014 को भारतीय सेना ज्वाइन की और जबलपुर स्टेशन से ट्रेनिग प्राप्त कर दुनिया के सबसे ऊंचे और बर्फीले क्षेत्र सियाचिन मे ड्यूटी करने गए। मगर विधाता को ये सब मंजूर नही था इसलिए ही तो दादी माँ माडुदेवी का लाडला पौता, पिता अणदाराम के बुढ़ापे का सहारा,भाई रामदीन का कन्धा,पत्नी हवा देवी का सुहाग हमेशा हमेशा के लिए उजाड़ गया।

सियाचिन ग्लेशियर में शहीद

सियाचिन ग्लेशियर में 16 दिसम्बर 2016 की रात्रि करीब 7 बजे तेज और ठंडी हवा की वजह से सांस मे तकलीफ हो गई और उन्हें अस्पताल मे भर्ती करवाया गया। जहाँ मध्यरात्रि 12:45बजे शहीद डूंगर राम ने अंतिम सांस ली। 17 दिसम्बर की सुबह 5 बजे सेना अधिकारियो ने बड़े भाई रामदीन को फोन पर सूचना दी तब से शहीद परिवार के साथ ही पूरे गाँव का माहौल ग़मगीन हो गया।

शहीद की पार्थिव देह सियाचिन से दिल्ली तक हवाई मार्ग द्वारा और दिल्ली से जोधपुर तक सड़क मार्ग द्वारा 18 दिसम्बर की रात्रि 10 बजे जोधपुर व वहाँ से 19 दिसम्बर की सुबह 8:45 बजे शहीद के पैतृक गांव खारी खुर्द पहुँची। जहाँ परिवारजनों, रिश्तेदारों, संपूर्ण जिले के देशभक्त नागरिकों व विशिष्ट जनो की मौजूदगी मे खारी खुर्द गांव के चौराहे के पास अंतिम संस्कार किया गया।

शहीद के अंतिम संस्कार मे उमड़े जन सैलाब ने डूंगरराम अमर रहे, एक दो तीन चार डूंगर तेरी जय जयकार , जब तक सूरज चाँद रहेगा डूंगर तेरा नाम रहेगा इत्यादि गगनभेदी नारो से आकाश को गुंजायमान कर दिया। सेना की टुकड़ी ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया और दो वर्षीय बेटे दिलीप ने मुखाग्नि दी।

शहीद डूंगर राम का ननिहाल गोविंदपुरा बावड़ी मे व इनका विवाह वीरांगना श्रीमती हवा देवी जो कि नांदिया निवासी रामेश्वरराम माचरा की सुपुत्री है के साथ हुआ। इनके परिवार मे दादी माँ माडुदेवी,पिता अणदाराम, पत्नी हवादेवी, पुत्र दिलीप के अलावा भाई रामदीन, भाभी दुर्गादेवी, भतीजी संजू और भतीजा प्रेम है।

सेना मे चयन से परिवार को थोड़ा सबल मिला मगर भगवान को ये भी कहाँ मंजूर था। अब परिवार का सहारा एक मात्र बड़े भाई रामदीन है। इनका पूरा परिवार बारिश आधारित खेती पर निर्भर है और मारवाड़ और बारिश का कितना संयोग है ये किसी से छुपा नही है ।परिवार का अर्थतंत्र आर्थिक विषमताओं से झुंझ रहा है।और ये लिखते लिखते तो कलमकार की कलम भी रो पड़ती है।

वीर तेजाजी विशेषांक में प्रकाशन

शहीद डूंगरराम की शहादत और जीवन संगर्ष रुला देने वाला हैं.... बहुत ही गरीब परिवार जिसका एकमात्र सहारा बने डूंगरराम मुण्डन सियाचिन में देश की रक्षा करते हुए गत वर्ष 17 दिसम्बर को शहीद हो गए।

जोधपुर जिले की भवाद ग्राम पंचायत के खारी खुर्द गाँव के किसान अणदाराम की आय जरूर कम थी लेकिन परिवार खुशहाल था....परिवार की इस खुशी को उस समय ग्रहण लग गया जब 2008 में एक सड़क हादसे में अपनी कोख से शूरवीर को जन्म देने वाली माँ जैतीदेवी, भाई भँवराराम और भतीजी ममता की एक सड़क हादसे में दुखद मौत हो गई। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया। अपने बुजुर्ग पिता अणदाराम जी का सहारा बनने की खातिर डूंगरराम ने कड़ी मेहनत की और अपने गाँव से 15 किलोमीटर दूर बावड़ी जाकर 12 वीं तक पढ़ाई पूरी की। 1 जुलाई 2014 को भारतीय सेना ज्वाइन की और ट्रेनिंग के बाद दुनिया के सबसे ऊंचे एवं चारों तरफ बर्फ से ढके रण के मैदान सियाचिन में ड्यूटी करने लगे। भगवान भी किस कदर निर्दयी हो सकता हैं इसका उदाहरण शहीद डूंगरराम का परिवार हैं। सड़क हादसे में अपनी मां,भाई और भतीजी को खो देने वाले डूंगरराम स्वयं देश की रक्षा करते हुए 17 दिसम्बर 2016 को शहीद हो गए।

शहीद डूंगरराम की वीरगाथा और उनके जीवन संगर्ष को विस्तार से "वीर तेजाजी विशेषांक" में प्रकाशित किया जाएगा।

शहीद डूंगरराम की शहादत को कोटि कोटि नमन।

लेखक अमेश बैरड़ की और से

फूल झर गया,सुवास फ़ैल गयी । एक शूरवीर आत्मा, अन्नंत विलीन में खो गयी ।

लेखक

शहीद डूंगरराम मुंडन की जीवनी श्रवण भादु / अमेश बैरड़ ने लिखी

चित्र वीथी

संदर्भ

  • लेखक : अमेश बैरड़/ श्रवण भादु - sent by Email
  • शहीद के परवर के चित्र श्री रमेश दधीच द्वारा ई-मेल से प्राप्त Ramesh Dadhich<dadhichramesh77@gmail.com>

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