Gand
Gand (गंड)[1] is Gotra of Jats.[2][3] Gandae/Gandwal clan is found in Afghanistan.[4]
Origin
Jat Gotras Namesake
- Gand (गंड) (Jat clan) → Gandaka (गंडक). Gandaka (गंडक) is mentioned as one of the officers to whom the royal order is addressed in Bamhani Plates Of Bharatabala. The Gandaka has been taken in the sense of ‘a warrior' but may signify the same as Bhat (भट) or ‘a soldier'.[5]
History
गण्ड नामक एक चन्देल राजा भी हुए जो भारतविख्यात खजुराहो मन्दिर के निर्माता राजा धंग के पुत्र थे। महमूद गजनवी के आक्रमण समय ये कलिंजर के शासक थे। किन्तु 640 हाथी, 36 हजार घुड़सवार, 115000 पैदल सेना की पूरी तैयारी होने पर भी भय के कारण ये रात में रण छोड़कर भाग निकले थे। इसलिए कुछ भाट लोग गण्ड-भगौर कहलाने की यह उक्त किम्वदन्ती भी वर्णन करते हैं जबकि वास्तविकता इनके गन्धू या गांधारी होने की ही है (जाटों का उत्कर्ष पृ० 384, लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री)।[6]
फौजदार उपाधि
फौजदार - यह उपाधि मुगल शासनकाल में उन शाही उच्च अधिकारियों को दी जाती थी जो कई परगनों या प्रान्त की शासन व्यवस्था करते थे। जाटों में उपाधि प्राचीन राजवंशज जाट जो सेना (फौज) में रखते थे उनके द्वारा काम मे ली जाती थी। ब्रज क्षेत्र के जाट फौजदार और ठाकुर उपाधि का उपयोग करते आ रहे हैं । पांडव गाथा के अनुसार ब्रज क्षेत्र में 4 गोत्रों(सिनसिनवार, कुन्तल(तोमर),सोगरवार(सोघरिया),चाहर(चहल) को डुंग यानी बड़ा भाई बोला जाता है इनकी गोत्रों द्वारा समय समय पर अपने राज्य कायम किये फौज रखने के कारण ही यह फौजदार कहलाए जाते हैं। भरतपुर के सभी सिनसिनवार गोत्र के जाट, अलीगढ, मथुरा के खूंटेल (कुन्तल), डागुर, चाहर, गंड और भगौर गोत्रों के जाट फौजदार कहलाते हैं।[7]
Notable persons
References
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.34, sn-539.
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.299
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. 110
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, H. W. Bellew, p.118
- ↑ Corpus Inscriptionum Indicarum Vol.5 (Inscriptions of The Vakatakas), Edited by Vasudev Vishnu Mirashi, 1963, Archaeological Survey of India, p.82-88
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p-293
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter II, p-85
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