Geong

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search

Geong (ग्योंग) or Giyong is a big and famous village of Kaithal tehsil and district in Haryana.

Main occupation of the villagers is agriculture.

History

दादा भरतू चहल गयोंग के अनुसार पहले शुरू में मुस्लिम रांगड़ रहा करते थे । इस गांव में एक घर गुर्जर का हुआ करता था जिस पर ये रांगड़ मुस्लिम अत्याचार किया करते थे एवं गुर्जर भी बहुत तंगी में थे । फिर एक दिन सिंगरोहा गोत्र के जाट आये जामनी (जीन्द) से भैंसें चराते चारते । पूरा 1 महीना भैंसें चराई ओर गुर्जरों को जाटों का सहारा हो गया और यही रहने का फैसला कर लिया (गुर्जरों के कहने पर) जिस से रांगड़ मुस्लिमों को दिक्कत होने लगी ओर ये पूरी जमीन पर कब्जा कर लेगे ये सोच कर जाटो को यहाँ से दबाने की सोचने लगे । गुर्जर जाटो ने मिल कर मुस्लिम रांगडो को बहुत समझाया, पर वो नही समझे । उनको गाँव में से निकालने के लिए दबाने लगे । जाट (सिंगरोहे) कहने लगे कि ये तो नही मानने वाले । फिर गुर्जर के साथ मिल कर रांगड़ मुस्लिमों को खीर का न्योता दिया । जाटों के पास उस समय भैंसें बहूत थी और घी दूध की कमी नहीं थी तो खीर का न्योता दिया और सभी को एक लाइन में बिठा कर खीर दी ओर उनको खत्म कर दिया ओर जाटों (सिंगरोहा) ने गुज्जरों को बोला कि तुम अपने रिश्तेदार सगे संबंधियों को इस गाँव में लेकर आओ ओर हम भी जामनी से लेकर आते है । तब से ये गांव जाटो ओर गुज्जरों का बसाया हुआ है । गाँव में इस समय 4500 मतदाता है । ये गाँव संगरोहा/सिंगरोहा गोत्र बाहुल्य गाँव है । दो गोत्र दलाल ओर चहल भी है, पर सिंगरोहा की संख्या बहुत ज्यादा है । वैसे तो ये सभी जातियों से सम्पन्न गाँव है ।

Jat Gotras

Population

  • Population of Geong according to Census 2001 is 4595 including males 2532 and females 2063.
  • As per Census 2011, the population is 5286 (Males: 2829, Females: 2457)

Notable persons

स्वर्गीय राम कला सिंगरोहा नंबरदार गांव ग्योंग जिला कैथल यह जाट स्कूल 1st प्रेसिडेंट 1939 में बना था और सर छोटू राम के साथ जाट स्कूल नीम रखने का काम किया था !

कैथल - कुरुक्षेत्र में कहां जाता है इसके बारे में कभी भी कोई भी गरीब व्यक्ति इसके घर से भूखा नहीं गया। वह बिना किसी पहचान के, बिना जातिभाव व धार्मिक मतभेद के सबको बड़े प्रेम से खाना खिलाता था। वह भोज, भंडारे या धार्मिकता के नाम पर किसी को खाना नहीं खिलाता था, बल्कि वह किसी भी भूखे (घर आये) को बिना शर्त, आदर भाव से खाना खिलाता था। किसी को दिखाने के लिये नहीं, बस अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर ही उसमें इतना अधिक अतिथि प्रेम था। उसके गाँव के ही नहीं बल्कि आस-पास के पड़ौसी गाँव के लोग भी अनजान अतिथियों को रामकले के पास ग्योंग में ही भेजते थे कि वो अतिथि सेवा करता है। इस खाना खिलाने की भावना ने ही रामकला संगरोहा ग्योंग आळा प्रसिद्ध कर दिया। जैसे दारा सिंह पहलवान जिन्दे जी एक किवदंती बन गए थे......घणा दारा सिंह ना पाक्कै, हम्म्म दारा सिंह, दारा सिंह बरगा गात सै भाई ! उसी प्रकार रामकला भी जिन्दे जी किवंदती बन गया.........जमा रामकला बणरया सै, देख्या नी इसा रामकला, टिक जा रामकले, हम्म्म रामकले, अरै तू के ग्योंग आळा रामकला होग्या इत्यादि। सिंगरोहा खाप को एक आदमी ने प्रसिद्ध कर दिया, जिसने गाँव देखा नहीं वो भी गाँव को जानने लगा। कोई कहता कि मैं ग्योंग से हूँ तो सामने वाला पूछता रामकले वाली ग्योंग से। उस आदमी ने जो अतिथि सेवा की, उसका फल उसने कभी नहीं चाहा और ना उसका प्रदर्शन किया। परन्तु अच्छा बुरा कर्म करोगे तो उसका फल अवश्य मिलेगा। दादा को भी मिला और लोगों ने उसकी प्रसिद्धि पूरे क्षेत्र में कर दी मैंने दादाजी से सुन रखा था रामकले के बारे में हमारा गाँव ग्योंग से 45 किलोमीटर दूर है। गयोंग जो कुरुक्षेत्र रोड पर कैथल निकलते ही पहला गाम है, 1940-1950 के दौर में रामकला संगडोया ग्योंग आळा एक ब्रांड था, जबकि उस समय संचार और प्रचार के साधन बढ़िया नहीं थे।

स्रोत - कुलदीप सिंगरोहा रत्नडेरा

External Links

References


Back to Jat Villages