Haldwani
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Haldwani (हल्दवानी) is a city and largest commercial market in Nainital District of the Indian state of Uttarakhand. Haldwani is known as the "Gateway to Kumaon".
Location
Haldwani is located in the Nainital District, and is one of its eight Subdivisions. The Haldwani is the fourth most populous UA in Uttarakhand, after Dehradun, Haridwar and Roorkee. Being situated in the immediate foothills of Kumaon Himalayas, the Kathgodam neighbourhood of Haldwani is known as the "Gateway to Kumaon".
Located in the Bhabhar region in the Himalayan foothills on the banks of the Gaula River, the town of Haldwani was established in 1834, as a mart for hill people who visited Bhabar during the cold season. The establishment of the Bareilly–Nainital provincial road in 1882 and the Bhojeepura–Kathgodam railway line by Rohilkund and Kumaon Railway in 1884 helped develop the town into a major trading post and then a hub between the hilly regions of Kumaon and the Indo-Gangetic Plains.
It is also the largest city of the Kumaon region. Haldwani is said to be the financial capital of Uttarakhand, having the most commercial, economic and industrial activities of the state.
Etymology
The name "Haldwani" is an anglicised version of the Kumaoni word "Haldu-vani" (literally "forest of Haldu"), named after the tree of "Haldu" [1] known to botanists as Adina cordifolia. The Haldu trees were found in abundance around the city prior to deforestation of the region for agriculture and settlement. The place was regionally known as Halduvani until George William Traill took over as Commissioner of Kumaon and renamed it to Haldwani in 1834.
History
The Bhabhar region, where the city is located, has historically been a part of the Kingdom of Kumaon. The region came under the dominion of Kumaon, when King Gyan Chand of Chand Dynasty visited Delhi Sultanate in the 14th century. Later, the Mughals tried to take over the hills, but their attempts received a setback due to the difficult terrain.[2]
In the early 1600s, the Haldwani region was sparsely populated. It was inhabited by people of a Native tribe known as the Buksa.[3] The Terai area southward consisted of thick forests, and was used as hunting grounds by the Mughals.
In 1816, after the British defeated Gorkhas, and gained control of Kumaon by the Treaty of Sugauli, Gardner was appointed the Commissioner of Kumaon. Later George William Traill took over as Commissioner and renamed Halduvani as Haldwani in 1834.[4] Though British records suggest that the place was established in 1834, as a mart for hill people who visited the Bhabhar (Himalayan foothills) region, during the cold season.[5] The township, formerly located in Mota Haldu, had only thatched houses. Brick-houses began to be built only after 1850. The first English middle school was established in 1831.
During the Indian Rebellion of 1857, Haldwani was briefly seized by the rebels of Rohilkhand,[6] soon martial law was declared in the region by Sir Henry Ramsay (the Commissioner of Kumaon), and by 1858, the region was cleared of the rebels.[7] The Rohillas, who were accused of attacking Haldwani, were hanged by the British at Phansi Gadhera in Nainital.[8] Later, Ramsay connected Nainital with Kathgodam by road in 1882. In 1883–84, the railway track was laid between Bareilly and Kathgodam. The first train arrived at Haldwani from Lucknow on 24 April 1884.[9]
Before the formation of Nainital district in 1891, it was part of the Kumaon district, which was later renamed Almora district.[10]
हल्द्वानी
हल्द्वानी (Haldwani): उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल ज़िले में स्थित एक नगर है। हल्द्वानी कुमाऊँ मण्डल का सबसे बड़ा एवं देहरादून के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। हल्द्वानी कुमाऊँ का सबसे बड़ा आर्थिक, शैक्षिक, व्यापारिक एवम आवासीय केंद्र है इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" कहा जाता है। कुमाऊँनी भाषा में इसे "हल्द्वेणी" भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ "हल्दू" प्रचुर मात्रा में मिलता था। मुग़ल इतिहासकारों ने इस बात का उल्लेख किया है कि 14वीं शताब्दी में एक स्थानीय शासक, ज्ञान चन्द जो अहीर राजवंश से सम्बंधित था, दिल्ली सल्तनत पधारा और उसे भाभर-तराई तक का क्षेत्र उस समय के सुलतान से भेंट स्वरुप मिला। बाद में मुग़लों द्बारा पहाड़ों पर चढ़ाई करने का प्रयास किया गया, लेकिन क्षेत्र की कठिन पहाड़ी भूमि के कारण वे सफल नहीं हो सके।
सन् 1856 में सर हेनरी रैम्से ने कुमाऊँ के आयुक्त का पदभार संभाला। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के दौरान इस क्षेत्र पर थोड़े समय के लिये रोहिलखण्ड के विद्रोहियों ने अधिकार कर लिया। तत्पश्चात सर हेनरी रैम्से द्वारा यहाँ मार्शल लॉ लगा दिया गया और 1858 तक इस क्षेत्र को विद्रोहियों से मुक्त करा लिया गया। इसके बाद सन् 1882 में रैम्से ने नैनीताल और काठगोदाम को सड़क मार्ग से जोड़ दिया। सन् 1883-84 में बरेली और काठगोदाम के बीच रेलमार्ग बिछाया गया। 24 अप्रैल, 1884 के दिन पहली रेलगाड़ी लखनऊ से हल्द्वानी पहुंची और बाद में रेलमार्ग काठगोदाम तक बढ़ा दिया गया।
सन् 1901 में यहाँ की जनसँख्या 6624 थी और सयुंक्त प्रान्त के नैनीताल ज़िले के भाभर क्षेत्र का मुख्यालय हल्द्वानी में ही स्थित था। और साथ ही ये कुमाऊँ मण्डल और नैनीताल ज़िले की शीत कालीन राजधानी भी हुआ करता था। सन् 1901 में आर्य समाज भवन और 1902 में सनातन धर्मं सभा का निर्माण किया गया। सन् 1899 में यहाँ तहसील कार्यालय खोला गया जब इसे नैनीताल ज़िले के चार भागों में से एक भाभर का मुख्यालय बनाया गया। 1891 तक अलग नैनीताल ज़िले के बनाने से पहले तक ये कुमांऊ ज़िले का भाग था जिसे अब अल्मोड़ा ज़िले के नाम से जाना जाता है।
रानीबाग
रानीबाग हल्द्वानी नगर का एक आवासीय क्षेत्र और वार्ड है, जो नगर के केंद्र से 8 किमी उत्तर में राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर स्थित है। यह क्षेत्र हल्द्वानी नगर निगम की उत्तरी सीमा बनाता है। कहते हैं यहाँ पर मार्कण्डेय ॠषि ने तपस्या की थी। रानीबाग के समीप ही पुष्पभद्रा और गगार्ंचल नामक दो छोटी नदियों का संगम होता है। इस संगम के बाद ही यह नदी 'गौला' के नाम से जानी जाती है। गौला नदी के दाहिने तट पर चित्रेश्वर महादेव का मन्दिर है।
रानीबाग से पहले इस स्थान का नाम चित्रशिला था। कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीपाल की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। वह बहुत सुन्दर थी। रुहेला सरदार उसपर आसक्त था। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही रुहेलों की सेना ने घेरा डाल दिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी। उसने अपने ईष्ट का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई। रुहेलों ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा परन्तु वे कहीं नहीं मिली। कहते हैं, उन्होंने अपने आपको अपने घाघरे में छिपा लिया था। वे उस घाघरे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-विरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं - मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने गात पर रुहेलों का हाथ नहीं लगन् दिया था। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।
रानीबाग से दो किलोमीटर जाने पर एक दोराहा है। दायीं ओर मुड़ने वाली सड़क भीमताल को जाती है। जब तक मोटर - मार्ग नहीं बना था, रानीबाग से भीमताल होकर अल्मोड़ा के लिए यही पैदल रास्ता था। वायीं ओर का राश्ता ज्योलीकोट की ओर मुड़ जाता है। ये दोनों रास्ते भुवाली में जाकर मिल जाते हैं। रानीबाग से सात किलोमीटर की दूरी पर 'दोगाँव' नामक एक ऐसा स्थान है जहाँ पर सैलानी ठण्डा पानी पसन्द करते हैं। यहाँ पर पहाड़ी फलों का ढेर लगा रहता है। पर्वतीय अंचल की पहली बयार का आनन्द यहीं से मिलना शुरु हो जाता है।
भवाली
भवाली (Bhowali) उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल ज़िले में स्थित एक नगर है। भवाली कुमाऊँ मण्डल में आता है। शान्त वातावरण और खुली जगह होने के कारण 'भवाली' कुमाऊँ की एक शानदार नगरी है। यहाँ पर फलों की एक मण्डी है। यह एक ऐसा केन्द्र-बिन्दु है जहाँ से काठगोदाम हल्द्वानी और नैनीताल, अल्मोड़ा - रानीखेत, भीमताल - सातताल और रामगढ़ - मुक्तेश्वर आदि स्थानों को अलग - अलग मोटर मार्ग जाते हैं। भवाली चीड़ और वाँस के वृक्षों के मध्य और पहाड़ों की तलहटी में 1680 मीटर की ऊँचाई में बसा हुआ एक छोटा सा नगर है। भवाली की जलवायु अत्यन्त स्वास्थ्यवर्द्धक है। भवाली में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं। सीढ़ीनुमा खेत है। सर्पीले आकार की सड़कें हैं। चारों ओर हरियाली ही हरियाली है। घने वाँस - बुरांश के पेड़ हैं। चीड़ वृक्षों का यह तो घर ही है।
External links
References
- ↑ "Imperial Gazetteer2 of India, Volume 13, page 10 -- Imperial Gazetteer of India -- Digital South Asia Library".
- ↑ History of Nainital District The Imperial Gazetteer of India 1909, v. 18, p. 324-325.
- ↑ Singh, R (2004). "Composition and Social Order". Social Transformation of Indian Tribes. New Delhi, India: Anmol Publications PVT. LTD. pp. 25–26. ISBN 81-261-0452-X.
- ↑ History of Haldwani
- ↑ Halwani The Imperial Gazetteer of India 1909, v. 13, p. 10.
- ↑ Mittal, Arun K. (1986). British Administration in Kumaon Himalayas: A Historical Study, 1815–1947. Mittal Publications. p.19
- ↑ History of Nainital District The Imperial Gazetteer of India 1909, v. 18, p. 324-325.
- ↑ Pant, Neha (17 July 2017). "Nainital MLA for change in 'strange' names of tourist points". Hindustan Times.
- ↑ Pande, Badri Datt (1993). History of Kumaun : English version of "Kumaun ka itihas". Almora, U.P., India: Shyam Prakashan. ISBN 81-85865-01-9.p.38
- ↑ 1891 The Imperial Gazetteer of India 1909, v. 18, p. 330.