Nainital
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Nainital (नैनीताल) is a hill station in the Indian state of Uttarakhand.
Variants
- Nainital (नैनीताल), उ.प्र., (p.508)
- Naini Tal
- Naini Lake (नैनी झील)
Location
Nainital is located in the Kumaon foothills of the outer Himalayas at a distance of 285 km from the state capital Dehradun. Situated at an altitude of 2,084 metres above sea level, the city is set in a valley containing an eye-shaped lake, approximately two miles in circumference, and surrounded by mountains, of which the highest are Naina (2,615 m) on the north, Deopatha (2,438 m) on the west, and Ayarpatha (2,278 m).
Origin
History
Nainital is the judicial capital of Uttarakhand, the High Court being located here, and is the headquarters of the Kumaon division as well as an eponymous district. It also houses the Governor of Uttarakhand, who resides in the Raj Bhavan. Nainital was the summer capital of the United Provinces.
Mythology
It is believed that the Naini Lake is one of the 51 Shakti Peeths, or The most popular is based on the story of the death of the goddess Sati. Out of grief and sorrow, Shiva carried Sati's body, reminiscing about their moments as a couple, and roamed around the universe with it. Vishnu had cut her body into 52 body parts, using his Sudarshana Chakra, which fell on Earth to become sacred sites where all the people can pay homage to the Goddess. The spot where Sati's eyes (or Nain) fell, came to be called Nain-tal or lake of the eye. The goddess Shakti is worshiped at the Naina Devi Temple, known by locals as Naini Mata Temple on the north shore of the present day lake.
नैनीताल
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...नैनीताल (AS, p.508): स्कंद पुराण में नैनीताल का नाम त्रिऋषिसरोवर मिलता है जिसका अत्रि, पुलह और पुलस्त्य ऋषियों से संबंध बताया गया है. इस पौराणिक किंवदंती के अनुसार इन ऋषियों ने यहां सरोवर के तट पर तप किया था. नैनीताल का नाम इसी सरोवर या नैनी झील के तट पर स्थित नैना देवी के प्राचीन मंदिर के कारण हुआ है. 1841 ई. में दो अंग्रेज शिकारियों ने इस स्थान की खोज की थी. प्रकृति की यह मनोरम स्थली गागर की पहाड़ियों से घिरी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर फैली हुई हैं. उत्तर की ओर चीना-शिखर (ऊंचाई समुद्र तल से 8568 फुट), पूर्व की ओर आलमा तथा शेर का दंदा नामक शिखर, पश्चिम में एक ढलवां 8000 फुट ऊंची पहाड़ी और दक्षिण में आयारपथ नामक 7800 फुट ऊंचा गिरीशृंग--ये पहाड़ियां नैनीताल की चतुर्दिक सीमा की प्रहरी हैं. स्कंद पुराण की उपर्युक्त कथा के अनुसार तीनों देवऋषि घूमते हुए यहां पहुंचे थे किंतु उन्हें इस स्थान पर बसने में, पानी न होने के कारण कठिनाई जान पड़ी. अतः उन्होंने वहां एक बड़ा सरोवर खुद वाया जो फौरन ही जल पूर्ण हो गया. इस कथा से यह सूचित होता है कि संभवत: नैनीताल की झील कृत्रिम रूप से बनाई गई थी. इस कथा से [p.509] यह भी ज्ञात होता है कि नैनीताल के स्थान का प्राचीन काल से ही भारतीयों को पता था. सरोवर के किनारे ही नैना देवी का प्राचीन मंदिर था, जो संभवत: इस क्षेत्र के पहाड़ी जाति के लोगों की अधिष्ठात्री देवी थी. उत्तरी भारत के मूल निवासियों की तरह नैनीताल के मूलनिवासी भी देवी के पुजारी थे. नैना देवी कल्याण रूपा देवी मानी जाती है इसके विपरीत यहां के लोक-विश्वास के अनुसार नैनीताल की दूसरी देवी चंडी अथवा पाषाण देवी का रूप अमांगलिक समझा जाता है. नैनीताल की झील में प्रतिवर्ष होने वाली घटनाओं का कारण इस देवी का प्रकोप माना जाता है
नैनीताल परिचय
नैनीताल भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। नैनीताल, उत्तराखंड के उत्तर मध्य भारत में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित एक नगर है। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। बर्फ़ से ढके पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। इसलिए इसे 'झीलों का शहर' भी कहा जाता है। नैनीताल को चाहे जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है। इसे भारत का 'लेक डिस्ट्रिक्ट' कहा जाता है, क्योंकि इसकी पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। इसकी भौगोलिक विशेषता निराली है। नैनीताल का सबसे कम तापमान 27.06°C से 8.06°C के बीच रहता है। नैनीताल का दृश्य नैनों को सुख देता है।
भौगोलिक स्थिति: नैनीताल शहर उत्तर-मध्य भारत के उत्तरी उत्तराखंड राज्य में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित है। 1841 में स्थापित यह नगर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो समुद्र तल से लगभग 1,934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर एक सुंदर झील के आस-पास बसा हुआ है और इसके चारों ओर वनाच्छादित पहाड़ हैं। नैनीताल के उत्तर में अल्मोड़ा, पूर्व में चम्पावत, दक्षिण में ऊधमसिंह नगर और पश्चिम में पौड़ी एवं उत्तर प्रदेश की सीमाएँ मिलती हैं। जनपद के उत्तरी भाग में हिमालय क्षेत्र तथा दक्षिण में मैदानी भाग हैं जहाँ साल भर आनंददायक मौसम रहता है।
इतिहास: नैनीताल को पी. बेरून नामक व्यक्ति द्वारा वर्ष 1841 में स्थापित किया गया था। पी. बेरून पहला यूरोपियन था। नैनीताल अंग्रेज़ों का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय था। 1847 में नैनीताल मशहूर हिल स्टेशन बना, अंग्रेज़ इसे 'समर कैपिटल' भी कहते थे। तब से लेकर आज तक यह अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है। औपनिवेशिक काल में नैनीताल शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा। अपने बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ाने के लिए अंग्रेज़ों को यह जगह काफ़ी पसंद आई थी। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए भी व्यापक इंतज़ाम किए थे। पहाड़ियों से घिरी नैनी झील और इसके आस-पास की तमाम झीलें आकर्षण का केन्द्र बन गयी थीं और प्रत्येक यूरोपियन नागरिक यहाँ बसने की लालसा लेकर आने लगे। बाद में ब्रिटिश-भारतीय सरकार ने नैनीताल को यूनाइटेड प्रोविन्सेज की गर्मियों की राजधानी घोषित कर दिया और इसी दौरान यहाँ तमाम यूरोपीय शैली की इमारतों का निर्माण हुआ, गवर्नर हाऊस और सेन्ट जॉन चर्च इस निर्माण कला के अद्भुत उदाहरण है।
नैनीताल के दर्शनीय स्थल
नैना देवी का नैनीताल: पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु यह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल-स्वरूप यज्ञ के हवनकुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र-रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु, सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे; वहीं पर नैनादेवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अप्पुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिव पत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। नैनीताल के ताल की बनावट भी देखें तो वह आँख की आकृति का 'ताल' है। इसके पौराणिक महत्व के कारण ही इस ताल की श्रेष्ठता बहुत आँकी जाती है। नैनी (नंदा) देवी की पूजा यहाँ पर पुराण युग से होती रही है।
कुमाऊँ के चन्द राजाओं की इष्ट देवी भी नन्दा ही थी, जिनकी वे निरन्तर यहाँ आकर पूजा करते रहते थे। एक जनश्रुति ऐसी भी कही जाती है कि चंद्रवंशीय राजकुमारी नन्दा थी जिसको एक देवी के रूप में पूजा जाता था। परन्तु इस कथा का कोई प्रामाणिक स्रोत नहीं है, क्योंकि समस्त पर्वतीय अंचल में नन्दा को ही इष्ट देवी के रुप में स्वीकारा गया है। गढ़वाल और कुमाऊँ के राजाओं की भी नन्दा देवी इष्ट रही है। गढ़वाल और कुमाऊँ की जनता के द्वारा प्रतिवर्ष नन्दा अष्टमी के दिन नंदापार्वती की विशेष पूजा होती है। नन्दा के मायके से ससुराल भेजने के लिए भी 'नन्दा जात' का आयोजन गढ़वाल-कुमाऊँ की जनता निरन्तर करती रही है। अतः नन्दापार्वती की पूजा - अर्चना के रूप में इस स्थान का महत्व युगों-युगों से आंका गया है। यहाँ के लोग इसी रूप में नन्दा के 'नैनीताल' की परिक्रमा करते आ रहे हैं।
पौराणिक संदर्भ: पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है। मानसखंड में नैनीताल और कोटाबाग़ के बीच के पर्वत को शेषगिरि पर्वत कहा गया है, जिसके एक छोर पर सीतावनी स्थित है। कहा जाता है कि सीतावनी में भगवान राम व सीता ने कुछ समय बिताया है। जनश्रुति है कि सीता सीतावनी में ही अपने पुत्रों लव व कुश के साथ राम द्वारा वनवास दिये जाने के दिनों में रही थीं। सीतावनी के आगे देवकी नदी बताई गई है, जिसे वर्तमान में दाबका नदी कहा जाता है। महाभारत वन पर्व में इसे आपगा नदी कहा गया है। आगे बताया गया है कि गर्गांचल (वर्तमान गागर) पर्वतमाला के आसपास 66 ताल थे। इन्हीं में से एक त्रिऋषि सरोवर (वर्तमान नैनीताल) कहा जाता था, जिसे भद्रवट (चित्रशिला घाट-रानीबाग़) से कैलाश मानसरोवर की ओर जाते समय चढ़ाई चढ़ने में थके अत्रि, पुलह व पुलस्त्य नाम के तीन ऋषियों ने मानसरोवर का ध्यान कर उत्पन्न किया था। इस सरोवर में महेंद्र परमेश्वरी (नैना देवी) का वास था। सरोवर के बगल में सुभद्रा नाला (बलिया नाला) बताया गया है। इसी तरह भीमताल के पास के नाले को पुष्पभद्रा नाला कहा गया है, दोनों नाले भद्रवट यानी रानीबाग़ में मिलते थे। कहा गया है कि सुतपा ऋषि के अनुग्रह पर त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु व महेश चित्रशिला पर आकर बैठ गये और प्रसन्नतापूर्वक ऋषि को विमान में बैठाकर स्वर्ग ले गये। गौला को गार्गी नदी कहा गया है। भीम सरोवर (भीमताल) महाबली भीम के गदा के प्रहार तथा उनके द्वारा अंजलि से भरे गंगा जल से उत्पन्न हुआ था। पास की कोसी नदी को कौशिकी, नौकुचिया ताल को नवकोण सरोवर, गरुड़ताल को सिद्ध सरोवर व नल सरोवर आदि का भी उल्लेख है। क्षेत्र का छखाता या शष्ठिखाता भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है, यहां 60 ताल थे। मानसखंड में कहा गया है कि यह सभी सरोवर कीट-पतंगों, मच्छरों आदि तक को मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। इतिहासकार एवं लोक चित्रकार पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल मानसखंड को पूर्व मान्यताओं के अनुसार स्कंद पुराण का हिस्सा तो नहीं मानते, अलबत्ता मानते हैं कि मानसखंड क़रीब 10वीं-11वीं सदी के आसपास लिखा गया एक धार्मिक ग्रंथ है।
धार्मिक मान्यता: कहते हैं कि नैनीताल नगर का पहला उल्लेख त्रिषि-सरोवर (त्रि-ऋषि सरोवर के नाम से स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया जाता है। कहा जाता है कि अत्रि, पुलस्त्य व पुलह नाम के तीन ऋषि कैलाश मानसरोवर झील की यात्रा के मार्ग में इस स्थान से गुजर रहे थे कि उन्हें ज़ोरों की प्यास लग गयी। इस पर उन्होंने अपने तपोबल से यहीं मानसरोवर का स्मरण करते हुए एक गड्ढा खोदा और उसमें मानसरोवर झील का पवित्र जल भर दिया। इस प्रकार नैनी झील का धार्मिक महात्म्य मानसरोवर झील के तुल्य ही माना जाता है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार नैनी झील को देश के 64 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव जब माता सती के दग्ध शरीर को आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत की ओर ले जा रहे थे, इस दौरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को विभक्त कर दिया था। तभी माता सती की बांयी आँख (नैन या नयन) यहाँ (तथा दांयी आँख हिमाचल प्रदेश के नैना देवी नाम के स्थान पर) गिरी थी, जिस कारण इसे नयनताल, नयनीताल व कालान्तर में नैनीताल कहा गया। यहाँ नयना देवी का पवित्र मंदिर स्थित है।
संदर्भ: भारतकोश-नैनीताल
तल्ली एवं मल्ली ताल: नैनीताल के ताल के दोनों ओर सड़के हैं। ताल का मल्ला भाग मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है। मल्लीताल में फ्लैट का खुला मैदान है। मल्लीताल के फ्लैट पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं। यहाँ नित नये खेल - तमाशे होते रहते हैं। संध्या के समय जब सारी नैनीताल नगरीय बिजली के प्रकाश में जगमगाने लगती है तो नैनीताल के ताल के देखने में ऐसा लगता है कि मानो सारी नगरी इसी ताल में डूब सी गयी है। संध्या समय तल्लीताल से मल्लीताल को आने वाले सैलानियों का तांता सा लग जाता है। इसी तरह मल्लीताल से तल्लीताल (माल रोड) जाने वाले प्रकृतिप्रेमियों का काफिला देखने योग्य होता है।
त्रिॠषि सरोवर: त्रिऋषि सरोवर (AS, p.413) का उल्लेख स्कन्द पुराण में हुआ है। आधुनिक नैनीताल की नैनी झील को ही ऋषि अत्रि, पुलह और पुलस्त्य के नाम पर ही 'त्रिऋषि सरोवर' कहा गया है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार इन ऋषियों ने इस झील के तट पर प्राचीन काल में तप किया था।
जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान : कुमाऊँ के नैनीताल जनपद में यह उद्यान विस्तार लिए हुए हैं। यह गौरवशाली पशु विहार है। यह रामगंगा की पातलीदून घाटी में 525.8 वर्ग किलोमीटर में बसा हुआ है। दिल्ली से मुरादाबाद - काशीपुर - रामनगर होते हुए कार्बेट नेशनल पार्क की दूरी 290 किमी है। कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों के भ्रमण का समय नवंबर से मई तक होता है। इस मौसम में कई ट्रैवल एजेन्सियाँ कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों को घुमाने का प्रबन्ध करती हैं। कुमाऊँ विकास निगम भी प्रति शुक्रवार को दिल्ली से कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान तक पर्यटकों को ले जाने के लिए संचालित भ्रमणों (कंडक टेड टूर्स) का आयोजन करता है। कुमाऊँ विकास निगम की बसों में अनुभवी मार्गदर्शक होते हैं जो पशुओं की जानकारी, उनकी आदतों को बताते हुए बातें करते रहते हैं। यहाँ पर शेर, हाथी, भालू, बाघ, सुअर, हिरण, चीतल, साँभर, पाण्डा, काकड़, नीलगाय, घुरल और चीता आदि 'वन्य प्राणी' अधिक संख्या में मिलते हैं। इसी प्रकार इस वन में अजगर तथा कई प्रकार के साँप भी निवास करते हैं।
भीमताल
भीमताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल ज़िले में स्थित एक नगर है। नगर का नाम भीमताल झील के ऊपर पड़ा है, जो नगर के मध्य में स्थित है। 'भीमाकार' होने के कारण शायद इस ताल को भीमताल कहते हैं। परन्तु कुछ विद्वान इस ताल का सम्बन्ध पाण्डु-पुत्र भीम से जोड़ते हैं। काठगोदाम से 10 किमी उत्तर और नैनीताल से 22 किमी पूर्व नैनीताल जिले में स्थित यह झील कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा झील है। त्रिभुज के आकार का यह ताल तीन तरफ से पर्वतों से घिरा है। इसमें पर्यटकों हेतु नौकाविहर की सुविधा है। इसमें जल का रंग गहरा नीला है। यह कमल और कमल कड़ी के लिए प्रसिद्ध है। इस झील के बीच में टापू है, जिस पर रेस्टोरेंट है। इस झील से सिंचाई हेतु छोटी-छोटी नहरें निकाली गई है। भीमताल नैनीताल और हल्द्वानी से भी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान प्राचीन सिल्क मार्ग पर पड़ता था जो नेपाल और तिब्बत को जोड़ता था।
भीमेश्वर महादेव मन्दिर: भीमेश्वर महादेव मंदिर नैनीताल से 22 किमी. की दूरी पर भीमताल झील के तट पर बसा हुआ एक प्राचीन मंदिर है| माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडव इस क्षेत्र में आये थे, तथा भीमताल के किनारे भीम ने भगवान शिव की तपस्या की थी। तेरहवीं शताब्दी में यह क्षेत्र कुमाऊँ राज्य के अंतर्गत आया, और सत्रहवीं शताब्दी में यहां अल्मोड़ा के राजा बाज़ बहादुर चन्द ने भीमेश्वर महादेव मन्दिर की स्थापना की थी। चन्द काल में यह छखाता परगना का मुख्यालय हुआ करता था।
कर्कोटक नाग के नाम से नैनीताल में एक पहाड़ी है जिस पर एक नाग मंदिर बना हुआ है। कर्कोटक शिव के एक गण और नागों के राजा थे। हजारों लोग ऋषि पंचमी के दिन यहाँ पूजा करने के लिए आते हैं। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध नाग मंदिर हैं। कर्कोटक (AS, p.142) का उल्लेख कर्ण पर्व महाभारत (44, 43) में किया गया है- 'कारस्करान् माहिष्कान् कुरंडान् केरलांस्तथा कर्कोटकान् वीरकांश्च दुर्धर्मांश्च विवर्यजेत्।' कारस्कर, माहिषक, कुरंड, केरल, कर्कोटक और वीरक ये ब्राह्मण धर्म को मानने वाले नहीं हैं। कर्कोटक नामक नाग जाति का उल्लेख महाभारत की नल दमयंती की कथा में है।
त्रिऋषि सरोवर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...त्रिऋषि सरोवर (AS, p.413) का उल्लेख स्कन्द पुराण में हुआ है। आधुनिक नैनीताल की नैनी झील को ही ऋषि अत्रि, पुलह और पुलस्त्य के नाम पर ही 'त्रिऋषि सरोवर' कहा गया है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार इन ऋषियों ने इस झील के तट पर प्राचीन काल में तप किया था।