Inderbal Singh Bawa

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Inderbal Singh Bawa

Inderbal Singh Bawa (Col) (25.05.1947 - 13.10.1987), (Mahavir Chakra), became martyr on 13.10.1987 during Operation Pawan in Srilanka. He was from Lucknow in Uttar Pradesh. Unit: 4/5 Gorkha Rifles.

लेफ्टिनेंट कर्नल इंदर बल सिंह बावा

लेफ्टिनेंट कर्नल इंदर बल सिंह बावा

25-05-1947 - 13-10-1987

महावीर चक्र (मरणोपरांत)

वीरांगना - श्रीमती लिली कौर

यूनिट - 4/5 गोरखा राइफल्स

ऑपरेशन पवन (श्रीलंका)

लेफ्टिनेंट कर्नल इंदरबल सिंह बावा का जन्म 25 मई 1947 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में डॉ. एच.एस. बावा के घर में हुआ था। उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा डीएवी हायर सेकेंडरी विद्यालय, शिमला से प्राप्त की थी। 11 जून 1967 को उन्हें भारतीय सेना की 5 गोरखा राइफल्स की 4 बटालियन में कमीशन किया गया था। उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी सक्रिय भूमिका निर्वहन की थी।

अगस्त 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते के रूप में भारतीय बलों के लड़ाई में उतरने के पश्चात, लिट्टे उग्रवादियों को आत्मसमर्पण करना था, परंतु दुर्दांत लिट्टे ने भारतीय सेना के विरूद्ध लड़ाई छेड़ दी। प्रारंभ में इस लड़ाई में मात्र सेना के 54 डिवीजन को तैनात किया गया था, परंतु ऑपरेशन के बढ़ने से 3, 4 और 57 डिवीजन भी इस लड़ाई में सम्मिलित हो गए। अक्टूबर 1987 तक, भारतीय सेना ने लिट्टे के विरुद्ध अनेक ऑपरेशन किए परंतु लड़ाई समाप्त नहीं हुई थी।

11 अक्टूबर 1987 को लेफ्टिनेंट कर्नल इंदरबल सिंह बावा अपनी बटालियन के साथ पलाई एयरफील्ड पर उतरे और शीघ्र लड़ाई में चले गए। इस बटालियन को वासविलन-उरुम्पिराई-जाफना AXIS पर लिट्टे उग्रवादियों के सुरक्षित, किलेबंद गढ़ों को ध्वस्त करने का कार्य सौंपा गया था। उग्रवादियों ने सुदृढ़ किलेबंद स्थानों से अग्रिम का प्रतिरोध किया। लेफ्टिनेंट कर्नल बावा ने इस ऑपरेशन में व्यक्तिगत रूप से अपने सैनिकों का नेतृत्व किया।

इसके पश्चात 13 अक्टूबर 1987 को 4/5 गोरखा राइफल्स बटालियन को लिट्टे का मुख्यालय बन चुके जाफना विश्वविद्यालय में फंसी हुई 13 सिख लाइट इंफेंट्री बटालियन और 10 पैरा बटालियन की टुकड़ियों को निष्कासित करने का कार्य सौंपा गया। लेफ्टिनेंट कर्नल बावा ने लिट्टे के सुदृढ़ किलेबंद क्षेत्र में अपनी बटालियन का नेतृत्व किया और उन टुकड़ियों को सफलतापूर्वक निष्कासित किया। इस ऑपरेशन में लिट्टे के एक आत्मघाती कॉलम ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। परिणामस्वरूप लेफ्टिनेंट कर्नल बावा को अनेक गोलियां लगीं, अपना कर्तव्य निर्वहन करते और वीरता से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए।

लेफ्टिनेंट कर्नल बावा को उनके असाधारण साहस, अडिग नेतृत्व एवं सर्वोच्च बलिदान के लिए 26 जनवरी 1988 को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

चित्र गैलरी

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

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