Jat Aur Dharm
Author of this article is Laxman Burdak लक्ष्मण बुरड़क |
जाट और धर्म
जाट धर्म के नाम पर सहनशील हैं . उनमें धर्म के नाम पर कोई कट्टरता नहीं पायी जाती. प्रारंभ में जाट वैदिक धर्म को मानते थे. बाद में लगभग सभी जाट बौद्ध-धर्म में आ गए. कुछ जाट जैन धर्म को भी मानते थे. हर्ष वर्धन के समय तक वे बौद्ध धर्म में रहे. वर्तमान में जाट हिन्दू धर्म, सिक्ख धर्म, इस्लाम धर्म एवं ईसाई धर्म को मानते हैं. इतिहासकार कानूनगो[1] के अनुसार धर्मवार जाटों की जन संख्या इस प्रकार है:
- हिन्दू धर्म - 47%
- सिक्ख धर्म - 20%
- इसलाम धर्म - 33%
जाटों ने अपने चारित्रिक गुण एकेश्वर मत के अनुसार मध्य एसिया के जाटों ने बौद्ध धर्म के बाद इस्लाम धर्म को ग्रहण किया जो सिन्धु तक फैला तथा यूरोप में 16 वीं शताब्दी के बाद ईसाई धर्म अपनाया तथा अठारवीं सदी में भारत के जाटों ने पंजाब में सिख धर्म को अपनाया. 1875 में आर्य समाज की स्थापना के बाद भारत के शेष जाटों ने उसी निराकार एकेश्वर मत के अनुसार वैदिक धर्म अपनाया क्योंकि जाट चरित्र में मूर्ती पूजा का कभी कोई स्थान नहीं रहा. [2]
जाट और बौद्ध धर्म
चीनी यात्री फाह्यान के वृत्तांत में जाटों के धर्म की पहली बार बात आई है. फाह्यान 1600 वर्ष पहले भारत आया था. उसने सबसे पहले अफगानिस्तान होते हुए स्वात घाटी, जहाँ आजकल पाकिस्तान में युद्ध छिड़ा है, में प्रवेश किया. उसके बाद पेशावर से सीधा मथुरा आया, वहां से बौद्धों के शहर बनारस होते हुए पटना और गया पहुंचा. वहां से सीधा समुद्र के रास्ते वापिस चीन को लौट गया. अफगानिस्तान से लेकर बिहार में गया तक के पूरे क्षेत्र को अंग्रेज अनुवादक जेम्स लेग्ग ने जाट-जुट्स बहुल क्षेत्र लिखा है. जहाँ सभी जगह बौद्ध धर्म का डंका बज रहा था तथा जगह-जगह बौद्ध विहार बने थे. यहाँ हजारो-हजार बौद्ध भिक्षु रहते थे. इन्ही लोगों में से काफी को पुजारी बनाया जा रहा था. कहीं कहीं वैष्णव पंथ था जिसके लिए कुछ ब्रह्मण पुजारी थे, लेकिन उन्होंने कहीं भी हिन्दू धर्म या हिन्दू शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. इससे स्पस्ट है कि उस समय तक भारत में हिन्दू धर्म के नाम का प्रचलन नहीं हुआ था. लगभग समस्त जाट बौद्ध धर्मी थे.[3]
जाट और इसलाम धर्म
स. न. सदासिवन 'भारत का सामाजिक इतिहास'[4] में लिखते हैं कि भारत में ब्राह्मणों ने राजपूतों को बढ़ावा दिया. जाटों ने ब्राह्मणों की इच्छा के अनुकूल विधवा विवाह पर रोक लगाना अस्वीकार कर दिया, उन्होने राजपूतों में प्रचलित बच्चियों को जन्म के समय ही मारने की प्रथा का भी समर्थन नहीं किया. जाटों की सोच में ब्राह्मण धर्म में निहित कर्मकांड के लिए भी कोई स्थान नहीं था. इन मतभेदों के कारण ब्राह्मणों ने जाटों को समाज में नीचा स्थान देने का का उपक्रम किया. चौधरी चरणसिंह मानते थे की ब्राह्मणों की इसी भेदभाव पूर्ण नीति के कारण केवल 40 वर्ष की अल्प-अवधि में ही 56 प्रतिशत हिन्दू जाट मुस्लिम या सिख धर्म में चले गए. यह तथ्य 1931 की जनगणना से स्पस्ट हो जाता है. चौधरी चरणसिंह का मानना था कि पाकिस्तान का बनना भी इसी नीति का परिणाम था.
जाटों का वर्ण
जाट कौम बौद्ध रही है. ब्राह्मणवादी विचारधारा को न मानने के कारण ब्राह्मणवाद के निशाने पर रही है. इसीलिये ब्राह्मण ग्रंथों यथा स्कंध पुराण, भविष्य पुराण तथा पद्म पुराण में जाटों को शूद्र लिखवाया जबकि जाट न तो शूद्र हैं न हिन्दू हैं और न ही ब्राह्मणीय व्यवस्था के अंतर्गत हैं. यह किसी वर्ण में नहीं आता है. [5]
अवश्य पढ़े
सन्दर्भ
- ↑ कलिका रंजन कानूनगो: हिस्टरी ऑफ़ द जाट्स, 2003
- ↑ हवा सिंह सांगवान: 'जाट कौन है', जाट समाज, आगरा, नवम्बर 2010 , पृ. 18
- ↑ हवा सिंह सांगवान: 'जाट कौन है', जाट समाज, आगरा, नवम्बर 2010 , पृ. 18
- ↑ S. N. Sadasivan: A Social History Of India (स. न. सदासिवन: भारत का सामाजिक इतिहास)
- ↑ हवा सिंह सांगवान: 'जाट कौन है', जाट समाज, आगरा, नवम्बर 2010 , पृ. 19
External links
- http://www.jansamwad.com/LatestNews.aspx?dv=Div46
- Buddhist Heritage unearthed at Jat inhabitant areas in Indian sub-continent - Jatland Forums
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