Jat History Dalip Singh Ahlawat/Foreword

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जाट वीरों का इतिहास
लेखक - कैप्टन दलीप सिंह अहलावत
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प्राक्कथन


इतिहास मनुष्य समाज की उन्नति एवं पतन की सत्य कहानी होता है। उसे पढ़कर पिछली गलतियों से अपने को बचाना और अगले सुकार्यों के लिए प्रेरणा प्राप्त करना मनुष्य का कर्त्तव्य माना जाता है। इसी के आधार पर जन-समाजों का अस्तित्व सुरक्षित रह सकता है।

उन्नति की इच्छुक प्रत्येक जाति को इतिहास की अत्यन्त आवश्यकता है। क्योंकि जनसमूह जितना प्राचीन गौरवपूर्ण गाथाओं को सुनकर प्रभावित होता है, उतना भविष्य के सुन्दर से सुन्दर आदर्श की कल्पना से नहीं होता। इतिहासशून्य जातियां न उठीं हैं और न उठ सकती हैं। पूर्वजों के महान् कारनामों से लाभ उठाना और आगे बढ़ते जाना इतिहास से ही सीखा जा सकता है। जिन लोगों ने देशनिर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देना है और जिनकी रगों में आर्यों का शुद्ध रक्त प्रवाहित है उन सम्पूर्ण क्षत्रिय जातियों एवं भारतवासियों को एक मंच पर लाकर संगठित करना स्वाधीन देश की सुरक्षा के हित में परमावश्यक है।

मेरे शिक्षा काल से ही मेरे रुचि धार्मिक एवं ऐतिहासिक बातें जानने की रही है। यह रुचि मेरे सैनिक काल में भी रही। 32 वर्ष सेना में देश सेवा करके मैं 19 मार्च 1969 को पेन्शन आ गया। घर आकर मैंने वैदिक साहित्य का अध्ययन करना आरम्भ किया। साथ-साथ मेरे रुचि इतिहास की ओर भी रही। मैंने विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को पढ़ाई जाने वाली इतिहास की पाठ्य-पुस्तकें पढ़ीं। मुझे ज्ञात हुआ कि इन पुस्तकों में आर्य नस्ल जाट वीरों के शासन एवं वीरता के कारनामे तो दूर, इनका नाम तक भी नहीं लिखा गया है। इन पुस्तकों में आर्यों को विदेशी आक्रमणकारी लिखा है और ऋग्वेद की रचना 1000-1500 वर्ष ई० पू० लिखी है जबकि आर्य आदि-सृष्टि से ही भारत के मूल निवासी हैं जिनके नाम पर हमारे देश का पहला नाम आर्यावर्त पड़ा और सृष्टि की रचना के शुरु में ही ऋषियों के द्वारा ईश्वरीय ज्ञान ऋग्वेद आदि प्राप्त हुआ। उपर्युक्त पाठ्य-पुस्तकें अंग्रेजों के शासन काल में उनके द्वारा लिखित इतिहास पुस्तकों की नकल है।

इनके अतिरिक्त अन्य अनेक इतिहासज्ञ विद्वान् कहे जाने वाले लेखकों ने भारत तथा विदेशों के इतिहास लिखे हैं जो कि अंग्रेजों के लेखों का अनुकरण है, जिनमें जाट वीरों का जिक्र तक भी नहीं है। इनमें से एक "इतिहास शिरोमणि" कहलाने वाले श्री ईश्वरीप्रसाद एम० ए०, एल० एल० बी०, डी० लिट् हैं जिन्होंने मध्यकालीन भारत का संक्षिप्त इतिहास सन् 1969 ई० में लिखा। इस लेखक ने अपनी इस पुस्तक में इस्लाम का जन्म तथा प्रसार से शुरु करके मुगल साम्राज्य का पतन तक का इतिहास लिखा है। परन्तु मुसलमान शासकों एवं भारतवर्ष पर आक्रमणकारियों के साथ जाटों के युद्धों का कोई वर्णन नहीं किया गया है, जबकि इन सभी के साथ जाट वीरों ने अनेक युद्ध किए। इस पुस्तक में जाटों का नाम तक भी नहीं मिलता।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-iii


मैने जाट जगत् से जाट इतिहास के विषय में पूछताछ की। इसके लिए मैंने महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय के अनेक इतिहास विषयक विद्यार्थियों से यह प्रश्न पूछे - जाट किसे कहते हैं? तुम्हारा गोत्र कब प्रचलित हुआ? जाटों की उत्पत्ति कब से है? जाटों की वीरता की कोई घटना बताओ? आदि-आदि।

कुछ का उत्तर मिला कि हल जोतने वाले को जाट कहते हैं। अन्य प्रश्नों का उत्तर मिला कि ये बातें हमें पढ़ाई नहीं जाती हैं। ऐसे ही प्रश्न मैंने जाट बुद्धिजीवियों तथा इतिहास के प्रोफेसरों से किए। एक-आध ने ही कुछ बातों का अधूरा-सा उत्तर दिया। शेष का उत्तर था कि हमारे द्वारा पढ़ाए जाने वाले इतिहासों में ये बातें हैं ही नहीं और न हम जानते हैं। तात्पर्य है कि बहुत थोड़े जाट अपने इतिहास को जानते हैं। अन्य जाति के लोग तो यह कहते सुने गये हैं कि खेती करने वाले को जाट कहते हैं जिनकी उन्नति और प्रसिद्धि चौ० छोटूराम ने करवाई। उनसे पहले जाटों की कोई प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना सुनने एवं पढ़ने में नहीं आई। कुछ जाट भाई अपने को राजपूतों की सन्तान बतलाते सुने गए जिनका कहना है कि हमारे गोत्र के भाट की पोथी में ऐसा लिखा है। भाटों के यह लेख असत्य, बेबुनियाद तथा मनगढन्त हैं।

उपर्युक्त बातें सुनकर मुझे बड़ा खेद हुआ और मेरा विचार जाट इतिहास लिखने का हुआ। मैंने अपने मित्रों एवं बुद्धिजीवियों की सलाह लेकर यह जाट वीरों का इतिहास लिखना आरम्भ कर दिया। यह इतिहास लेख सन् 1981 ई० से शुरू करके सन् 1988 में पूरा हुआ है। लगातार सात वर्ष तक कड़ी मेहनत करके मैने यह इतिहास लिखा है। पाठकों की सेवा में जाट वीरों का इतिहास नामक यह पुस्तक उपस्थित करते हुए मुझे हर्ष हो रहा है।

इस पुस्तक के लिखने में मैंने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि जाट जाति के गुण तथा दोषों का निष्पक्ष विवेचन पाठकों के समक्ष रखा जाए। किसी जातिविशेष को बढ़ावा देना और जातिवाद का प्रचार करना मेरा अल्पमात्र भी उद्देश्य नहीं है। इस इतिहास के लिखने का तात्पर्य यह है कि जाट जगत् समझे कि वह शुद्ध क्षत्रिय आर्य नस्ल है और सत्य एवं असत्य बातों की जानकारी प्राप्त कर सके तथा अपने पूर्वजों के किए गए कारनामों पर गौरव करके उन्नति करे। पाठकों को इस इतिहास के पढ़ने से ज्ञात होगा कि यह एक तरह से भारतवर्ष का ही इतिहास है। इस इतिहास से प्रेरणा लेकर सभी भारतवासियों को एकजुट होकर अपने देश की रक्षा एवं अखण्डता को कायम रखना अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए।


इस पुस्तक के एकादश अध्याय हैं जिनकी विषय-सूची दी गई है। इसमें मोटे तौर से निम्नलिखित प्रकरण हैं - सृष्टि एवं वेदों की रचना, आर्यों का मूल निवास स्थान, ब्रह्मा की वंशावली। जाटों की संख्या, आवास भूमि, विशेषताएं, उत्पत्ति, जाट आर्य हैं, भारतीय हैं, क्षत्रिय वर्ण के हैं। आदि सृष्टि या वैदिक काल में जाट वंशों का निर्माण तथा राज्य, इसी प्रकार रामायण काल तथा महाभारत काल में जाटों के राज्य। महाभारत युद्ध के बाद विदेशों में तथा भारतवर्ष में जाट राज्य। जाट, गूजर, अहीर, राजपूत, मराठा एक ही श्रेणी के हैं। भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमणकारियों से जाटों के युद्ध। दिल्ली साम्राज्य के मुसलमान बादशाह और जाट। भरतपुर एवं धौलपुर जाट राज्य तथा पंजाब में सिक्ख जाट राज्य का वर्णन। सन् 1857 ई० के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में तथा सन्


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-iv


1947 ई० में भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति में जाटों का योगदान। आधुनिक युग में जाटों की महानता। जाट गोत्रावली (संख्या 2500) परिशिष्ट-1 में दी गई है। इस पुस्तक में उचित स्थानों पर जाटों के नाम पर प्रचलित संवत्, देश, प्रान्त, क्षेत्र, दुर्ग, नगर, गांव, पहाड़, सागर, झील, नदी आदि लिखे गए हैं जिनकी सूची परिशिष्ट-2 में दी गई है।

जाट केवल शूरवीर, युद्धकारी, कुशल शासक, राजनीतिज्ञ तथा निपुण कृषक ही नहीं होते आए हैं बल्कि अपने देश के रक्षक एवं सच्चे देशभक्त, अपनी संस्कृति एवं धर्म को दूसरे देशों में फैलाने वाले भी हैं। इनमें उच्च कोटि के विद्वान्, वैज्ञानिक, लेखक, शिल्पकार, शस्त्रकार आदि भी होते आए हैं। जहां कहीं भी जाटों ने शासन किया वहां की जनता पर अत्याचार नहीं किए बल्कि उनकी सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक उन्नति की ओर ठीक से न्याय दिया। जाटों की अपनी भाषा और लिपि भी थी जो दूर-दूर तक फैली। इनके वायुयान चलते थे तथा समुद्री जहाजों द्वारा व्यापार करते थे। उपर्युक्त बातें इस पुस्तक में उचित स्थान पर लिखी गई हैं। पाठकों को इन बातों की जानकारी इस पुस्तक के पढ़ने से प्राप्त होगी।

इस इतिहास के लिखने में जिन-जिन पुस्तकों अथवा लेखों से सहायता ली गई है उनकी सूची अलग से दी गई है। मैं उन सभी लेखकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। वास्तव में इन लेखों के आधार पर ईश्वर की कृपा से ही मैं यह पुस्तक लिख सका हूँ।

इस ग्रन्थ से सम्बन्धित सामग्री की खोज के लिए मैं चौ० कबूलसिंह बाल्याण, मन्त्री हरयाणा सर्वखाप पंचायत, गांव व डाकघर शोरम जि० मुजफ्फरनगर (उ० प्र०) के घर गया। वहां पर रखे सर्वखाप पंचायत के प्राचीन ऐतिहासिक रिकार्ड्स भंडार से पर्याप्त सामग्री लाया। इस सहायता के लिए मैं चौ० कबूलसिंह बाल्याण मन्त्री जी का अति कृतज्ञ हूं।

इस खोज कार्य के लिए मैं कई बार दिल्ली गया और बिड़ला मन्दिर तथा कई विदेशी दूतावासों से इस इतिहास से सम्बन्धित सामग्री लाया। इसके अतिरिक्त अनेक अन्य स्थानों से तथा गुरुकुल झज्जर संग्रहालय से भी सामग्री प्राप्त की। उपर्युक्त स्थानों पर जब भी मैं गया तो इस खोज कार्य के लिए चौ० मास्टर तीर्थसिंह तोमर एम.ए. एल.एल.बी. मेरे साथ गए और मेरी सहायता की। मास्टर जी की इस सहायता के लिए मैं उनका अत्यधिक आभारी हूं।

आदरणीय कैप्टन भगवानसिंह आई.ए.एस. (रिटायर्ड) भूतपूर्व भारतीय हाई कमिश्नर, अध्यक्ष भारतीय जाट महासभा और स्वामी कर्मपाल जी अध्यक्ष सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत , ने मेरे इस जाट वीरों का इतिहास की प्रस्तावना लिखने की कृपा की है जिससे इसको चार चांद लग गए हैं। इन महानुभावों का मैं हृदय से कृतज्ञ हूं तथा सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।

अन्त में सर्वशक्तिमान् परमपिता परमेश्वर का धन्यवाद है जिसकी असीम कृपा से यह ग्रन्थ पूर्ण होकर आपके करकमलों में उपस्थित है। आशा है सभी पाठक इसे अपनी स्वीकृति देंगे। धन्यवाद।


विनयावनत

- कैप्टन दलीपसिंह अहलावत
ग्राम व डाकघर डीघल
जिला रोहतक (हरयाणा)

जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-v


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