Jat Yoddha

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बेधङक का हवाई जहाज
लेखक
पृथ्वीसिंह बेधङक



जाट योद्धा


जगत में जितनी हुई लङाई ।।


जाट कौम के बिना फ़तह किसी ने पाई हुई

जहॉं कहीं जिसके साथ जाटों की लङाई हुई ।

मिलते हैं प्रमाण उनकी हर जगह सफ़ाई हुई

जैसे जमींदारों के यहॉं खेतों में सफ़ाई हुई ।

उसी तरह जाटों द्वारा दुशमनों की कटाई हुई

बिना बेटे की माई हुई खाविन्द बिन लुगाई हुई ।

बिना भाई के बहन हुई बिन देवर के भौजाई हुई

कोई भी बात ना अपनी ओर से मिलाई हुई

सारी बातें सुन लो गैर मुल्कों की बताई हुई ।


भूमण्डल में भाई ।।


सबसे पहले आया था लङने को सिकन्दर भाई

जाटों ने बनाया उसको लङने में बन्दर भाई ।

क्योंकि जाट रहे सदा युद्ध में कलन्दर भाई

आया फ़िर महमूद जबकि तोङने मन्दर भाई ।

इधर न उतरने दिया लाहौर ओर जालंधर भाई

लहू का बहाया सोम नाथ में समन्दर भाई ।

ठहरने दिया ना उसको अपने देश के अन्दर भाई

अगर यहॉं आज आयें सूरज ओर चन्दर भाई ।


देंवें ठीक गवाही ।।


भारत में जीत गौरी गजनी नहीं जाने दिया

सिन्ध में आगे उसको कदम नहीं उठाने दिया ।

पानी नहीं पीने दिया खाना नहीं खाने दिया

बाजा ना बजाने दिया गाना नहीं गाने दिया ।

गजनी नहीं जाने दिया दिल्ली नहीं आने दिया

मरी हुई लाश को हमने नहीं दफ़नाने दिया ।


हॉंसी लाश लटकाई ।।


दिल्ली को जीतने को बङे बङे शूर लङे

शिवाजी मराठा रोज़ बन के काफ़ूर लङे ।

वीर बन्दा गोविन्द सिंह जी के गुरू लङे

कछवाहे राजपूत लङे होकर चूर चूर लङे ।

दक्षिण लाहौर लङे पटियाला संगरूर लङे

महराणा प्रताप वीर होकर के मगरूर लङे ।


नहीं तो दिल्ली तेग बजाई ।।


दिल्ली का किला तोङन हेतु जाट शूरवीर चले

जाटों के साथ साथ गूजर ओर अहीर चले ।

सूरजमल के बम चले जवाहर के तीर चले

देख के लङाई विकट भागते शरीर चले

बादशाह भी शरण लेने गेर के शमशीर चले


बख्श दे जान सिपाही ।।


काबुल को जीतने खातिर अंग्रेजों ने जोर किया

कब्जा लेने को भाई मुद्दतों तक शोर किया

लेकिन इन बातों पर काबुल ने ना गौर किया

महराणा रणजीत सिहं ने काबुल का दौर किया

जैसे मोटर ड्राईवर ने पिस्टन पर बोर किया

जाट शूरवीरों ने वहॉं लाशो का छोर किया


बाकी खाई लगाई ।।


अंग्रेजों ने भरतपुर में युद्ध बारह साल किया

भरतपुर के जाटों ने उस युद्ध मे कमाल किया

ब्रज का मैदान सारा अपने लहू से लाल किया

बच्चा बच्चा अंग्रेजों को जंग में विक्राल किया

अंग्रेजों ने कब्जे में ना कभी भोपाल किया

होकर के लाचार आखिर सिन्ध का सवाल किया


खिराज देई ना एक पाई ।।


सन ५४ में जाटों का रिसाला सागर पार किया

मेरठ बुलन्दशहर गया रोहतक हिसार गया

जर्मन से लङने की खातिर फ़्रांस के बाजार गया

चार नम्बर पल्टन के आगे हिटलर वीर हार गया

जाटों से मत ना लङो ऎसा करता प्रचार गया

हुक्म टाल कर कोई इनसे लङने को सरदार गया


उसकी आयेगी तबाही ।।


इटली से लङने को भाई जाट जब यूनान गये

फ़ौज में मुसोलिनी की लेकर के कमान गये

जाटों के मुकाबले में हो लहू लुहान गये

थोङे ही दिनों में लाखों इटेलियन शमशान गये

बहुत सारे जर्मन गये बहुत से जापान गये

बहुत से भारत में आकर जेल के दरम्यान गये

डिक्टेटर मुसोलिनी भी पकङ अपना कान गये

जाटों की लङाई देख वीरताई मान गये

गेर के हथियार अपने छोङ के मैदान गये


भाग कर जान बचाई ।।


हवाई लङाई यह नर जाटों को सिखाते भाई

अंग्रेजों के काम आज सारे जाट आते भाई

हिटलर क्या जापान रूस सबको ही हराते भाई

जाटों के आगे सारे मार खाकर जाते भाई

हरियाणे के जाट ऊपर बम बरसाते भाई

लङने छोटूराम के संग पृथ्वीसिंह भी जाते भाई


लेकर जहाज हवाई ।।



Digital text (Wiki version) of the printed book prepared by - Vijay Singh विजय सिंह

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