Kalighat
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kalighat (कालीघाट) is a locality of Kolkata, in Kolkata district, West Bengal, India. Kalighat is densely populated and one of the oldest neighbourhoods in South Kolkata — with a history of cultural intermingling with the various foreign incursions into the area over time.
Origin
Variants
History
The Kali of Kalighat: The famous temple Kalighat Kali Temple dedicated to the goddess Kali is situated in Kalighat. This is one of the 51 Shakti Peethas. The right toe of Dakshayani Sati is said to have fallen here. The Shakti here is known as Dakshina Kalika, while the Bhairava is Nakulesh. Considered as one of the Holiest of the Holies in terms of Hindu Shakta Pilgrimage Centres, (Shiva and Durga/Kali/Shakti worshippers) it sees the footfall of thousands of devotees everyday. However, Tuesdays and Saturdays are considered very auspicious, and the crowd increases a hundred folds on these two days.
The special days when the Goddess receives even more pilgrims is during the Vipad Tarini Vrat, and when the Goddess is worshipped as Ratantika and Falaaharini Kali.
कालीघाट
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...कालीघाट (बंगाल) (AS, p.182) कलकत्ता नाम का आदिरूप कालीघाटा था. यह नाम इस स्थान पर एक प्राचीन काली-मंदिर के होने के कारण पड़ा था. जहां कलकत्ते का समुद्र तट आज स्थित है, वहां प्राचीन काल में ऊंचे-ऊंचे कगार थे जो समुद्र के थपेड़ों से कटकर नष्ट हो गए और एक दलदल के रूप में रह गए. इस कारण गंगा का प्राचीन मार्ग भी बदल गया और इस स्थान पर एक त्रिकोणद्वीप बन गया. कालांतर में इस द्वीप पर काली का एक मंदिर बन गया जो प्रारंभ में आदिवासियों का पूजा स्थान था क्योंकि काली उनकी आराध्य देवी थी. इन्हीं के [p.183]: द्वारा यह देवी पाशवी देवी के रूप में बहुत दिनों तक सम्मानित रही और बाँसों के झुरमुटों से घिरे हुए इस मंदिर में धींवर, मल्लाह और आदिवासी लोग बहुत दिनों तक पूजा के लिए आते जाते रहे. कहा जाता है कि बंगाल के सेन-वंशीय नरेश बल्लालसेन ने कालीक्षेत्र का दान तांत्रिक ब्राह्मण लक्ष्मीकांत को दिया था. तब से लेकर अब तक लक्ष्मीकांत के परिवार के हालदार ब्राह्मण ही काली मंदिर के पुजारी होते चले आए हैं. काली की मूर्ति इन्हीं की बताई जाती है. देवी के रौद्ररूप काली की पूजा इन्हीं तांत्रिकों ने पहली बार द्विजों में प्रचलित की, नहीं तो उनकी आराध्या तो उमा, शिवा, दुर्गा या धात्री थी. तांत्रिकों ने स्वयं काली की मूर्ति का भाव आदिवासियों से ग्रहण किया होगा-- यह भी उपर्युक्त तथ्यों की पृष्ठभूमि में संभव जान पड़ता है.
कहा जाता है कि 1530 ई. तक सरस्वती और यमुना नामक दो नदियां कालीघाट के पास ही समुद्र में गिरती थी और इस संगम को त्रिवेणी का रूप माना जाता था. कालांतर में यह दोनों नदियां सूख गई किन्तु कालीघाट या कालीबाड़ी का तीर्थ रूप में महत्व बढ़ता ही गया. 17वीं शताब्दी के अंत और 18वीं के प्रारंभिक काल में यह मंदिर इतना प्रसिद्ध था कि वार्ड नामक अंग्रेजी लेखक के अनुसार वर्तमान कलकत्ते की नींव डालने वाले जॉब चार्नाक की भारतीय पत्नी के साथ अनेक अंग्रेज महिलाएं भी काली मंदिर में मनौती मनाने आती थी. वार्ड के उल्लेखानुसार ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों ने एक बार पांच सहस्र रुपया इस मंदिर में चढ़ाया था. पौराणिक कथा है कि पूर्वजन्म में शिव की पत्नी दक्ष-पुत्री सती के मृत शरीर के दक्षिण चरण की अंगुलियाँ यहाँ कटकर गिरी थीं और वे ही मूर्ति रूप में यहाँ प्रतिष्ठित हुईं. काली मंदिर को इसलिये काली पीठ भी माना जाता है.