Kana Ram Bhukar
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kana Ram Bhukar (चौधरी कानाराम भूकर), from Dinarpura, Sikar, was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी कानाराम जी - [पृ.496]: गोठड़ा के पास ही सीकरवाटी में भूकरों एक दूसरा ग्राम है दिनारपुरा । यहां चौधरी देवाराम जी भूकर एक प्रसिद्ध जाट सज्जन हुए हैं। कहते हैं सीकरवाटी में सर्वप्रथम आपने ही अपना मकान पक्का बनवाया था। अब तो सीकरवाट के हर गांव में 30 फ़ीसदी पक्के मकान हैं। चौधरी रामदेव जी के ही यहां भादवा बदी 8 संवत 1913 (?) को कानाराम जी का जन्म हुआ।
चौधरी कानाराम जी अपने पिता की भांति परिश्रमशील तो है ही साथ ही जाति भक्त भी पूरे हैं। जाट महायज्ञ के समय से ही आपने कौमी सेवा में पैर रखा तब से बराबर अपनी शक्ति भर कौम की सेवा करते चले आ रहे हैं। आप दो बार जेल भी हो आए है। पहली बार चौधरी गणेशराम जी
[पृ.497]: कूदन और चौधरी ईश्वरसिंह जी भैरूपुरा के साथ और दूसरी बात कूदन गोलीकांड के सिलसिले में। जाट बोर्डिंग हाउस और किसान सभा के लिए आपने लगन के साथ काम किया है और इनकी तरक्की में ही आप कॉम की तरक्की समझते हैं।
आपके 4 संतान हैं- 1. गोविंदराम, 2. गणेशराम और 3. हरिश्चंद्र नाम के तीन लड़के और मोहरी देवी नाम की एक लड़की। लड़कों में गणेशरामजी व्यापारी दिमाग के आदमी थे। उन्होंने बाराबंकी में दुकान खोली थी किंतु खेद है कि असमय ही में उनका देहांत हो गया। गणेशराम जी ने अपने पीछे रामकुमार नाम का एक लड़का छोड़ा है। गणेशराम जी के बड़े भाई गोविंदराम जी के दो लड़के हैं रणबीर और बृजमोहन उनके नाम हैं।
चौधरी कानाराम जी के छोटे भाई का नाम गोवर्धनसिंह जी था वह भी मर चुके हैं। उनका एक लड़का तनसुख राम है।
चौधरी रामदेव जी एक बहादुर आदमी थे। संवत 1978 (1921 ई.) में जब लगान में एक टका बढ़ाया गया तो आपने मिरजवास के चौधरी पोखराम जी के साथ मिलकर आंदोलन उठाया जिसके कारण आपको जेल जाना पड़ा और भारी-भारी बेड़ियां पहननी पड़ी।
चौधरी कानाराम जी भी अपने पिता की भांति ही हिम्मत के आदमी है और परिश्रम करने से कभी घबराते नहीं। सदा एक ही धुन से काम में चिपके रहना उनका स्वभाव है।
रावराजा के निर्वासन से वापसी और सीकर बोर्डिंग हाऊस
सीकर के रावराजा के निर्वासन के पश्चात् वहां शांति व्याप्त थी. इस दौरान एक दिलचस्प घटना घटी. झुंझुनू में छात्रावास की भूमि बिसाऊ ठाकुर ने दी थी. किन्तु सीकर में प्रयास करने के उपरांत भी जमीन नहीं मिल रही थी. गोठड़ा किसान समेलन में भी यह प्रकरण उठा था. लेकिन रावराजा के निर्वासन के बाद भूमि कौन दे यह समस्या हो गयी. रावराजा के बाहर रहने से रानी चिंतित थी. किसी ने उन्हें बताया कि यदि किसान पंचायत जयपुर दरबार को कह दे तो रावराजा की वापसी हो सकती है. रानी ने किसान पंचायत के नेताओं को बुलाया. उनके सामने इच्छा प्रकट की कि राजा को वापस बुलाया जाये. हरीसिंह बुरड़क पलथाना और ईश्वर सिंह भामू ने मांग रखी कि यदि सीकर दरबार छात्रावास के लिए भूखंड उपलब्ध करवादे तो पंचायत के नेता रावराजा को वापस लाने का प्रयास करेंगे. उन्होंने रेलवे स्टेशन के निकट भूमि चिन्हित कर रखी थी. सीकर रानी ने वादा किया कि रावराजा के आते ही छात्रावास के लिए जमीन देदी जाएगी. पंचायत के मुखियाओं ने जयपुर महाराजा को लिखकर दिया कि यदि यदि रावराजा को सीकर लाया जाता है तो उनको कोई ऐतराज नहीं है. सितम्बर 1942 में कल्याण सिंह फिर से रावराजा बनकर आ गए. (राजेन्द्र कसवा: पृ.193)
यह अश्चर्यजनक लगता है कि रावराजा के विरुद्ध संघर्ष करने वाले और उत्पीड़न सहने वाले ही उन्हें वापस ले आये. पंचायत के जाट नेताओं ने सोच समझ कर ही यह निर्णय किया था. असल में कल्याण सिंह अनपढ़ जरूर थे किन्तु वे साफ़ दिल व्यक्ति थे. छोटे ठिकानेदार ही उसे निर्दयी बनाए थे. राष्ट्रीय स्तर पर यह लगने लगा था कि देर-सबेर जागीरदारों को जाना ही होगा. अंग्रेज अधिकारियों और जयपुर रियासत ने बंदोबस्त करके कुछ हद तक सीकरवाटी के किसानों को संतुष्ट भी कर दिया था. (राजेन्द्र कसवा: पृ.194)
रावराजा के पुनः आने से सकारात्मक प्रभाव पड़ा. छात्रावास के लिए किसान पंचायत को भूमि आवंटित करने में विलम्ब नहीं हुआ. बसंत पंचमी , फ़रवरी 1943 में, सीकर बोर्डिंग हाऊस का शिलान्यास स्वयं रावराजा ने किया. उस अवसर पर हरीसिंह बुरड़क पलथाना, ईश्वर सिंह भामू भैरूपुरा, कालूराम सुंडा कूदन, कानाराम भूकर, डूंगाराम भामू, हरी राम भूकर गोठड़ा आदि किसान नेता उपस्थित थे. कल्याण सिंह ने 12 बीघा भूमि प्रदान की. यही नहीं रावराजा ने अपने पुत्र हरदयाल सिंह के नाम से एक कमरे की राशि भी दी. (राजेन्द्र कसवा: पृ.195)
जीवन परिचय
बाहरी कड़ियाँ
संदर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.496-497
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.496-497
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