Rajendra Singh Kaswan

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Rajendra Kaswa

Rajendra Singh Kaswan (राजेन्द्रसिंह कसवा) or Rajendra Kaswa is a Hindi author from village Lutu in Jhunjhunu district in Rajasthan. He is a Law graduate. He has written a number of books and novels.

Education and career

Rajendra Kaswa receive his Primary and Middle school level education from nearby village Kolinda. Completed High School from Alsisar in 1965 and got admission in Mukundgarh College for study but meanwhile he was selected for job in Indian Army. Served Indian Army for about five years and left it in 1970. Then he joined Indian Postal Department and completed his BA Degree as in-service candidate. He did LLB from University of Rajasthan in 1979. He left Indian Postal Department in 1998 and started practice as an advocate. He is now fully engaged in writing work.

Contact Details

  • Address: Kalam Basera, 4/366, Housing Board Jhunjhunu, Rajasthan.
  • Phone:01592-233079, Mob-9414668488

'राजनीति का धंधा- आम आदमी मंदा’ का विमोचन समारोह

संदर्भ - भास्कर समाचार, दिनांक 24 अगस्त 2015, भास्कर संवाददाता | झुंझुनूं

जागरूकलोगों को राजनीति में आना होगा। लोकतंत्र के प्रति उदासीन होने से गैर जिम्मेदार लोग राजनीति में रहे हैं। समय गया है कि अब राजनीति का वैकल्पिक मार्ग तलाशा जाए।

यह बात डूंगरगढ़ के श्याम महर्षि ने कही। वे रविवार को महर्षि दयानंद महिला विज्ञान कॉलेज में मानस कल्याण संस्था की ओर से आयोजित पुस्तक “राजनीति का धंधा- आम आदमी मंदा’ के विमोचन समारोह में बोल रहे थे। पुस्तक राजेंद्र कस्वां ने लिखी है। महर्षि ने कहा कि ऐसी वैकल्पिक राजनीति चाहिए जिसमें जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होने के साथ खुद को जनता का सेवक माने। समारोह के अध्यक्ष डॉ. हनुमान प्रसाद ने कहा कि अयोग्य नेताओं के चुने जाने से देश में नौकरशाही हावी हो रही है।

मुख्य वक्ता चूरू से आए प्रो. भंवरसिंह सामौर ने राजनीति के धंधा बनने को देश के लिए दुर्भाग्य बताते हुए कहा कि अब नेता विश्वास योग्य नहीं हैं। विशिष्ट अतिथि डॉ. बलवंतसिंह ने कहा कि समाज में ऐसे नेता हैं, जो पीढ़ियों का इंतजाम राजनीति के माध्यम से कर रहे हैं। इनसे बचने के लिए प्रभावी शिक्षा नीति की आवश्यकता है। राजेंद्र कस्वा ने बताया कि किताब में 68 साल की राजनीति का विश्लेषण है। नेता आम आदमी से हटकर एक दूसरे पर कटाक्ष करने पर लगे हैं। युवा को दिशा दिखाने वाला कोई नहीं है।

इस दौरान मानव कल्याण संस्था के अध्यक्ष हरिशचंद्र चाहर (समसपुर), रोहित चौधरी (चाहर) (समसपुर) सी.ए., पूर्व प्रधान बजरंगलाल नेहरा (सांवलोद), पूर्व प्रधान निहालसिंह रणवा (नरहड़) सहित बढ़ी संख्या में छात्राएं अन्य लोग मौजूद थे।

आ धरती संत फकीरां री, आ धरती फौजी बीरां री

कुछ वर्षों पहले मैंने राजस्थानी में एक गीत लिखा था,आप भी सुनिए

आ धरती संत फकीरां री,आ धरती फौजी बीरां री।
ईं धरती रो है मान घणों,आ धरती ककड़ी मतीरां री।
सदियों पहले झुंझा आया, गांव बसायो झुंझाणों।
धोरां मं है चूरू चमक्यो, खींचड़लै रो है खाणों।
सीकर री सैनाणी देखी, पहाड़ी हर्षा जीण री।
आ धरती संत फकीरां री, आ धरती फौजी बीरां री।
गुजर चौहान कायमखानी, शेखावतां रो राज हुयो।
घ्यारी घाली गांव ढाणी में,जद बारों बो राज गयो।
गढ़ महलां मं हुई बग़ावत,सीख ही बाई मीरा री ।
आ धरती संत फकीरां री, आ धरती फौजी बीरां री।
चंचल नाथ जी बाबा कमरदी, श्रद्धा नाथ अवतार अठै।
भानीनाथ रा भजन गूंज रह्या, फौजी पहरेदार अठै।
काचर फलियां और सांगरी, खुशबू मिलसी कैरां री।
आ धरती संत फकीरां री, आ धरती फौजी बीरां री।
जात धर्म रो झगड़ो कोनी, गांवां री बेटी पढगी।
कदै चराती गाय भैंस बै,आज सुणां अफसर बणगी।
नमन करां शेखावाटी नै,आ खान है मोती हीरां री।
आ धरती संत फकीरां री, आ धरती फौजी बीरां री।

इस शेखावाटी ने पहले भी नेतृत्व दिया है।अब फिर परिवर्तन के लिए अग्रिम पंक्ति में है। नफ़रत बांटने वाले अहंकारी उम्मीदवार मात खाएंगे। इनके पास बताने के लिए कोई काम नहीं है। इससे उलट, वे कह रहे हैं --तुम तो भजन करो,हम राज करेंगे। यह नहीं चलने वाला।

रचना - राजेन्द्र कसवा

"झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट" पुस्तक का भव्य विमोचन

"झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट" पुस्तक का भव्य विमोचन, 28.08.2024
"झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट" पुस्तक का भव्य विमोचन, 28.08.2024
स्वायत शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने किया विमोचन-28.08.2024

ऐतिहासिक वीर वसुंधरा झुंझुनूं के संस्थापक वीरवर झुझार सिंह की जीवनी पर आधारित लेखक राजेंद्र कसवां द्वारा लिखित पुस्तक "झुन्झुनूं के संस्थापक झुन्झा जाट" का विमोचन स्वायत शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा और प्रख्यात गणितज्ञ डॉ घासीराम वर्मा ने दिनांक 28.08.2024 को किया। संस्था सचिव सुरेश जाखड़ ने बताया कि पूरे भारत में अपने साहस, शौर्य और पराक्रम के लिए प्रख्यात झुंझुनूं जिले के संस्थापन इतिहास पर प्रकाश डालती ये नवीन पुस्तक है।

समारोह में सर्वप्रथम मंत्री एवं मंचासिन अतिथियों द्वारा वीर झुंझा की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए गए, तत्पश्चात आर्य समाज के डीवी शास्त्री द्वारा मंगलाचरण, महर्षि दयानंद महाविद्यालय की बालिकाओं ने स्वागत गायन से और कार्यकारिणी के सदस्यों द्वारा अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया। इसके बाद संस्था के सहसचिव बनवारी जाखड़ ने संस्था की भूमिका और ऐतिहासिक सामाजिक सरोकारों के कार्यों पर प्रकाश डाला, लेखक राजेंद्र कसवां ने पुस्तक और झुंझुनूं के इतिहास पर व्याख्यान दिया करोड़पति फकीर डॉ घासीराम वर्मा ने समाज के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार मदद करने का आह्वान किया, इसके पश्चात नेशनल यूथ आइकन विजय हिन्द जालिमपुरा, डॉ मुकेश एस मुंड और कप्तान मोहनलाल के नेतृत्व में हर घर तिरंगा अभियान में तिरंगा यात्रा निकाल कर नेहरा पहाड़ के शिखर पर राष्ट्रध्वज फहराने वाले 45 सदस्य दल को प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

इसके उपरांत सम्मानित मंच ने पुस्तिका का विधिवत विमोचन किया, इस दौरान नेहरा पहाड़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए ज्ञापन सौंपा गया जिसके लिए सभास्थल पर ही मंत्री द्वारा नगर परिषद आयुक्त को निदेशालय को रिपोर्ट भेजने और स्वयं के स्तर पर पर्यटन मंत्री तक बात पहुंचाने का वादा किया, अपने मुख्य वक्तव्य में बोलते हुए मंत्री खर्रा ने कहा कि वीरों का इतिहास आगामी पीढ़ी के लिए स्वर्णिम धरोहर है और झुंझुनूं जैसे जिले के संस्थापक के इतिहास पर पुस्तक के पठन से सर्वसमाज के लिए पथ प्रदर्शक का लाभ मिलेगा, खरा ने कहा कि आज भारत विश्व का सबसे युवा देश है अपने युवाओं और किशोर शक्ति को सही और सच्चा इतिहास परोसकर ही 2047 के विकसित भारत की कल्पना कर सकते हैं।

संस्थान के अध्यक्ष डॉ महेंद्र नेहरा ने सभी आगंतुकों, अतिथियों का धन्यवाद और आभार प्रकट किया। समारोह में जिला प्रमुख हर्षिणी कुलहरी, पूर्व सांसद संतोष अहलावत, जिला अध्यक्ष बनवारी लाल सैनी, पूर्व विधायक शुभकरण चौधरी, विश्वंभर पुनिया, संरक्षक बजरंग लाल नेहरा, राजेंद्र भांबू, प्यारेलाल ढूकिया, राजेश बाबल, कमलकांत शर्मा भी साथ रहे । इस दौरान सीए डॉ रोहित चौधरी, टेंट हाउस के संचालक डॉ रामपाल भेड़ा को संस्थान के लिए निशुल्क सेवा देने पर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर संस्था के महेंद्र चौधरी, डॉ हनुमान प्रसाद मंत्री का स्वागत एवं अभिनंदन किया। कार्यक्रम में जिला परिषद आयुक्त अनिता खीचड़, वीर तेजाजी विकास संस्थान के अध्यक्ष जगदेव सिंह खरडिया, प्रधानाचार्य रामस्वरूप जाखड़, मुकुंदाराम नेहरा, रामनिवास झाझडिया, रणसिंह लोदीपुरा, सुमेर झाझडिया, आदि गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

मंच संचालन विजय जयहिंद जालिमपुरा और मूलचंद झाझडिया ने किया।

"झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट" पुस्तक के कुछ अंश

झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट - प्रकाशक: वीरवर जुंझार सिंह संस्थान झुंझुनू, प्रथम संस्करण:2024, मूल्य 150 रुपये

परिशिष्ट: अ - झूंझा के बारे में ऐतिहासिक तथ्य

[पृ.134]: झुंझुनू, नवलगढ़, चूरू, मंडावा, बीकानेर आदि शहरों में प्रतिष्ठित पुस्तकालयों में एक पांच सदस्य टीम ने खोजबीन की और उपलब्ध पुस्तकों का अध्ययन किया. इसमें निम्न तथ्य निकला:

1. प्रसिद्ध इतिहासकार ठा. हरनाथसिंह डूंडलोद ने अपनी पुस्तक झुन्झुणु में झुंझुनू की स्थापना गुर्जर काल में सातवीं सदी में मानी है.

2. इतिहासकार मोहन सिंह का मानना है की जैन मुनियों की पट्टावली के आधार पर यह सुनिश्चित है कि झुंझुनू आठवीं सदी से आबाद है.

3. सुविख्यात शोधक श्री अमरचंद नाहटा लिखते हैं की दसवीं सदी में झुंझुनू एक बड़ी आबादी वाला शहर था.

4. सन 1019 में कविवर वीर ने जम्बू चरित्र नमक अपभ्रंश काव्य की रचना की जो झुंझुनू में ही लिखा गया. इसमें झुंझुनू के जैन मंदिरों का उल्लेख मिलता है.

5. सुप्रसिद्ध इतिहास का डॉ. दशरथ शर्मा का उल्लेख करते हुए ठा. हरनाथ सिंह ने लिखा है कि नौवीं शताब्दी के हर्ष के शिलालेख में झुंझुनू के नाम का उल्लेख हुआ है. इससे प्रकट है कि झुंझुनू पहले स्थापित था.

6. झुंझुनू मंडल का इतिहास पुस्तक में इतिहासकार कुंवर रघुनाथ सिंह शेखावत ने वर्णन किया है कि आसलपुर के चौहान बड़वों की बही से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत 1045 (=988 ई.) में झुंझुनू का राजा सिद्धराज चौहान था. इससे प्रकट है कि झुंझुनू पहले से स्थापित था.

7. रघुनाथ सिंह शेखावत ने अपनी इसी पुस्तक में माना है कि जैन मुनियों की गुरुवावली से सिद्ध है कि 1243 ई. में झुंझुनू आबाद था. खतरगच्छीय व्युवा प्रधानाचार्य गुरुवावली (चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पृष्ठ.70) का एक श्लोक रघुनाथ सिंह ने उद्धत किया है- संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य सा. गोपाल-प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु वास्तव्य - वरदा वर्ष 7 अंक 1. इसमें नुआ और झुंझुनू का नाम आया है. झुंझुनू के बारे में यह एक ठोस प्रमाण है. जाहिर है उस समय तक झुंझुनू में जैन संस्कृति काफी विकसित हो चुकी थी.

8. जैन मुनि जिनप्रभ सूरि का जन्म झुंझुनू में हुआ था. उनके मुख्य ग्रंथ न्याय कंदली, पंजिनाड, तीर्थ कल्प आदि हैं. यह मुनि मोहम्मद तुगलक से संवत 1385 (1328 ई.) में दिल्ली में मिला था. (संदर्भ - ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृष्ठ 69 लेखक अमरचंद व भंवरलाल नाहटा.)


[पृ.135]: इसका अर्थ है कि झुंझुनू उस दौर में विकसित हो चुका था.

9. गोविंद राम अग्रवाल ने चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास लिखा है. अपने ग्रंथ में पृष्ठ 70 पर उन्होंने झुंझुनू के बारे में नैणसी की ख्यात को सही नहीं माना है. अपने फुटनोट में उन्होंने लिखा है कि वास्तव में झुंझुनू 1243 ई. से बहुत पहले का बसा हुआ है.

10. इसी प्रकार विद्वान लेखक और इतिहासकार उदयवीर शर्मा ने अपनी खोज पत्रिका वरधा के वर्ष 7 अंक 1 में खतरगच्छीय प्रधानाचार्य गुरुवावली के संदर्भ में उल्लेख किया है कि झुंझुनू 1243 ई. से बहुत पहले स्थापित हो चुका था.

11. शेखावाटी प्रदेश का प्राचीन इतिहास नामक पुस्तक के लेखक सुरजन सिंह शेखावत ने अपनी इसी पुस्तक के पृष्ट 113 पर लिखा है कि जोड़ चौहानों के पुरखा राणा सिद्धराज ने विक्रम शब्द 1040 (=983 ई.) में झुंझुनू तथा उसके आसपास के प्रदेश का अधिकार डाहलियों का पराभव करके हस्तगत किया था. पृष्ट 142 पर सुरजन सिंह शेखावत ने लिखा है नैणसी की ख्यात का वह उल्लेख निराधार है कि मोहम्मदखां क्यामखानी ने विक्रम संवत 1500 (=1443 ई.) के लगभग झुंझा चौधरी के नाम पर झुंझुनू बसाया था.

12. नेहरा पहाड़ नाम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है. इसके लिए किसी ने बोर्ड नहीं लगाया था. इससे जाहिर है कि झूंझा नेहरा गोत्र का था.

13. झुंझुनू में 'नू' शब्द आता है जो गुजराती से सम्बन्ध रखता है. गुर्जर काल में स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र पर गुजराती का प्रभाव रहा है. जैन संस्कृति और जैन मुनि भी गुजरात से आते थे. इससे प्रकट है कि झुंझुनू छठी-सातवीं सदी में बस गया था. हमारे यहां नू शब्द के बहुत कम गांव या शहर हैं जैसे लाडनूं आदि. यह शब्द प्राचीनता को प्रकट करता है.

14. नेहरा पहाड़ बोलता उपन्यास झुंझुनू के इतिहास पर आधारित है जो 2006 में प्रकाशित हुआ था. इस पुस्तक के चार संस्करण छप चुके हैं और हजारों प्रतियां बिक चुकी हैं. किसी ने भी आज तक इसे चुनौती नहीं दी.

15. इतिहासकार मोहन सिंह के अनुसार उन्होंने और लेखक कवि राम अवतार शर्मा ने एक पुरानी बही देखी. जिसके आरंभ में संस्कृत में लिखा था- झुंझा मेरी रक्षा करे. इससे प्रकट होता है कि झुंझा न केवल एक वीर योद्धा था बल्कि लोक देवता के रूप में भी पूजा जाता था. ऐसा व्यक्ति स्वतंत्र सत्ता के आधार पर ही उभर सकता था जिसने स्वयं ने आम-प्रजा के हित में कार्य किए हों. उसका नाम पीढ़ी दर पीढ़ी मिथक के रूप में चलता रहा. यह प्राचीनता को प्रकट करता है.

"झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट" पुस्तक के कुछ पृष्ठ
"झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट" पुस्तक के कुछ चित्र

राजेन्द्र कसवा द्वारा लिखित पुस्तकें

  • करोड़पति फकीर - डॉ. घासीराम वर्मा, प्रकाशक: डॉ. घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति, झुंझुनू, राजस्थान. प्रथम संस्करण २००२ , मूल्य रु. १००/-
  • नेहरा पहाड़ बोलता (झुंझुनू के इतिहास पर आधारित उपन्यास) , प्रकाशक:मानव कल्याण संस्था, बी-४, मान नगर, झुंझुनू (राजस्थान), फोन: ०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००६, मूल्य रु. २५०/-
  • एक और कबीर (चौधरी चरणसिंह का जीवन चरित्र I), प्रकाशक:कलम प्रकाशन, ५२, दूसरी मंजिल, न्यू पुरोहित जी का कतला, जयपुर, फोन:५६००९८, प्रथम संस्करण १९९६, मूल्य रु. १४५/-
  • देख कबीरा रोया (चौधरी चरणसिंह का जीवन चरित्र II), प्रकाशक:लोकायत प्रकाशन, 883, लोधों की गली, मोती डूंगरी रोड, जयपुर-4, फोन:६००९१२, प्रथम संस्करण २०००, मूल्य रु. ५००/-
  • भारत बनाम इंडिया (भारतीय इतिहास और राजनीति का विश्लेषण) , प्रकाशक:कलम प्रकाशन, ४/३६६, हाऊसिंग बोर्ड, झुंझुनू (राजस्थान), फोन:०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००२, मूल्य रु. २५०/-
  • भगतसिंह (व्यक्तित्व एवं विचार), प्रकाशक:कलम प्रकाशन, ४/३६६, हाऊसिंग बोर्ड, झुंझुनू (राजस्थान), फोन:०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००८, मूल्य रु. २००/-
  • झुंझुनू के संस्थापक - जाटवीर झुंझा नेहरा, प्रधान संपादक: राजेद्र कसवा, प्रकाशक:वीरवर झुझार सिंह संस्थान, झुंझुनू, राजस्थान, वर्ष २००८-०९
  • किसान यौद्धा (शेखावाटी के किसान नेताओं की जीवनी), प्रकाशक:कलम प्रकाशन, झुंझुनू, प्रथम संस्करण २००९, मूल्य रु. २००/-
  • मरुधरा के शिक्षानुगामी सेठ (शेखावाटी में सेठों के शिक्षा में योगदान पर प्रकाश डालने वाली पुस्तक), प्रकाशक: डॉ. घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति, झुंझुनू, राजस्थान. द्वितीय संस्करण २००९ , मूल्य रु. १५०/-
  • जीवन बना कुंदन (डॉ जीवनचंद जैन की समाज सेवा पर आधारित), प्रकाशक:मानव कल्याण संस्था, बी-४, मान नगर, झुंझुनू (राजस्थान), फोन: ०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००६, मूल्य रु. २००/-
  • मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, मूल्य 280/-
लेखक ने शेखावाटी जन आन्दोलन से पूर्व की स्थिति का सटीक विश्लेषण किया है और अन्ना हजारे के आन्दोलन पर गहन चिंतन करते हुए लगभग एक सौ ग्यारह साल का इतिहास जन आन्दोलन के परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया है.
  • क्रन्तिकारी भगवती बाई
  • विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समसामयिक लेख और संस्मरण व कहानियां.
  • खोजी मिले घुम्मकड़ से - प्रकाशक: डॉ. घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति, झुंझुनू, राजस्थान. प्रथम संस्करण 2012 , मूल्य रु. 200/- , ISBN 978-81-89681-77-7
  • राजनीति का धंधा: आम आदमी मंदा - प्रकाशक: मानव कल्याण संस्थान, झुंझुनू, राजस्थान. प्रथम संस्करण 2015, मूल्य रु. 100/-
  • नेहरा पहाड़ का सच, प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2018, ISBN 978-93-85181-50-4, मूल्य 500/-
नेहरा पहाड़ का सच
समीक्षात्मक टीप - 'नेहरा पहाड़ का सच' वस्तुतः देश और समाज का सच है। लेखक ने स्वतंत्रता के ठीक पहले और बाद के 70 वर्ष के समाज का चित्रण इस उपन्यास के माध्यम से किया है। नेहरा पहाड़ उपन्यास का बीज शब्द है और यही इस उपन्यास का शायद मुख्य पात्र है। यह पहाड़ बार-बार कथा क्रम के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हुआ युगधर्म की ओर पाठक को आकर्षित करता है। लेखक ने नया प्रयोग करते हुये विभिन्न कालखण्डों को प्रस्तुत किया है और विभिन्न पात्रों को सामने रखते हुए नेहरा पहाड़ के माध्यम से आज के महाभारत की कथा को पिरोया है। उपन्यास के मुख्य पात्र राजकबीर और हरलाल बीडीओ को इस ढंग से प्रस्तुत किया है इस आपाधापी और कथित आर्थिक युग में ये दोनों पात्र मानो दूसरे लोक से आए हैं जिन्हें आज के समझदार लोग पागल करार देते हैं किंतु अंत में वे मानसिक बदलाव लाने में सफल होते हैं। लेखक ने लीक से हटकर एक साथ विभिन्न शैलियों में यह उपन्यास लिखा है। अलग-अलग देश काल में आगे पीछे चलते हुए भी उपन्यास की कथा पाठकों को बांधे रखती है और रोचकता के साथ पाठकों को सोचने को मजबूर करती है। विभिन्न पात्रों के बीच लेखक ने कुछ ऐसे पात्र प्रस्तुत किए हैं जो अन्य से अलग नजर आते हैं और देश तथा समाज के लिए सब कुछ न्योछावर करते प्रतीत होते हैं। कुछ पात्र अपने और प्रसंग ऐतिहासिक जान पड़ते हैं किंतु लेखक का दावा है कि पूरी कथा कल्पना पर आधारित है। भले ही पाठकों को यह सच्ची घटना जान पड़े। आधुनिक भारत की समस्याओं को छूते हुए लेखक ने माना है कि भारतीय मानसिकता आज भी अपने भूतकाल में खोई हुई है और नए विचारों और वैज्ञानिक सोच को ग्रहण करने में कतरा रही है। लेखक ने रोचकता के साथ यथार्थ को प्रकट किया है जिसे पाठक एक बार चौंकता है और फिर नए रास्ते को खोज पाने का आनंद लेता है। उपन्यास बहुत रोचक और पठनीय है।

राजेन्द्र कसवा की पुस्तकों के आवरण चित्र


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