Rajendra Singh Kaswan

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Rajendra Kaswa

Rajendra Singh Kaswan (राजेन्द्रसिंह कसवा) or Rajendra Kaswa is a Hindi author from village Lutu in Jhunjhunu district in Rajasthan. He is a Law graduate. He has written a number of books and novels.

Education and career

Rajendra Kaswa receive his Primary and Middle school level education from nearby village Kolinda. Completed High School from Alsisar in 1965 and got admission in Mukundgarh College for study but meanwhile he was selected for job in Indian Army. Served Indian Army for about five years and left it in 1970. Then he joined Indian Postal Department and completed his BA Degree as in-service candidate. He did LLB from University of Rajasthan in 1979. He left Indian Postal Department in 1998 and started practice as an advocate. He is now fully engaged in writing work.

Contact Details

  • Address: Kalam Basera, 4/366, Housing Board Jhunjhunu, Rajasthan.
  • Phone:01592-233079, Mob-9414668488

'राजनीति का धंधा- आम आदमी मंदा’ का विमोचन समारोह

संदर्भ - भास्कर समाचार, दिनांक 24 अगस्त 2015, भास्कर संवाददाता | झुंझुनूं

जागरूकलोगों को राजनीति में आना होगा। लोकतंत्र के प्रति उदासीन होने से गैर जिम्मेदार लोग राजनीति में रहे हैं। समय गया है कि अब राजनीति का वैकल्पिक मार्ग तलाशा जाए।

यह बात डूंगरगढ़ के श्याम महर्षि ने कही। वे रविवार को महर्षि दयानंद महिला विज्ञान कॉलेज में मानस कल्याण संस्था की ओर से आयोजित पुस्तक “राजनीति का धंधा- आम आदमी मंदा’ के विमोचन समारोह में बोल रहे थे। पुस्तक राजेंद्र कस्वां ने लिखी है। महर्षि ने कहा कि ऐसी वैकल्पिक राजनीति चाहिए जिसमें जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होने के साथ खुद को जनता का सेवक माने। समारोह के अध्यक्ष डॉ. हनुमान प्रसाद ने कहा कि अयोग्य नेताओं के चुने जाने से देश में नौकरशाही हावी हो रही है।

मुख्य वक्ता चूरू से आए प्रो. भंवरसिंह सामौर ने राजनीति के धंधा बनने को देश के लिए दुर्भाग्य बताते हुए कहा कि अब नेता विश्वास योग्य नहीं हैं। विशिष्ट अतिथि डॉ. बलवंतसिंह ने कहा कि समाज में ऐसे नेता हैं, जो पीढ़ियों का इंतजाम राजनीति के माध्यम से कर रहे हैं। इनसे बचने के लिए प्रभावी शिक्षा नीति की आवश्यकता है। राजेंद्र कस्वा ने बताया कि किताब में 68 साल की राजनीति का विश्लेषण है। नेता आम आदमी से हटकर एक दूसरे पर कटाक्ष करने पर लगे हैं। युवा को दिशा दिखाने वाला कोई नहीं है।

इस दौरान मानव कल्याण संस्था के अध्यक्ष हरिशचंद्र चाहर (समसपुर), रोहित चौधरी (चाहर) (समसपुर) सी.ए., पूर्व प्रधान बजरंगलाल नेहरा (सांवलोद), पूर्व प्रधान निहालसिंह रणवा (नरहड़) सहित बढ़ी संख्या में छात्राएं अन्य लोग मौजूद थे।

राजेन्द्र कसवा द्वारा लिखित पुस्तकें

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  • करोड़पति फकीर - डॉ. घासीराम वर्मा, प्रकाशक: डॉ. घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति, झुंझुनू, राजस्थान. प्रथम संस्करण २००२ , मूल्य रु. १००/-
  • नेहरा पहाड़ बोलता (झुंझुनू के इतिहास पर आधारित उपन्यास) , प्रकाशक:मानव कल्याण संस्था, बी-४, मान नगर, झुंझुनू (राजस्थान), फोन: ०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००६, मूल्य रु. २५०/-
  • एक और कबीर (चौधरी चरणसिंह का जीवन चरित्र I), प्रकाशक:कलम प्रकाशन, ५२, दूसरी मंजिल, न्यू पुरोहित जी का कतला, जयपुर, फोन:५६००९८, प्रथम संस्करण १९९६, मूल्य रु. १४५/-
  • देख कबीरा रोया (चौधरी चरणसिंह का जीवन चरित्र II), प्रकाशक:लोकायत प्रकाशन, 883, लोधों की गली, मोती डूंगरी रोड, जयपुर-4, फोन:६००९१२, प्रथम संस्करण २०००, मूल्य रु. ५००/-
  • भारत बनाम इंडिया (भारतीय इतिहास और राजनीति का विश्लेषण) , प्रकाशक:कलम प्रकाशन, ४/३६६, हाऊसिंग बोर्ड, झुंझुनू (राजस्थान), फोन:०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००२, मूल्य रु. २५०/-
  • भगतसिंह (व्यक्तित्व एवं विचार), प्रकाशक:कलम प्रकाशन, ४/३६६, हाऊसिंग बोर्ड, झुंझुनू (राजस्थान), फोन:०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००८, मूल्य रु. २००/-
  • झुंझुनू के संस्थापक - जाटवीर झुंझा नेहरा, प्रधान संपादक: राजेद्र कसवा, प्रकाशक:वीरवर झुझार सिंह संस्थान, झुंझुनू, राजस्थान, वर्ष २००८-०९
  • किसान यौद्धा (शेखावाटी के किसान नेताओं की जीवनी), प्रकाशक:कलम प्रकाशन, झुंझुनू, प्रथम संस्करण २००९, मूल्य रु. २००/-
  • मरुधरा के शिक्षानुगामी सेठ (शेखावाटी में सेठों के शिक्षा में योगदान पर प्रकाश डालने वाली पुस्तक), प्रकाशक: डॉ. घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति, झुंझुनू, राजस्थान. द्वितीय संस्करण २००९ , मूल्य रु. १५०/-
  • जीवन बना कुंदन (डॉ जीवनचंद जैन की समाज सेवा पर आधारित), प्रकाशक:मानव कल्याण संस्था, बी-४, मान नगर, झुंझुनू (राजस्थान), फोन: ०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००६, मूल्य रु. २००/-
  • मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, मूल्य 280/-
लेखक ने शेखावाटी जन आन्दोलन से पूर्व की स्थिति का सटीक विश्लेषण किया है और अन्ना हजारे के आन्दोलन पर गहन चिंतन करते हुए लगभग एक सौ ग्यारह साल का इतिहास जन आन्दोलन के परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया है.
  • क्रन्तिकारी भगवती बाई
  • विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समसामयिक लेख और संस्मरण व कहानियां.
  • खोजी मिले घुम्मकड़ से - प्रकाशक: डॉ. घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति, झुंझुनू, राजस्थान. प्रथम संस्करण 2012 , मूल्य रु. 200/- , ISBN 978-81-89681-77-7
  • राजनीति का धंधा: आम आदमी मंदा - प्रकाशक: मानव कल्याण संस्थान, झुंझुनू, राजस्थान. प्रथम संस्करण 2015, मूल्य रु. 100/-
  • नेहरा पहाड़ का सच, प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2018, ISBN 978-93-85181-50-4, मूल्य 500/-
नेहरा पहाड़ का सच
समीक्षात्मक टीप - 'नेहरा पहाड़ का सच' वस्तुतः देश और समाज का सच है। लेखक ने स्वतंत्रता के ठीक पहले और बाद के 70 वर्ष के समाज का चित्रण इस उपन्यास के माध्यम से किया है। नेहरा पहाड़ उपन्यास का बीज शब्द है और यही इस उपन्यास का शायद मुख्य पात्र है। यह पहाड़ बार-बार कथा क्रम के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हुआ युगधर्म की ओर पाठक को आकर्षित करता है। लेखक ने नया प्रयोग करते हुये विभिन्न कालखण्डों को प्रस्तुत किया है और विभिन्न पात्रों को सामने रखते हुए नेहरा पहाड़ के माध्यम से आज के महाभारत की कथा को पिरोया है। उपन्यास के मुख्य पात्र राजकबीर और हरलाल बीडीओ को इस ढंग से प्रस्तुत किया है इस आपाधापी और कथित आर्थिक युग में ये दोनों पात्र मानो दूसरे लोक से आए हैं जिन्हें आज के समझदार लोग पागल करार देते हैं किंतु अंत में वे मानसिक बदलाव लाने में सफल होते हैं। लेखक ने लीक से हटकर एक साथ विभिन्न शैलियों में यह उपन्यास लिखा है। अलग-अलग देश काल में आगे पीछे चलते हुए भी उपन्यास की कथा पाठकों को बांधे रखती है और रोचकता के साथ पाठकों को सोचने को मजबूर करती है। विभिन्न पात्रों के बीच लेखक ने कुछ ऐसे पात्र प्रस्तुत किए हैं जो अन्य से अलग नजर आते हैं और देश तथा समाज के लिए सब कुछ न्योछावर करते प्रतीत होते हैं। कुछ पात्र अपने और प्रसंग ऐतिहासिक जान पड़ते हैं किंतु लेखक का दावा है कि पूरी कथा कल्पना पर आधारित है। भले ही पाठकों को यह सच्ची घटना जान पड़े। आधुनिक भारत की समस्याओं को छूते हुए लेखक ने माना है कि भारतीय मानसिकता आज भी अपने भूतकाल में खोई हुई है और नए विचारों और वैज्ञानिक सोच को ग्रहण करने में कतरा रही है। लेखक ने रोचकता के साथ यथार्थ को प्रकट किया है जिसे पाठक एक बार चौंकता है और फिर नए रास्ते को खोज पाने का आनंद लेता है। उपन्यास बहुत रोचक और पठनीय है।

राजेन्द्र कसवा की पुस्तकों के आवरण चित्र


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