Mandawa
Mandawa (मंडावा) is a town in Jhunjhunu district of Rajasthan in India. Author (Laxman Burdak) visited it on 21.11.2024
Location
Mandawa is situated 190 km off Jaipur in the north. The town lies between latitude 28°.06’ in the north and longitude 75°.20’ in the east. Mandawa is known for its fort and havelis. The fort town of Mandawa is well connected with the other places in region through a good network of roads.
Founder
Mandu Jat founded Mandawa village in 1740 AD. According to bards Dular Jats came from Chhapar and founded Mandawa.
Jat Gotras
History
Mandu Jat founded Mandawa village. He first established a dhani (helmet) and dug a well here, which was completed on savan badi 5 samvat 1797 (1740 AD) [1]. Initially this place was known as ‘Mandu ki dhani’, ‘Mandu ka bas’ or ‘Manduwas’ which changed to ‘Manduwa’, ‘Mandwa’ and finally ‘Mandawa’. [2]
Mandawa fort
The fort of Mandawa was constructed in the 18th century. Nawal Singh son of Shardul Singh founded the fort in vikram samvat 1812 (1755 AD). [3]The fort dominates the town with a painted arched gateway adorned with Lord Krishna and his cows. The Chokhani and Ladia havelis and the street with Saraf havelis are some examples of this region's fresco painted havelis.
Havelis
The Bansidhar Newatia Haveli has some curious paintings on its outer eastern wall. The Gulab Rai Ladia Haveli has some defaced erotic images.
मंडावा परिचय
मंडावा राजस्थान के झुंझुनू ज़िले में स्थित एक शहर है। यह शेखावाटी क्षेत्र का हिस्सा है और एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यह उत्तर में जयपुर से 190 कि.मी. दूर स्थित है। मंडावा अपने क़िले और हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। सेठ साहूकारों का गाँव मंडावा झुंझुनू से बीकानेर के रास्ते में झुंझुनू से 27 कि.मी. दूर है। यहाँ हमेशा देशी-विदेशी सैलानियों की आवाजाही बनी रहती है, जिसके चलते बहुत से लोगों का पेशा पर्यटन से परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। झुंझुनू, मुकुंदगढ़ और फतेहपुर से जुड़ा होने के कारण यह शहर अब दिल्ली, जयपुर और बीकानेर से भी जुड़ गया है। मंडवा में क़िला, रेत के धोरे, पारदर्शी शिवलिंग आदि दर्शनीय स्थल हैं। यहाँ नयनाभिराम भित्ति चित्रों वाली हवेलियाँ हैं।[4]
मंडावा का इतिहास
रतन लाल मिश्र लिखते हैं कि शार्दुल सिंह का एक अन्य पुत्र नवल सिंह था. इसने झुंझुनू से दक्षिण की और 24 मील दूर रोहिली नामक स्थान पर गढ़ बनाकर एक गाँव बसाया जिसे नवलगढ़ नाम दिया गया. यह बात विक्रम संवत माघ शुक्ल 2, 1974 की है. इसने गंगवाने की लडाई में भाग लिया था. इसने अनेकों लड़ाइयों में भाग लिया जिनमें बहल, सिहाणी एवं ढूंढ मुख्य हैं. विक्रम संवत 1812 में इसने मांडू जाट की बस्ती में एक गढ़ बनाकर गाँव बसाया तथा उसे मंडावा नाम दिया गया. [5] मंडावा नगर शेखावतों के आने से पहले बस गया था. यह बात मंडावे के बाइयों के मंदिर के नाम से विख्यात देवालय के विद्वान संत वृजदास जी की बही के उल्लेख से पता लगता है. उस समय इसका नाम मांडवा या मांडवी था. नगर में भागचंद के लड़िये, गोयनके और हरलालके बस गए थे. बही में 13 रुपये 11 आने मांडू जाट की कूई की नाल के चक हेतु चैत बदी 8 विक्रम संवत 1788 की तिथि लिखी है. इससे ज्ञात होता है कि संवत 1788 (=1731 ई.) तक मांडू जाट की कच्ची कुई विद्यमान थी और मांडू ने इस स्थान को काफी वर्षों पहले बसाया था. [6]
मंडावा में आर्य समाज का जलसा
गणेश बेरवाल[7] ने लिखा है....सन् 1917 में उन दिनों मंडावा के जागीरदार ने मंडावा के आर्य समाज (चौधरी जीवनराम, देवी बक्स के गांवों में खुली आर्य समाज मंडावा में कविता भजन 1927) के मंदिर के ताले लगा दिये। सेठ देवी बक्स सराफ़ के सानिध्य में आर्य समाज का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा था। जागीरदार देवीबक्स सर्राफ के बहुत खिलाफ था। 1927 में आर्य समाज का जलसा मंडावा में रखा। 5000 ग्रामीण जनता इसमें सम्मिलित हुई। गाँव जैतपुरा में छतुसिंह शेखावत जलसे में चौधरी जीवन राम पूनीया को साथ लेकर पहुंचे। आर्य समाज के मंडावा मंदिर का ताला जनता द्वारा तोड़ दिया गया। मंडावा में बड़ा जबर्दस्त जलसा हुआ जिससे सारे शेखावाटी और बीकानेर क्षेत्र में रोशनी फ़ैल गई।
Notable persons
- Poonam Kulhari, IAAS (2018 batch), from Mandawa, Jhunjhunu, Rajasthan. Currently posted as Deputy Director at CAG office in Delhi.
Gallery
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Pandit Khemraj Mantri Arya Samaj Mandawa
Reference
- ↑ Shekhawati Bodh, A monthly magazine of Shekhawati region, Mandawa special issue, July 2005
- ↑ Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 217
- ↑ रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, १९९८, पृ. १७१
- ↑ भारतकोश-मंडावा
- ↑ रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, 1998, पृ. 171
- ↑ रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, कुटीर प्रकाशन मंडावा, १९९८, पृ. १८३
- ↑ Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.42