Jhunjhunu

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Statue of Jujhar Singh Nehra, founder of Jhunjhunu town
Jhunjhunu district Map

Jhunjhunu (झुन्झुनू), is a town and district in Rajasthan. It was founded in the memory of Jat Chieftain Jhunjha or Jujhar Singh Nehra in 1730.

Variants of name

  • Jhinjhuyanava (झिन्झुयाणय) : Siddhasena Suri mentions name Jhinjhuyanava (झिन्झुयाणय) in Sarvatirthamala written in Vikram Samvat 1123 (1066 AD). (खंडिल्ल झिन्झुयाणय नराण हरसउर खट्टउएसु । नायउर सुद्ध देही सु सभरि देसेसु वंदामि ।। सिद्धसेन सूरि द्वारा विक्रमी 1123 में रचित सर्वतीर्थमाला)

झुंझुनू की प्राचीनता

झुंझुनू की प्राचीनता का उल्लेख अनेक जैन ग्रंथों में मिलता है. यह अनुसंधान का विषय है कि मूल झुंझुनू की स्थापना कब हुई लेकिन यह कहा जा सकता है कि झूंझा जाट के नाम पर इसकी स्थापना हुई तथा आगे चलकर कालांतर में उसने नगरीय रूप धारण कर लिया. यहाँ झुंझुनू से सम्बंधित सभी अभिलेखों/तथ्यों का क्रमवार विवरण दिया जा रहा है-

  • 79: ठाकुर देशराज ने लिखा है कि नेहरा गोत्र की उत्पत्ति वैवस्वत मनु के पुत्र नरिष्यंत (नरहरी) से मानी जाती है. पहले ये पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में नेहरा पर्वत पर निवास करते थे. मैगस्थनीज़ (350BC- 290BC) और प्लिनी (23–79 AD) ने इनको नरेई लिखा है, जो कि नेहरा के नाम से प्रसिद्ध हैं, कैपटेलिया नाम से घिरी हुई जगह में उनका स्थान बताया गया है. वहां से चल कर राजस्थान के जांगलदेश भू-भाग में बसे और झुंझुनू में नेहरा पहाड़ पर आकर निवास करने लगे. राजस्थान में नेहरा जाटों का तकरीबन 200 वर्ग मील भूमि पर किसी समय शासन रहा था. उनके ही नाम पर झुंझुनू के निकट पर्वत आज भी नेहरा पहाड़ कहलाता है. दूसरा पहाड़ जो मौरा (मौड़ा) है, मौर्य लोगों के नाम से मशहूर है.नेहरा लोगों में सरदार झुन्झा अथवा जुझार सिंह बड़े मशहूर योद्धा हुए हैं. उनके नाम से झूंझनूं जैसा प्रसिद्ध नगर विख्यात है. [1]
  • दलीप सिंह अहलावत[2] लिखते हैं: सूर्यवंशी वैवस्वत मनु के इक्ष्वाकु, नरिष्यन्त (उपनाम नरहरि) आदि कई पुत्र हुए। नरहरि की सन्तान सिंध में नेहरा पर्वत के समीपवर्ती प्रदेश के अधिकारी होने से नेहरा नाम से प्रसिद्ध हुई। इस तरह से नेहरा जाटवंश प्रचलित हुआ। जयपुर की वर्तमान शेखावाटी के प्राचीन शासक नेहरा जाट थे जिन्होंने सिंध से आकर नरहड़ में किला बनाकर दो सौ वर्ग मील भूमि पर अधिकार स्थिर कर लिया था। यहां से 15 मील पर इन्होंने नाहरपुर बसाया। उनके नाम से झुंझनूं के निकट का पहाड़ आज भी नेहरा पहाड़ कहलाता है। दूसरे पहाड़ का नाम मौड़ा (मौरा) है जो मौर्य जाटों के नाम पर प्रसिद्ध है। मुगल शासन आने से पूर्व शेखावत राजपूतों ने नेहरा जाटों को पराजित कर दिया और इनका राज्य छीन लिया। नेहरा जाटों की यह नेहरावाटी[3] आवासभूमि शेखावतों के विजयी होते ही शेखावाटी के नाम पर प्रसिद्ध हो गई।
  • 7वीं सदी: नेहरा पहाड़ नाम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है. इसके लिए किसी ने बोर्ड नहीं लगाया था. इससे जाहिर है कि झूंझा नेहरा गोत्र का था. झुंझुनू में 'नू' शब्द आता है जो गुजराती से सम्बन्ध रखता है. गुर्जर काल में स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र पर गुजराती का प्रभाव रहा है. जैन संस्कृति और जैन मुनि भी गुजरात से आते थे. इससे प्रकट है कि झुंझुनू छठी-सातवीं सदी में बस गया था. हमारे यहां नू शब्द के बहुत कम गांव या शहर हैं जैसे लाडनूं आदि. यह शब्द प्राचीनता को प्रकट करता है. [4]
  • 7वीं सदी: इतिहासकार मोहन सिंह के अनुसार उन्होंने और लेखक कवि राम अवतार शर्मा ने एक पुरानी बही देखी. जिसके आरंभ में संस्कृत में लिखा था- झुंझा मेरी रक्षा करे. इससे प्रकट होता है कि झुंझा न केवल एक वीर योद्धा था बल्कि लोक देवता के रूप में भी पूजा जाता था. ऐसा व्यक्ति स्वतंत्र सत्ता के आधार पर ही उभर सकता था जिसने स्वयं ने आम-प्रजा के हित में कार्य किए हों. उसका नाम पीढ़ी दर पीढ़ी मिथक के रूप में चलता रहा. यह प्राचीनता को प्रकट करता है.[5]
  • 7वीं सदी: प्रसिद्ध इतिहासकार ठा. हरनाथसिंह डूंडलोद ने अपनी पुस्तक झुन्झुणु में झुंझुनू की स्थापना गुर्जर काल में सातवीं सदी में मानी है.[6]
  • 8वीं सदी: इतिहासकार मोहन सिंह का मानना है कि जैन मुनियों की पट्टावली के आधार पर यह सुनिश्चित है कि झुंझुनू आठवीं सदी से आबाद है.[7]
  • 8वीं सदी: जाट परिवेश[8] के अनुसार प्राचीन नरहड़ क्षेत्र एवं जैन प्रमाणों के आधार पर कुछ इतिहासकार झुंझुनू का अस्तित्व 8वीं शताब्दी में बताते हैं।
  • 10वीं सदी: सुविख्यात शोधक श्री अमरचंद नाहटा लिखते हैं की दसवीं सदी में झुंझुनू एक बड़ी आबादी वाला शहर था.
  • 961-973: सुप्रसिद्ध इतिहास का डॉ. दशरथ शर्मा का उल्लेख करते हुए ठा. हरनाथ सिंह ने लिखा है कि नौवीं शताब्दी के हर्ष के शिलालेख में झुंझुनू के नाम का उल्लेख हुआ है. (?)
  • 983 : सुरजन सिंह शेखावत ने 'शेखावाटी प्रदेश का प्राचीन इतिहास' (पृष्ट. 113) में लिखा है कि जोड़ चौहानों के पुरखा राणा सिद्धराज ने विक्रम शब्द 1040 (=983 ई.) में झुंझुनू तथा उसके आसपास के प्रदेश का अधिकार डाहलियों का पराभव करके हस्तगत किया था. [9]
  • 988: झुंझुनू मंडल का इतिहास पुस्तक में इतिहासकार कुंवर रघुनाथ सिंह शेखावत ने वर्णन किया है कि आसलपुर के चौहान बड़वों की बही से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत 1045 (=988 ई.) में झुंझुनू का राजा सिद्धराज चौहान था. [10]
  • 1019 : सन 1019 में कविवर वीर ने 'जम्बू चरित्र' नमक अपभ्रंश काव्य की रचना की जो झुंझुनू में ही लिखा गया. इसमें झुंझुनू के जैन मंदिरों का उल्लेख मिलता है.[12]
  • 1024: झुंझुनू की प्राचीनता का उल्लेख जैन ग्रंथों में मिलता है. यह बात पूरी तरह ज्ञात नहीं है कि इसकी स्थापना कब हुई लेकिन यह कहा जा सकता है कि जूझा जाट के नाम पर इसकी स्थापना हुई तथा आगे चलकर कालांतर में उसने नगरीय रूप धारण कर लिया. भाटों और चारणों के अनुसार झुंझुनू क्षेत्र पर 12वीं सदी में जोड़ चौहानों का अधिकार रहा था तथा उस समय इस स्थान को जोड़ी झुंझुनू कहते थे. इस मान्यता के अनुसार कुछ काल पश्चात जोड़ यहां से विस्थापित होकर बेरी तारपुरा के आसपास बस गए. [13]
  • 1024: :Chauhan Dhandhu had founded Dhandhu. Indra could not become Rana on death of his father. Indra had descendants Arjan and Sarjan. Arjan and Sarjan fought with Goga for Dadrewa when Rana Jhawer died. Goga defeated them. This war took place before 1024 AD since Goga died in 1024 AD fighting with Mohammad Ghazni. Arjan and Sarjan moved to a place named Jodi in Churu district. Their descendants were called Jod Chauhans. after death of Arjan and Sarjan their descendants moved in south and established in Narhar and Jhunjhunu. (Devi Singh Mandawa, p.138-39)
  • 1066 : Siddhasena Suri mentions name Jhinjhuyanava (झिन्झुयाणय) in Sarvatirthamala written in Vikram Samvat 1123 (1066 AD). (खंडिल्ल झिन्झुयाणय नराण हरसउर खट्टउएसु । नायउर सुद्ध देही सु सभरि देसेसु वंदामि ।। सिद्धसेन सूरि द्वारा विक्रमी 1123 में रचित सर्वतीर्थमाला)
  • 1243: We also find mention the name of Jhunjhunu (झुंझुणु) in a document of V.S. 1300 (1243 AD) in Magazine 'वरदा '. (संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य साह गोपाल प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु वास्तव्य - वरदा वर्ष 7 अंक 1)
  • 1243: गोविंद अग्रवाल ने 'चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास' (फुटनोट-4, p.70) में लिखा है कि वास्तव में झुंझुनू विक्रम संवत 1300 (सन् 1243 ई.) से पूर्व का बसा हुआ है. खतरगच्छीय युग प्रधानाचार्य गुरुवावली में संवत 1300 (सन् 1243 ई.) में झुन्झुनुका उल्लेख मिलता है....संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य सा. गोपाल प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु - वरदा वर्ष 7 अंक 1.
  • 1243: रघुनाथ सिंह शेखावत ने अपनी इसी पुस्तक में माना है कि जैन मुनियों की गुरुवावलीसे सिद्ध है कि 1243 ई. में झुंझुनू आबाद था. खतरगच्छीय युग प्रधानाचार्य गुरुवावली (चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पृष्ठ.70) का एक श्लोक रघुनाथ सिंह ने उद्धत किया है- संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य सा. गोपाल-प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु वास्तव्य - वरदा वर्ष 7 अंक 1. इसमें नुआं और झुंझुनू का नाम आया है.[17]
  • 1243: विद्वान लेखक और इतिहासकार उदयवीर शर्मा ने अपनी खोज पत्रिका 'वरधा' के वर्ष 7 अंक 1 में खतरगच्छीय प्रधानाचार्य गुरुवावली के संदर्भ में उल्लेख किया है कि झुंझुनू 1243 ई. से बहुत पहले स्थापित हो चुका था[18].....संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य सा. गोपाल प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु - वरदा वर्ष 7 अंक 1.
  • 1328-1332 : जैन मुनि जिनप्रभ सूरि ने उनके ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प में जैन तीर्थों का विवरण दिया है जिसमें झुंझुनू भी सम्मिलित है. यह मुनि मोहम्मद तुगलक से संवत 1385 (1328 ई.) में दिल्ली में मिला था और पुस्तक का अंतिम भाग 1332 में लिखा था.[20] [21][22]
  • 1443: नैणसी की ख्यात में उल्लेख है कि मोहम्मदखां क्यामखानी ने विक्रम संवत 1500 (=1443 ई.) के लगभग झुंझा चौधरी के नाम पर झुंझुनू बसाया था. नैणसी की ख्यात के अनुसार कायम खां हिसार का फौजदार हुआ. तब उसने अपने लिए कोई ठिकाना बांधना विचारा. झुंझुनू का स्थान उसके चित पर चढ़ा और वहां के चौधरी को बुलाकर कहा कि यदि तुम्हारी इजाजत हो तो हम यहां अपने रहने को एक मकान बनवा लें. चौधरी ने कहा, "बहुत अच्छी बात है यहां आबादी करो परंतु इस स्थान के साथ मेरा भी कुछ नाम रहना चाहिए". चौधरी का नाम झूंझा था इसी से कस्बे का नाम झुंझुनू दिया. झुंझुनू की भूमि में ही फतेहपुर बसाया. इस कायम खां के वंश के कायम खानी कहलाए. (नैणसी की ख्यात, भाग 1, पृ.196; गोविंद अग्रवाल, 'चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास', p.70)
  • 1443: पंडित झाबर मल शर्मा ने 'सीकर का इतिहास' (पृ.61, 62,64, फूट नोट) में नैणसी की ख्यात के सन्दर्भ से झूंझा जाट के नाम पर झुंझुनू बसाना लिखा है. (गोविंद अग्रवाल, 'चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास', p.70)
  • रतन लाल मिश्र लिखते हैं कि कई पुस्तकों में महमूदखां द्वारा झुंझुनूं बसाने की बात झूंझा जाट के प्रसंग से कही गयी है. [25] झुंझुनूं नगर के इसके पूर्व के बसने के प्रमाण जैन ग्रंथों में मौजूद हैं. 14 वीं शती के कई उद्धरण जैन ग्रंथों में मौजूद हैं जिससे इस नगर की प्राचीनता सिद्ध होती है. सिद्धसेन सूरि द्वारा विक्रमी 1123 (1066 ई.) में रचित सर्वतीर्थमाला में झुंझुनूं का वर्णन इस प्रकार किया गया है -
"खंडिल्ल झिन्झुयाणय नराण हरसउर खट्टउएसु । नायउर सुद्ध देही सु सभरि देसेसु वंदामि ।। "[26]
इसी प्रकार वरदा में प्रकाशित जानकारी से संवत 1300 में झुंझुनूं का उल्लेख इस प्रकार किया गया है-
"संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य साह गोपाल प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु वास्तव्य - [27]
  • 1387 : रतन लाल मिश्र लिखते हैं कि 'वाकयात कौम कायमखानी' में झुंझुनूं का बसना 1444 (=1387 ई.) वि. माह बदी 14 शनिवार बताया गया है. इस बात की संभावना हो सकती है कि कायमखानियों ने झुंझुनूं को नए सिरे से भवनादिकों से सज्जित किया हो. फ़तेहखां के साथ-साथ ही मुहम्मदखां का पुत्र शम्सखां आया जिसने शेखावाटी के उत्तरी भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित किया. [28]
  • 1459 : शम्सखां के झुंझुनूं में अपना शासन स्थापित करने संबंधी एक उल्लेख त्रैलोक्य दीपक की प्रशस्ति में भी मिला है. इसके अनुसार सं. 1516 (=1459 ई.) में झुंझुनूं में शम्सखां का शासन था.[29]
"स्वस्ति संवत 1516 आषाढ़ सुदी पांच भोमवासरे झुंझुनूं शुभ स्थाने शाकी भूपति प्रजापालक समस्खान विजय राज्ये"
रतन लाल मिश्र लिखते हैं कि 'वाकयात कौम कायमखानी' के अनुसार शम्सखां ने एक तालाब बनवाया जो आज भी शम्स तालाब के नाम से प्रसिद्ध है. इसके पक्के घाट और सीढियां हैं. इसने 20 वर्ग मील क्षेत्र में एक बीड़ छोड़ा जिसमें जानवर चरते हैं. इसने कुछ पुख्ता कूवे भी बनवाए. इसी नवाब ने शम्सपुर नामक गाँव आबाद किया जो झुंझुनूं से 4 मील पूर्व में बसा हुआ है. शम्सखां कि मृत्यु झुंझुनूं में हुई जहाँ इसका एक पुख्ता गुम्बद मौजूद है. [30]
  • 1459: विक्रम की 16वीं सदी में कायमखानी नवाबों ने झुंझुनू पर अधिकार कर लिया. संवत 1516 (=1459 ई.) में झुंझुनू नगर में भट्टारक जिनचंद्र सूरी और मुनि सहस्त्र कीर्ति के शिष्य तिहुणा ने 'त्रलोक्य दीपक' की प्रतिलिपि करके अपने गुरु जिनचंद्र को भेंट की. पंचमी व्रत के उद्यापन के उपलक्ष में प्रस्तुत ग्रंथ की प्रतिलिपि कराकर जिनचंद्र को भेंट किया गया था. इस ग्रंथ की पुष्पिका के अनुसार संवत 1516 में शम्सखां कायमखानी झुंझुनू का शासक था. खतरगच्छीय युग प्रधानाचार्य गुरुवावली में शेखावाटी के नवहा (नुआं), नरभट (नरहड़) और झुंझुनू का उल्लेख आता है. [31]
  • ठाकुर देशराज[32] ने लिखा है ...नेहरा लोगों के प्रसिद्ध सरदार जुझार सिंह का जन्म संवत 1721 (=1664 ई.) विक्रमी श्रावण महीने में हुआ था. उनके पिता नवाब के यहाँ फौज के सरदार यानि फौजदार थे. युवा होने पर सरदार जुझार सिंह नवाब की सेना में जनरल बन गए. सरदार जुझार सिंह ने झुंझुनू और नरहड़ के नवाबों को परास्त कर दिया और बाकि मुसलमानों को भगा दिया. सरदार जुझार सिंह का तिलक करने के बाद एकांत में पाकर विश्वास घात कर शेखावतों ने सरदार जुझार सिंह को धोखे से मार डाला. झुंझुनू का मुसलमान सरदार जिसे कि सरदार जुझार सिंह ने परास्त किया था, सादुल्ला नाम से मशहूर था. झुंझुनू किस समय सादुल्लाखान से जुझार सिंह ने छीना इस बात का वर्णन निम्न काव्य में मिलता है -

सत्रह सौ सत्यासी, आगण मास उदार, सादे लीन्हो झूंझणूं, सुदी आठें शनिवार. अर्थात - संवत 1787 (=1730 ई.) में अघन मास के सुदी पक्ष में शनिवार के दिन झुंझुनू को सादुल्लाखान से जुझार सिंह ने छीना. जुझार अपनी जाति के लिए शहीद हो गया. वह संसार में नहीं रहे , किन्तु उनकी कीर्ति आज तक गाई जाती है. झुंझुनू शहर का नाम जुझार सिंह के नाम पर झुन्झुनू पड़ा है.

Location

Jhunjhunu is located at 29°6' North, 75°25' East. Jhunjhunu is the administrative headquarters of Jhunjhunu District. It is located 180 km from Jaipur, 230 km from Bikaner and 245 km from Delhi. The town is famous for the frescos on its grand Havelis and special artistic feature of this region.

Jat Gotras

See complete List of Jat Gotras in Jhunjhunu District

Tahsils in Jhunjhunu district

Villages in Jhunjhunu tahsil

Location of villages around Jhunjhunun in north
Location of villages around Jhunjhunu district in south

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History

Rani Sati Temple Jhunjhunu

It is said that is was ruled over by the Chauhan Dynasty in the Vikram era 1045, and Sidhraj was a renowned king. In the year 1450 Mohammed Khan & his son Samas Khan defeated the Chauhans and conquered Jhunjhunu.[33]

The Sundha inscription of Chachigadeva Chauhan of year S.V. 1319 (1263 AD) mentions about the Naharachala (नहराचल) mountain. [34]

Dasharatha Sharma in "Early Chauhan Dynasties" [Page-176] writes about Jalor Chauhan ruler - Chachigadeva, the son and successor of Udayasimha of him we have five inscriptions ranging from V. 1319 to V.1333. The earliest is the Sundha Inscription of V. 1319 edited by Dr. Kielhorn in EI, IX. pp. 74ff.

"Hating his enemies as thorns" states the Sundha Inscription "he destroyed the roaring Gurjara lord Virama," enjoyed the fall of the tremulous (or leaping) Patuka, deprived Sanga of his colour and acted as a thunderbolt for the mountain, the furious Nahara".
स्फूर्जद्-वीरम-गूर्जरेश-दलनो य: शत्रु-शल्यं द्विषंश्-
चञ्चत-पातुक-पातनैकरसिक: संगस्य रंगापह:
उन्माद्दन्-नहराचलस्य कुलिशाकर:.... (Verse-50)

Dasharatha Sharma writes that The "furious Nahara" of the inscription is unidentifiable. But we know that Naharachala (नहराचल) means Nehra Mountain and that there is a mountain in Jhunjhunu called Nehra-Pahad which in Sanskrit is called Naharachala (नहराचल). Thus the existence of name Naharachala, obviously after Nehras, proves that they were rulers in Jhunjhunu in Vikram Samvat 1319 (1263 AD). [35]

The antiquity of Name Jhunjhunu is proved from the fact that Jhunjhunu finds mention in two Digambara literary records of 15th century, as a place full of Jina temples.[36][37]

Kayamkhani ruler Mohammed Khan was first Nawab of Jhunjhunu. Then his son Samas Khan ascended the throne in the year 1459. Samas khan founded the village Samaspur and got Samas Talab constructed. [38]

Jhunjhunu was ruled over by of the following Nawabs in succession:

Mohammed Khan Samas Khan Fateh Khan
Mubark Shah Kamal Khan Bheekam Khan
Mohabat Khan Khijar Khan Bahadur Khan
Samas Khan Sani Sultan Khan Vahid Khan
Saad Khan Fazal Khan Rohilla Khan

Rohilla Khan was the last Nawab of Jhunjhunu. The Nawabs ruled over Jhunjhunu for 280 years. Shardul Singh occupied jhunjhunu, after the death of Rohilla Khan in 1730.

Nehra clan history

Thakur Deshraj writes that Jhunjhunu gets name after Jujhar Singh Nehra (1664 – 1730) or Jhunjha, a Jat chieftain of Rajasthan. The Jats through Jujhar Singh and Rajputs through Sardul Singh agreed upon a proposal to fight united against Muslim rulers and if the Nawab were defeated Jujhar Singh would be appointed the Chieftain. Jujhar Singh one day found the right opportunity and attacked Nawabs at Jhunjhunu and Narhar. He defeated the army of Nawab Sadulla Khan on Saturday, aghan sudi 8 samvat 1787 (1730 AD). According Kunwar Panne Singh[39], Jujhar Singh was appointed as Chieftain after holding a darbar. After the ‘tilak’ ceremony of appointment as a sardar or chieftain, the Rajputs through conspiracy killed Jujhar Singh in 1730 AD at a lonely place. Jujhar Singh thus became a martyr and the town Jhunjhunu in Rajasthan was named so after the memory of Jujhar Singh or Jhunjha.[40]

Jujhar Singh Nehra conquered the city in samvat 1787 (1730 AD). This is clear from the following poetry in Rajasthani Language -

Satrahso Satashiye,Agahan Mass Udaar,

Sadu linhe jhunjhunu,Sudi Athen Sanivaar.

Prior to this, Jhunjhunu was controlled by the Muslim Nawab Rohella Khan. The Muslim Nawab 'Sadulla Khan', incharge of Jhunjhunu, was defeated jointly by Shardul Singh and Jujhar Singh Nehra. But, as per Kunwar Panne Singh's book 'Rankeshari Jujhar Singh', Jujhar Singh was killed by Shekhawats after he was appointed the chieftain. It is clear from the poetry in Rajasthani Language -

Sade, linho Jhunjhunu, Lino amar patai,

Bete pote padaute pidhi sat latai.

Jhunjhunu town was established in the memory of Jujhar Singh, the above Jat chieftain of Nehra gotra. The town was made the capital of the new Shekhawati. The town is famous for frescos on grand Havelis, which is speciality of the Shekhawati region.

झुंझुनू परिचय

झुंझुनू शेखावाटी, राजस्थान का सबसे बड़ा शहर और ज़िला मुख्यालय है। यह शहर जुझारसिंह नेहरा के नाम पर सन 1730 में बसाया गया था। यह जयपुर से 180 कि.मी. तथा दिल्ली से 245 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कायमखानी नवाबों ने पंद्रहवीं शताब्दी में इस शहर की स्थापना की थी। झुंझुनू में आने वाले पर्यटकों के रहने की अच्छी व्यवस्था है तथा शेखावाटी प्रदेश देखने के लिये यह एक आदर्श स्थान है।[41]

पर्यटन स्थल: झुंझुनू में कमरुद्दीनशाह की दरगाह का विशाल और विहंगम परिसर देखने लायक़ है। वहीं पर बना मनसा माता का मन्दिर भी दर्शनीय है। इन दोनों स्थानों से शहर का नयनाभिराम दृश्य बहुत आकर्षक लगता है। इशावार्दास मोदी की हवेली में भित्ति चित्रों की भव्यता के साथ-साथ सैकड़ों झरोखों की चित्ताकर्षक छटा भी दर्शनीय है। शहर में बना खेतड़ी महल एक प्रकार का हवामहल है तो मेदत्नी बावड़ी और बदलगढ़ भी नज़रों में कैद हो जाने वाले स्थल हैं।[42]

समस तालाब, चंचल्नाथ टीला, जोरावार्गढ़, बिहारी जी का मन्दिर, बंधे का बालाजी, रानी सटी मन्दिर, खेमी शक्ति मन्दिर, लक्ष्मीनाथ जी का मन्दिर, दादाबाड़ी, अरविन्द आश्रम, मोडा पहाड़, खेतान बावड़ी, शेखावत शासकों की छतरियाँ, तीब्देवालों की हवेलियाँ, नवाब रुहेल ख़ान का मक़बरा, जामा मस्जिद तथा झुंझुनू के निकट आबूसर में नव स्थापित शिल्पग्राम व ग्रामीण हाट जैसे अनेक अन्य दर्शनीय स्थल भी झुंझुनू में हैं। पर्यटकों के आवागमन में हो रही वृद्धि के कारण गत एक दशक में यहाँ होटल व्यवसाय भी काफ़ी बढ़ा है। सीकर, चुरू और झुंझुनू, ये तीनों ज़िले राजस्थान में पर्यटन के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। [43]

झुंझा नेहरा की वंशावली

राजस्थान के सीकर जिले में फतेहपुर के समीप हरसावा गाँव में नेहरा गोत्र के लोग काफी संख्या में हैं. लेखक (लक्ष्मण बुरडक) की हरसावा में स्वर्गीय हरदेव सिंह नेहरा की पुत्री गोमती से सन 1970 में शादी हुई. दिनांक 19.07.2015 को लेखक के हरसावा प्रवास के दौरान हरसावा निवासी श्री सुलतान खां मिरासी (Mob: 9929263766) से मुलाक़ात हुई. श्री सुलतान खां मिरासी का परिवार प्रारंभ से नेहरा लोगों के साथ रहा है. श्री सुलतान खां मिरासी ने हरसावा के नेहरा गोत्र की वंशावली जबानी इस प्रकार बताई.

फतेहपुर के समीप हरसावा गाँव में नेहरा गोत्र के लोग काफी संख्या में हैं. लेखक (लक्ष्मण बुरडक) की हरसावा में स्वर्गीय हरदेव सिंह नेहरा की पुत्री गोमती से सन 1970 में शादी हुई. दिनांक 19.07.2015 को लेखक के हरसावा प्रवास के दौरान हरसावा निवासी श्री सुलतान खां मिरासी (Mob: 9929263766) से मुलाक़ात हुई. श्री सुलतान खां मिरासी का परिवार प्रारंभ से नेहरा लोगों के साथ रहा है. श्री सुलतान खां मिरासी ने हरसावा के नेहरा गोत्र की वंशावली जबानी इस प्रकार बताई.

नरहड़ के राजा नरपाल नेहरा थे और उसके भाई हरपाल थे. हरपाल का क्षेत्र काटली नदी के उस पार था. हरपाल के पुत्र झुंझा (1664 – 1730) ने झुञ्झुणु बसाया. किन्हीं कारणों से हरपाल का नरपाल से मतभेद हो गया इसलिए हरपाल फतेहपुर के समीप हरसावा की तरफ प्रस्थान कर गए. हरसा नेहरा ने सन 1287 में हरसावा बसाया. झुंझा के पुत्र देवा, देवा के पुत्र पाला, पाला के पुत्र माना हुए.

पाला का ससुराल बांठोद गाँव में भड़िया जाटों में था. देवा के नाम से बांठोद में देवलाणु जोहड़ छोड़ा. माना के नाम से हरसावा में मानाणु जोहड़ छोड़ा, जहां आज स्कूल बनी है. माना के पुत्र खेता हुये और उनके पुत्र गांगा हुये. गांगा के 12 पुत्र थे जिनमें से बीरमा सरदार बने। बीरमा के पुत्र मुकना, मुकना के पुत्र धर्मा भींवा और उनके पुत्र मगना हुये. मगना के चंदरा और उनके पुत्र हरदेव सिंह नेहरा (1925 – 1998) हुये.

नरपाल नेहरा + हरपाल (नरहड़) → हरपाल → झुंझा (1664 – 1730) (झुञ्झुणु बसाया) → देवा → पाला → माना → खेता → गांगा (12 पुत्र) → बीरमा → मुकना → धर्मा → भींवा → मगना → चंदरा → हरदेव सिंह नेहरा (1925 – 1998)

झुंझा का जन्म ठाकुर देशराज द्वारा 1664 ई. में बताया गया है. झुंझा वास्तव में हरदेव सिंह से 12 पीढ़ी पहले हुए हैं. एक पीढ़ी का औसत काल 22 वर्ष मानें तो 1925 - 264 = 1661 में झुंझा का जन्म होना चाहिए जो सही बैठता है. इस प्रकार झुंझा के काल की पुष्टि होती है.

सुल्तान खां मीरासी ने हरसावा के सम्बन्ध में एक दोहा सुनाया जो इसके इतिहास के बारे में प्रकाश डालती है -

सदा हरयो हरसावो, गांगावत को गाँव,
बारां को ओ बीरमों, नेहरो खाट्यो नाँव।

झुंझुनू के बारे में राजेन्द्र कसवा द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक तथ्य

राजेन्द्र कसवा द्वारा लिखित पुस्तक झुन्झुनूं के संस्थापाक झूंझा जाट - प्रकाशक: वीरवर जुंझार सिंह संस्थान झुंझुनू, प्रथम संस्करण:2024, पृ.134-135 से झुंझुनू के इतिहास की प्राचीनता दर्शाने वाले कुछ अंश यहाँ दिए जा रहे हैं:

परिशिष्ट: अ - झूंझा के बारे में ऐतिहासिक तथ्य

[पृ.134]: झुंझुनू, नवलगढ़, चूरू, मंडावा, बीकानेर आदि शहरों में प्रतिष्ठित पुस्तकालयों में एक पांच सदस्य टीम ने खोजबीन की और उपलब्ध पुस्तकों का अध्ययन किया. इसमें निम्न तथ्य निकला:

1. प्रसिद्ध इतिहासकार ठा. हरनाथसिंह डूंडलोद ने अपनी पुस्तक झुन्झुणु में झुंझुनू की स्थापना गुर्जर काल में सातवीं सदी में मानी है.

2. इतिहासकार मोहन सिंह का मानना है की जैन मुनियों की पट्टावली के आधार पर यह सुनिश्चित है कि झुंझुनू आठवीं सदी से आबाद है.

3. सुविख्यात शोधक श्री अमरचंद नाहटा लिखते हैं की दसवीं सदी में झुंझुनू एक बड़ी आबादी वाला शहर था.

4. सन 1019 में कविवर वीर ने जम्बू चरित्र नमक अपभ्रंश काव्य की रचना की जो झुंझुनू में ही लिखा गया. इसमें झुंझुनू के जैन मंदिरों का उल्लेख मिलता है.

5. सुप्रसिद्ध इतिहास का डॉ. दशरथ शर्मा का उल्लेख करते हुए ठा. हरनाथ सिंह ने लिखा है कि नौवीं शताब्दी के हर्ष के शिलालेख में झुंझुनू के नाम का उल्लेख हुआ है. इससे प्रकट है कि झुंझुनू पहले स्थापित था.

6. झुंझुनू मंडल का इतिहास पुस्तक में इतिहासकार कुंवर रघुनाथ सिंह शेखावत ने वर्णन किया है कि आसलपुर के चौहान बड़वों की बही से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत 1045 (=988 ई.) में झुंझुनू का राजा सिद्धराज चौहान था. इससे प्रकट है कि झुंझुनू पहले से स्थापित था.

7. रघुनाथ सिंह शेखावत ने अपनी इसी पुस्तक में माना है कि जैन मुनियों की गुरुवावली से सिद्ध है कि 1243 ई. में झुंझुनू आबाद था. खतरगच्छीय व्युवा प्रधानाचार्य गुरुवावली (चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पृष्ठ.70) का एक श्लोक रघुनाथ सिंह ने उद्धत किया है- संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य सा. गोपाल-प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु वास्तव्य - वरदा वर्ष 7 अंक 1. इसमें नुआ और झुंझुनू का नाम आया है. झुंझुनू के बारे में यह एक ठोस प्रमाण है. जाहिर है उस समय तक झुंझुनू में जैन संस्कृति काफी विकसित हो चुकी थी.

8. जैन मुनि जिनप्रभ सूरि का जन्म झुंझुनू में हुआ था. उनके मुख्य ग्रंथ न्याय कंदली, पंजिनाड, तीर्थ कल्प आदि हैं. यह मुनि मोहम्मद तुगलक से संवत 1385 (1328 ई.) में दिल्ली में मिला था. (संदर्भ - ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृष्ठ 69 लेखक अमरचंद व भंवरलाल नाहटा.)


[पृ.135]: इसका अर्थ है कि झुंझुनू उस दौर में विकसित हो चुका था.

9. गोविंद राम अग्रवाल ने चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास लिखा है. अपने ग्रंथ में पृष्ठ 70 पर उन्होंने झुंझुनू के बारे में नैणसी की ख्यात को सही नहीं माना है. अपने फुटनोट में उन्होंने लिखा है कि वास्तव में झुंझुनू 1243 ई. से बहुत पहले का बसा हुआ है.

10. इसी प्रकार विद्वान लेखक और इतिहासकार उदयवीर शर्मा ने अपनी खोज पत्रिका वरधा के वर्ष 7 अंक 1 में खतरगच्छीय प्रधानाचार्य गुरुवावली के संदर्भ में उल्लेख किया है कि झुंझुनू 1243 ई. से बहुत पहले स्थापित हो चुका था.

11. शेखावाटी प्रदेश का प्राचीन इतिहास नामक पुस्तक के लेखक सुरजन सिंह शेखावत ने अपनी इसी पुस्तक के पृष्ट 113 पर लिखा है कि जोड़ चौहानों के पुरखा राणा सिद्धराज ने विक्रम शब्द 1040 (=983 ई.) में झुंझुनू तथा उसके आसपास के प्रदेश का अधिकार डाहलियों का पराभव करके हस्तगत किया था. पृष्ट 142 पर सुरजन सिंह शेखावत ने लिखा है नैणसी की ख्यात का वह उल्लेख निराधार है कि मोहम्मदखां क्यामखानी ने विक्रम संवत 1500 (=1443 ई.) के लगभग झुंझा चौधरी के नाम पर झुंझुनू बसाया था.

12. नेहरा पहाड़ नाम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है. इसके लिए किसी ने बोर्ड नहीं लगाया था. इससे जाहिर है कि झूंझा नेहरा गोत्र का था.

13. झुंझुनू में 'नू' शब्द आता है जो गुजराती से सम्बन्ध रखता है. गुर्जर काल में स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र पर गुजराती का प्रभाव रहा है. जैन संस्कृति और जैन मुनि भी गुजरात से आते थे. इससे प्रकट है कि झुंझुनू छठी-सातवीं सदी में बस गया था. हमारे यहां नू शब्द के बहुत कम गांव या शहर हैं जैसे लाडनूं आदि. यह शब्द प्राचीनता को प्रकट करता है.

14. नेहरा पहाड़ बोलता उपन्यास झुंझुनू के इतिहास पर आधारित है जो 2006 में प्रकाशित हुआ था. इस पुस्तक के चार संस्करण छप चुके हैं और हजारों प्रतियां बिक चुकी हैं. किसी ने भी आज तक इसे चुनौती नहीं दी.

15. इतिहासकार मोहन सिंह के अनुसार उन्होंने और लेखक कवि राम अवतार शर्मा ने एक पुरानी बही देखी. जिसके आरंभ में संस्कृत में लिखा था- झुंझा मेरी रक्षा करे. इससे प्रकट होता है कि झुंझा न केवल एक वीर योद्धा था बल्कि लोक देवता के रूप में भी पूजा जाता था. ऐसा व्यक्ति स्वतंत्र सत्ता के आधार पर ही उभर सकता था जिसने स्वयं ने आम-प्रजा के हित में कार्य किए हों. उसका नाम पीढ़ी दर पीढ़ी मिथक के रूप में चलता रहा. यह प्राचीनता को प्रकट करता है.

झुंझुनू के बारे में इतिहासकारों द्वारा प्रस्तुत तथ्य

झुंझुनू की प्राचीनता का उल्लेख जैन ग्रंथों में मिलता है। इसकी स्थापना जूझा जाट पर हुई तथा आगे चलकर कालांतर में इसने नगरीय स्वरुप ग्रहण किया। भाटों और चारणों के अनुसार झुंझुनू क्षेत्र पर 12 वीं शती में जोड़ चौहानों का अधिकार रहा। उस समय इसको जोड़ी-झुंझुनू कहते थे। कुछ समय पश्चात जोड़ यहाँ से विस्थापित होकर बेरी-तारपुरा के पास बस गए विक्रम 16वीं शती में कायमखानी नवाबों ने इस पर अधिकार कर लिया। संवत 1516 (1459 ई.) में झुंझुनू नगर में भट्टारक जिनचन्द्र को भेंट की। इस ग्रन्थ की अनुसार संवत 1516 (1459 ई.) में शम्सखां कायमखानी झुंझुनू का शासक था। खतरगच्छीय युग प्रधानाचार्य गुर्वावली में नवहा (नूआं) नरमट (नरहड़) और झुंझुनू का उल्लेख आता है. इससे 14 वीं सदी में इसकी उपस्थिति ज्ञात होती है । सिद्धसेनसूरी की वि. सं. 1123 (1066 ई.) में रचित सर्वतीर्थमाला में अपभ्रंश कथाग्रन्थ 'विलासवर्दूकहां' में झुंझुनू के साथ-साथ खण्डिल्ल, नराणा, हरसऊद और खट्टउसूस (खाटू) के नाम आये हैं। इससे इसकी उपस्थिति विक्रम की 12 वीं शती में भी ज्ञात होती है।[44]

सिद्धसेन सूरि द्वारा विक्रमी 1123 (1066 ई.) में रचित सर्वतीर्थमाला में झुंझुनूं का वर्णन इस प्रकार किया गया है -

"खंडिल्ल झिन्झुयाणय नराण हरसउर खट्टउएसु । नायउर सुद्ध देही सु सभरि देसेसु वंदामि ।। "[45]

जाट परिवेश[46] के अनुसार प्राचीन नरहड़ क्षेत्र एवं जैन प्रमाणों के आधार पर कुछ इतिहासकार झुंझुनू का अस्तित्व 8वीं शताब्दी में बताते हैं। नरहड़ से प्राप्त वि. स. 1215 (1159 ई.) के अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ का अभिलेख साबित करता है कि 13वीं सदी के आरंभ में इस क्षेत्र का अस्तित्व था। आसलपुर के बड़वों की बही से पता चलता है कि वि. स. 1045 (988 ई.) में झुंझुनू का का राजा सिद्धराज चौहान था।

इसी प्रकार वरदा में प्रकाशित जानकारी से संवत 1300 में झुंझुनूं का उल्लेख इस प्रकारकिया गया है-

"संवत 1300 तदनंतरं खाटू वास्तव्य साह गोपाल प्रमुख नाना नगर ग्रामे वास्ताव्यानेक श्रावका: श्री नवहा झुंझुणु वास्तव्य - [47]

वाकयात कौम कायमखानी में झुंझुनूं का बसना 1444 वि. माह बदी 14 शनिवार बताया गया है. इस बात की संभावना हो सकती है कि कायमखानियों ने झुंझुनूं को नए सिरे से भवनादिकों से सज्जित किया हो. फ़तेहखां के साथ-साथ ही मुहम्मदखां का पुत्र शम्सखां आया जिसने शेखावाटी के उत्तरी भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित किया. शम्सखां के झुंझुनूं में अपना शासन स्थापित करने संबंधी एक उल्लेख त्रैलोक्य दीपक की प्रशस्ति में भी मिला है. इसके अनुसार सं. 1516 में झुंझुनूं में शम्सखां का शासन था.[48]

"स्वस्ति संवत 1516 आषाढ़ सुदी पांच भोमवासरे झुंझुनूं शुभ स्थाने शाकी भूपति प्रजापालक समस्खान विजय राज्ये|"

वाकयात कौम कायमखानी के अनुसार शम्सखां ने एक तालाब बनवाया जो आज भी शम्स तालाब के नाम से प्रसिद्ध है. इसके पक्के घाट और सीढियां हैं. इसने 20 वर्ग मील क्षेत्र में एक बीड़ छोड़ा जिसमें जानवर चरते हैं. इसने कुछ पुख्ता कूवे भी बनवाए. इसी नवाब ने शम्सपुर नामक गाँव आबाद किया जो झुंझुनूं से 4 मील पूर्व में बसा हुआ है. शम्सखां कि मृत्यु झुंझुनूं में हुई जहाँ इसका एक पुख्ता गुम्बद मौजूद है. [49]

झुंझनूं में गढ़वाल गोत्र का इतिहास

गढ़वाल: ठाकुर देशराज लिखते हैं कि आजकल यह राजपूताने में पहुंच गए हैं। गढ़वाल इनकी उपाधि है। अनंगपाल के समय में गढ़मुक्तेश्वर में इनका राज्य था। राजपाल के वंशजों में कोई जाट सरदार मुक्तसिंह थे, उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर का निर्माण कराया था। जब पृथ्वीराज दिल्ली का शासक हुआ तो इन्हें उसके सरदारों ने छेड़ा। युद्ध हुआ। अमित पराक्रम के साथ चौहानों के दल को इन्होंने हटा दिया, किन्तु स्थिति ऐसी हो गई कि इन्हें गढ़मुक्तेश्वर छोड़ना पड़ा और यह राजपूताने की ओर चले गये।1 तलावड़ी के मैदान में जिस समय मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज में लड़ाई हुई तो जाटों ने मुसलमानों पर आक्रमण किया, उन्हें तंग किया, किन्तु पृथ्वीराज से उन्हें कोई सहानुभूति इसलिए नहीं थी कि उसने उनके एक अच्छे खानदान का राज हड़प लिया था। यही क्यों, पूरनसिंह नाम का एक जाट योद्धा मलखान की सेना का जनरल हो गया। उसने मलखान के साथ मिलकर अनेक युद्ध किये। वास्तव में मलखान की इनती प्रसिद्धि पूरनसिंह जाट सेनापति के कारण हुई थी। [50]


ठाकुर देशराज लिखते हैं कि गढ़मुक्तेश्वर का राज्य जब इनके हाथ से निकल गया, तो झंझवन (झुंझनूं) के निकटवर्ती-प्रदेश मे आकर केड़, भाटीवाड़, छावसरी पर अपना अधिकार जमाया। यह घटना तेरहवीं सदी की है। भाट लोग कहते हैं जिस समय केड़ और छावसरी में इन्होंने अधिकार जमाया था, उस समय झुंझनूं में जोहिया, माहिया जाट राज्य करते थे। जिस समय मुसलमान नवाबों का दौर-दौरा इधर बढ़ने लगा, उस समय इनकी उनसे लड़ाई हुई, जिसके फलस्वरूप इनको इधर-उधर तितर-बितर होना पड़ा। इनमें से एक दल कुलोठ पहुंचा, जहां चौहानों का अधिकार था। लड़ाई के पश्चात्


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-599


कुलोठ पर इन्होंने अपरा अधिकार जमा लिया। सरदार कुरडराम जो कि कुलोठ के गढ़वाल वंश-संभूत हैं नवलगढ़ के तहसीलदार हैं। यह भी कहा जाता है कि गढ़ के अन्दर वीरतापूर्वक लड़ने के कारण गढ़वाल नाम इनका पड़ा है। इसी भांति इनके साथियों में जो गढ़ के बाहर डटकर लड़े वे बाहरौला अथवा बरोला, जो दरवाजे पर लड़े वे, फलसा (उधर दरवाजे को फलसा कहते हैं) कहलाये। इस कथन से मालूम होता है, ये गोत्र उपाधिवाची है। बहुत संभव है इससे पहले यह पांडुवंशी अथवा कुन्तल कहलाते हों। क्योंकि भाट ग्रन्थों में इन्हें तोमर लिखा है और तोमर भी पांडुवंशी बताये जाते हैं।[51]

जाट महासभा का झुंझुनू कान्फ्रेंस 1932

गणेश बेरवाल[52] ने लिखा है....जाट महासभा का झुंझुनू कान्फ्रेंस बसंत पंचमी 1932 को हुआ। इस जलसे में 80 हजार आदमी व औरतें इकट्ठे हुये। जलसे में उपस्थित होने वालों में 50 हजार जाट और 30 हजार अन्य कौम के लोग थे। अन्य कौम के लोग भी जाटों से सहानुभूति रखते थे क्योंकि जाट जागीरदारों का मुक़ाबला कर रहे थे। पिलानी कालेज से प्रोफेसर, मास्टर अकान्टेंट आदि इस जलसे में पहुंचे। बिड़ला जी का रुख इस जलसे को सफल बनाने का था। जलसे को सफल बनाने वालों में पिताश्री जीवनराम जी भजनोपदेशक, पंडित हरदत्तराम जी, चौधरी घासीराम जी, हुकम सिंह जी, मोहन सिंह जी आदि ने गांवों में भारी प्रचार किया। चौधरी मूल सिंह जी, भान सिंह जी मुकाम तिलोनिया (अजमेर) आदि इस जलसे को सफल बनाने के लिए आए। उत्तर प्रदेश, हरयाणा से भी कफी लोग आए। अधिवेशन में जुलूस निकाला गया जिसमें चौधरी रिछपाल सिंह जी मुकाम धमेड़ा (उत्तर प्रदेश) से पधारे थे। वे जलसे के प्रधान थे।


[p.45]: इसी जलसे में मास्टर नेतराम गौरीर की बड़ी लड़की जो घरड़ाना के मोहर सिंह राव को ब्याही थी, ने लिखित में भाषण पढ़ा था। उस वक्त शेखावाटी में स्त्री शिक्षा झुञ्झुणु में शुरू हो चुकी थी। स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए पिताश्री जीवन राम जी के निम्नांकित भजनों से बड़ा प्रोत्साहन मिला....

सुनिए ए मेरी संग की सहेली
रीत एक नई चाली। बहन विद्या बिन रह गई खाली री
एक जाने ने दो वृक्ष लगाए सिंचिनिया भी एक माली
बहन विद्या बिन रह गई खाली री......
मैं जन्मी तब फूटा ठीकरा – भाई जन्मा तब थाली री
विद्या बिन रह गई खाली री
भईया को पढ़न बैठा दिया, मैं भैंसा की पाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
भाई खावे दूध पतासो मैं रूखी रोटी खाली री
विद्या बिन रह गई खाली री.....
भाई के ब्याह में धरती धर दी मेरे ब्याह में छुड़ाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
भईया पहने पटना का आभूषण मैं पहनू नथ-बाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
मेरा पति जब आया लेवण ने मैं पहन सींगर के चाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
जब सासु के पैरों में लागी कपड़ों में उजाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
देवरानी जिठानी पुस्तक बाँचे मेरे से मजवाई थाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
मेरे में उनमें इतना फर्क था वो काली मैं धोली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
जीवन सिंह चलकर के आयो बहन न डिग्री ला दी री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
सुनिए ए मेरी संग की सहेली रीत एक नई चाली
बहन स्कूल में चाली री

चौधरी जीवन राम जी के इस गीत ने जादू का सा असर किया। गाँव-गाँव में लड़कियां पढ़ने स्कूल जाने लगी। आज के दिन स्त्री शिक्षा में झुंझुणु जिला राजस्थान में प्रथम है। झुंझुणु अधिवेशन से 4-5 जिलों में भारी जागृति फैली। इस जलसे में राजगढ़ तहसील के 17 आदमी गए थे। महाराजा गंगा सिंह ने हमारे पीछे सी.आई.डी. लगा राखी थी। इस जलसे ने मेहनतकशों व अन्य क़ौमों में जागृति पैदा


[p.46]: कर दी। जागीरदारों के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठने लगी और शेखावाटी किसान आंदोलन तेज हो गया। इस दौरान शेखावाटी के नेतागण निम्नांकित थे-

जनता को जगाने में संघर्ष करते भजनोपदेशक जीवन राम आर्य, भजनोपदेशक पंडित दंतू राम (मुकाम पोस्ट डाबड़ी, त. भादरा, गंगानगर) साथी सूरजमल (नूनिया गोठड़ा), तेजसिंह (भडुन्दा), साथी देवकरण (पलोता), स्वामी गंगा राम, हुकम सिंह, भोला सिंह आदि थे। गाँव-गाँव में प्रचारकों की मंडलियाँ प्रचार में जुटी हुई थी जो जनता को जागृत कर रही थी। इस प्रकार शेखावाटी में जन आंदोलन की लहर सी चल पड़ी।

राजस्थान की जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[53] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।


[पृ.4]: अगस्त का महिना था। झूंझुनू में एक मीटिंग जलसे की तारीख तय करने के लिए बुलाई थी। रात के 11 बजे मीटिंग चल रही थी तब पुलिसवाले आ गए। और मीटिंग भंग करना चाहा। देखते ही देखते लोग इधर-उधर हो गए। कुछ ने बहाना बनाया – ईंधन लेकर आए थे, रात को यहीं रुक गए। ठाकुर देशराज को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होने कहा – जनाब यह मीटिंग है। हम 2-4 महीने में जाट महासभा का जलसा करने वाले हैं। उसके लिए विचार-विमर्श हेतु यह बैठक बुलाई गई है। आपको हमारी कार्यवाही लिखनी हो तो लिखलो, हमें पकड़ना है तो पकड़लो, मीटिंग नहीं होने देना चाहते तो ऐसा लिख कर देदो। पुलिसवाले चले गए और मीटिंग हो गई।

इसके दो महीने बाद बगड़ में मीटिंग बुलाई गई। बगड़ में कुछ जाटों ने पुलिस के बहकावे में आकार कुछ गड़बड़ करने की कोशिश की। किन्तु ठाकुर देशराज ने बड़ी बुद्धिमानी और हिम्मत से इसे पूरा किया। इसी मीटिंग में जलसे के लिए धनसंग्रह करने वाली कमिटियाँ बनाई।

जलसे के लिए एक अच्छी जागृति उस डेपुटेशन के दौरे से हुई जो शेखावाटी के विभिन्न भागों में घूमा। इस डेपुटेशन में राय साहब चौधरी हरीराम सिंह रईस कुरमाली जिला मुजफ्फरनगर, ठाकुर झुममन सिंह मंत्री महासभा अलीगढ़, ठाकुर देशराज, हुक्म सिंह जी थे। देवरोड़ से आरंभ करके यह डेपुटेशन नरहड़, ककड़ेऊ, बख्तावरपुरा, झुंझुनू, हनुमानपुरा, सांगासी, कूदन, गोठड़ा


[पृ.5]: आदि पचासों गांवों में प्रचार करता गया। इससे लोगों में बड़ा जीवन पैदा हुआ। धनसंग्रह करने वाली कमिटियों ने तत्परता से कार्य किया और 11,12, 13 फरवरी 1932 को झुंझुनू में जाट महासभा का इतना शानदार जलसा हुआ जैसा सिवाय पुष्कर के कहीं भी नहीं हुआ। इस जलसे में लगभग 60000 जाटों ने हिस्सा लिया। इसे सफल बनाने के लिए ठाकुर देशराज ने 15 दिन पहले ही झुंझुनू में डेरा डाल दिया था। भारत के हर हिस्से के लोग इस जलसे में शामिल हुये। दिल्ली पहाड़ी धीरज के स्वनामधन्य रावसाहिब चौधरी रिशाल सिंह रईस आजम इसके प्रधान हुये। जिंका स्टेशन से ही ऊंटों की लंबी कतार के साथ हाथी पर जुलूस निकाला गया।

कहना नहीं होगा कि यह जलसा जयपुर दरबार की स्वीकृति लेकर किया गया था और जो डेपुटेशन स्वीकृति लेने गया था उससे उस समय के आईजी एफ़.एस. यंग ने यह वादा करा लिया था कि ठाकुर देशराज की स्पीच पर पाबंदी रहेगी। वे कुछ भी नहीं बोल सकेंगे।

यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था। इस जलसे ने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचौंध पैदा कर दिया और उन ब्राह्मण बनियों के अंदर कशिश पैदा करदी जो अबतक जाटों को अवहेलना की दृष्टि से देखा करते थे। शेखावाटी में सबसे अधिक परिश्रम और ज़िम्मेदारी का बौझ कुँवर पन्ने सिंह ने उठाया। इस दिन से शेखावाटी के लोगों ने मन ही मन अपना नेता मान लिया। हरलाल सिंह अबतक उनके लेफ्टिनेंट समझे जाते थे। चौधरी घासी राम, कुँवर नेतराम भी


[पृ.6]: उस समय तक इतने प्रसिद्ध नहीं थे। जनता की निगाह उनकी तरफ थी। इस जलसे की समाप्ती पर सीकर के जाटों का एक डेपुटेशन कुँवर पृथ्वी सिंह के नेतृत्व में ठाकुर देशराज से मिला और उनसे ऐसा ही चमत्कार सीकर में करने की प्रार्थना की।

Notable persons from Jhunjhunu district

Jhunjhunu in literature

नेहरा पहाड़ बोलता (झुंझुनू के इतिहास पर आधारित उपन्यास)
  • नेहरा पहाड़ बोलता (झुंझुनू के इतिहास पर आधारित उपन्यास) , प्रकाशक:मानव कल्याण संस्था, बी-४, मान नगर, झुंझुनू (राजस्थान), फोन: ०१५९२-२३३०७९, प्रथम संस्करण २००६, मूल्य रु. २५०/-

External links

  • Kunwar Panne Singh: Rankeshari Jujhar Singh
  • Thakur Deshraj:Jat Itihas,Delhi,1934 (pp 614-615)
  • Jat Samaj, Agra : September 2001

Gallery

See also

References

  1. Jat History Thakur Deshraj/Chapter V, p.143
  2. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.225-226
  3. Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p.261,s.n. 83
  4. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.135)
  5. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.135)
  6. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.134)
  7. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.134)
  8. Aruna Jadiya, Research Scholar, Vanasthali Vidyapith, 'Jat Privesh', September 2015,p. 18
  9. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.135)
  10. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.134)
  11. Aruna Jadiya, Research Scholar, Vanasthali Vidyapith, 'Jat Privesh', September 2015,p. 18
  12. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.134)
  13. शेखावाटी प्रदेश के प्रमुख दर्शनीय स्थलों का भौगोलोक वितरण, लेखक - सोनिका गुर्जर और डॉ मुकेश कुमार शर्मा, सिंघानिया विश्व विद्यालय, झुंझुनू, p.52, International Journal of Geology, Agriculture and Environmental Sciences Volume – 10 Issue – 2 July-December 2022, Website: www.woarjournals.org/IJGAES ISSN: 2348-0254
  14. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 219
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  18. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.135)
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  21. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृष्ठ 69 लेखक अमरचंद व भंवरलाल नाहटा.
  22. राजेन्द्रसिंह कसवा, झुन्झुनूं के संस्थापक झूंझा जाट, 2024, p.134)
  23. नैणसी की ख्यात:मुंहनोत नैणसी पृ. 196
  24. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.71
  25. सीकर का इतिहास-पं. झाबर मल शर्मा,पृ. 64 पाद टिप्पणी
  26. सिद्धसेन सूरि द्वारा विक्रमी 1123 में रचित सर्वतीर्थमाला
  27. वरदा वर्ष 7 अंक 1
  28. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.90
  29. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.90
  30. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.90
  31. शेखावाटी प्रदेश के प्रमुख दर्शनीय स्थलों का भौगोलोक वितरण, लेखक - सोनिका गुर्जर और डॉ मुकेश कुमार शर्मा, सिंघानिया विश्व विद्यालय, झुंझुनू, p.52, International Journal of Geology, Agriculture and Environmental Sciences Volume – 10 Issue – 2 July-December 2022, Website: www.woarjournals.org/IJGAES ISSN: 2348-0254
  32. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, pp.614-616
  33. History of Jhunjhunu
  34. Epigraphia Indica, Vol. IX, p. 74 ff
  35. Dasharatha Sharma:"Early Chauhan Dynasties", p.177
  36. See Bhattaraka Sampradaya Nos 253-254
  37. Encyclopaedia of Jainism, Volume-1 By Indo-European Jain Research Foundation p.5522
  38. History of Jhunjhunu
  39. Kunwar Panne Singh:‘Rankeshari Jujhar Singh’
  40. Thakur Deshraj: Jat Itihas, Delhi,1934 (pp 614-615)
  41. भारतकोश-झुंझुनू
  42. भारतकोश-झुंझुनू
  43. भारतकोश-झुंझुनू
  44. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 219
  45. सिद्धसेन सूरि द्वारा विक्रमी 1123 में रचित सर्वतीर्थमाला
  46. Aruna Jadiya, Research Scholar, Vanasthali Vidyapith, 'Jat Privesh', September 2015,p. 18
  47. वरदा वर्ष 7 अंक 1
  48. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.90
  49. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.90
  50. Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII,p.558
  51. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX,pp.599-600
  52. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.44-46
  53. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1, 4-6

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