Kasania Ka Bas
Kasania Ka Bas (कासणिया का बास), also known as Harnathpura, is village in Jhunjhunu district in Rajasthan. It is village of large number of administrative officers.
Founders
Kasania clan
Location
Jat Gtras
History
The village is manly of Kasania clan. They mograted from village Akwa in Sikar district in Rajasthan.
कासणिया का बास का इतिहास
झुझुनूं जिले में कृष्णियां का बास(हरनाथपुरा गांव) की बसावट के इतिहास को पुरखों की जुबान में कलमबद्ध किया है स्व. श्री माणिकचन्द जी कृष्णियां ने।
भूमिका:-राजस्थान में 20 वीं सदी के आरम्भिक काल में सामन्तवाद का बोलबाला चर्म पर था, यही वह काल था जिसमें शेखावाटी आंचल के गांवों में काफी उथल पुथल हुई। शेखावाटी का किसान इस समय सबसे अधिक प्रताड़ित था। सभ्यता के विकास के 2000 वर्ष बाद भी उसके जीवन में कोई स्थायित्व नहीं आया था। आज भी उसका जीवन घुमक्कड़ जीवन था।वह रहने के लिए निरन्तर अपना स्थान बदलता रहता था।शेखावाटी में छोटे जागीरदारों और सामन्तों का शासन था। किसानों को गुलामी का जीवन जीना पड़ता था। उनकी आर्थिक स्थति बड़ी दयनीय थी। शिक्षा और चेतना का कोई नाम नहीं था।ऐसे संकटों से घिरे हुए समय में मेरे गांव की स्थापना हुई थी।
कृष्णियां का बास (हरनाथपुरा गांव) भी उसी सामन्ती भावना एवं ग्रामीण उथल पुथल काल की उपज था। जयपुर रियासत के अधीन सामन्तों में भी आपसी फूट काफी थी। उन सामन्तों ने आपस में जमीन का बंटवारा कर रखा था। यह बंटवारा भी सामन्तों की हैसियत पर निर्भर था।झुझुनूं आंचल में उदयपुरवाटी के 45 गांव वहां के जागीरदारों के नीचे थे,जिन्हें भौमिया(भूमि के स्वामी) कहा जाता था।प्रत्येक गांव के अपने ही भौमिये थे।अत: वहां शोषण की मार अधिक थी।शेष झुझुंनूं जिला कई सामन्तों में बंटा था,जिनमें खेतड़ी, बिसाउ, सुरजगढ, मंडावा, डुण्डलोद, मुकन्दगढ, नवलगढ, मलसीसर, डाबड़ी धीलसिंह, मंड्रेला आदि मुख्य थे। खेतड़ी ठिकाने के नीचे करीब 500 गांव थे जिनकी व्यवस्था अन्य ठिकानों के मुकाबले ठीक थी।खेतड़ी ठिकाना झुझुंनूं जिले में सबसे बड़ा ठिकाना माना जाता था।डुण्डलोद ठिकाने के निचे 32 गांव थे।
भोजासर गांव खेतड़ी ठिकाने में था। उसके निचे करीब 12,000 बीघा जमीन (3967 एकड़) थी। भोजासर से लगे हुए उसके दो बास (छोटे गांव) थे जिन्हें आथुणा बास (west) व उगुणा बास (east) कहा जाता था। आथूणा बास ,भोजासर के sw में करीब एक किलोमीटर दूरी पर है जबकि उगुणा बास भोजासर के SE में करीब 200-300 मीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों बास व भोजासर मिलकर रेवेन्यू रिकार्ड में एक ही गांव भोजासर से जाने जाते थे।उस पूरे रेवेन्यू ग्राम के चार चौधरी थे।दो भोजासर गांव से व एक एक दोनों बास से।गांव में जाटों में मील गोत्र के लोगों की संख्या अधिक थी।अत: चारों चौधरी भी मील गोत्र के ही थे।
भोजासर के उंगूणा बास में कुछ घर (6-7 घर) कासणियां गोत्र के थे। सन् 1800 ई.(संवत 1857) के आसपास आकवा गांव से जीवण जी नामक कासणियां गोत्र का जाट उगूणा बास में घर जंवाई आकर बस गया था। उस समय प्राय: रिश्तेदारी में लोग अपनी सुविधा के हिसाब से बस जाते थे। उसी जीवण जी कासणिया के परिवार के सन 1900 ईं. के आसपास बढकर 7-8 परिवार हो गये थे। यह जीवण जी की चौथी पीढी (4rthG) थी। कासणिया परिवार में सबसे बड़ी आयु का व्यक्ति नाथा जी (नाथारामजी) कासणिया थे। वे शारीरिक दृष्टि से सुन्दर,गौरे रंग,लम्बे ,हट्टे कट्टे और ऊंचे ललाट के युवक थे,उम्र लगभग 40 वर्ष की थी। ये सामान्य किसान न होकर महत्वकांक्षी व्यक्ति थे। उनमें समय को पहचानने और उसके अनुसार आचरण करने की समझ भी थी। मेहनती व मिलनसार थे। इन सब कारणों से उन्होंने भोजासर में अपनी अलग पहचान बना ली थी। कहते हैं कि इनका भोजासर के सदर(बड़े) चौधरी नेताराम जी से अच्छे सम्बन्ध थे। उनमें हीन भावना नहीं थी। नाथाराम जी ने नेतारामजी के सामने उगूणा बास की चौधर इन्हें(नाथाराम जी) दिलाने की ईच्छा प्रकट की। उगुणा बास में मील गोत्र के जाटों का बहुमत था और भोजासर तो पूरा मीलों का गांव ही था। गौत्र प्रेम के कारण अधिकांश मीलों ने इसका विरोध किया। नाथाराम जी को चौधर न मिल सकी। नाथाराम जी को गांव में चौधरी से कम दर्जे में रहने को मंजूर नहीं था। मीलों व कासनिया परिवार में चौधर को लेकर टकराहट शुरू हो गई। नाथारामजी ने दूसरी जगह तलाशनी शुरू की,जहां उन्हें काश्त के लिए जमीन ही नहीं चौधर भी मिल सके।
भोजासर से सटे हुए उत्तर में जयसिंहपुरा, लाड़सर ,बीरम का बास और एक चौथाई नूआं डुण्डलोद ठिकाने के अधीन थे। जयसिंहपुरा गांव के निचे उस समय के माप की 6000 बीघा जमीन थी। डुण्डलोद जागीरदार का व्यवहार अपने किसानों के प्रति सौहार्दपूर्ण न था। इधर जयसिंहपुरा में दूलड़ गोत्र के जाट थे जो स्वभाव से स्वाभिमान,अक्खड़ व अड़ियल थे।अत: डूण्डलोद जागीरदार जयसिंहपुरा के किसानों में कृषि कर (लगान)को लेकर बराबर झगड़ा चलता रहता था। झगड़े के फलस्वरूप अधिकांश जमीन बिना काश्त पड़ी रहती थी, जिससे जागीरदार को इससे रेवेन्यू(लगान) का बड़ा नुकसान होता था। अत: डूण्डलोद जागीरदार चाहता था कि उसे कुछ ऐसे शान्तिप्रिय किसान मिल जायें जो उसकी पूरी जमीन जोतकर उसका लाभ उसे देते रहें। जयसिंहपुरा व भोजासर गांव की दूरी करीब 5 km थी। जयसिंहपुरा से दक्षिण की जमीन 4 km तक थी और भोजासर की जमीन उत्तर में केवल 1 km थी। जयसिंहपुरा के किसान अपने गांव के पास ही करीब 1 km तक ही जमीन काश्त करते थे। इस तरह भोजासर व जयसिंहपुरा के बीच में करीब 3 km तक जमीन बिना काश्त पड़ी रहती थी।
मुन्नारामजी अजाड़ी (मोहनराम अजाड़ी, करणीराम मील के मामा) उस समय जाटों में बड़ी हस्ती माने जाते थे। वे डुण्डलोद ठिकाने में हाकिम के नाम से पुकारे जाते थे। ठिकाने के काम से उनका इन गांवों में आना जाना था। उनको पता चला कि खेतड़ी ठिकाने में नाथाराम जी का मीलों के साथ चौधर को लेकर झगड़ा चल रहा है,उन्होंने नाथारामजी से सम्पर्क किया और नाथाराम जी के आकर्षक व्यक्तिव से मुन्नाराम जी पहले ही सम्पर्क में बहुत प्रभावित हुए। इन्होंने नाथाराम जी को इस बात के लिए राजी कर लिया कि उन्हें उस नये बसने वाले गांव की चौधर के साथ साथ काश्त के लिए भी बहुत जमीन मिल जाएगी। उन्होंने यह बात डुण्डलोद ठिकाने के जागीरदार हरनाथ सिंह के सामने रखी। डूण्डलोद का जागीरदार तो पहले से ही किसी उपयुक्त व्यक्ति की तालाश में था।वे मुनाराम जी की बात से सहमत हो गये।उसने तुरन्त नाथाराम जी को अपने भाइयों के साथ उस जमीन पर बसने और उसे काश्त करने की अनुमति दे दी।
उधर खेतड़ी जागीरदार को इस बात की भनक लग गई थी कि नाथाराम जी अपने भाइयों के साथ गांव छोड़कर अन्यत्र जाने की सोच रहा है।उसने गांव के लोगों को उस पर नजर रखने को कहा। नाथाराम जी उस जमाने के हिसाब से बड़े चतुर,चालाक व समय को पहचानने वाले व्यक्ति थे। इन्होंने पूर्व निर्धारित योजनानुसार सन् 1911 ईं. (1968 संवत) में ज्येष्ठ ( जून) माह में आधी रात के समय अपने भाइयों के साथ उगूणा बास छोड़कर पास ही जयसिंहपुरा व भोजासर के बीच में पड़ी परत भूमि पर एक ऊंचे बालू के टीले पर अपने डेरे डाल दिए। कहते हैं उस समय उनका किमती सामान पोळी(घर का दरवाजा) के किंवाड़,एक बैल गाड़ी और कुछ आनाज उगूणा बास में ही रह गया था।इन कासणिया भाइयों के साथ 3-4 मील गोत्र के परिवार भी आकर उस स्थान पर बसे थे।
"नाथाराम जी की पत्नी (लेखक की दादीजी)उस समय का वर्णन परिवार के बच्चों के पास बड़ी भावविह्ल होकर करती थी।बताती थीं" जेठ का महीना,करीब आधी रात का समय,अंधेरी रात,हवा की सांय सांय की आवाज हो रही थी।ऊंटों पर कुछ छोटा मोटा सामान लादकर,बच्चों को गोद में लेकर हम उगूंणा बास से रवाना हुए। जहां हमने डेरा डाला वह जमीन बड़े बड़े पौधों (आक,फोग,मुराले,खींफ) से ढकी थी। हवा के सन्नाटे से पौधों की आवाज वातावरण को और भी भयावह बना देती थी।गर्मी होने व पौधों की बहुलता के कारण सांप,घेरा आदि कीटों (replites) का भय भी कम नहीं था बड़ी मुश्किल से रात बिताई। "
दिन निकलते ही लोगों ने अपने अपने बसने की जमीन को पौधे काटकर साफ किया,दो तीन दिन मे़ छाया के लिए झोंपड़ी बनाई और इस तरह से गांव की स्थापना हुई। उस समय डूण्डलोद का जागीरदार हरनाथसिंह था,इसलिए गांव का नाम उनके नाम पर हरनाथपुरा रखा गया पर अधिकांश आबादी कासनिया परिवारों के होने के कारण लोग उसे कासनिया का बास के नाम से पुकारने लगे । अब गांव "कृष्णियां का बास" के नाम से जाना जाता है।
पीने के पानी की उस समय सबसे बड़ी समस्या थी। करीब डेढ किलोमीटर की दूरी पर लाड़सर गांव पड़ता था,वहां से पानी लाते थे। शीघ्र ही पानी की समस्या हल करने के लिए कच्ची कूईं बनाने वाले मिस्त्री को बुलाया गया और गांव के पास ही पूर्व दिशा में कुछ मटियार जमीन में कच्ची कुईं खोदने का काम चालू कर दिया जिसे कुछ ही दिनों में पूरा किया गया।अषाढ में वर्षा हुई और लोगों ने अपने अपने खेत जोते और शीघ्र ही उस जंगल ने एक गांव का रूप ले लिया।
जागीरदार के प्रतिनिधि ने आकर गांव की सीमा निर्धारित की। आबादी के लिए अलग जमीन रखी गयी,गौचर भूमि अलग रखी गयी और शेष जमीन काश्त के लिए छोड़ दी गयी। 4000 बीघा जमीन में से करीब 800 बीघा के तीन जोहड़ (गौचर भूमी) छोड़े गये। 1000 बीघा के करीब जमीन नूआं के धबाइयों को दी गयी। शेष करीब 2000 बीघा जमीन में से कुछ जमीन जो नूआं के लोग पहले से काश्त करते थे ,उनके पास ही छोड़ी गयी और शेष करीब 1200-1300 बीघा जमीन पर कासनिया काबिज हो गये।
शुरू में उस 1300 बीघा जमीन में से कुछ जमीन पर (जमीन की बहुतायत और ठाकुर के दबाव के कारण ) बाहर के लोगों को लाकर बसाया गया। बाहर से आकर बसने वालों में ढाका, भोजासर के मील, दड़िया, एक ब्राहमण था। पर परिस्थतियां अनुकूल न होने के कारण (नाथारामजी की थोड़ी झगड़ालू प्रवृति थी) वे सब उस जमीन को एक एक कर छोड़कर चले गये उस जमीन पर गांव के कासनिया ही काबिज हो गये। कासनिया परिवारों को तीन हजार बीघा जमीन पर कब्जा देने की बात हुई थी परन्तु जयसिहपुरा के दूलड़ों के झगड़ालू रैवये के कारण गांव के रेवन्यू रिकार्ड में 4000 बीघा (1100 एकड़) जमीन रखी गयी। जयसिंहपुरा के पास 2000 बिघा जमीन ही छोड़ी गयी।
जागीरदार के सहयोग से एक पक्के कूएं का निर्माण करवाया गया और वर्ष दो वर्ष में ही लोगों ने ईंटों के एक एक ,दो दो मकान बना लिए,साथ में कुछ झोंपड़े थे और इस तरह गांव का स्वरूप विकसित हुआ।
कासनिया परिवार के आने वाले लोग इस प्रकार थे: नाथारामजी स्वयं, इनका का छोटा भाई लिखमाराम जी, इनका चचेरा भाई खींवारामजी, एक पीढी दूर के चचेरे भाई हुक्माराम जी, सुरजारामजी व रेखाराम जी।
कुछ ही दिनों में उगूणां बास से अपने एक भाई आमेरिया परिवार को लाए। नाथारामजी व लिखमारामजी अपनी बहन को बहुत प्यार करते थे। जमीन की बहुतायत थी ही इसलिए बाद में बहन (झाझड़िया गोत्र) को यहीं गांव में ही बसा लिया। इस प्रकार वर्तमान में करीब 30-32 घर कृष्णियां, 2 घर झाझड़िया,6 घर आमेरिया के हैं।
शिक्षा:-
1G (Generation)..रेखारामजी प्रथम विश्वयुद्ध में सेना में थे।
2G (दूसरी पीढ़ी).
पालसिंहजी झाझड़िया जयपुर दरबार में नौकरी लगे। जीतसिंह जी सेना में चले गये। रेखाराम जी के बड़े बेटे भींवारामजी 15 साल सेना में रहने के बाद जख्मी होने से रिटायर होकर फिर (जयसिंहपुरा में,उसके बाद नूआं सरकारी स्कूल में)अध्यापक बने थे। रेखारामजी के छोटे बेटे Col उमाराम जी सैनिक कोटे से King Georage's Royal Indian Military school, Ajmer से पढे। कर्नल से रिटायर हुए।
3G.(तीसरी पीढी)
चिमनसिंहजी मिडिल स्कूल के प्रधानाध्यापक बने।
इनके बाद (लगभग 1930 के बाद जन्में ) गांव में पुरूषों की 100% साक्षरता ही नहीं बल्कि पोस्ट ग्रेजुएट कर सभी (95%) सरकारी नौकरी में गये। COLONEL कर्नल, RAS, RPS, RTS, SI, DOCTORS, PRINCIPALS, TEACHERS, ADVOCATE,RANGER और अन्य सरकारी अधिकारी बने।
महिलाओं में शिक्षा का आगाज लगभग 1950 के बाद जन्मने वाली बेटियों में शत प्रतिशत रहा व नौकरी में उच्च पदों पर गयी।
इस पीढी मे गांव में सभी पक्के व बड़े घर बन गये।सभी आधुनिक सुख सुविधाऐं(सड़क,बिजली,पानी ) उपलब्ध हो गयी। इसी पीढी ने रिटायरमेंट के बाद अधिकतर ने अपने खेतों में कूंऐं व बिजली लगवाकर,तारबन्दी करवाकर ,बाहर से परिवार सिंचाई के लिए रख लिए। खेतों में बाहर के परिवारों के लिए भी पक्के अच्छे घर बनवा दिए।
4G.(चौथी पीढ़ी)
इस पीढी में करीब 80- 85% सरकारी नौकरी में गये जैसे IAS , IPS ,ENGINEERS , BITSians ,RPS ,ADVOCATE ,BUSINESSMEN, PROFESSORS, PRINCIPALS,LECTURERS TEACHERS, BANK MANAGER ,LIC OFF,AIRPORT OFF,INCOM TAX OFF ,OTHER GOVT OFF बने।
5G.(पांचवी पीढी)
IRS, IITians ,BITSian,PRINCIPAL,LECTURER ENGINEERS ,DOCTORS, SPORTS person ,OTHER GOVT OFF etc । इस पीढी में सरकारी नौकरी का आकर्षण कम हो गया और बिजनेस , विदेशों में पढाई व विदेशों में नौकरी का आकर्षण तेजी से बढा।
गांव का पानी व मिट्टी अधिकारी गढते हैं फिर भी सभी का गांव की मिट्टी से लगाव आज भी उतना ही है।शादी समारोह,छुट्टियों,त्यौंहारों पर गांव आते हैं।पूरा गांव एक परिवार की तरह मिलजुलकर रहता है। सभी प्रेम,मान सम्मान,सहयोग,हंसी मजाक जैसे भावों से परिपूर्ण हैं।यहां के लोग कुरीतियां छोड़कर प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े और शिक्षा की शुरूवात हुई।यद्धपि गांव में आज भी प्राइमरी स्कूल तक नहीं है लेकिन साक्षरता100%। गांव की औसत आयु लगभग 80-85 वर्ष है।
आधुनिक सभी सुख सुविधाओं से लैस पक्के बड़े घर , गांव के चारों तरफ चौड़ी पक्की सड़कें,अच्छी साफ सफाई ,पानी की दो टंकी,ट्यूबवेल,गोलाई में बसे गांव के गुवाड़(कामन बड़ा चौक) में पीपल व नीम के दो बड़े पेड़ जो पुरखों की बराबर याद दिलाते रहते हैं।
यहां भी कुछ मानवीय दुर्बलतायें देखने को मिलती हैं,जैसे सार्वजनिक जमीन व रस्तों पर अवैध कब्जा,घर का पानी रस्तों पर निकालना ।
अफसरों(अधिकारियों) का गांव कहलाने वाला यह कृष्णियां का बास (हरनाथपुरा) भारत का एक आदर्श गांव है।
Notable persons
- हनुमान कासनिया का बास - 15 जून 1946 को झुंझुनू में किसान कार्यकर्ताओं की एक बैठक चौधरी घासी राम ने बुलाई. शेखावाटी के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने इसमें भाग लिया. अध्यक्षता विद्याधर कुलहरी ने की. इसमें यह उभर कर आया कि भविष्य में समाजवादी विचारधारा को अपनाया जाये. जिन व्यक्तियों ने किसान सभा का अनुमादन किया उनमें आप भी सम्मिलित थे. (राजेन्द्र कसवा, p. 201-03).
- Manik Chand Krishnia (8.9.1936- 16.3.2019) स्व.माणिकचन्द कृष्णियां
- Satish Chandra - IAS, Cadre Punjab, ACS Home, Chandigarh
- Ranveer Sing Krishnia - IPS, Cadre Union territories, DGP Puducherry
- Smriti Krishnia - IRS
- Navrang Rai Krishnia - RAS
- Harish Krishnia - IAS
- Umed Singh Krishnia - IPS
- Prahlad Krishnia - IPS
- Sukhveer Krishnia - RAS
- Mohan Singh Krishnia - RAS
- Late Rajkishore Krishnia - RPS
- Surendra Krishnia - RPS
- Col Ummaram Krishnia - Col.
- Col Chandrabhan Krishnia - Col.
- Vivek Anand - B.TECH, BITS Pilani, PH.D USA, Professor
Source
- सुमन कासनिया https://www.facebook.com/suman.krishnia.7
References
Back to Jat Villages