Bhojasar Jhunjhunu
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Bhojasar (भोजासर) is a village in Jhunjhunu district in Rajasthan
Location
भोजासर जिला मुख्यालय झुंझुनू से लगभग 20 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है।
Founders
Bhoja Meel founded Bhojasar on Ashadh Badi 1 Samvat 1632 (=1575 AD).[1]
Jat Gotras
Population
The Bhojasar village has the total population of 2457, of which 1250 are males while 1207 are females (as per Population Census 2011).[2]
History
भोजासर के मील गोत्र की वंशावली
Thana Ram Meel → 1. Raghuvir Singh + 2. Rameshwar Singh Meel (IAS)
Rameshwar Singh Meel → Dr Virendra Singh (Meel)
भोजासर का इतिहास

रामेश्वरसिंह[3] ने लेख किया है.... शहीद करणीराम जी का जन्म माघ शुक्ला सप्तमी संवत 1970 तदनुसार 2 फरवरी सन 1914 को झुंझुनू जिले के ग्राम भोजासर में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था।
भोजासर गांव के बसने की निश्चित तिथि असाढ़ बदी 1 संवत 1632 (=1575 ई.) बताई जाती है।
इस गांव को बसाने वाला भोजा नाम का व्यक्ति था जो जाट जाति के मील गोत्र का था। उसके नाम पर इस गांव का नाम भोजासर पड़ा। भोजासर बसाने से पहले भोजा व उनके पूर्वज रोहिली ग्राम में रहते थे । रोहिली गांव झुंझुनू व सीकर के लगभग बीच में स्थित था। सामरिक दृष्टि से इसकी स्थिति बहुत महत्वपूर्ण थी। राजा नवल सिंह ने अपने शासनकाल में यहां एक गढ़ का निर्माण कराया तथा इस गांव का नाम बदलकर नवलगढ़ रख दिया जो कालांतर में झुंझुनू जिले का प्रमुख व्यवसायिक एवं शैक्षणिक केंद्र बन गया । रोहिली गांव में भोजा के पूर्वजों ने एक बावड़ी का निर्माण करवाया था जो कुछ समय पूर्व तक नवलगढ़ में मौजूद थी। नवलगढ़ के बावड़ी गेट का नाम भी इस बावड़ी के कारण है।
सामरिक केंद्र होने के कारण भोजा के पूर्वजों ने शांतिपूर्वक जीवन यापन के लिए रोहिली गांव छोड़ दिया और वर्तमान सीकर जिले के कोलिडा गांव में बस गए। कोलिंडा ग्राम सीकर के अधीन था। इस गांव में अधिकांश मील गोत्र के जाट परिवार रहते थे। सीकर के राव राजा का वहां के जाटों के साथ सदा ही टकराव रहा। दिन प्रतिदिन के अत्याचारों से तंग आकर भोजा ने कोलिंडा गांव भी छोड़ दिया तथा झुंझुनू के कायमखानियों के अधीन किसी क्षेत्र में आकर बस गए जिसे अब भोजासर कहा जाता है।
शेखावाटी के टीलों से भरे पूरे इस क्षेत्र में पीने के पानी के अभाव में कम वर्षा के कारण गांव का विस्तार बहुत धीरे-धीरे हुआ । फिर भी शासन के साथ टकराव ना होने के कारण यहां का जीवन शांत एवं व्यवस्थित बना रहा। कृषि ही यहां के लोगों का एकमात्र जीवन आधार थी। वर्षा पर निर्भर होने के कारण आर्थिक संकट बना ही रहता था।
किसान सरल हृदय और धर्म प्रिय होता है। अतः गांव में भगवान की मूर्ति स्थापित कर एक छोटा सा मंदिर बनाया गया। यह काम एक महात्मा जी ने किया। उन्होंने बाहर से ठाकुर जी की मूर्ति लाकर गांव के एक कोने पर छोटी सी गुमट्टी बनाकर स्थापित की। आगे चलकर इस मंदिर को कुछ बड़ा आकार मिला। इस मंदिर में उत्कीर्ण एवं अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहां भगवान की मूर्ति का संस्थापन आषाढ़ वदी 1 स. 1862 (=1862 ई.) को किया गया था। आज भी ग्राम में एक मात्र यही मंदिर मौजूद है।
ग्राम में पीने के पानी का तब एक ही कुंवा था। बार बार जीर्णाोदार होने से कोई भी प्राचीनता का द्योतक कोई अवशेष नहीं रहा है। गांव में जाटों की घनी बस्ती है जिनमें अधिकांश मील कुल के हैं।
शेखावाटी में सत्ता का परिवर्तन हुआ। अनेक वर्षों से राज करने वाले कायमखानी नवाब दिल्ली की सल्तनत कमजोर होने से बेसहाय हो गए और उन्हें जयपुर नरेश सवाई जयसिंह की कृपा पर आश्रित रहना पड़ा। कुछ वर्षों तक राज्य
करने के बाद शेखावटी भूभाग का कायमखानी शासन अस्त हो गया और उसकी जगह शेखावतों ने ली।
शार्दुल सिंह की मृत्यु पर विक्रम की 19 वी सदी के प्रारंभ में उनके अधीनस्थ भूभाग का उनके पांच पुत्रों में समान बटवारा हुआ क्योंकि अन्य राजकुलों में पिता के मरने पर पाटवी पुत्र को राज मिलता था और छोटे भाइयों को गुजारे के लिए कुछ गांव मिलते थे शेखावतों में समान बंटवारे का सिद्धांत था। इस सिद्धांत के अनुसार कायमखानी नवाबों से ली गई भूमि को उन्होंने बराबर बांट लिया। इस बाट के अनुसार भोजासर ग्राम खेतड़ी ठिकाने के नीचे आ गया तबसे जागीरदारी पूर्ण ग्रहण तक यह गांव खेतड़ी राज्य के अधीन ही बना रहा।
भोजासर के किसानों की स्थिति सामान्य थी। आर्थिक दृष्टि से वे सफल नहीं थे। एक फसली इलाका था, जिसमें इंद्र देवता की कृपा के कारण कई कई साल अकाल पढ़ते थे। किसान की मेहनत ही उसका बल था जो कुछ भी पैदा करता उसी में संतोष था। मोटा खाना, मोटा पहनना, ना अधिक प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा, ना उसकी प्राप्ति के साधन, सदियों से संतोष का पारंपरिक सुखी निष्कपट जीवन किसान जी रहा था। शिक्षा का नाम मात्र भी साधन आस पास नहीं था। 'मसि कागद छूयो नहीं' कहावत वाली स्थिति थी।
गांव में आर्य समाज का प्रचार प्रारंभ हो चुका था जिससे जागृति का प्रभात कालीन प्रकाश फैलने लगा था। चौ.हरदा राम जी इस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। हरदा राम जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने परंपरा को तोड़कर अपनी पौत्री का विवाह आर्य समाज विधि से संपन्न कराया था। इस गांव के श्री लादूराम ब्राह्मण भी कर्मकांड के खिलाफ थे तथा प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। आगे चलकर हरदा राम जी के भतीजे चो. थानी रामजी, श्री कालूराम जी व श्री जगन सिंह जी ने इस काम को आगे बढ़ाया और उन्होंने झुंझुनू जिले के प्रमुख व्यक्तियों में अपना स्थान बना लिया ।
किसान आन्दोलन का दमन
किसान आन्दोलन के दमन का सबसे भयंकर दृश्य शेखावाटी में था. जहाँ किसानों पर घोड़े दौडाए गए और जगह-जगह लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनूं में 1 से 4 फ़रवरी 1939 तक एकदम अराजकता थी. पहली फ़रवरी को पंचायत के 6 जत्थे निकले, जिसमें तीस आदमी थे. इनको बुरी तरह पीटा गया. दो सौ करीब मीणे और करीब एक सौ पुलिस सिपाहियों ने जो कि देवी सिंह की कमांड में घूम रहे थे, लोगों को लाठियों और जूतों से बेरहमी से पीटा. जत्थे के नायक राम सिंह बडवासी व इन्द्राज को तो इतना पीटा कि वे लहूलुहान हो गए. रेख सिंह (सरदार हरलाल सिंह के भाई) को तो नंगा सर करके जूतों से इतना पीटा कि वह बेहोश हो गए. उनकी तो गर्दन ही तोड़ दी. चौधरी घासी राम, थाना राम भोजासर, ओंकार सिंह हनुमानपुरा, मास्टर लक्ष्मी चंद आर्य और गुमान सिंह मांडासी की निर्मम पिटाई की. इन दिनों जो भी किसान झुंझुनू आया उसको सिपाहियों ने पीटा. यहाँ तक कि घी, दूध बेचने आने वाले लोगों को भी पीटा गया. [4]
Notable persons
- Karni Ram Meel (करणी राम) (2 February 1914 - 13 May 1952) was a brave farmer leader of Jhunjhunu district and leader of the Shekhawati farmers movement. He was born in samvat 1970 at village Bhojasar in the family of Chaudhary Deva Ram.
- Thana Ram Meel (चौधरी थानाराम मील), from Bhojasar , Jhunjhunu, was a leading Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. [5]
- चौ.कालूराम: पुत्र चौधरी थानाराम मील, भोजासर स्कूल के संचालन के लिये ग्राम के लोगों की छोटी सी समिति बनी हुई थी। इस समिति के मंत्री चौ.कालूराम थे। ये ढलती उम्र के शिक्षा में रूचि लेने वाले उत्साही व्यक्ति थे। स्कूल के लिए खुड्डी की व्यवस्था ग्राम में ही की थी और स्कूल के पानी की व्यवस्था के लिए ढोल, बरी, स्टेशनरी, आदि के खर्चो की व्यवस्था भी समिति की तरफ से होती थी। समिति अपनी तरफ से 15 रूपये माहवार का खर्चा जुटाती और जैसा कि ऊपर कहा गया है 15 रूपये मुरारकाजी की ओर से मिलते इस प्रकार मिले-जुले प्रयत्न तथा गाँव वालों के उत्साह से एक छोटी सी स्कूल गाँव में निरन्तर प्रगति करने लगी। [6]
- श्री रघुवीर सिंह भोजासर - चौधरी थानाराम मील के पुत्र, दो तीन पीढ़ी के अन्तर से करणी राम के भाई, कनिष्ट भ्राता रामेश्वर सिंह जो एक आई. ए. एस. अधिकारी हैं
- Dr Virendra Singh (Meel) (डॉ. वीरेद्र सिंह) - specialist in Respiratory diseases and Director of Asthma Bhawan Jaipur, Rajasthan.
- Rameshwar Singh Meel - IAS, Father of Dr Virendra Singh (Meel)
- जगन सिंह भोजासर/ थाना राम भोजासर/धोकल सिंह भोजासर - 15 जून 1946 को झुंझुनू में किसान कार्यकर्ताओं की एक बैठक चौधरी घासी राम ने बुलाई. शेखावाटी के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने इसमें भाग लिया. अध्यक्षता विद्याधर कुलहरी ने की. इसमें यह उभर कर आया कि भविष्य में समाजवादी विचारधारा को अपनाया जाये. जिन व्यक्तियों ने किसान सभा का अनुमोदन किया उनमें आप भी सम्मिलित थे. (राजेन्द्र कसवा, p. 201-03).
External links
References
- ↑ Rameshwar Singh Meel:Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Janm, Shaishav Aur Shiksha,pp.1-2
- ↑ http://www.census2011.co.in/data/village/71038-bhojasar-rajasthan.html
- ↑ Rameshwar Singh Meel:Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Janm, Shaishav Aur Shiksha,pp.1-2
- ↑ डॉ पेमाराम, शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p. 167
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.407-408
- ↑ Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Ek Udar Hridya Aur Shiksha Premi Manav,p.70
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