Rameshwar Singh Meel

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

लेखक रामेश्वरसिंह

Rameshwar Singh Meel (born:31.7.1929) is a former IAS officer from Rajasthan. His father was Rupa Ram Meel. His uncle was Thana Ram Meel, who was a leading Freedom fighter and took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. He is father of Dr Virendra Singh, a specialist in Respiratory diseases and Director of Asthma Bhawan Jaipur, Rajasthan.

He is author of a book Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram (शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम)

रामेश्वरसिंह का परिचय

रामेश्वरसिंह का जन्म गांव भोजासर के साधारण किसान परिवार में 31 जुलाई 1929 को हुआ. चमरिया कॉलेज फतेहपुर से सन 1949 में इंटरमीडिएट परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर राजपूताना विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया. बिरला कॉलेज पिलानी से 1951 में b.a. तथा 1953 में महाराजा कॉलेज से m.a. पास किया. दोनों ही परीक्षाओं में विश्वविद्यालय की योग्यता सूची में सर्वोच्च स्थान मिला और दो स्वर्ण पदक प्राप्त किए. सन 1955 में प्रथम श्रेणी में कानून की परीक्षा पास की. अध्ययन के दौरान फतेहपुर व पिलानी में कई अछूतोद्धार कार्यक्रम चलाये और अछूतों के मोहल्ले में प्रौढ़ पाठशालायें चलाई.

सन् 1955 में राजस्थान प्रशासनिक सेवा में प्रवेश तथा सन् 1977 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति, सन 1976 में प्रशासक नगर परिषद अजमेर के पद पर उल्लेखनीय कर्तव्यपरायणता के लिए योग्यता योग्यता प्रमाण पत्र. जिलाधीश बांसवाड़ा, सवाई माधोपुर, सचिव राजस्थान राज्य विद्युत मंडल आदि पदों पर कार्य किया. वर्तमान में आयुक्त, भू प्रबंध विभाग में. जहां भी रहे, गरीब और बेसहारा लोगों को पूरी मदद करने की कोशिश की.

करणी राम पर पुस्तक

शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह

प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

प्रकाशक: चंवरा शहीद स्मारक समिति, झुंझुनू (राजस्थान), मूल्य रु. 51/-


पुस्तक समीक्षा: प्रस्तुत पुस्तक में धरती के वीर पुत्र शहीद करणीराम अमर एवं गौरव गाथा अंकित है. लेखक ने सफलतापूर्वक जहां अपने नायक करणीराम के बहुविध गुणों, सिद्धांतों, आदर्शों एवं संकल्पों का चित्रण किया है वहां तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी विचारोत्तेजक परिचय कराया है. करणी राम को देव लोके हुए तीन दशकों से भी ज्यादा समय व्यतीत हो चुका है परंतु ऐसे महान पुरुष के जीवन के बारे में कोई विश्वसनीय प्रकाशन नहीं हुआ था. आज देश की वर्तमान परिस्थितियों में अलगाववादी शक्तियां देश के लिए एक जबरदस्त चुनौती दे रही हैं. ऐसे मौके पर शहीदों का स्मरण एवं उनकी उपलब्धियों की जानकारी समाज एवं राष्ट्र को दी जानी चाहिए ताकि राष्ट्र की अखंडता एवं सुरक्षा को कायम रखा जा सके, अतः वर्तमान परिपेक्ष में इस पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ जाती हैं.

श्री रामेश्वर सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं और शहीद करणी राम के आदर्श गांव भोजासर के ही निवासी हैं. उन्होंने शहीद करणी राम के बारे में तथा समसामयिक परिस्थितियों के संबंध में जो कृति प्रस्तुत की है वह वास्तव में सराहनीय प्रयास है. निश्चित रूप से युवा पीढ़ी इस पुस्तक से प्रेरणा ग्रहण कर समाज एवं राष्ट्र की सेवा में अग्रसर होगी.

मेरी मान्यता है कि राज्य सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की पुस्तकों को बच्चों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करें ताकि बच्चों के दिल में देश प्रेम की भावना संचारित हो और वे देश के उज्जवल भविष्य के निर्माण में सहायक हों.

कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी, प्रधान संपादक, दैनिक नवज्योति, अध्यक्ष राजस्थान स्वतंत्रता सेनानी संगठन जयपुर

नोट: लेखक को डॉ. वीरेद्र सिंह द्वारा पुस्तक शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम उपलब्ध कराई गई है जिसका ऑनलाइन संस्करण यहाँ देखे - शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

पुस्तक मेरी कहानी मेरी जुबानी

रामेश्वर सिंह आईएएस

ऑटोबायोग्राफी 'मेरी कहानी, मेरी जुबानी’ लेखक : रामेश्वर सिंह आईएएस, जयपुर में हुई लॉन्च:

कैबिनेट मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने किया विमोचन....

पूर्व आईएएस अधिकारी रामेश्वर सिंह ने अपने 95 में जन्मदिन पर अपनी ऑटोबायोग्राफी मेरी कहानी, मेरी जुबानी लॉन्च की. इस दौरान कहानी सुनाते हुए रामेश्वर सिंह ने बताया कि 8 साल की उम्र में पिता और एक साल बाद बड़े भाई-बहन को खो देने के बाद न के बराबर संसाधनों में पढ़ाई शुरू की. शुरुआत में एक सेठ ने फर्स्ट रैंक लाने की शर्त में ₹2 महीने की मदद देना शुरू किया. लेकिन आठवीं कक्षा तक पहुंचते हुए स्वाभिमान प्रबल होता गया और ₹5 महीने की ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जमा करना शुरू किया. दसवीं कक्षा में स्टेट सेकंड रैंक के बाद MA तक पढ़ाई में पहली रैंक आई और आर ए एस अधिकारी बनकर सेवाएं दी. उत्कृष्ट सेवाओं के कारण बाद में उन्हें आईएएस अधिकारी के रूप में प्रमोट किया गया. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की और चुनाव भी लड़ा. इस मौके पर उन्होंने कहा कि मेरा 17 साल का पोलिटिकल कैरियर 31 साल के सर्विस कैरियर से ज्यादा अच्छा रहा, क्योंकि इस दौरान सीमाओं से आगे बढ़कर लोगों की सेवा करने का मौका मिला. कार्यक्रम में उनके बेटे डॉक्टर वीरेंद्र सिंह ने बताया कि हमने कई बार पिताजी से अपनी आत्मकथा लिखने के लिए अनुरोध किया, क्योंकि आज की नई पीढ़ी को उनकी संघर्ष भरी कहानी बहुत मोटिवेट करेगी. आईटीसी राजपूताने में आयोजित इस बुक-लॉन्च में मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री झाबर सिंह खर्रा और सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर एमएल शर्मा और राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव अरुण कुमार मौजूद रहे. [1]

पुस्तक की भूमिका भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ द्वारा लिखी गयी है. उन्होंने लेख किया है कि वे स्वयं व्यक्तिगत रूप से लेखक से बहुत प्रभावित रहे हैं. कहानी से पहले की बात शीर्षक के अंतर्गत लेखक के पुत्र डॉ. वीरेंद्र सिंह ने पारिवारिक और सामाजिक कठिन परिस्थितियों से निकल कर अँधेरे से उजाले में आने के सफ़र का प्रभावी चित्रण किया है.

1. आठ साल की उम्र में पिताजी और पिता तुल्य बड़े भाई के निधन के बाद एक अभावों में जी रहे परिवार के बच्चे ने आगे पढ़ने की सोची। अभावों से बाहर आने का एक मात्र रास्ता था पढ़ाई।

2. पढ़ाई का खर्च चलाने के लिए मुकुंदगढ़ के दयालु सेठ जुवाल जी और भीमराज जी तुलस्यान इस होशियार बच्चे को हर महीने 2 रुपए देते थे। इस मदद से उसने कक्षा 10 पास की।

3. कक्षा 11 में इस बच्चे में स्वाभिमान जाग उठा। उसने मदद लेने के बजाय कमा कर पढ़ने की सोची और एक सम्पन्न परिवार के लड़के को 5 रुपए प्रतिमाह पर ट्यूशन पढ़ाया।

4. एक दोस्त ने बताया की राजपूताना के टॉपर को स्कॉलरशिप मिलती है। जुनून से जुट गया और पूरे इंटर बोर्ड में 2nd रैंक आ गई। स्कॉलरशिप मिल गई और पिलानी के कॉलेज में दाखिला मिल गया।

5. बीए में पूरे राज्य में फ़र्स्ट रेंक, एम ए में फ़र्स्ट रेंक और फिर प्रथम प्रयास में RAS पास। गलती से बड़ी उम्र लिखवाने के कारण IAS की परीक्षा से वंचित।

6. आजाद भारत में नेताओं की दखल के बावजूद कैसे सफल प्रशासन चलाएं, चिंता थी इलाहाबाद में ओटीएस की ट्रेनिंग के समय। निर्देशक त्रिवेदी जी बोले जनहित का खूब काम करो और नेताओं से ज्यादा पॉपुलर बन जाओ। इस राय को प्रशासन करने पहला सूत्र बना लिया।

7. “जो सही लगा, वो किया स्वाभिमान के साथ” बना 31 साल प्रशासन करने का दूसरा सूत्र। बहुत सफलता मिली लेकिन साथ में मिली कई बार तबादले की सौगात।

8. 1986 में रिटायरमेंट के बाद समाज के पहले प्रमुख व्यक्ति थे बीजेपी ज्वाइन करने में, चुनाव भी लड़ा। समाज के लोगों के खूब काम किए। करीब 17 साल की सक्रिय राजनीति का समय 31 साल के प्रशासनिक समय से ज्यादा आनंदमय रहा।

9. पत्नी की पार्किंसन बीमारी के कारण सबकुछ छोड़ अंतिम समय तक उनके साथ रहे, उनकी अकल्पनीय सेवा की। दो साल पहले मंजला पुत्र राजेश अमेरिका छोड़ भारत आ गया माता-पिता के साथ रहने।

10. ⁠500 साल की वंशावली दादाजी और दादीमाँ के नामों के साथ।

निश्चय ही पुस्तक हर युवा को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी.

सम्पूर्ण पुस्तक ऑनलाइन यहाँ पढ़िए - मेरी कहानी मेरी जुबानी

External links

References