Ram Dev Singh Gill

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Ram Dev Singh Gill

Ramdeo Singh Gill.jpg
Full NameRam Dev Singh Gill
Born1922, Gill ki Dhani
Died: 13 May 1952
ResidenceVillage Gill ki Dhani in Udaipurwati in Jhunjhunu district in Rajasthan
Nationality

Flag of India.png Indian

OccupationTeacher, Freedom Fighter
Parent(s)Shri Mukunda Ram Gill (Father)
GotraGill

Ram Dev Singh was shot dead along with Karni Ram

Ram Dev Singh Gill (रामदेवसिंह गिल) (1922-1952) was born on vikram samvat 1979 in Kartik month at Gill ki Dhani village in Udaipurwati in Jhunjhunu district in Rajasthan. He was eldest son of Shri Mukunda Ram Gill. He was married to Smt. Foolidevi, daughter of Shri Ladu Ram of village Ranasar.

Career

He got his primary education at village school and then at Dhamora village and Gudha Gaudji. Later he was appointed as a teacher. He was a brave person fromthe childhood itself. He joined the freedom movement and left his job. He started movements for Jagiri abolition under the leadership of Sardar Har Lal Singh. He made Vidyarthi Bhawan, Jhunjhunu as his centre of activity and became private secretary of Har Lal Singh.

Gill ki Dhani village became the centre of movement in entire Udaipurwati region. They motivated farmers against the Jagirdars so as not to pay the excessive taxes. The farmer-Jagirdar movement became aggressive and Ram Dev Singh was arrested many times.

Udaipurwati conference of farmers in 1949

Udaipurwati in Jhunjhunu district was a stronghold of Jagirdars so Ram Dev Singh decided to hold a conference of farmers in 1949 in Udaipurwati itself and it was a grand success. Later he held a meeting of farmers in Gudhagaurji village in presence of then home minister Chaudhary Kumbha Ram Arya and the Law minister Narottam Joshi, who were on tour of this area. The armed Jagirdars attacked the meeting place in which many people were wounded and both ministers were also injured.

He was arrested during his service as teacher in village Kudan. The school building of Kudan village was being vacated by the Jagirdars and he refused to vacate it as it was not the property of Jagirdars. At last the he won and building remained the property of School.

He had a very high place in the district politics of Jhunjhunu. He remained president of Udaupurwati Congress Party and member of district Congress and district board. He played important role in the cooperative movement.

Shot dead by jagirdars

Ram Dev Singh was shot dead on 13 May 1952 along with Karni Ram by the Jagirdars at village Chanwara (चंवरा) when both Karni Ram and Ramdev Singh were sleeping after taking part in farmers movement against jagirdars. Jagirdars treated both of them as their biggest enemies. The news of murder of both leaders spread like forest fire and thousands of farmers gathered at the spot. They were all very agitated against the Jagirdars. Sardar Har Lal Singh, Chaudhari Kumbharam Arya rushed to the spot from jaipur accompanied with I G Police, to pacify the mob. The dead bodies of both martyrs were brought to Jhunjhunu and last rites performed on 14 May 1952 at "Vidyarthi Bhawan Jhunjhunu". He had three kids of which the youngest one was mere 6 months old,,,,[1]

जीवन परिचय

शेखावाटी भू-भाग: वर्तमान राजस्थान का झुंझुनू जिला तत्कालीन जयपुर रियासत का भाग था और शेखावाटी के नाम से जाना जाता था. पूरा भू-भाग जागिरी क्षेत्र था. छोटे बड़े जागीरदारों का आधिपत्य था. इसी का एक भू-भाग उदयपुरवाटी के नाम से जाना जाता था. आज भी उदयपुरवाटी तहसील क्षेत्र कहलाता है.

जागीरदारों द्वारा शोषण: उदयपुरवाटी भू-भाग पूर्णरूप से छोटे-छोटे जागीरदारों के आधिपत्य में था. थोड़ी-थोड़ी जमीन इनकी जागीरों में थी. जमीन की पैमाइश नहीं हुई थी. लगान की शरह निश्चित नहीं थी. जागीरदार अपनी मनमर्जी से जो चाहा लगान वसूल करता था. जमीनों का कोई रिकॉर्ड नहीं था. कौन सी जमीन कौन काश्त करता है, कोई रिकॉर्ड नहीं होने से बेदखलियाँ बहुत होती थी. लोग बहुत पिछड़े हुए थे. अपने अधिकारों के प्रति कोई ज्ञान उन्हें नहीं था. शिक्षा का पूर्ण अभाव था. जागीरदारों के अत्याचारों का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं थी. लगान बटाई में लिया जाता था. लगान के अलावा अनेक प्रकार की लाग-बाग ली जाती थी. संपूर्ण समाज दयनीय स्थिति में जी रहा था. किसान की हालत और भी दयनीय थी. पूरे इलाके में किसानों के घर कच्चे छपरों के ही थे. कोई पक्का मकान नहीं मिलता था. बड़ी ही अपमानजनक स्थिति में लोग जी रहे थे. जागीरदार का आदेश ही उनके लिए सब कुछ था. आदेश की अवहेलना उनके लिए बर्बादी का संदेश था. कई गाँवों के किसान जागीरदारों की नाराजगी मोल ले कर अपनी जमीन तथा प्राणों से हाथ धो चुके थे. खिरोड़, देवगांव-हुकमपुरा-चनाना के हत्याकांड इस बर्बरता के साक्षी हैं.

किसानों में नई चेतना: भारत आजाद हुआ. 1952 के आम चुनाव आए. श्री करणी राम जी इस इस क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बने. श्री रामदेव सिंह जी का यह राजनीतिक कार्यक्षेत्र था. दोनों नेताओं ने घर-घर जाकर लोगों की स्थिति देखी. लोगों को अपने अधिकारों के लिए खड़े होने की प्रेरणा दी. अत्याचारों के खिलाफ लड़ने को प्रेरित किया. जनता में नई चेतना आई. खासतौर से किसान वर्ग संगठित होकर उठ खड़ा हुआ. जगह-जगह सभाएँ होने लगी. संगठन बने. नई हवा ने पूरे इलाके को झकझोर दिया. किसान वर्ग श्री करणी राम जी वह रामदेव सिंह जी को अपने उद्धारक त्राणदाता के रूप में देखने लगा. इस नई चेतना से जागीरदार वर्ग विचलित हो गया. इस पूरे परिवर्तन का कारण श्री करणी राम जी व श्री रामदेव सिंह जी को मानकर उन्हें खत्म करने की योजना बनने लगी. कई जगह गुप्त बैठकें हुई. सुदूर के डाकूओं को भी बुलाने की कार्यवाही पर विचार होने लगे.

1952 के चुनाव के बाद राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी. राज्य सरकार ने एक आदेश निकाला कि जिन जमीनों की पैमाइश होकर लगान कायम नहीं हुआ है वहां जागीदार पैदावार के छठे हिस्से से अधिक लगान के रूप में नहीं ले सकता. इस आदेश ने आग में घी का काम किया. अब तक जागीदार पैदावार का आधा हिस्सा लगान के रूप में लेते आ रहे थे. उन्हें छठा हिस्सा स्वीकार नहीं था. किसान चेतन हो उठा था. राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक किसान छठे हिस्से से अधिक देने को तैयार नहीं था. जागीरदार-कश्तकार संघर्ष तेज हो उठा. जगह-जगह खलिहान रोक दिए गए. अराजकता की स्थिति बन गई. श्री करणी राम जी एवं रामदेव सिंह जी इस संघर्ष में किसानों की रहनुमाई कर रहे थे.

गोलियों से भून डाला: इसी सिलसिले में उदयपुरवाटी के गांवों का दौरा करते 13 मई 1952 को चंवरा ग्राम गए. वहां सेठ सेढूराम गुर्जर की ढाणी में ठहरे हुए थे. दोपहर को खाना खाकर आराम कर रहे थे. जागीरदार उनके प्राण लेने को पीछे पड़े हुए थे. उन्हें मौका मिल गया और शेडू राम की ढाणी पर आक्रमण कर दोनों नेताओं को बंदूक की गोलियों से भून डाला.

बलिदान कभी निरर्थक नहीं जाता है. दोनों नेताओं के सीने पर लगी गोलियां सीना चीरते हुये हुए जागीरी प्रथा के पेट में जा घुसी. सरकार हरकत में आई. जागीरदारी प्रथा समाप्त हुई. जमीन का बंदोबस्त हुआ. लगान की शरह कायम हो कर किसानों को जमीन के पर्चे-खतौनी मिले. किसान जमीन का मालिक बना. एक सम्मानजनक जीवन का भोर हुआ.

पिछले सालों से हर वर्ष 13 मई को शहीद स्थल शेढूराम की ढाणी पर श्री करणीराम जी और रामदेव सिंह जी की याद में शहीद मेला लगता है. दूर-दूर से लोग अपने दिवंगत नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं.

श्री रामदेव जी का जन्म उदयपुरवाटी तहसील के गांव गीलां की ढाणी में हुआ. अध्ययन समाप्त कर राजपुताना शिक्षा मंडल में अध्यापक के पद पर नियुक्ति लेकर प्रथम नियुक्ति पर सीकर जिले के कूदन गांव की स्कूल में लगे. सीकर ठिकाने से स्कूल भवन के विवाद को लेकर उन्हें ठिकाने ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ठिकाने की स्कूल खुलने पर उनसे चार्ज श्री अमर सिंह जी कटराथल में 1941 में लिया था जिसका उन्होंने विरोध किया. कूदन के बाद अन्य कई स्कूलों में अध्यापक रहे लेकिन वह जीवन उन्हें रास नहीं आया. सरदार हरलाल सिंह जी के संपर्क में आए और नौकरी छोड़ कर सार्वजनिक जीवन में कूद पड़े. सरदार जी के विश्वस्त साथी बने और उनके सचिव के रूप में काम किया. विद्यार्थी भवन झुञ्झुणु की देखभाल का कार्य वर्षों तक किया. उदयपुरवाटी इलाक़ा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीवनपर्यंत रहे. झुंझुनू जिला कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी में रहे.

श्री रामदेव सिंह में संगठन करने की अपार क्षमता थी. कहा जाने लगा था कि जिधर से रामदेव जी निकल जाते हैं आग सी लग जाती है. जागीरी प्रथा के भयंकर खिलाफ थे और इस संघर्ष में उन्हें बड़ा आनंद आता था. ऐसा निडर निर्भीक उत्साही और क्षमतावान व्यक्तित्व मिलना बहुत मुश्किल है. 33 साल की अल्प आयु में ही वे जिले ही नहीं राजस्थान के प्रमुख कार्यकर्ताओं की श्रेणी में गिने जाने लगे थे.

संदर्भ: यह परिचय शहीद करणी राम- राम देव के पचासवें निर्वाण दिवस पर प्रकाशित स्मृति ग्रंथ से लिया गया है.

रामदेव सिंह व करणीराम की अजीब जोड़ी

शिवनाथ सिंह गिल[2] ने लिखा है....श्री रामदेव सिंह जीश्री करणीराम जी की अजीब जोड़ी थी, दो अजीब विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति एक साथ मिलकर लोगों को कितना क्या दे गए एक आश्चर्यजनक स्थिति लगती है--- करणीराम जी से ठीक विपरीत श्री राम देव सिंह जी जलती आग का धधकता गोला थे। बड़े ही क्रियाशील व्यक्तित्व के धनी थे--- जागीरी जुल्मों को आंख से देखा था और भुगता था--- जागीरी अत्याचारों के खिलाफ खुले विद्रोही की साक्षात मूर्ति थे। बड़े अच्छे संगठनकर्ता थे, जिस भी गांव में जाते मिनटों में एक अच्छी खासी कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कर देते थे। लोग कहा करते थे कि कितनी शक्ति है इस व्यक्ति में कि जहां से निकल जाता है वहीं आग सी लग जाती है। बालकपन से ही उग्र स्वभाव के थे, अन्याय से समझौता करना उनकी कृति में नहीं था। डटकर हर अत्यचार का मुकाबला करते थे। भय नाम की चीज उनके लिए थी ही नहीं। जंहा भी देखते अन्याय हो रहा है छाती खोलकर मुकाबले को खड़े मिलते थे।

श्री रामदेव सिंह जी उम्र में तीन साल बड़े थे लेकिन पढ़ना लिखना हम दोनों ने करीब-करीब एक साथ ही शुरू किया था। बचपन में उनकी नटखटता के कारण मुझे कई बार परेशानियों का शिकार होना पड़ता था। स्कूल में जाते आते बहुधा तंग किया करते थे लेकिन दूसरे बच्चों द्धारा मुझे कभी परेशान नहीं करने दिया----एक ढाल समान मेरी रखवाली करते थे, हम दोनों साथ-साथ हिंदी वर्नाक्युलर फाइनल परीक्षा साथ-साथ पास की। उन्होंने राजपूताना शिक्षा मंडल स्कूल में


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-18

अध्यापक का कार्य अपना लिया और मुझे आगे पढ़ाने का निर्णय लेकर आगे पढ़ाई चालू करवा दी। विधि स्नातक बनाने योजना थी।

श्री रामदेव सिंह जी अध्यापक का कार्य कुछ ही समय कर पाये। उनका मन सार्वजानिक क्षेत्र में कार्य करने का था। अध्यापन कार्य छोड़कर सरदार हरलाल सिंह जी के संपर्क में आ गए और जिले की राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे। उदयपुरवाटी इलाके के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने तथा विद्यार्थी भवन झुंझनू के प्रबंध को हाथ लिया। विद्यार्थी भवन धन संग्रह में अग्रणी भाग लेते हुए जिले के अन्दर तथा बाहर अहमदाबाद आदि स्थनों से काफी धन संग्रह करवाया। विद्यार्थी भवन को अपनी कर्मस्थली बनवाया व जन जागृति के कार्य गए। 1952 के आम चुनाव आये, श्री करणीराम जी ने उदयपुरवाटी से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। बड़ी विकट स्थिति उदयपुरवाटी के उस समय थी। सम्पूर्ण क्षेत्र जागीरदारों के बुरी तरह से प्रभाव में था। मनुष्य को मनुष्य नहीं समझा जाता था। किसानों से मनचाहा लगान लिया जाता था----लगान की कोई दर निश्चित नहीं थी -- जो भी जागीरदार की मर्जी में आया, तय कर लिया और ले गये। अनेक प्रकार की लागबाग चालू थी। किसान की सम्पूर्ण पैदावार जागीरदार के लगान--बोहरे की तुलाई--धुँआबाज--खूंटा बंधी आदि में चली जाती थी। बेगार ऊपर से लेनी पड़ती थी---खलिहान से किसान के घर अनाज का एक दाना भी नहीं पहुंच पाता था। इस पर भी जमीन की सुरक्षा नहीं थी--मनचाहे जब बेदखल किया जा सकता था--सम्पन्न सम्मान पूर्वक जिंदगी बसर करने की बात तो सोचना ही असम्भव था।

जागीरदारों का इतना आंतक था कि कोई जबान भी खोल नहीं पाता था। बहु-बेटियों की इज़्ज़त जागीरदारों के हाथों आये दिन लुटती थी। ऐसे आतंकपूर्ण वातावरण में चुनाव लड़ना कोई आसान बात नहीं थी। कार्यकर्ताओं को लोगों के पास पहुंचने नहीं दिया जाता था। श्री करणीराम जी तथा श्री रामदेव सिंह जी अपने साथी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर रात दिन गाँवों में घूमने लगे। लोगों में कुछ साहस आया। वातावरण में कुछ बदलाव आने लगा। जागीरदारों व कांग्रेस कार्य-कर्ताओं में आपस में विवाद खड़े होने लगे। वह समय ऐसा ही था। सम्पूर्ण राजस्थान की जागीरी क्षेत्रों में यही हाल था। श्री जयनारायण जी व्यास राजस्थान


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-19

के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए सन 1952 के चुनाव लड़ रहे थे। उनको भी जागीरदारों ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में घुसने तक नहीं दिया और ऐसा लोकप्रिय नेता जो दो स्थानों से चुनाव लड़ रहा था, दोनों ही स्थानों से चुनाव हार गया।

जैसे तैसे चुनाव माहौल समाप्त हुआ। श्री करणीराम जी व श्री रामदेव जी चुनाव का परिणाम निकलते ही फिर अपने क्षेत्र में लग गये, लोगों में अब जाने आने लगे और काश्तकार-जागीरदार संघर्ष अपनी चरम सीमा को पहुंच गया। जगह-जगह भिड़ंत होने लगी। समय बलिदान मांग रहा था। 13 मई 1952 को दोनों नेताओं ने अपने प्राणों की बलि देकर इस बलिदान यज्ञ की पूर्णाहुति दी। गोलियां दागी गई थी इनकी दो की छाती पर और लगी जागीर प्रथा के पेट पर। 13 मई 1952 के बाद उदयपुरवाटी क्षेत्र के किसी जागीरदार ने अपने जागीरी अधिकारों का उपभोग नहीं किया।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-20

करणीराम के अनन्य सहयोगी

रामेश्वरसिंह[3] ने लेख किया है.... उस समय उदयपुरवाटी क्षेत्र में श्री करणीराम के नेतृत्व में कर्मठ कार्यकर्ताओं का दल बन गया। कई लोग आगे आये जिनमें लादूराम जाखल, सूरजमल, शंकर छाबसरी, चेतराम भोड़की, चुन्नीलाल, गंगाराम पोसाना, मंगलराम, रघुनाथपुरा, सूरजाराम धमोरा, भोगूराम छापोली, ज्ञानाराम सराय, हुकमाराम हनुमानाराम टीटनवाड़, भागसिंह सोंथली, हनुमानराम गोधूराम चोकड़ी, मुखराम गुढ़ा इनमें प्रमुख हैं।

गीलों की ढाणी के श्री राम देव और श्री झाबर सिंह की भी इस जागृति में बड़ी भूमिका थी। दोनों पुराने उत्साही कार्यकर्ता और साथ ही निडर भी थे। जहां कहीं किसान-जागीरदार झगड़ा होता वे जा पहुंचते थे। श्री करणी राम को इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने का श्रेय भी रामदेव सिंह जी को था और उन्होंने पूरी हिम्मत और हौसला इन चुनावों के दौरान प्रदर्शित किया था।

उदयपुरवाटी क्षेत्र में गिल परिवार ही जागृति का केंद्र था और उस क्षेत्र में राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना का उद्गम स्थान गीलों की ढाणी था। इस ग्राम में करणीराम की शादी हो जाने की वजह से उदयपुरवाटी करणीराम जी की एक तरह से कर्मस्थली बन गई। उदयपुरवाटी झुंझुनू जिले के किसानों व जागीरदारों के संघर्ष का कुरुक्षेत्र था जहां करणीराम जी एवं रामदेव सिंह जी ने कृष्ण और अर्जुन की भूमिका निभाई थी। राम - लक्ष्मण की यह अदभुत जोड़ी थी और खेल समाप्त कर साथ ही अनंत में विलीन हो गए। जागीरदारों से लोहा लेना था। सारा भार इस क्षेत्र में रामदेव सिंह जी पर था। उत्पीड़ित एवं निर्बल काश्तकारों के दिल में सिंहनाद कर रामदेवजी ने संघर्ष के लिए मजबूत संगठन तैयार किया। कहने का तातपर्य यह है कि जागृति की लौ इस क्षेत्र में रामदेव सिंह जी ने ही जलायी थी। जिस समय उन्हें एक समर्पित नेता की आवश्यकता थी, श्री करणीराम जी रंग-मंच पर उपस्थित हो गए। उम्र में करणीराम से वे करीब 9 वर्ष छोटे थे पर छाया की तरह करणीराम के साथ रहते थे। करणीराम जी के हनुमान के रूप में

वे जागीरदारों के लिए बड़े भयावह थे और उनके नाम से जागीरदार सशंकित होते थे। जागीरदार उन्हें अपना शत्रु नंबर एक समझते थे।

श्री रामदेवसिंह ने सरदार हरलालसिंह की प्रेरणा से अध्यापन कार्य छोड़ कर राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने भी विद्यार्थी भवन झुंझुनू को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। वे सरदारजी के विश्वासपात्र थे। सरदारजी ने उन्हें जयपुर राज्य प्रजामंडल के अध्यक्ष बनने पर अपना निजी सचिव बनाया।

श्री रामदेवसिंह बहुत हिम्मत वाले और दृढ़निश्चयी व्यक्ति थे। खतरों से तनिक नहीं घबराते थे। वे आसारण संगठन कर्ता थे। शांत बैठे लोगों के मन में अत्याचार का मुकाबला करने की हिम्मत भर देते थे। उदयपुरवाटी इलाका कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी थे और जिला बोर्ड के सदस्य थे। अत्याचार से संघर्ष करने के लिए वीरता का ज्वालामुखी उनके दिल में बिराजमान था।

1952 में उदयपुरवाटी से करणीराम को कांग्रेस टिकट पर खड़ा करने सम्बन्धी निर्णय में उनका ही सबसे बड़ा हाथ था। क्षेत्र के लिए जो समर्पित हो, ऐसा व्यक्ति उन्हें करणीराम मिला। एक ओर विवेक की सूझबूझ थी,दूसरी ओर अदम्य उत्साह। यह मिलन इलाके के लिए वरदान स्वरूप था।

जागीरदार करणीराम जी व रामदेवसिंह जी दोनों को ही अपने लिए कांटा मानते थे। वे उस अवसर की बराबर तलाश में थे जब इनको रास्ते से हटाया जा सके। कईबार प्रयत्न हुये पर रामदेव जी ईश्वर की कृपा से बराबर बचते रहे। उदयपुरवाटी के चुनाव का संचालन पूर्णतः उन्ही के कन्धों पर था। इस दायित्व को उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया था।

वे गलत बात का जोरदार विरोध करते थे तथा झुकना नहीं जानते थे। करणीराम जी को वे अपना पथ प्रदर्शक मानते हुये बराबर उनके साथ चलते रहे और छाया की तरह अन्तिम समय में भी साथ रहे।

करणीराम और रामदेवसिंह की शहादत

शहीद करणीराम मील और रामदेवसिंह गिल

अप्रेल 1952 में करणीराम और रामदेवसिंह की जोड़ी ने उदयपुरवाटी इलाके में एक सभा बुलाई जिसमें 20 -25 हजार आदमी इकट्ठे हुए. पूरा उदयपुरवाटी खुदबुदा रहा था, किसान मरने मारने को तैयार हो चुके थे और भौमिया भी अपना 'वाटर-लू' लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लगानबंदी आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था. ऐसे में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल मंगवाकर उदयपुरवाटी भेजा जिसका कैम्प चंवरा गाँव में लगा था. 12 मई 1952 की रात को करणीराम ने सुना कि चंवरा गाँव में सारे जागीरदार इकट्ठे होई गए है और जबरन फसल उठाने की योजना है. वहां भारी संख्या में किसान इकट्ठे हो गए हैं. इस पर करणीराम और कुछ साथी झुंझुनू लौटने का कार्यक्रम रद्द कर ऊँट गाडी से रवाना होकर कालका ढाणी में रुके और 13 मई को सुबह चंवरा गाँव पहुँच गए. वहां रामदेवसिंह गिल और अन्य कार्यकर्ता भी आ गए. करणीराम ने किसानों से शांति बनाये रखने की अपील की. वे पक्के गांधीवादी और अहिंसा के पुजारी थे. उसके बाद तेज धूप के कारण सभी किसान व कार्यकर्ता अलग-अलग ढाणीयों में आराम करने चले गए. रामदेव सिंह व करणीराम दोनों सेडू गूजर की ढाणी में आकर रुके और लेट गए. करीब 3 बजे दोपहर भौमियों के भेजे हुए कातिल रामेश्वर दरोगा व गोवर्धनसिंह ने बन्दूक से फायर कर सोते हुए करणीराम व रामदेव सिंह को गोलियों से भून दिया और फरार हो गए. उस दोपहर संभावित आसन्न जानलेवा हमले की चेतावनी उन्हें कुछ शुभचिंतकों ने दी थी और सुझाया था कि वे यहाँ से तत्काल अन्यत्र चले जाएँ परन्तु उन जाबाजों ने कायरों की भांति भागकर जान बचाने की अपेक्षा वीरों की भांति मृत्यु को सहर्ष वरण करना उचित समझा. वे हंसते-हंसते शहीद हो गए. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 45)

हत्या का समाचार सुनकर कुछ ही देर में हजारों की संख्या में जनसमूह इकठ्ठा हो गया. लोगों में भारी रोष व क्रोध फ़ैल गया. इतने में जयपुर से सरदार हरलाल सिंह, कुम्भाराम आर्य व पुलिस महानिरीक्षक पहुँच गए. उन्होंने उत्तेजित जन समूह से शांति बनाये रखने की अपील की. लोग दोनों शहीदों की लाश लेकर विद्यार्थी भवन झुंझुनू पहुँच गए और 14 मई 1952 को वहीँ उनका अंतिम संस्कार किया. हर वर्ष इन शहीदों के निर्वाण दिवस पर गाँवों में मेले लगते हैं. इन दोनों शहीदों की मूर्तियाँ विद्यार्थी भवन झुंझुनू एवं जिलाधीश कार्यालय के सामने पार्क में स्थापित हैं जो इन दोनों शहीदों की अमर कीर्ति का बखान कर रही हैं. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 46)

पिक्चर गैलरी

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Further Reading

References


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