Bhuda Ram Kulhari
Budha Ram Kulhari was a freedom fighters and hero of Shekhawati farmers movement. He was born in village Sangasi in Nawalgarh tahsil , district Jhunjhunu, Rajasthan. His brother Chimana Ram Kulhari was also a freedom fighter.
जीवन परिचय
चिमनाराम सांगासी और भूदाराम सांगासी दोनों सगे भाई थे. वे आर्थिक रूप से संपन्न थे . वे ठाकुरों के चौधरी होने के साथ ब्याज का धंधा भी करते थे. भूदाराम की अपेक्षा जन आन्दोलन में चिमनाराम अधिक सक्रीय थे. चिमनाराम ने सन 1904 में विधि पूर्वक रामगढ़ के महात्मा कालूराम आश्रम में यज्ञोपवित धारण किया था. सन 1913 में चिमना राम ने अपने ठाकुर नारायण सिंह को पांच हजार रुपये कर्ज दिया था. बदले में ठाकुर ने पांच गाँव की जमीन रेहन रखी थी. आगे चल कर ठाकुर ने अपनी अन्य भूमि भी रेहन रख दी. जब किसान आन्दोलन प्रारंभ हुआ तो चिमना राम अग्रिम पंक्ति में थे. ठाकुरों में हिम्मत नहीं थी कि वे चिमना राम को रोकें. सन 1921 में गांधीजी का भिवानी आगमन हुआ था. भिवानी जाने वाले जत्थों में दोनों भाई सम्मिलित थे. [1]
चिमनारामका जन्म सांगासी में चौधरी आशाराम के घर हुआ. जब शेखावाटी में आर्य समाज की लहर आई तब आप पक्के आर्य समाजी बन गए. शेखावाटी के जाटों में जाग्रति के आप स्तम्भ रहे हैं. आप ने 1935 तक की हर गतिविधि में भाग लिया था तथा जयपुर सरकार को दिए जाने वाले हर मेमोरेंडम में बढचढ कर हिस्सा लिया था. कठिन परिस्थितियों में पन्ने सिंह देवरोड़ और सरदार हरलाल सिंह सांगासी जाकर चौधरी चिमना राम से तथा उनके भाई भूदा राम से सलाह और सहायता लेते थे. वे जहाँ उचित और दृढ सलाह देते वहां धन भी प्रदान करते थे. [2]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....चौधरी चिमनाराम जी सांगासी - [पृ.370]:वीर यौधेय जब सिकंदर से प्रताड़ित हुए तो उनका समूह है चिन्न-भिन्न हो गया कुछ। कुछ जांगल देश में, कुछ हरियाणा में और कुछ नहरावाटी में आबाद हो गए। यौधेयोन की एक शाखा कुल्हारी के नाम से प्रसिद्ध हुई और यही नहरा वाटी में आबाद हुई।
इन्हीं का एक सरदार सांगासी में आबाद हुआ। उसके वंश में आगे चलकर चौधरी आसाराम जी के तीन लड़के हुये – 1. श्री भूधाराम, 2. चिमनाराम, और 3 खुमानाराम जी। तीनों ही अपने अपने नाम के अनुरूप थे। भूधर (पहाड़) की जैसी निश्चलता चौधरी भूधाराम जी में थी और चमन (बगीचे) की तरह प्रफुल्ल रहने की आदत चौधरी चिमना रामजी में थी।
वे सांवले रंग के आदमी थे और कुछ रोगी भी रहते थे किंतु हर समय प्रसन्न और हंसते रहते रहना उनका स्वभाव था।
जबसे शेखावाटी में आर्य समाज की लहरा आई
[पृ.371]: वे पक्के आर्य समाजी बन गए। आर्य ढंग से वे अपना जीवन बिताने लगे। मंडावा आर्य समाज की उन्नति में पूरी दिलचस्पी उन्होंने ली। शेखावाटी में जो जाट जागृति आरंभ हुई उसके जन्मदाता में आप प्रमुख थे और मरते दम तक कौम के लिए काम करते रहे।
उनके अंदर एक खास बात यह थी कि वह काम करने वाले प्रत्येक आदमी को परखते थे और जो उन की कसौटी पर ठीक उतर जाता था उसकी मदद करते थे। कोई लोभ लालच उन्हें डिगा नहीं सकता था। जयसिंहपुरा गोलीकांड के बाद जब ठाकुर ईश्वर सिंह के वकील ने शेखावाटी के जाट नेताओं को गोरीर बुलाकर ₹10000 तक देने को कहा तो चौधरी चिमनाराम जी ठाकुर ईश्वर सिंह की मूर्खता पर बहुत हंसे और कहा कि क्या जाट कोई गाजर मूली होता है जिस को मारकर उसकी कीमत चुकादी जाए।
सन 1926 से 1935 तक सांगासी शेखावाटी की गतिविधियों का पावर हाउस रहा है। एक कठिन परिस्थिति में कुंवरपन्ने सिंह और सरदार हरलाल सिंह जी तक को सांगासी जाकर चौधरी चिमना रामजी से सलाह और सहायता लेनी पड़ती थी। वे जहां उचित और दृढ़ सलाह देते थे वहाँ रुपये पैसे एसआर भी मदद करते थे।
सन 1933 से पहले ठाकुर देशराज जी ने 3 नारे बुलंद किए थे
- 1 ऊंचे इरादे बनाओ
- 2 सामाजिक कुप्रथाओं को नष्ट करो
- 3 वेशभूषा में परिवर्तन करो
चौधरी चिमना रामजी से अधिक इस मामले में कौन अग्रगामी हो सकता है कि वे सीकर यज्ञ में अपनी धर्मपत्नी (बुढिया) को घागरा पहनाकर नहीं अपितु सलवार पहनाकर
[पृ.372]: कर ले गए और उनके जीवन की नहीं अपितु शेखावटी के जाट महिलाओं के जीवन की प्रथम घटना थी। ऐसे थे वह सामाजिक क्रांतिकारी। उन्हें ठोस काम में रुचि थी। हुल्लड़बाजी नहीं। उन के 3 पुत्र थे जिनमें कुवर विद्याधर सिंह जी एडवोकेट से हर एक जाट परिचित हैं।
सांगासी में बैठक वर्ष 1921
भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे - शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में आप भी प्रमुख व्यक्ति थे. [4]
राजेन्द्र कसवा[5]लिखते हैं कि सन् 1921 में शेखावाटी से भिवानी गया जत्था जब लौटा तो वह नई ऊर्जा से भरा था. गांधीजी से मिलने और अन्य संघर्षशील जनता को देखने के बाद, किसान नेताओं में स्वाभाविक उत्साह बढ़ा . सन् 1921 में चिमना राम ने सांगासी गाँव में अपने घर अगुआ किसानों की एक बैठक बुलाई. इस प्रथम बैठक में चिमनाराम और भूदाराम दोनों भईयों के अतिरिक्त हरलाल सिंह, गोविन्दराम, रामसिंह कंवरपुरा, लादूराम किसारी, लालाराम पूनिया आदि सम्मिलित हुए. पन्ने सिंह देवरोड़ और चौधरी घासीराम इस बैठक में नहीं पहुँच सके थे लेकिन आन्दोलन करने के लिए सबका समर्थन और सहयोग था. इस बैठक में निम्न निनाय लिए गए:
- बेटे-बेटियों को सामान रूप से शिक्षा दिलाना
- रूढ़ियों, पाखंडों, जादू-टोना, अंध विश्वासों का परित्याग करना और मूर्तिपूजा को बंद करना
- मृत्युभोज पर रोक लगाना
- शराब, मांस और तम्बाकू का परित्याग करना
- पर्दा-पर्था को समाप्त करना
- बाल-विवाह एवं दहेज़ बंद करना
- फिजूल खर्च एवं धन प्रदर्शन पर रोक लगाना
इस बैठक के बाद भूदाराम में सामाजिक जागरण का एक भूत स्वार हो गया था. वे घूम-घूम कर आर्य समाज का प्रचार करने लगे. अप्रकट रूप से ठिकानेदारों के विरुद्ध किसानों को लामबंद भी करने लगे. विद्याधर कुल्हरी ने अपने इस बाबा भूदाराम के लिए लिखा है कि, 'वह नंगे सर रहता था. हाथ में लोहे का भाला होता. लालाराम पूनिया अंगरक्षक के रूप में साथ रहता था. [6]
1925 से 1932 ई. तक सांगासी शेखावाटी की गतिविधियों का पावर हाऊस था लेकिन 1932 से हनुमानपुरा तथा गौरीर भी शेखावाटी के किसानों की आशा के केंद्र बन गए. [7]
बगड़ में सभा 1922
गाँवों में प्रचार करने के पश्चात 1922 में भूदाराम, रामसिंह, गोविन्दराम आदि ने बगड़ में एक सार्वजनिक सभा करने की योजना बनाई. गाँवों में इसका प्रचार होने लगा. ठाकुरों के कान खड़े हो गए. शांति भंग होने के नाम पर ठाकुरों ने इनको गिरफ्तार करवा दिया और सभा टल गयी. पुलिस ने नाजिम झुंझुनू के समक्ष पेश किया. गोविन्दराम ने जवाब दिया - 'हम अपनी जाति में सुधार के लिए प्रचार कर रहे हैं. हमें यह हक है. हम सरकार के विरुद्ध कुछ नहीं कह रहे हैं.' नाजिम इस जवाब से प्रभावित हुआ और उसने सबको रिहा कर दिया. अब तो किसान नेताओं का हौसला बढ़ गया. वे पुन: बगड़ में ही सभा करने के लिए जुट गए. जागीरदारों ने बगड़ कसबे में आतंक और भय फैला दिया. ठाकुरों ने हुक्म फ़रमाया, 'सभा के लिए स्थान देना तो अपराध होगा ही, जो व्यक्ति सभा में भाग लेगा, उस पर जुर्माना किया जायेगा.'आम जन भयभीत हो गया. कोई भी सभा के लिए स्थान देने को तैयार नहीं हुआ. आखिर , बगड़ का पठान अमीर खां आगे आया. उसने अपने गढ़ में सार्वजनिक सभा करने की अनुमति दे दी. गढ़ में एक बड़ा हाल था. इसमें पांचसौ से अधिक व्यक्ति बैठ सकते थे. आसपास के गाँवों के प्रमुख किसान बगड़ पहुंचे. भूदाराम के साहस के कारण उन्हें राजा की पदवी दी गयी. समाज को संगठित होने और सामंती जुल्मों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ने का आव्हान किया गया. प्रकट में भविष में भी होने वाली सभाओं को समाज सुधार की सभाएं कहने का निश्चय किया. अंग्रेज अधिकारीयों को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी. [8]
जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925
सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूराम व सेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[9]
सन्दर्भ
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 70-71
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.80-81
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.370-372
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 70
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 95
- ↑ विद्याधर कुल्हरी:मेरा जीवन संघर्ष, पृ.27
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.155
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 96-97
- ↑ डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
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