Bhajal Lal Bijarnia
Master Bhajal Lal Bijarnia (born:1900-) was a Social worker, Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. He was born in year 1900 at village Panchota in Nawa tahsil of district Nagaur in Rajasthan in the family of Chaudhari Hira Singh.
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....मास्टर भजनलालजी - [पृ.96]: मास्टर भजनलाल बिजारणिया का जन्म सन् 1900 ई. में रियासत जोधपुर में सांभर के पास पांचोता गांव में हुआ। आपके पिता का नाम चौधरी हीरासिंह था। आपके माता-पिता करीब 37 वर्ष हुए अजमेर आ गए थे।
आपकी शिक्षा अजमेर में हुई और DAV हाई स्कूल से आपने मैट्रिक पास किया। आरंभ में आपने राष्ट्रीय महाविद्यालय अजमेर में अध्यापक का कार्य किया। बाद में आपने कोर्ट ऑफ वार्डस में नौकरी कर ली। इस समय सन् 1946 में आप इस महकमें में ऑडिटर के पद पर नियुक्त हैं।
[पृ.97]: सन् 1939-40 ई. के अकाल के समय आप ऑफिसर इंचार्ज फैमिली कैंप रहे और अपने चार्ज के अकाल पीड़ितों को काफी सहायता पहुंचाई। युद्धकाल में कंट्रोल जारी होने पर आप ब्यावर शहर में प्राइस कंट्रोल इंस्पेक्टर नियुक्त किए गए। बाद में आबकारी इंस्पेक्टर बना दिए गए। इस समय आप महकमा कोर्ट ऑफ वार्डस में अपने स्थाई पद पर कार्य कर रहे हैं।
आपने अपने स्वयं उपार्जित धन का आदर्श नगर अजमेर में एक सुंदर बंगला बनाया है। जहां पर आप निवास करते हैं।
ईश्वर की दया से आप के चार पुत्र तीन पुत्रियां हैं। बड़ा लड़का गवर्नमेंट हाई स्कूल अजमेर में दसवीं कक्षा में पढ़ता है। आपकी बड़ी पुत्री का विवाह कुंवर रामपालसिंह शास्त्री साहित्यरत्न, प्रभाकर, काव्यतीर्थ से हुआ है जो इस समय जाट कॉलेज मुजफ्फरनगर में हिंदी व संस्कृत के प्रोफेसर हैं। उससे छोटी पुत्री ने हिंदी मिडिल पास कर लिया है और इस समय सन् 1946 में अंग्रेजी की आठवीं कक्षा प्राप्त कर रही हैं। आपके बड़े भाई चौधरी रामलाल हैं जिनके 3 पुत्र व दो पुत्रियां हैं। इनका बड़ा लड़का जाट कॉलेज मुजफ्फरनगर में 11 वीं कक्षा में पढ़ रहा है। आपके एक बहन है जो चौधरी शेरसिंह सुपरिंटेंडेंट जाट बोर्डिंग हाउस मुजफ्फरनगर से ब्याही गई है।
चौधरी साहब पक्के आर्य समाजी हैं परंतु आपको अपनी जाति से अत्यंत प्रेम है। आप लाठी चलाने व तैरने में बड़े निपुण हैं। आपने कई डूबते हुए व्यक्तियों की जाने
[पृ.98]: बचाई हैं। जिसके लिए आपको रॉयल ह्यूमन सोसाइटी लंदन से प्रशंसा पत्र प्रदान किया गया है। सन् 1943 में विजयनगर बाढ़ के समय बाढ़ पीड़ितों को बचाने में सहायता पहुंचाने में आपने बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया। अजमेर में सांप्रदायिक दंगों के अवसर पर भी आपने अपनी जान को जोखिम में डालकर कई लोगों की जान बचाई।
आपका जाति प्रेम अकथनीय है। इस समय अजमेर मेरवाड़ा में जो तनिक विद्या प्रचार नजर आता है वैसा वह आपकी प्रेरणा और प्रोत्साहन का फल है। जो कुछ जागृति भी हुई है वह आप द्वारा समय पर जाट महासभा के जलसे करने का नतीजा है। आपने 1925 ई. में जाट महासभा के पुष्कर महोत्सव में प्रमुख भाग लिया था। इसके बाद सन् 1932 में ठाकुर देशराज के सहयोग से राजस्थान जाट सभा का जलसा सराधना में कराया। फिर सन् 1935 में पुष्कर में जाट महासभा का जलसा बड़े समारोह पूर्वक कराया है। आप अजमेर मेरवाड़ा जाट विद्यार्थी सभा के प्रेसिडेंट भी रह चुके हैं। इस समय आप जाट सभा के सलाहकार हैं।
आप मास्टर साहब के नाम से मशहूर हैं। भारत भर के जाट आपसे परिचित हैं क्योंकि आप जाट जाति के पुराने सेवकों में से हैं। अतिथि सत्कार के लिए कौम भर में मशहूर है। हंसमुख चेहरा, उत्साहवर्धक वाणी और स्पष्टवादिता आप के विशेष गुण हैं। राजस्थान के जाट आपकी सेवाओं के लिए सदैव कृतज्ञ रहेंगे।
जीवन परिचय
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....रियासती भारत के जाट जन सेवक पुस्तक में शामिल शेखावाटी के वृतांत मास्टर फूल सिंह सोलंकी ने लिखे हैं। सीकर के कार्यकर्ताओं के जीवन परिचय मास्टर कन्हैया लाल महला ने; खंडेलावाटी के बारे में ठाकुर देवासिंह बोचल्या और कुँवर चन्दन सिंह बीजारनिया ने, बीकानेर के जीवन चरित्र चौधरी हरीश चंद्र नैन और चौधरी कुंभाराम आर्य; जोधपुर के जीवन परिचय मूल चंद सिहाग और मास्टर रघुवीर सिंह ने, अजमेर मेरवाड़ा के परिचय सुआलाल सेल ने, अलवर के जीवन परिचय ठाकुर देशराज और नानकराम ठेकेदार; भरतपुर के परिचय हरीश चंद्र नैन ने लिखे हैं।
राजस्थान की जाट जागृति में योगदान
ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।
यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।
जाट महासभा का पुष्कर जलसा 1925
सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूराम व सेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें चिमनाराम सांगसी, भूदाराम सांगसी, सरदार हरलाल सिंह, चौधरी घासीराम, पृथ्वीसिंह गोठडा, पन्नेसिंह बाटड़, हरीसिंह पलथाना, गोरुसिंह, ईश्वरसिंह, चौधरी गोविन्दराम, पन्ने सिंह देवरोड़, रामसिंह बख्तावरपुरा, चेतराम भामरवासी व भूदाराम सांगसी, मोती राम कोटड़ी आदि प्रमुख थे. ये लोग एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण से उन्हें भान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से शेखावाटी के किसान दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[4]
सीकर में जागीरी दमन
ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।
उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।
उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन
[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।
अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।
तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।
और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।
उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब
[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।
इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।
ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।
लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।
गैलरी
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Jat Jan Sewak,p.96
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Jat Jan Sewak,p.97
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Jat Jan Sewak,p.98
सन्दर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.96-98
- ↑ ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.2-3
- ↑ ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, 1949, p.1
- ↑ डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230
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