Chimana Ram Kulhari

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Chimana Ram Kulhari was a reformer, a freedom fighters and hero of Shekhawati farmers movement. He was born in village Sangasi in Nawalgarh tahsil , district Jhunjhunu, Rajasthan. His brother Budha Ram Kulhari was also a freedom fighter.

Pushkar adhiveshan 1925

Pushkar adhiveshan 1925 organized by All India Jat Mahasabha was presided over by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. Sir Chhotu Ram, Madan Mohan Malviya, Chhajju Ram etc. farmer leaders had also attended. This function was organized with the initiative of Master Bhajan Lal Bijarnia of Ajmer - Merwara. The farmers from all parts of Shekhawati had come namely, Chaudhary Govind Ram, Kunwar Panne Singh Deorod, Ram Singh Bakhtawarpura, Chetram Bhadarwasi, Bhuda Ram Sangasi, and Moti Ram Kotri. 24-year young boy Har Lal Singh also attended it. The Shekhawati farmers took two oaths in Pushkar namely, 1. They would work for the development of the society through elimination of social evils and spreading of education. 2. ‘Do or Die’ in the matters of exploitation of farmers by the Jagirdars.

जीवन परिचय

चिमनाराम सांगासी और भूदाराम सांगासी दोनों सगे भाई थे. वे आर्थिक रूप से संपन्न थे . वे ठाकुरों के चौधरी होने के साथ ब्याज का धंधा भी करते थे. भूदाराम की अपेक्षा जन आन्दोलन में चिमनाराम अधिक सक्रीय थे. चिमनाराम ने सन 1904 में विधि पूर्वक रामगढ़ के महात्मा कालूराम आश्रम में यज्ञोपवित धारण किया था. सन 1913 में चिमना राम ने अपने ठाकुर नारायण सिंह को पांच हजार रुपये कर्ज दिया था. बदले में ठाकुर ने पांच गाँव की जमीन रेहन रखी थी. आगे चल कर ठाकुर ने अपनी अन्य भूमि भी रेहन रख दी. जब किसान आन्दोलन प्रारंभ हुआ तो चिमना राम अग्रिम पंक्ति में थे. ठाकुरों में हिम्मत नहीं थी कि वे चिमना राम को रोकें. सन 1921 में गांधीजी का भिवानी आगमन हुआ था. भिवानी जाने वाले जत्थों में दोनों भाई सम्मिलित थे. [1]

चिमनारामका जन्म सांगासी में चौधरी आशाराम के घर हुआ. जब शेखावाटी में आर्य समाज की लहर आई तब आप पक्के आर्य समाजी बन गए. शेखावाटी के जाटों में जाग्रति के आप स्तम्भ रहे हैं. आप ने 1935 तक की हर गतिविधि में भाग लिया था तथा जयपुर सरकार को दिए जाने वाले हर मेमोरेंडम में बढचढ कर हिस्सा लिया था. कठिन परिस्थितियों में पन्ने सिंह देवरोड़ और सरदार हरलाल सिंह सांगासी जाकर चौधरी चिमना राम से तथा उनके भाई भूदा राम से सलाह और सहायता लेते थे. वे जहाँ उचित और दृढ सलाह देते वहां धन भी प्रदान करते थे. [2]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....चौधरी चिमनाराम जी सांगासी - [पृ.370]:वीर यौधेय जब सिकंदर से प्रताड़ित हुए तो उनका समूह है चिन्न-भिन्न हो गया कुछ। कुछ जांगल देश में, कुछ हरियाणा में और कुछ नहरावाटी में आबाद हो गए। यौधेयोन की एक शाखा कुल्हारी के नाम से प्रसिद्ध हुई और यही नहरा वाटी में आबाद हुई।

इन्हीं का एक सरदार सांगासी में आबाद हुआ। उसके वंश में आगे चलकर चौधरी आसाराम जी के तीन लड़के हुये – 1. श्री भूधाराम, 2. चिमनाराम, और 3 खुमानाराम जी। तीनों ही अपने अपने नाम के अनुरूप थे। भूधर (पहाड़) की जैसी निश्चलता चौधरी भूधाराम जी में थी और चमन (बगीचे) की तरह प्रफुल्ल रहने की आदत चौधरी चिमना रामजी में थी।

वे सांवले रंग के आदमी थे और कुछ रोगी भी रहते थे किंतु हर समय प्रसन्न और हंसते रहते रहना उनका स्वभाव था।

जबसे शेखावाटी में आर्य समाज की लहरा आई


[पृ.371]: वे पक्के आर्य समाजी बन गए। आर्य ढंग से वे अपना जीवन बिताने लगे। मंडावा आर्य समाज की उन्नति में पूरी दिलचस्पी उन्होंने ली। शेखावाटी में जो जाट जागृति आरंभ हुई उसके जन्मदाता में आप प्रमुख थे और मरते दम तक कौम के लिए काम करते रहे।

उनके अंदर एक खास बात यह थी कि वह काम करने वाले प्रत्येक आदमी को परखते थे और जो उन की कसौटी पर ठीक उतर जाता था उसकी मदद करते थे। कोई लोभ लालच उन्हें डिगा नहीं सकता था। जयसिंहपुरा गोलीकांड के बाद जब ठाकुर ईश्वर सिंह के वकील ने शेखावाटी के जाट नेताओं को गोरीर बुलाकर ₹10000 तक देने को कहा तो चौधरी चिमनाराम जी ठाकुर ईश्वर सिंह की मूर्खता पर बहुत हंसे और कहा कि क्या जाट कोई गाजर मूली होता है जिस को मारकर उसकी कीमत चुकादी जाए।

सन 1926 से 1935 तक सांगासी शेखावाटी की गतिविधियों का पावर हाउस रहा है। एक कठिन परिस्थिति में कुंवरपन्ने सिंह और सरदार हरलाल सिंह जी तक को सांगासी जाकर चौधरी चिमना रामजी से सलाह और सहायता लेनी पड़ती थी। वे जहां उचित और दृढ़ सलाह देते थे वहाँ रुपये पैसे एसआर भी मदद करते थे।

सन 1933 से पहले ठाकुर देशराज जी ने 3 नारे बुलंद किए थे

1 ऊंचे इरादे बनाओ
2 सामाजिक कुप्रथाओं को नष्ट करो
3 वेशभूषा में परिवर्तन करो

चौधरी चिमना रामजी से अधिक इस मामले में कौन अग्रगामी हो सकता है कि वे सीकर यज्ञ में अपनी धर्मपत्नी (बुढिया) को घागरा पहनाकर नहीं अपितु सलवार पहनाकर


[पृ.372]: कर ले गए और उनके जीवन की नहीं अपितु शेखावटी के जाट महिलाओं के जीवन की प्रथम घटना थी। ऐसे थे वह सामाजिक क्रांतिकारी। उन्हें ठोस काम में रुचि थी। हुल्लड़बाजी नहीं। उन के 3 पुत्र थे जिनमें कुवर विद्याधर सिंह जी एडवोकेट से हर एक जाट परिचित हैं।

सांगासी में बैठक वर्ष 1921

भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे - शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में आप भी प्रमुख व्यक्ति थे. [4]

राजेन्द्र कसवा[5]लिखते हैं कि सन् 1921 में शेखावाटी से भिवानी गया जत्था जब लौटा तो वह नई ऊर्जा से भरा था. गांधीजी से मिलने और अन्य संघर्षशील जनता को देखने के बाद, किसान नेताओं में स्वाभाविक उत्साह बढ़ा . सन् 1921 में चिमना राम ने सांगासी गाँव में अपने घर अगुआ किसानों की एक बैठक बुलाई. इस प्रथम बैठक में चिमनाराम और भूदाराम दोनों भईयों के अतिरिक्त हरलाल सिंह, गोविन्दराम, रामसिंह कंवरपुरा, लादूराम किसारी, लालाराम पूनिया आदि सम्मिलित हुए. पन्ने सिंह देवरोड़ और चौधरी घासीराम इस बैठक में नहीं पहुँच सके थे लेकिन आन्दोलन करने के लिए सबका समर्थन और सहयोग था. इस बैठक में निम्न निनाय लिए गए:

  • बेटे-बेटियों को सामान रूप से शिक्षा दिलाना
  • रूढ़ियों, पाखंडों, जादू-टोना, अंध विश्वासों का परित्याग करना और मूर्तिपूजा को बंद करना
  • मृत्युभोज पर रोक लगाना
  • शराब, मांस और तम्बाकू का परित्याग करना
  • पर्दा-पर्था को समाप्त करना
  • बाल-विवाह एवं दहेज़ बंद करना
  • फिजूल खर्च एवं धन प्रदर्शन पर रोक लगाना

इस बैठक के बाद भूदाराम में सामाजिक जागरण का एक भूत स्वार हो गया था. वे घूम-घूम कर आर्य समाज का प्रचार करने लगे. अप्रकट रूप से ठिकानेदारों के विरुद्ध किसानों को लामबंद भी करने लगे. विद्याधर कुल्हरी ने अपने इस बाबा भूदाराम के लिए लिखा है कि, 'वह नंगे सर रहता था. हाथ में लोहे का भाला होता. लालाराम पूनिया अंगरक्षक के रूप में साथ रहता था. [6]

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[7]

1925 से 1932 ई. तक सांगासी शेखावाटी की गतिविधियों का पावर हाऊस था लेकिन 1932 से हनुमानपुरा तथा गौरीर भी शेखावाटी के किसानों की आशा के केंद्र बन गए. [8]

राजस्थान की जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।

यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।

सन् 1925 में राजस्थान की रियासतों में जहां भी जैसा बन पड़ा लोगों ने शिक्षा का काम आरंभ कर दिया किन्तु महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुये सन् 1931 के मई महीने से जब दिल्ली महोत्सव के बाद ठाकुर देशराज अजमेर में ‘राजस्थान संदेश’ के संपादक होकर आए। आपने राजस्थान प्रादेशिक जाट क्षत्रिय की नींव दिल्ली महोत्सव में ही डाल दी थी। दिल्ली के जाट महोत्सव में राजस्थान के विभिन्न


[पृ 2]: भागों से बहुत सज्जन आए थे। यह बात थी सन 1930 अंतिम दिनों में ठाकुर देशराज ‘जाट वीर’ आगरा सह संपादक बन चुके थे। वे बराबर 4-5 साल से राजस्थान की राजपूत रियासतों के जाटों की दुर्दशा के समाचार पढ़ते रहते थे। ‘जाट-वीर’ में आते ही इस ओर उन्होने विशेष दिलचस्पी ली और जब दिल्ली महोत्सव की तारीख तय हो गई तो उन्होने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और दूसरी रियासतों के कार्य कर्ताओं को दिल्ली पहुँचने का निमंत्रण दिया। दिल्ली जयपुर से चौधरी लादूराम किसारी, राम सिंह बख्तावरपुरा, कुँवर पन्ने सिंह देवरोड़, लादूराम गोरधनपुरा, मूलचंद नागौर वाले पहुंचे। कुछ सज्जन बीकानेर के भी थे। राजस्थान सभा की नींव डाली गई और उसी समय शेखावाटी में अपना अधिवेशन करने का निमंत्रण दिया गया। यह घटना मार्च 1931 की है।

इसके एक-डेढ़ महीने बाद ही आर्य समाज मड़वार का वार्षिक अधिवेशन था। लाला देवीबक्ष सराफ मंडावा के एक प्रतिष्ठित वैश्य थे। शेखावाटी में यही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनहोने कानूनी तरीके से ठिकानाशाही का सामना करने की हिम्मत की थी। उन्होने ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह दोनों को आर्य समाज के जलसे में आमंत्रित किया। इस जलसे में जाट और जाटनियाँ भरी संख्या में शामिल हुये। यहाँ हरलाल सिंह, गोविंद राम, चिमना राम आदि से नया परिचय इन दोनों नेताओं का हुआ।

सन्दर्भ

  1. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 70-71
  2. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.80-81
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.370-372
  4. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 70
  5. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 95
  6. विद्याधर कुल्हरी:मेरा जीवन संघर्ष, पृ.27
  7. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
  8. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.155
  9. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1-2

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