Moti Ram Dhayal

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Moti Ram Dhayal (born:1897) (मोतीराम धायल कोटड़ी) from village Kotri Dhayalan was a leading Freedom Fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. [1]

Pushkar adhiveshan 1925

Pushkar adhiveshan 1925 organized by All India Jat Mahasabha was presided over by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. Sir Chhotu Ram, Madan Mohan Malviya, Chhajju Ram etc. farmer leaders had also attended. This function was organized with the initiative of Master Bhajan Lal Bijarnia of Ajmer - Merwara. The farmers from all parts of Shekhawati had come namely, Chaudhary Govind Ram, Kunwar Panne Singh Deorod, Ram Singh Bakhtawarpura, Chetram Bhadarwasi, Bhuda Ram Sangasi, and Moti Ram Kotri. 24-year young boy Har Lal Singh also attended it. The Shekhawati farmers took two oaths in Pushkar namely, 1. They would work for the development of the society through elimination of social evils and spreading of education. 2. ‘Do or Die’ in the matters of exploitation of farmers by the Jagirdars.

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी मोतीराम जी कोटड़ी - [पृ.458]: खंडेलावाटी में जो ध्रुव तारे के समान अपने इरादों पर मजबूत रहने वाला और सुप्रकाशित सितारा कोई है तो वह चौधरी मोतीराम जी। आप इस बात को महसूस करते हैं कि हम जाट हैं और जयपुर राज्य में शदियों से कुचलते जाते रहे हैं। हमारा सामाजिक दर्जा गिराया गया है। आर्थिक शोषण किया गया है और राजनीतिक दृष्टि से शासन से कतई तौर पर अलग रखने के पूरे प्रयत्न किए गए हैं। इसलिए आप प्रथम जाट फिर किसान और तब जयपुरी है। दुनिया हवा के साथ बहती है किंतु आप कभी भी बहे नहीं। मैंने उन्हें जब से भी देखा है तब से उन्हें मैंने सही साथी के रूप में पाया है। आपका स्वभाव हंसमुख, दिल साफ, रंग गोरा और बदन छरहरा है। सबसे अधिक बात है आप में डिसिप्लिन


[पृ.459]: (अनुशासन) की। आप अपनी संस्था के नेताओं की ओर सभा में तय की हुई बातों को हृदय से स्वीकार करते हैं। मजबूती से उनका पालन करते हैं।

खंडेलावाटी में जो आपका आदर मान है इसीलिए नहीं कि आप संपन्न परिवार से हैं बल्कि इसलिए भी है कि आप पर लोग विश्वास करते हैं और आप कभी भी धोखा नहीं दे सकते।

आपका जन्म संवत 1954 में (1897 ई.) कोटड़ी गांव के एक प्रतिष्ठित चौधरी धन्नाराम जी धायल गोत्र के जाट सरदार के यहाँ हुआ था। बचपन से ही आपको चतुर और सयाना समझा जाता था।

सन् 1925 के पुष्कर जाट महोत्सव से आपको भी प्रकाश मिला और वहां से लौटते ही आपने अपनी कौम को जगाने के प्रयत्नों में लगा दिया। जब खंडेलावाटी में जाट पंचायत कायम हुई तो आप उसके जिम्मेदार अधिकारी बने और देवा सिंह जी के बाद वर्षों तक उसके मंत्री रहे।

उन दिनों जाटों के उकसाने के हर एक प्रयत्न को दबाने की कोशिश की जाती थी। सन् 1929 की बात है कि आप जाट पंचायत का मासिक अधिवेशन करके लौट रहे थे तब खंडेला ठिकाने को पुलिस के मुंशी ने कहा कि आप पंचायत का काम करोगे तो जेल भिजवा दूंगा, आज तो छोड़ देता हूं। आपने दृढ़ता से दोनों हाथ आगे की ओर बढ़ाकर कहा- लीजिए मुझे जेल भिजवाइए। मैं किसी भी डर से पंचायत का काम नहीं छोड़ सकता।

आपने अपने गांव में एक स्कूल स्थापित करा रखा है और उसको चलाने के लिए आप पूरी रकम सहायता में देते


[पृ.460]: रहे हैं। सन् 1935 के शेखावाटी आंदोलन को चलाने के लिए आपने पूरी मदद की, खंडेलावाटी की तमाम हलचलों में तो आप प्रमुख रहते ही हैं।

सन् 1945 में जयपुर में जो अखिल भारतीय जाट महासभा का शानदार अधिवेशन हुआ उसके लिए आपने रात दिन एक करके धन संग्रह किया और लोगों में प्रचार किया। उस उत्सव को सफल बनाने में आपका पूरा हाथ।

इसके बाद जब शेखावाटी, सीकर, खंडेलावाटी में पुनः किसान सभा को जन्म दिया गया तो आपने रींगस में एक किसान कॉन्फ्रेंस कराई। जिसके सभापति राधाबल्लभ जी हुए।

आपके दो पुत्र हैं जो विद्या लाभ कर रहे हैं और अपने पिता से कौमी सेवा का सबक लेते रहते हैं।

लेफ्टिनेंट सूबेदार सेडूरामजी के समधी

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....लेफ्टिनेंट सूबेदार सेडूरामजी -[पृ.481]: निजामत नीम का थाना में झाड़ली एक गांव है। लेफ्टिनेंट सूबेदार सेड़ूरामजी यही के वाशिंदे है। गोत आपका कुड़ी है। आप की अवस्था इस समय 60 साल के आसपास है। 7 आपके लड़के हैं जिनमें बलदेव राम जी फौज में जमादार के पद पर काम कर रहे हैं। गोविंदराम, इंदल, अर्जुन वगैरह घर का धंधा करते हैं। आप की एक पुत्री रावलीदेवी है जिसका विवाह कोटडी के प्रसिद्ध रईस चौधरी मोतीराम जी धायल के पुत्र रूपसिंह जी के साथ हुआ है।

सूबेदार सेडू रामजी जातिभक्त आदमी हैं। आप फिजूल खर्चियों को पसंद नहीं करते। कौम की कुरीतियों को दूर करने की इच्छा रखते हैं।

मोतीराम धायल का जीवन परिचय

मोतीराम धायल का जन्म गाँव कोटड़ी धायलान में सीकर जिले में हुआ. मोती राम ने पंडित और मौलवियों से हिंदी-उर्दू की शिक्षा ग्रहण की. स्कूली शिक्षा की उस समय कोई व्यवस्था नहीं थी. आप में अध्ययन की प्रवृति कूट-कूट कर भरी थी और ढूंढ़ -ढूंढ़ कर पुस्तक एकत्रित करते और उनको पढ़ते. इसी कारण उनका स्वभाव तर्कशील और हाजिर जवाब बन गया था. शिक्षा के प्रति वे समर्पित होगये. स्कूलें खुलवाने का उन्होंने अभियान छेड़ दिया. भरतपुर से ठाकुर देशराज और रतन सिंह के आने के बाद मोती राम ने उनसे कंधे से कन्धा मिला कर पूरे शेखावाटी आँचल में जन जागृति का शंखनाद फूंका. आम किसानों को वे अपनी बात मजाक-मजाक में कह देते और उनको अत्याचारों के खिलाफ संगठित होने का आव्हान करते. ठाकुरों को वे खरी खोटी सुनाते और कहते उनके दिन अब जाने वाले हैं. उनके पास आगरा से अनेक अखबार आते थे जिनको वे पढ़ते थे और बाद में किसानों के समूह में पढ़ कर सुनाते. वे कोटड़ी धायलान के चौधरी थे पर मन से किसानों के साथ थे. यह बात राव राजा जनता था पर उनको कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी. [4]


अपने गाँव कोटड़ी में स्कूल खुलवाने के लिए वे राव राजा के पीछे पड़ गए. राव रजा ने आनाकानी की तो उन्होंने चेतावनी देदी की आज तो स्कूल की स्वीकृति देनी ही पड़ेगी तभी वे यहाँ से उठेंगे. राव राजा ने स्वीकृति इस शर्त पर दी की भवन गाँव की और से बनेगा. मोती राम ने ग्रामीणों से मिलकर स्कूल बनाया. इसके लिए धन एकत्रित किया. खुद ने सबसे अधिक आर्थिक सहयोग किया. दूर-दूर के बच्चे कोटड़ी में पढ़ने के लिए आने लगे. मोती राम के प्रयास से ही आज इस गाँव में आस-पास के गाँवों से अधिक पढ़े लिखे और सेवाओं में हैं. महिलायें भी बहुत संख्या में सर्विस में हैं. मोती राम अपने गाँव की एकता के लिए वचनबद्ध थे. विभिन्न जातियों में उन्होंने सामंजस्य बनाया. मोती राम का नाम सीकर के प्रमुख आन्दोलनकारी नेताओं में लिया जाता है. पूरे शेखावाटी में जहाँ भी जुलुस या सभा आदि होती तो वे आगे रहते. [5]

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[6]

किसान सभा का सदस्य चुना 1946

किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन 30 जून 1946 को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. आपको जयपुर स्टेट की किसान सभा का सदस्य चुना गया. (राजेन्द्र कसवा, p. 203)

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.458-460
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.458-460
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.481
  4. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 82-83
  5. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 84
  6. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21

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