Bharatpur
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Bharatpur (भरतपुर) is a city in Rajasthan state of India. It was founded by Jat Maharaja Suraj Mal in 1733. Located in Mewat region, Bharatpur was once an impregnable, well-fortified city, and the capital of a kingdom ruled by Jat Maharajas. The trio of Bharatpur, Deeg and Dholpur has played an important part not only in the Jat history of Rajasthan but also the history of India.
Founder
Bharatpur was founded by Maharaja Surajmal (Sinsinwar) in 1733 after Bharat, brother of Rama.
Variants
Jat Gotras
गोत्र सूची मानवेन्द्र सिंह द्वारा लिखी गई है। निम्नलिखित गोत्र भरतपुर जिले के गाँवो में निवास करते है।
- Ameriya (आमेरिया)
- Bijania (बीजनिया)
- Bagadia (बगड़िया)
- Basre (बाँसरे/बसन्द्रे)
- Bhatre (भातरे)
- Bhagor (भगौर)
- Bisati (बिसाती)
- Bikarwar (बिकरवार)
- Chahar (चाहर-चहल)
- Cheema (चीमा)
- Chhonkar (छोंकर)
- Dagur (डागुर/डागर)
- Dasania (डसानिया)
- Deshwal (देशवार)
- Farasia (फरासिया)
- Gajra (गजरा/गजराज)
- Gheyar Maderna (घैयार/गहवार/मदेरणा)
- Garasiya (गढ़ासिया)
- Godara (गोदारा)
- Haritwal (हरितवार)
- Hansawat (हंसावत)
- Indoliya (इन्दोलिया)
- Jakhar (जाखड़)
- Jangwar (जंगवार)
- Jakhodiya (जाखोदिया तोमर)
- Khirwar (खिरवार)
- Khainwar (खेनवार)
- Kuntal Khutela Tomar (कुन्तल/खुटेला/तंवर/तोमर)
- Kulhari (कुलहरि)
- Mahure (माहुरे)
- Naharwar (नाहरवार)
- Naswaria (नसवारिया)
- Pahalwar (पहलवार)
- Punia (पूनिया)
- Raikwar (रावत)
- Rana (बम्बरोलिया राणा)
- Rotwar (रोतवार)
- Rojwar (रोजवार)
- Saimare (सैमारे/शेरवाल)
- Sejwar (सेजवार)
- Sinsinwar (सिनसिनवार)
- Sikarwar (सिकरवार)
- Sogarwar (सोगरवार)
- Solanki (सोलंकी/सौरोत)
- Somarwar (सोमरवार)
- Tangar (तांगड़)
- Tanwar (तंवर/तोमर/कुन्तल/खुटेल)
- Takhar (ताखड़)
- Ular (उलार)
भरतपुर एक जाट बाहुल्य जिला है। मुगलकालीन दस्तावेज में यह क्षेत्र ब्रज जटवाड़ा (जाट मुल्क) कहलाता था। जिले के भौगोलिक भूभाग की बात करे तो यह क्षेत्र कांठेड़, सिनसिनवारी, सोगरवाली, खुटेलपट्टी, देशवारी उप नामो से भी जाना जाता है।
भरतपुर के मुख्य जाट गोत्र
लेखक:- मानवेन्द्र सिंह
- सिनसिनवार गोत्र के जाटों के भरतपुर जिले में 270 से भी अधिक ग्राम (गाँव) है यह गांव 22सी और 24बीसी की पंचायतों में विभक्त है। इन गांवों को सिनसिनवारी या सिनसिनवारो की सरदारी के नाम से भी जाना जाता है।
- सोगरवार जाटों के गांवों के समूह को सोगरवारीनाम से जानते हैं इनके गांवों की संख्या 50 से अधिक है।भरतपुर शहर के निकट अधिकांश गांव सोगरवार जाटों के है।सोगरवार गोत्र को सोगढ़िया,सोगरिया नाम से भी जाना जाता है।
- कुन्तल जाटों को कुन्तल तोमर , तंवर ,खुटेला तोमर नाम से भी जाना जाता है भरतपुर जिले में इनके 31से ज्यादा गाँव है इनके अधिकांश गांव आबादी के लिहाज से बड़े है।इनका क्षेत्र खुटेलपट्टी कहलाता है।खुटेलपट्टी का अधिकांश क्षेत्र मथुरा जिले में आता है। जिसमे 400 से ज्यादा गाँव है।
- डागुर जाटों के भरतपुर में 18 गांव है। डागुर गोत्र को डागर, डेन्ग्ररे नाम से भी जाना जाता है।इनके गांव एक साथ नही होकर बिखरे हुए हैं।
- सोलंकी जाटों को सौरोत भी बोला जाता है।इनके 12 गांव भरतपुर जिले में अलग अलग जगह बसे हुए हैं|
- इन्दोलिया जाटों के भरतपुर जिले में 12 गाँव है।
- मदेरणा गोत्र जिसका मूल गोत्र गैयार गहरवार ग्रेवाल है इस गोत्र के उच्चैन ओर रूपबास तहसील में 12 गांव है ।
- सिकरवार गोत्र के 11 गाँव भरतपुर जिले में है।
- सैमारे गोत्र को सेमारा, शेरवाल नाम से भी जाना जाता है
- बिसायती गौत्र का मूल गोत्र बैंस है। इस गोत्र के 10 गाँव है।
- भगौर गोत्र के 8 गाँव भरतपुर जिले में है। कुंवर नटवर सिंह इसी गोत्र के थे
- बिक़रवार गोत्र के भरतपुर ज़िले में 8 गाँव है।
- भातरे गोत्र के भरतपुर जिले में 7 गाँव है।
- माहुरे गोत्र का मूल गोत्र माचरा है इनको माहूरे माथुर नाम से भी जाना जाता है। माहुरे गोत्र के भरतपुर जिले में 6 गाँव है।
- नसवारिया गोत्र के भरतपुर जिले में 5 गाँव है।
- नाहरवार गोत्र के भरतपुर जिले में 5 गाँव है।
- गदासिया गोत्र जिसको प्राचीन समय में मुसावत बोलते थे। भरतपुर जिले में इनके 5 गांव है।
- सेजवार गोत्र के भरतपुर जिले में 4 गाँव है।
- रैकवार गोत्र के भरतपुर जिले में 4 गाँव है।
- लिवारिया गोत्र के 4 गांव है
- हंसावत गोत्र के भरतपुर जिले में 4 गाँव है।
- खेनवार गोत्र के 4 गांव है।
- छोंकर गोत्र के भरतपुर जिले में 4 गाँव है।
- हतिनज़रिया गोत्र के भरतपुर जिले में 3 गाँव है।
- तांगड़ गोत्र के 2 गांव है।
- फरासिया गोत्र के 2 गांव भरतपुर जिले में है।
- बम्बरौलीया राणा गोत्र के दो गांव है
- पुनिया गोत्र के 2 गांव है।
- जुरेलगोत्र नगला सुजान में निवास करता है।
- ठेनुवा गोत्र नगला तेजसिंह में निवास करता है।
- धोन गोत्र का नगला कोकिला गाँव में निवास करता है।
इनके अतिरिक्त भरतपुर जिले में झारोली गाँव में निठारवार, मांझी में हरितवाल,बिजानिया, नगला गोपी में घोसल्या, सलेमपुर में बगड़िया, बरवाड़ा और नगला पछन्दरे में ताखड़, कुलहरि नगला में बडियासर , पहरसर में झाझर,गहला, गोत्र के जाट निवास करते हैं।
पंजाब से आये जाटों में
- चीमा] भरतपुर शहर व कापरहेड़ा,
- सोही गोत्र टिकैता
- चहल गोत्र अघापुर,
- गिल गोत्र नगला पंजाबी और नारोली
भरतपुर से गये जाटो में
Singroha (सिंगडोया सिंगरोहा) Singar (सिंगड सीगड़, सुगड) Singhrowa (सिंगरोवा)
ये गोत्र राजा सिग्गा के समय से अस्तित्व में आये थे उनके शासन के अंत के बाद भरतपुर से हरयाणा मध्य प्रदेश स्थांतरित हुये आज एक भी परिवार भरतपुर में नही है .
ऊपर बताए गई गोत्र अनुसार गाँवो की संख्या में वही गांव शामिल किए गए है जिनमे गोत्र की आबादी जाट आबादी का 80% हो इसलिए यह गोत्र बताए गई संख्या से अधिक गाँवो में निवास करते है। क्योंकि कुछ गांवों में एक से अधिक गोत्र निवास करती है उनको सूची में स्थान नही दिया गया
Tahsils in Bharatpur district
Geography
Located 50 km west of the city of Agra (the city of the Taj Mahal), it is also the administrative headquarters of Bharatpur District. Bharatpur is located at 27.22|N|77.48|E|[1]. It has an average elevation of 183 metres.
Rivers in Bharatpur – Banganga, Gambhiri, Ruparel, Parvati, Kakund
Demographics
Bharatpur District Population 2011 In 2011, Bharatpur had population of 2,548,462 of which male and female were 1,355,726 and 1,192,736 respectively. In 2001 census, Bharatpur had a population of 2,101,142 of which males were 1,133,425 and remaining 967,717 were females.
Bharatpur District Population Growth Rate There was change of 21.29 percent in the population compared to population as per 2001. In the previous census of India 2001, Bharatpur District recorded increase of 26.39 percent to its population compared to 1991.
Bharatpur District Density 2011 The initial provisional data released by census India 2011, shows that density of Bharatpur district for 2011 is 503 people per sq. km. In 2001, Bharatpur district density was at 415 people per sq. km. Bharatpur district administers 5,066 square kilometers of areas.
Bharatpur Literacy Rate 2011 Average literacy rate of Bharatpur in 2011 were 70.11 compared to 63.58 of 2001. If things are looked out at gender wise, male and female literacy were 84.10 and 54.24 respectively. For 2001 census, same figures stood at 80.54 and 43.56 in Bharatpur District. Total literate in Bharatpur District were 1,480,869 of which male and female were 943,910 and 536,959 respectively. In 2001, Bharatpur District had 1,063,582 in its district.
Bharatpur Sex Ratio 2011 With regards to Sex Ratio in Bharatpur, it stood at 880 per 1000 male compared to 2001 census figure of 854. The average national sex ratio in India is 940 as per latest reports of Census 2011 Directorate. In 2011 census, child sex ratio is 869 girls per 1000 boys compared to figure of 879 girls per 1000 boys of 2001 census data.
Bharatpur Child Population 2011 In census enumeration, data regarding child under 0-6 age were also collected for all districts including Bharatpur. There were total 436,165 children under age of 0-6 against 428,181 of 2001 census. Of total 436,165 male and female were 233,323 and 202,842 respectively. Child Sex Ratio as per census 2011 was 869 compared to 879 of census 2001. In 2011, Children under 0-6 formed 17.11 percent of Bharatpur District compared to 20.38 percent of 2001. There was net change of -3.27 percent in this compared to previous census of India.
Bharatpur Religion-wise Data 2011 What is the population of Muslim in Bharatpur ? What is Hindu's Population in Bharatpur district are questions that are being asked to us. As of now, Government of India has not declared population of Hindu, Muslim, Sikhs, Christian, Buddhists and Jains in district of Bharatpur, Rajasthan. As soon as Govt. of India release full religions data of Bharatpur district, we will update and release it for our viewers. Description 2011 Actual Population 2,548,462 Male 1,355,726 Female 1,192,736 Population Growth 21.29% Area Sq. Km 5,066 Density/km2 503 Proportion to Rajasthan Population 3.72% Sex Ratio (Per 1000) 880 Child Sex Ratio (0-6 Age) 869 Average Literacy 70.11 Male Literacy 84.10 Female Literacy 54.24 Total Child Population (0-6 Age) 436,165 Male Population (0-6 Age) 233,323 Female Population (0-6 Age) 202,842 Literates 1,480,869 Male Literates 943,910 Female Literates 536,959 Child Proportion (0-6 Age) 17.11% Boys Proportion (0-6 Age) 17.21% Girls Proportion (0-6 Age) 17.01%
Villages in Bharatpur tahsil
Achalpura, Adda, Addi, Aghapur, Ajan, Anipur, Araji Salga, Athaira, Bachhamandi, Bagdhari, Baghai, Bahnera, Bajhera, Banji, Bansi Birahna, Bansi Kalan, Bansi Khurd, Barakhur, Barso ( Rural ), Basua, Bhandor, Bharangarpur, Bharatpur, (M) Bilauthi, Birawai, Bisda, Chak Bahnera, Chak Baltikari, Chak Bhandor, Chak Choba, Chak Darapur No. 1, Chak Darapur No. 2, Chak Daulatpur, Chak Ekta, Chak Hathkauli, Chak Kazi, Chak Kurka, Chak Mahroli Mafi, Chak Nagla Phatiyar, Chak Nagla Teeketa, Chak Nashwariya, Chak Ramnagar, Chak Shyorawali, Chak Shyosingh, Chak Unchagaon, Chak Undra, Charliganj, Chichana, Chiksana, Chitokhari, Chokipura, Darapur, Dayopura, Dhadholi, Dhanagarh, Dhanota, Dharmpura, Dhaur, Dhormui, Ekta, Gaonri, Garhi Zalimsingh, Ghana Bhandor, Ghasaula, Ghehari, Ghusyari, Girdharpur, Gundwa, Habeebpur, Hathaini, Hindola, Ikaran, Jagheena ( Rural ), Jatoli Ghana ( Rural ), Jatoli Rathman, Jharoli, Jheelara ( Rural ), Jiroli, Kakalpura, Kalyanpur, Kanjoli, Kaprola, Kaproli, Karoth, Kasoda, Khadera, Kharera, Khemra, Khokhar, Kolipura Bharatpur, Koomha, Ludhabai, Madarpur, Madhoni, Madoli, Mahchauli, Mahganwa, Mahua, Maigoojar, Malah, Malaheda, Maloni, Mehtoli, Moondota, Moroli Kalan, Moroli Khurd, Murwara, Nagla Abhairam, Nagla Bandh, Nagla Barela, Nagla Bartai, Nagla Churaman, Nagla Dharm Singh, Nagla Dulheram, Nagla Gopal ( Rural ), Nagla Gulabi, Nagla Harchand, Nagla Hathaini, Nagla Hatheepura, Nagla Jatta, Nagla Kalyanpur, Nagla Karansingh, Nagla Kasota, Nagla Kesariya, Nagla Lodha, Nagla Nathu Ram, Nagla Parsuram, Nagla Pema, Nagla Phatiyar, Nagla Raoji, Nagla Seekham, Nagla Taroda, Nagla Teeketa, Naswara, Nauganwa, Noh (Bachhamdi) Noorpur, Par, Peepla, Peernagar, Phulwara, Pilua, Piryani, Ramnagar, Ronija, Rundh Ikaran, Sahnawali, Salempur khurd, Samaspur Khurd, Sanhooli, Senthra, Shreenagar ( Rural ), Shyorana, Sinpini, Sooti, Sukhawali, Sunari, Taharki, Tanda, Tatamar, Taragma, Tehra Lodha, Thei, Tontpur ( Rural ), Tuhiya, Unchagaon, Undra, Vamanpura,
Genealogy of Bharatpur Rulers
Genealogy of Bharatpur family from Bhuri Singh to Maharaja Suraj Mal of Bharatpur:
- Thakur Bhuri Singh of Sinsini
- -Thakur Ruria Singh of Sinsini
- --Thakur Khan Chand of Sinsini
- ---A. Thakur Bhagwant Singh
- ----Raja Ram Sinsinwar of Sinsini
- -----1.Kunwar Jorawar Singh of Sinsini
- -----2.'Dung Naresh' Fateh Singh of Sinsini
- ---B.Thakur Braj Raj Singh
- ----1.Rao Churaman Singh of Thun
- ----- Raja Mukham Singh of Thun
- ----2. Thakur Bhav Singh of Deeg
- ----- Raja Badan Singh of Deeg
- ------a. Maharaja Suraj Mal of Bharatpur
- ------b. Raja Pratap Singh of Weir
Source - Jat Kshatriya Culture
The Jat Uprising of 1669
- Read in details in The Jat Uprising of 1669
Paradoxical though it might appear and strange though it might seem, The Jat Uprising of 1669 under Gokula occurred at a time when the Mughal government was by no means weak or imbecile. [2] In fact this period of Aurangzeb’s reign witnessed the climax of the Mughal Empire.[3], [4] during the early medieval period frequent breakdown of law and order often induced the Jats to adopt a refractory course. [5] But, with the establishment of the Mughal rule, law and order was effectively established and we do not come across any major Jat revolt during the century and a half proceeding the reign of Aurangzeb. [6] Though in 1638 Murshid Quli Khan, the Mughal faujdar of Mathura was killed during an operation against Jats. During the reign of Aurangzeb, the faujdar of Mathura in 1669 was none other than Abdun Nabi who incurred the wrath of people.[7]
History
The town was named Bharatpur after Bharata, a brother of Lord Rama, whose other brother Laxman is the family deity of the erstwhile royal family of Bharatpur. The name 'Laxman' was engraved on the arms, seals and other emblems of the state.
Rustam, a Jat chieftain belonging to the Sogariya clan founded Chau Burj. With the decline of the Mughal empire in the early 17th century, the Jats established a state in the Mewat region south of Delhi, with its capital at Deeg. Leaders like Gokula, Raja Ram, Churaman and Badan Singh brought the Jats together and moulded them into a force to be reckoned with.
Maharaja Suraj Mal was the state's greatest ruler; he made the state a formidable force in the region. Suraj Mal took over the site of Chau Burj from Khemkaran, a son of Rustam, and established it as the capital of his state, founding the city and the fort of Bharatpur. He fortified the city by building a massive wall around it.
During the British Raj, the state covered an area of 5,123 km².; its rulers enjoyed a salute of 17 guns. The state acceded unto the dominion of India in 1947. It was merged with three nearby princely states to form the 'Matsya Union', which in turn was merged with other adjoining territories to create the present-day state of Rajasthan.
In the early 17th century, the peasant folk of Bharatpur in Rajasthan were being terrorised and ill treated by the Mughals. At this point of time Churaman, a powerful Jat village headman rose against this tyranny but was defeated harshly by the Mughals. This did not remain for long, since the Jats once again came together under the leadership of Badan Singh, and controlled a vast expanse of territory. He was recognized by the Mughal emperor and the title of "Raja" (king) was conferred upon him in 1724.
Deeg was the first capital of the Bharatpur state with Badan Singh being proclaimed its ruler in 1722. He was responsible for conceiving and constructing the royal palace on the southern side of the garden, now called Purana Mahal or old palace. Because of its strategic location and proximity to Mathura and Agra, Deeg was vulnerable to repeated attacks by invaders. In 1730, crown prince Surajmal is reported to have erected the strong fortress with towering walls and a deepwater moat with high ramparts about 20 feet wide in the southern portion of the town.
His heir, Raja Surajmal, was the most famous of the Bharatpur rulers, ruling at a time of constant upheaval around him. Raja Surajmal used all his power and wealth to a good cause, and built numerous forts and palaces across his kingdom, one of them being the Lohagarh Fort, which was one of the strongest ever built in Indian history.
He was succeeded to the throne by his son, Jawahar Singh. An incident that is very popular about Jawahar Singh relates to the Pushkar Snan(Bath).
Jawahar Singh travelled to Pushkar,along with his troupes, in Samvat 1828 on Kartika Sudi Purnima. On reaching the site Jawahar Singh saw the beautifully constructed bathing enclosures which were meant soleful for the Rajput kings. He was asked to bathe in the kachha (mud) bank on the other side of the lake, known as gawar ghat. But Jawahar Singh and his mother Maharani Kishori not only decided to bathe in the pukka ghat but also constructed a new one, now popular as the Bharatpur ghat.
Incensed by this act of defiance, the Raja of Jaipur attacked Jawahar Singh in December 1767 but was humbled at the battle of Maonda. Thus a triumphant Jawahar Singh returned to Bharatpur.
Later in the 19th century, Bharatpur was under constant attack, when the British invaded India. The British laid siege to the fort in 1825, but after four months and great losses, they had to retreat. This gave the ruler an upper hand against the British, and Bharatpur became the first state to sign to a treaty of Permanent Equal Friendship with the East India Company. This gave Bharatpur a chance to live in peace throughout the rest of the British period, and they continued to rule till 1947.
Some quotations about Bharatpur
- Bharatpur grew to be the strongest power in the whole of India.[8]
- Moreover, Suraj Mal also possessed, as Shuja did not, at least 4 fairly spacious, best provisioned (both in terms of munition as well as food and fodder) and the then strongest forts, whose strength was such that no power in the whole of the Asian continent was deemed capable of capturing them. [9]
The Siege Of Bharatpur
Ram Sarup Joon[10] writes that ... Lord Lake in an effort to cause disunity, reminded Raja Ranjit Singh of the forgotten enmity with Marathas and his treaty with the British. But Ranjit Singh was a man of his words. He straight-away refused to surrender Holkar and took up the gauntlet thrown by the British Army with the opening of heavy Artillery fire.
On 7th Jan. 1805 Lord Lake explored every possible avenue to penetrate the fort. A large number of British Officers and soldiers were killed in this action, the supply of rations and ammunition ran short and they failed in capturing the fort. They employed 5 inch and 7 inch guns but these did not make much impression on the thick mud walls. After two days, they succeeded in creating a break in the Southern Wall and the fort was charged by four Indian units and 1,500 British troops. The Jats repulsed this attack after inflicting heavy casualties. Colonel Maitland and 400 troops were killed. The British advanced for the third time and attacked the fort under the covering fire of heavy Artillery. The troops bravely crossed the mote and tried to scale the walls of the fort. As they came up the Jats kept killing them till the mote was filled with dead bodies, General Smith and Col Meeker,
History of the Jats, End of Page-172
commanders of the British troops requested Lord Lake to sign a peace treaty with Jats but he did not consider it appropriate in the hope of getting fresh reinforcements from Bombay. The confederacy of Yashwant Rao Holkar, Amir Khan, Nawab of Rohilla and Ranjit Singh decided to teach a lesson to the foreigners.
They came out of the fort and started an open battle inflicting heavy casualties on the enemy. The British launched a fierce attack on 11 Jan 1805 but again they were beaten back leaving behind 250 dead and 700 wounded. Lord Lake still insisted that Bharatpur must be captured, otherwise it would be a disgrace to them. Fresh reinforcements arrived in the meantime from Madras and Bombay and fierce attacks were renewed. When British troops started scaling the walls of the fort, huge boulders were hurled on their heads and when they were in the mote. Inspite of all this some British soldiers succeeded in scaling the walls and a hand to hand fight ensued. Thus after suffering a loss of 1,000 soldiers, the British were forced to withdraw. About 3,000 had been killed and several thousand were injured by this time. The Jats opened artillery fire on the withdrawing enemy.
Lord Lake offered to have a peace treaty. Ranjit Singh was not keen to continue this war and agreed to the terms. The Jat ruler promised not to engage a European officer in his Army. One son of the ruler was to be on the staff of the Viceroy. The siege was lifted.
Reports mention that Jat Gunners in the fort of Deeg did not give up firing till their bodies were pierced like sieves with bayonets.
The third invasion was launched under Colonel Owen. The 73 British Regiment refused to attack. As Indian Regiment attacked most of them were killed by the Jats. The British soldiers were ordered to fall
History of the Jats, End of Page-173
in on parade and were badly humiliated.
All these details are given in "War and Sports of Indian and an Officers Diary" by June Western page 384.
On the occasion of the fourth invasion Raja Ranjit Singh was making a round of the fort with a wooden staff in his hand and encouraging his soldiers to fight on. "Brethern, it is your fort".
Each Jat soldier, would grab two soldiers and jump down from the fort ramparts.
The soldiers requested him to stay in the Command post but he refused remarking that bullets could strike only these for whom they were destined. Sergeant Ship writes that he fired at a Jat soldier six times from a distance of 60 yards but he never bowed his head or took shelter. An enemy soldier succeeded in planting the British flag on the fort wall. The Jats did not kill him but gave him shoe-beating and then threw him down in the mote along with his banner. The British guns became out of order due to excessive firing.
According to Colonel Nicholson in his book 'Native States of India' the policy adopted by Rajas of Bharatpur resulted in great financial loss to the Jats, but it earned name and fame for them. Ranjit Singh was followed by Randhir Singh, Baldev Singh, Balwant Singh, Yashwant Singh, Ram Singh, Srikrishan Singh and Brijendra Singh.
The fort of Bharatpur is the only fort in India which was never physically captured by the British.
Chronology of Bharatpur rulers
Rulers of Bharatpur were from Sinsinwar Jat clan. Chronology of Bharatpur rulers is as under:
- Raja Ram, 1670 – 1688
- Churaman, 1695 – 1721
- Badan Singh, 1724 - 1756
- Maharaja Suraj Mal, 1756 - 1763
- Maharaja Jawahar Singh, 1763 - 1768
- Maharaja Ratan Singh, 1768 - 1769
- Maharaja Kehri Singh, 1769 - 1771
- Maharaja Nawal Singh, 1771 - 1776
- Maharaja Ranjit Singh, 1776 - 1806
- Maharaja Randhir Singh, 1805 - 1823
- Maharaja Baldeo Singh, 1823 - 1825
- Maharaja Balwant Singh, 1825 - 1853
- Maharaja Jaswant Singh, 1853 - 1893
- Maharaja Ram Singh, 1893 - 1900 (Exiled)
- Maharani Girraj Kaur, regent 1900-1918
- Maharaja Kishan Singh, 1918 - 1929 (Exiled)
- Maharaja Brijendra Singh, 1929-1947 (Joined the Indian Union)
Flag of Bharatpur State
Bharatpur was as princely state, was the only political entity ever to have a Chartreuse colored flag. [11]
Salutes
Bharatpur's salute is of 17 guns, equal to that of Jaipur, Jodhpur, Tonk, Bikaner, Bundi, Kota and Karauli. In the case of the last, it was raised from 15 for Maharaja Madan Pal for his services during the mutiny of 1857 but as the rule of personal salutes had not till then come in force it continued for his successors also. Udaipur alone in Rajputana has a salute of 19 guns, most of the other States have 15 guns and some even less. For his able administration and loyalty to the Imperial Government Maharaja Jaswant Singh had his personal salute increased to 19 guns in 1890. [12]
Jat Khaps in Bharatpur district
- Source: Jat Bandhu, April 1991
PIN Codes of villages in Bharatpur district
• Akhaigarh 321614 • Anaha Gate Bharatpur 321001 • Atal Band Mandi 321001 • Bahaj 321208 • Bahtana 321209 • Ballabhgarh 321409 • Band Baretha 321405 • Bansi Paharpur 321403 • Barkhera 321036 • Baroli Bharatpur 321416 • Basan Darwaza 321001 • Bayana Bazariya 321401 • Bayana H O 321401 • Bayana Jain Gali 321401 • Bayana Kutchery 321401 • Bharatpur 321001 • Bharatpur Agency 321001 • Bharatpur City 321001 • Bharatpur H O 321001 • Bhusawar 321406 • Bhusawar Town 321406 • Bilond 321035 • Brahambad 321410 • Bus Stand Kaman 321022 • Bus Stand Kumher 321201 • Bus Stand Nagar 321205 • Chauburja Bharatpur 321001 • Chhonkerwara Kalan 321407 • Collectorate 321001 • Deeg Court 321203 • Deeg H O 321203 • Deeg Laxman Mandir 321203 • Dahra 321034 • Depot 321026 • Dhana Kherli 321427 • Gadoli 321603 • Garhi Bajna 321423 • Ghatri 321412 • Gopalgarh 321211 • Gopalgarh Bharatpur 321001 • Gopinath Mohalla 321022 • Gulpara 321031 • Halena 321601 • Industrial Area Bharatpur 321001 • Isapur Katara 321035 • Itamda 321417 • Jaghina 321021 • Jagjiwanpur 321426 • Jalalpur 321029 • Jeewad 321425 • Jurhera 321023 • Kaithwara 321032 • Kaman 321022 • Kanjoli Lines Bharatpur 321001 • Khan Surajpur 321428 • Khankhera 321430 • Khanwa 321420 • Khareri 321411 • Kherli Gadasia 321028 • Khoh 321206 • Kotwali Bharatpur 321001 • Krishna Colony 321001 • Kumher 321201 • Kumher Gate Bharatpur 321001 • Laxman Mandir Bharatpur 321001 • Ludhawai 321305 • Mahalpur Chura 321424 • Mahila Vidyapeeth 321406 • Mai 321033 • Majajpur 321415 • Marena Bharatpur 321027 • Mathura Darwaza Bharatpur 321001 • Milakpur 321304 • Nadbai 321602 • Nadbai Town 321602 • Nagar Bharatpur 321205 • Narharpur 321418 • Nayagaon Khalsa 321419 • New Mandi Bharatpur 321001 • Nithar 321414 • Pahari 321204 • Pathena 321615 • Penghore 321202 • Pichuna 321301 • Pinghera 321030 • Purani Deeg 321203 • Ranjeet Nagar Bharatpur 321001 • Rareh 321025 • Rudawal 321402 • Rupbas 321404 • Rupbas Town 321404 • Salasar 321506 • Salempur Kalan 321413 • Salempur Khurd 321421 • Samraya 321422 • Sawai 321207 • Sawai Kheda 321207 • Sewar 321303 • Sikri 321024 • Siras 321429 • Thoon 321210 • Uchain 321302 • Wagon Factory Bharatpur 321001 • Weir 321408 • Weir Town 321408 • Adda 321411 • Aghapur 321001 • Ajan 321025 • Ajau 321303 • Anahgatebharatpur Ndtso 321001 • Andhiyari 321302 • Aroda 321411 • Atari 321028 • Baben 321026 • Bachhamdi 321302 • Bachhamdi Noh 321001 • Bagren 321411 • Bajhera Kalan 321408 • Band Baretha So 321405 • Banshi Paharpur So 321403 • Bansi Khurd 321303 • Barakhur 321021 • Bareh Mafi 321301 • Bargha 321301 • Barkheda 321028 • Baroda 321402 • Barso 321001 • Bayana Mdg 321401 • Bazariya Bayana Ndtso 321401 • Behnera 321001 • Bhainsa 321301 • Bhandore 321026 • Bharatpur Agency Ndtso 321001 • Bharatpur City Nd Mdg 321001 • Bhawanpura 321405 • Bhont 321303 • Bidiyari 321401 • Bilothi 321025 • Borai 321026 • Brahmbad So 321410 • Chak Samri 321404 • Chauburja Bharatpurndtso 321001 • Chenkora 321404 • Chichana 321001 • Chiksana 321001 • Collectorate Btp Ndtso 321001 • Dahgaon 321401 • Dahina Gaon 321402 • Damdama 321401 • Dana Khedli 321403 • Daulat Garh 321404 • Dhadhren 321411 • Dhanota 321303 • Dharsoni 321028 • Dhormui 321025 • Dorda 321404 • Dumaria 321405 • Ekta 321302 • Farso 321401 • Forest Lodge 321001 • Gajipur 321411 • Gaomdi 321021 • Ghusiyari 321001 • Gobra 321401 • Gopalgarh Btp Ndtso 321001 • Hatheni 321021 • Hatizar 321028 • Helak 321303 • Hishamada 321408 • Ibrahimpur 321404 • Ikran 321001 • Ind.area Btp Gds Ndso 321001 • Jaghina Dso 321021 • Jahangirpur 321028 • Jain Gali Bayana Ndtso 321401 • Jatmasi 321403 • Jatoli Rathbhan 321025 • Jharoli 321303 • Jotroli 321403 • K.u.m.bharatpur Ndtso 321001 • Kachahri Bayana 321401 • Kakraua 321402 • Kanavar 321401 • Kanjoli Line Btp Dso 321026 • Kapoora Malooka 321411 • Karwari 321411 • Kasoda 321026 • Keir 321411 • Khan Kheda 321411 • Khan Surjapur 321404 • Khareri So 321411 • Khera Thakur 321402 • Kherli Gadasia Dso 321028 • Khohra 321401 • Khunt Kheda 321411 • Kot 321405 • Kotwalibharatpur Ndtso 321001 • Krishna Colony Btp Ndtso 321001 • Kumha 321303 • Kumhergate Btp Ndtso 321001 • Kurka 321301 • Lakhanpur 321408 • Lehchora Kalan 321401 • Ludhawai Gds So 321305 • Madanpur 321411 • Madha Pura 321402 • Madhoni 321026 • Mahaloni 321401 • Mahalpur Choora 321403 • Mahmadpura 321405 • Mahua 321303 • Malah 321001 • Maloni 321404 • Mandoli 321402 • Mathura Gate Btp Ndtso 321001 • Mehrawar 321411 • Mertha 321404 • Milsama 321404 • Moroli Dang 321402 • Moroli Kalan 321025 • Mudhera 321302 • Mudota 321303 • Muhari 321408 • Murwara 321026 • Nagla Nathu Ram 321406 • Nagla Tehriyan 321302 • Nagla Tula 321405 • Nahroli 321401 • Naroli 321410 • Navali 321401 • Nayagaon 321404 • Nekpur 321302 • New Mandi Btp Ndtso 321001 • Nibhera 321402 • Noharda 321404 • Ondelgaddi 321404 • Pali Dang 321405 • Par 321303 • Paraswara 321028 • Paraua 321405 • Phulwara 321021 • Pichuna Dso 321301 • Pingora 321028 • Pipla 321021 • Purabai Kheda 321410 • Rahimgarh 321408 • Ranjeet Nagar Btp Ndtso 321001 • Rareh Dso 321025 • Raroda 321411 • Rasilpur 321402 • Roopbas So 321404 • Roopbas Town Ndtso 321404 • Rudawal So 321402 • Rundh 321404 • Sadpura 321410 • Salabad 321401 • Samogar 321411 • Samri 321405 • Santruk 321025 • Sehna 321302 • Sewar Dso 321303 • Shahpur Dang 321401 • Shekhpur 321028 • Sikandara 321401 • Singhada 321410 • Singhania 321405 • Sirrond 321403 • Sogar 321001 • Soopa 321410 • Suhans 321408 • Sunari 321001 • Takha 321025 • Tarsuma 321405 • Thana Tang 321401 • Tuhiya 321001 • Turtipura 321405 • Uchain Dso 321302 • Umrend 321408 • Uncha Gaom 321303 • Undra 321001 • Veerampura 321302 • Weir So 321408 • Weir Town Ndtso 321408
प्राचीन इतिहास
ठाकुर देशराज[13] ने लिखा है ....[पृ.13]: भरतपुर पवित्र ब्रज-भूमि का एक भाग है। ब्रज में आरंभ में मधु लोगों का राज्य था। सूर्यवंशी राजा शत्रुघ्न ने मधु लोगों के नेता लवण को मारकर अपना राज्य जमाया। सूर्यवंशी राजाओं से पुनः चंद्रवंशी राजाओं ने इस भू-भाग को छीन लिया। भोजकुल के राजा कंस को मारकर वृष्णी कुलीय कृष्ण ने इस भू-भाग को अपने प्रभाव में लिया। द्वारिका ध्वंस और यादवों के प्रभास क्षेत्र महा युद्ध के बाद भगवान कृष्ण के पौत्र व्रज को यह प्रदेश शासन के लिए मिला। तबसे यह भूभाग न्यूनाधिक 17 मार्च 1948 तक इसी वंश के हाथ में रहा। भरतपुर के वर्तमान महाराजा ब्रजेन्द्र सवाई ब्रजेन्द्र सिंह भगवान कृष्ण की 195 वीं पीढ़ी में माने जाते हैं।
भरतपुर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[14] ने लेख किया है ...भरतपुर, राजस्थान, (AS, p.660): प्रसिद्ध भूतपूर्व जाट-रियासत का मुख्य नगर है, जिसकी स्थापना चूणामणि जाट ने 1700 ई. के लगभग की थी। इमादउस-सयादत के लेखक के अनुसार चूरामन (=चूड़ामणि) ने भरतपुर की नींव एक सुदृढ़ गढ़ी के रूप में डाली थी। यह स्थान आगरा से मात्र 48 कोस पर स्थित था। गढ़ी के चारों ओर एक गहरी परिखा थी। धीरे-धीरे चूरामन ने इसको एक मोटी व मज़बूत मिट्टी की दीवार से घेर लिया। गढ़ी के अन्दर ही वह अपना लूट का माल लाकर जमा कर देता था। आसपास के कुछ गाँवों में उसने कुछ चर्मकारों को यहाँ लाकर बसाया और गढ़ी की रक्षा का भार उन्हें सौंप दिया। जब उसके सैनिकों की संख्या लगभग चौदह हज़ार हो गई तो चूरामन एक विश्वस्त सरदार को गढ़ी का अधिकार देकर शक्ति-विस्तार करने के लिए कोटा-बूँदि की ओर चला गया।
भरतपुर की शोभा बढ़ाने तथा राजधानी को सुंदर तथा शानदार महलों से अलंकृत करने का कार्य राजा सूरजमल जाट ने किया, जो भरतपुर का सर्वश्रेष्ठ शासक था। 1803 ई. में [p.661]:लॉर्ड लेक ने भरतपुर के क़िले (लोहगढ़) का घेरा डाला। इस समय भरतपुर तथा परिवर्ती प्रदेश में आगरे तक राजा जवाहर सिंह का राज्य था। क़िले की स्थूल मिट्टी की दीवारों को अंग्रेज सेना तोप के गोलों से नहीं तोड़ पाई। उस समय भारत में भरतपुर ही एक मात्र किला था जिस पर अंग्रेज अधिकार नहीं कर सके थे.[15]
कवि बाँकीदास ने भरतपुर जाट राजा का उदाहरण दिया
कवि बाँकीदास ने जाट राजा का उदाहरण देकर राजपूत राजाओं को जगाया। जब राजस्थान के राजपूत राजाओं ने अंग्रेजों के विरोध में तलवार नहीं उठाई तो जोधपुर के राजकवि बांकीदास से नहीं रहा गया और उन्होंने ऐसे गाया -
- पूरा जोधड़, उदैपुर, जैपुर, पहूँ थारा खूटा परियाणा।
- कायरता से गई आवसी नहीं बाकें आसल किया बखाणा ॥
- बजियाँ भलो भरतपुर वालो, गाजै गरज धरज नभ भौम।
- पैलां सिर साहब रो पडियो, भड उभै नह दीन्हीं भौम ॥
अर्थ है कि “है जोधपुर, उदयपुर और जयपुर के मालिको ! तुम्हारा तो वंश ही खत्म हो गया। कायरता से गई भूमि कभी वापिस नहीं आएगी, बांकीदास ने यह सच्चाई वर्णन की है। भरतपुर वाला जाट तो खूब लड़ा। तोपें गरजीं, जिनकी धूम आकाश और पृथ्वी पर छाई। अंग्रेज का सिर काट डाला, लेकिन खड़े-खड़े अपनी भूमि नहीं दी।”
अंग्रेजों ने स्वयं अपने लेखों में भरतपुर लड़ाई पर जाटों की बहादुरी पर अनेक टिप्पणियाँ लिखीं। जनरल लेक ने वेलेजली (इंग्लैंड) को 7 मार्च 1805 को पत्र लिखा “मैं चाहता हूँ कि भरतपुर का युद्ध बंद कर दिया जाये, इस युद्ध को मामूली समझने में हमने भारी भूल की है।” इस कारण भरतपुर का लोहगढ़ का किला अजयगढ़ कहलाया। उस समय कहावत चली थी लेडी अंग्रेजन रोवें कलकत्ते में क्योंकि अंग्रेज भरतपुर की लड़ाई में मर रहे थे, लेकिन उनके परिवार राजधानी कलकत्ता में रो रहे थे। इतिहास गवाह है कि जाटों ने चार महीने तक अंग्रेजों के आंसुओं का पानी कलकत्ता की हुगली नदी के पानी में मिला दिया था। स्वयं राजस्थान इतिहास के रचयिता कर्नल टाड ने लिखा - अंग्रेज लड़ाई में जाटों को कभी नहीं जीत पाए।
इस प्रकार अंग्रेजों का सूर्य जो भारत में बंगाल से उदय हो चुका था भरतपुर, आगरा व मथुरा में उदय होने के लिए चार महीने इंतजार करता रहा, फिर भी इसकी किरणें पंजाब में 41 साल बाद पहुंच पाईं। भारतवर्ष में केवल जाटों की दो रियासतों भरतपुर व धौलपुर ने कभी भी अंग्रेजों को खिराज (टैक्स) नहीं दिया। यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि भरतपुर में लौहगढ़ का किला भारत में एकमात्र ऐसा गढ़ है जिसे कभी कोई दूसरा कब्जा नहीं कर पाया। इसलिए इसका नाम अजयगढ़ पड़ा। भरतपुर के महाराजा कृष्णसिंह ने भारतवर्ष में भरतपुर शहर में सबसे पहले नगरपालिका की स्थापना की थी। अंग्रेजों ने मद्रास, कलकता व बम्बई में सबसे पहले मुनिस्पल कार्पोरेशन की स्थापना की। इसी जाट राजा कृष्ण सिंह ने भरतपुर में हिन्दी साहित्य सम्मेलन करवाया सन् 1925 में राजा जी ने पुष्कर (राजस्थान) में जाट महासम्मेलन करवाया जहां चौ० छोटूराम जी भी पधारे थे। इन्होंने जनता के लिए ‘भारत वीर’ नाम का पत्र प्रकाशित करवाया था।
'भरतपुर लुट गया’ वाली लोकोक्ति
जगदीश चंद्रिकेश अपनी पुस्तक 'झूठ नहीं बोलता इतिहास' [16] में लिखते हैं कि ‘भरतपुर लुट गया’ वाली लोकोक्ति बहुत समय तक परेशान किए रही कि आखिर यह लोकोक्ति प्रचलन में आई तो आई कैसे ? इसका सूत्र मिला पं. सुंदरलाला की इतिहास पुस्तक ‘भारत में अंगरेजी राज’ पढ़ते समय, जिसमें 'बिटवीन्स द लाइन्स’ पढ़ने वाली लाइने थीं ,
- 'मुझे यह लिखते दुःख है कि खाई इतनी अधिक चौड़ी और गहरी निकली कि उसे पार करने की जितनी कोशिशे की गईं, सब बेकार गईं....हम पर इतनी देर तक जोर से और ठीक निशानों के साथ फसील की तोपों के गोले बरसते रहे कि हमारा बहुत अधिक नुकसान हुआ।’
-ये वे पंक्तियां हैं, जो जनरल लेक ने अपनी विफलता के बारे में गवर्नर जनरल मार्क्विस वेल्जली को लिखी थीं। भरतपुर को हथियाने के लिए अंग्रेजों ने पूरी तैयारी के साथ 21 जनवरी, 1805 को दूसरे हमले में भरतपुर की घेराबंदी कर बारह दिन तक गोलाबारी की, लेकिन पहले हमले की तरह इस बार भी वे भरतपुर का कुछ न बिगाड़ सके। अंततः उन्हें पीछे हटना पड़ा। फिर 20 फरवरी को तीसरा हमला किया गया। वह भी बेकार गया। इस तरह तीन-तीन बार के जबरदस्त हमलों को झेलकर भरतपुर की फसीलों ने अंग्रेजों के घमंड को इस बुरी तरह चूर कर दिया कि अंग्रेजों ने बीस साल तक भरतपुर की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा। फिर भी भरतपुर उनके दिल में काँटे की तरह चुभता रहा, तभी तो इन तीन-तीन हमलों के नौ साल बाद भी लॉर्ड मेटकॉफ को लिखना पड़ा कि,
- ‘...हमारी सैनिक कीर्ति का अधिकतर भाग भरतपुर में दफन हो गया।’
इसके बाद जाट इतिहास और राजा सूरजमल को पढ़ने पर पूरी तस्वीर उभरकर सामने आई कि भरतपुर के अभेद्य दुर्ग और जाटों की दुर्दम्य जुझारू शक्ति उस कालखंड में अपने सर्वोच्च पर थी और इसने अंग्रेजों को जितना आतंकित किया और सताया था उसी का बदला अंग्रेजों ने भरतपुर को बुरी तरह लूटकर लिया। भरतपुर की आबादी को बेदर्दी से मारा-काटा गया। जिनके पास कुछ भी नहीं था उन लोगों के बाल तक उखाड़ लिए। किसी के पास कुछ नहीं छोड़ा, तभी तो भरतपुर का लुटना लोकोक्ति बन गया।
जब जाटों ने अंग्रेजों का सूर्य उदय होने से रोक दिया
एक कहावत है कि ‘अंग्रेजों के राज में उनका सूर्य कभी अस्त नहीं होता था’ यह सच है कि इनके अधीन जमीन पर हमेशा कहीं ना कहीं दिन रहता था। भारत के इतिहास में अंग्रेजों के विरुद्ध केवल प्लासी की लड़ाई का वर्णन किया जाता है जबकि यह लड़ाई पूरी कभी लड़ी ही नहीं गई, बीच में ही लेन-देन शुरू हो गया था। सन् 1857 के गदर का इतिहास तो पूरा ही मंगल पाण्डे, नाना साहिब, टीपू सुलतान, तात्या टोपे तथा रानी लक्ष्मीबाई के इर्द-गिर्द घुमाकर छोड़ दिया गया है, लेकिन जब जाटों का नाम आया और उनकी बहादुरी की बात आई तो इन साम्यवादी और ब्राह्मणवादी लेखकों की कलम की स्याही ही सूख गई। इससे पहले सन् 1805 में भरतपुर के महाराजा रणजीतसिंह (पुत्र महाराजा सूरजमल) की चार महीने तक अंग्रेजों के साथ जो लड़ाई चली वह अपने आप में जाटों की बहादुरी की मिशाल और भारतीय इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय है। भारत में अंग्रेजों का भरतपुर के जाट राजा के साथ समानता के आधार पर सन्धि करना एक ऐतिहासिक गौरवशाली दस्तावेज है जिसे 'Permanent Friendship Treaty on Equality Basis' नाम दिया गया। इस प्रकार की सन्धि अंग्रेजों ने भारतवर्ष में किसी भी राजा से नहीं की। (वास्तव में दूसरों के साथ सन्धि करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी क्योंकि हमारे बहादुर कहे जाने वाले राजाओं ने जाटों को छोड़ अंग्रेजों की बगैर किसी हथियार उठाये गुलामी स्वीकार कर ली थी।) इतिहास गवाह है कि भारत के अन्य किसी भी राजा ने अंग्रेजों के खिलाफ प्लासी युद्ध व मराठों के संघर्ष को छोड़कर अपनी तलवार म्यान से नहीं निकाली और बहादुरी की डींग हाकनेवालों ने नीची गर्दन करके अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार की। पंजाब में जब तक ‘पंजाबकेसरी’ महाराजा रणजीतसिंह जीवित थे (सन् 1839), अंग्रेजों ने कभी पंजाब की तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं की और सन् 1845 में उन्होंने पंजाब में प्रवेश किया, वह भी लड़ाई लड़कर। अंग्रेज इन लड़ाइयों के अन्त में विजयी रहे लेकिन कुछ हिन्दुओं की महान् गद्दारी की वजह से (आगे पढें)। भरतपुर की लड़ाई पर एक दोहा प्रचलित था -
- हुई मसल मशहूर विश्व में, आठ फिरंगी नौ गोरे।
- लड़ें किले की दीवारों पर, खड़े जाट के दो छोरे।
इस लड़ाई का विवरण अनेक पुस्तकों में लिखा मिलता है, जैसे कि ‘भारत में अंग्रेजी राज’ ‘जाटों के जोहर’ और ‘भारतवर्ष में अंग्रेजी राज के 200 वर्ष।’ लेकिन विद्वान् सवाराम सरदेसाई की पुस्तक “अजय भरतपुर” प्रमुख है। विद्वान् आचार्य गोपालप्रसाद ने तो यह पूरा इतिहास पद्यरूप में गाया है जिसका प्रारंभ इस प्रकार है -
- अड़ कुटिल कुलिस-सा प्रबल प्रखर अंग्रेजों की छाती में गढ़,
- सर-गढ़ से बढ़-चढ़ सुदृढ़, यह अजय भरतपुर लोहगढ़।
- यह दुर्ग भरतपुर अजय खड़ा भारत माँ का अभिमान लिए,
- बलिवेदी पर बलिदान लिए, शूरों की सच्ची शान लिए ॥
जब राजस्थान के राजपूत राजाओं ने अंग्रेजों के विरोध में तलवार नहीं उठाई तो जोधपुर के राजकवि बांकीदास से नहीं रहा गया और उन्होंने ऐसे गाया -
- पूरा जोधड़, उदैपुर, जैपुर, पहूँ थारा खूटा परियाणा।
- कायरता से गई आवसी नहीं बाकें आसल किया बखाणा ॥
- बजियाँ भलो भरतपुर वालो, गाजै गरज धरज नभ भौम।
- पैलां सिर साहब रो पडि़यो, भड उभै नह दीन्हीं भौम ॥
अर्थ है कि “है जोधपुर, उदयपुर और जयपुर के मालिको ! तुम्हारा तो वंश ही खत्म हो गया। कायरता से गई भूमि कभी वापिस नहीं आएगी, बांकीदास ने यह सच्चाई वर्णन की है। भरतपुर वाला जाट तो खूब लड़ा। तोपें गरजीं, जिनकी धूम आकाश और पृथ्वी पर छाई। अंग्रेज का सिर काट डाला, लेकिन खड़े-खड़े अपनी भूमि नहीं दी।”
अंग्रेजों ने स्वयं अपने लेखों में भरतपुर लड़ाई पर जाटों की बहादुरी पर अनेक टिप्पणियाँ लिखीं। जनरल लेक ने वेलेजली (इंग्लैंड) को 7 मार्च 1805 को पत्र लिखा
- “मैं चाहता हूँ कि भरतपुर का युद्ध बंद कर दिया जाये, इस युद्ध को मामूली समझने में हमने भारी भूल की है।”
इस कारण भरतपुर का लोहगढ़ का किला अजयगढ़ कहलाया। उस समय कहावत चली थी लेडी अंग्रेजन रोवें कलकत्ते में क्योंकि अंग्रेज भरतपुर की लड़ाई में मर रहे थे, लेकिन उनके परिवार राजधानी कलकत्ता में रो रहे थे। इतिहास गवाह है कि जाटों ने चार महीने तक अंग्रेजों के आंसुओं का पानी कलकत्ता की हुगली नदी के पानी में मिला दिया था। स्वयं राजस्थान इतिहास के रचयिता कर्नल टाड ने लिखा - अंग्रेज लड़ाई में जाटों को कभी नहीं जीत पाए।
इस प्रकार अंग्रेजों का सूर्य जो भारत में बंगाल से उदय हो चुका था भरतपुर, आगरा व मथुरा में उदय होने के लिए चार महीने इंतजार करता रहा, फिर भी इसकी किरणें पंजाब में 41 साल बाद पहुंच पाईं। भारतवर्ष में केवल जाटों की दो रियासतों भरतपुर व धौलपुर ने कभी भी अंग्रेजों को खिराज (टैक्स) नहीं दिया। यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि भरतपुर में लौहगढ़ का किला भारत में एकमात्र ऐसा गढ़ है जिसे कभी कोई दूसरा कब्जा नहीं कर पाया। इसलिए इसका नाम अजयगढ़ पड़ा। भरतपुर के महाराजा कृष्णसिंह ने भारतवर्ष में भरतपुर शहर में सबसे पहले नगरपालिका की स्थापना की थी। अंग्रेजों ने मद्रास, कलकता व बम्बई में सबसे पहले मुनिस्पल कार्पोरेशन की स्थापना की। इसी जाट राजा कृष्ण सिंह ने भरतपुर में हिन्दी साहित्य सम्मेलन करवाया सन् 1925 में राजा जी ने पुष्कर (राजस्थान) में जाट महासम्मेलन करवाया जहां चौ० छोटूराम जी भी पधारे थे। इन्होंने जनता के लिए ‘भारत वीर’ नाम का पत्र प्रकाशित करवाया था। (यह सभी तथ्य डॉ. धर्मचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक ‘जाटों का नया इतिहास’ में इन्हें संजोया है।)
भरतपुर परिचय
भरतपुर पूर्वी राजस्थान राज्य, पश्चिमोत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण ज़िला है। यह आगरा से 55 किमी. पश्चिम में स्थित है। लगभग 1733 ई. में स्थापित यह शहर कभी भूतपूर्व भरतपुर रियासत की राजधानी था। भरतपुर शहर की स्थापना 'ठाकुर चूड़ामन सिंह' (चूणामणि) जाट ने की थी, लेकिन बाद में शासक राजा सूरजमल ने इसे सजाया और सँवारा। यह अपने समय में जाटों का गढ़ हुआ करता था। यहाँ के मंदिर, महल व क़िले जाटों के कला कौशल की गवाही देते हैं। राष्ट्रीय उद्यान के अलावा भी देखने के लिए यहाँ अनेक जगह हैं । इसका नामकरण राम के भाई भरत के नाम पर किया गया है । लक्ष्मण इस राजपरिवार के कुलदेव माने गये हैं। इसके पूर्व यह जगह सोगरिया जाट सरदार रुस्तम के अधिकार में थी, जिसको महाराजा सूरजमल ने जीता और 1733 ई. में भरतपुर नगर की नींव डाली।
पर्यटन: भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर होने के साथ-साथ देश का सबसे प्रसिद्ध पक्षी उद्यान भी है । 29 वर्ग किलोमीटर में फैला यह उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है । विश्व धरोहर सूची में शामिल यह स्थान प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है । यहाँ आने वाले हर पर्यटन के आकर्षण का केंद्र पक्षी उद्यान ही रहता है। सर्दियों के मौसम में यहाँ प्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है। विलक्षण पक्षी देखना चाहते हैं, तो अक्तूबर और अप्रैल में यहाँ आएँ। हरियाणा में 'सुल्तान पक्षी उद्यान' और उत्तराखंड में 'जिम कॉर्बेट नेशलन पार्क' भी पक्षी प्रेमियों के लिए अच्छे ठिकाने हैं। यहाँ 150 विभिन्न प्रजातियों के पक्षी देख सकते हैं। जिनमें भारतीय मैना से लेकर बुलबुल तक शामिल हैं।
शहर के बाहरी इलाक़े में स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान, पर्यटकों के सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र है, जो मुर्ग़ाबियों के विशाल जमावड़ों, सारस पक्षियों के आवासीय घोंसलों, बगुलों, बुज्जा पक्षियों, हेरन, बानकर और जलकौवों के लिए विश्वविख्यात है। यह पक्षी उद्यान भारत का एकमात्र ऐसा स्थान है, जिसे प्रवासी 'साइबेरियाई सारस' की शरणस्थली के रूप में जाना जाता है।
संदर्भ: भारतकोश-भरतपुर
राजस्थान की जाट जागृति में योगदान
ठाकुर देशराज[17] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।
यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।
सूरजमल शताब्दी 1933: सन् 1933 में पौष महीने में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी पड़ती थी। जाट महासभा ने इस पर्व को शान के साथ मनाने का निश्चय किया किन्तु भरतपुर सरकार के अंग्रेज़ दीवान मि. हेनकॉक ने इस उत्सव पर पाबंदी लगादी।
28, 29 दिसंबर 1933 को सराधना में राजस्थान जाट सभा का वार्षिक उत्सव कुँवर बलराम सिंह के सभापतित्व में हो रहा था। यह उत्सव चौधरी रामप्रताप जी पटेल भकरेड़ा के प्रयत्न से सफल हुआ था। इसमें समाज सुधार की अनेकों बातें तय हुई। इनमें मुख्य पहनावे में हेरफेर की, और नुक्ता के कम करने की थी। इसमें जाट महासभा के प्रधान मंत्री ठाकुर झम्मन सिंह ने भरतपुर में सूरजमल शताब्दी पर प्रतिबंध लगाने का संवाद सुनाया।
यहाँ पर भरतपुर में कुछ करने का प्रोग्राम तय हो गया। ठीक तारीख पर कठवारी जिला आगरा में बैठकर तैयारी की गई। दो जत्थे भरतपुर भेजे गए जिनमे पहले जत्थे में चौधरी गोविंदराम हनुमानपुरा थे। दूसरे जत्थे में चौधरी तारा सिंह महोली थे। इन लोगों ने कानून तोड़कर ठाकुर भोला सिंह खूंटेल के सभापतित्व में सूरजमल शताब्दी को मनाया गया। कानून टूटती देखकर राज की ओर से भी उत्सव मनाया गया। उसमें कठवारी के लोगों का सहयोग अत्यंत सराहनीय रहा।
ठाकुर देशराज[18] ने लिखा है ....भरतपुर की जाट प्रगतियाँ
1925: महाराजा श्री कृष्णसिंह पुष्कर जाट महोत्सव के प्रेसिडेंट बने और तबसे भरतपुर में बराबर जाट महासभा की मीटिंग हुई।
1929: भरतपुर में मेकेंजी शाही आतंक की परवाह किए बिना सुरजमाल जयंती मनाई। इसी अपराध में ठाकुर देशराज की दफा 124ए में गिरफ्तारी हुई।
1933: सन् 1933 में पौष महीने में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी पड़ती थी। जाट महासभा ने इस पर्व को शान के साथ मनाने का निश्चय किया किन्तु भरतपुर सरकार के अंग्रेज़ दीवान मि. हेनकॉक ने इस उत्सव पर पाबंदी लगादी। इसके विरोध में बाहर से जत्थे भेजकर ठाकुर भोलासिंह के सभापतित्व में उत्सव मनाया गया।
1937: ठाकुर लक्ष्मण सिंह आजऊ, सूबेदार भोंदू सिंह गिरधरपुरा, राजा गजेंद्र सिंह वैर, और पथेना के कुछ साहसी जाट सरदारों के प्रयत्न से भरतपुर राज जाटसभा की नींव डाली।
1941: पथेना में राजा गजेंद्र सिंह के तत्वावधान में सूरजमल जयंती मनाई गई जिसका आयोजन स्वर्गीय ठाकुर जीवन सिंह ने किया।
1942: बूड़िया (पंजाब) के चीफ राजा रत्न अमोल सिंह के सभापतित्व में भरतपुर राज जाट सभा का शानदार जलसा मनाया गया। इसमें सर छोटू राम, कुँवर हुकम सिंह, चौधरी मुख्तार सिंह, रानी साहिबा मनोश्री चिरंजी बाई, चौधरी रीछपाल सिंह और प्रो गण्डा सिंह पधारे। इसी वर्ष दिसंबर में जाट महा सभा का डेपुटेशन महाराजा बृजेन्द्र सिंह की शुभ वर्ष गांठ पर विवाह की बधाई देने आया जिसमें हिन्दू, सीख और मुस्लिम जाटों के सभी प्रमुख लीडरों ने भाग लिया।
1944: दिल्ली में जाट महा सभा के अधिवेशन का सभापतित्व महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह ने किया।
1945: महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह के जन्म दिन पर जाट प्रीति भोज देने की परंपरा डाली।
1946: अखिल भारतीय जाट महासभा का सालाना जलसा भारत सरकार के रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह के सभापतित्व में मनाया।
1947: जाट महा सभा की जनरल कमिटी ने काश्मीर युद्ध में पूर्ण सहयोग देने का निश्चय किया। 17 मार्च 1948 को जबकि मत्स्य राज्य के उदघाटन की रस्म भरतपुर के किले में की जा रही थी किसान लोगों के साथ मिलकर किले की फाटक पर जाटों ने धरणा दिया। भरतपुर किसान सभा की मांगों को पूर्ण करने के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। भरतपुर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है।
जवाहर बुर्ज, भरतपुर
लोहागढ़ दुर्ग में 8 बुर्जें तथा 40 अर्धचन्द्राकार बुर्जें बनी हुई हैं। इन बुर्जों में जवाहर बुर्ज और फ़तेह बुर्ज प्रमुख हैं। जवाहर बुर्ज महाराजा जवाहर सिंह की दिल्ली विजय और फ़तेह बुर्ज 1805 में अंग्रेजों पर विजय के प्रतीक के रूप में बनाई गई थी। अन्य बुर्जो में सिनसिनी बुर्ज, भैसावाली बुर्ज, गोकुला बुर्ज, कालिका बुर्ज, बागरवाली बुर्ज, नवल सिंह बुर्ज आदि है| वर्तमान में जवाहर बुर्ज के संरक्षण का कार्य चल रहा है| इस बुर्ज पर एक धातु का स्तम्भ रोपित किया गया है जिसमे भरतपुर के सभी जाट नरेशों के नाम अंकित किये हुये हैं| स्थानीय निवासियों के अनुसार जवाहर बुर्ज पर ही भरतपुर के नरेशों का राज्याभिषेक किया जाता था| बुर्ज के मध्य एक दो मंजिला भवन तथा बारहदरी बनी हुई है जो मुग़ल और राजस्थानी स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है| बारहदरी की छत में पौराणिक कथाओं, प्रसंगों का तथा कृष्ण लीला का अद्भुत स्वर्ण चित्रांकन किया गया है जिसके संरक्षण की तत्काल आवश्यकता है| यहाँ से भरतपुर का और सुजान गंगा नाहर का विहंगम द्रश्य नजर आता है| जवाहर बुर्ज पर ऊपर चढ़ते ही बजरंगबली का मंदिर बना हुवा है| थोडा आगे जाने पर उद्यान विकसित किया गया है तथा आगे एक प्राचीन शिव मंदिर बना हुवा है जिसके समीप एक कुंवा बना हुवा है| इस दुर्ग के चारों तरफ खाई में जल की आवक मोती झील से होती है जिसे सुजान गंगा नामक नहर का निर्माण कर इस दुर्ग तक लाया गया था | मोती झील का निर्माण रुपारेल और बाणगंगा नदियों के संगम पर एक बाँध के निर्माण से निर्मित की गई है| भगवान् श्री राम के अनुज लक्ष्मण को अपना कुलदेवता मानने वाले तथा भरत के नाम पर भरतपुर नाम रखने वाले जाट नरेशो के मिटटी से बने हुवे इस लोहागढ़ के बारे में एक कवि ने लिखा है -
- दुर्ग भरतपुर अड़ग जिमि, हिमगिरी की चट्टान
- सूरजमल के तेज को , अब लौ करत बखान
लेखक: शरद व्यास
लाखा तोप, भरतपुर
लाखा तोप: अजय योद्धा महाराजा सूरजमल की लाखा तोप इस तोप की गर्जन सुनके बड़े बड़े राजा महाराजा घबराते थे। बड़े बुजुर्ग बताते है कि यह तोप केवल एक बार चली थी दिल्ली युद्ध में और जब यह चली थी तो बताते हैं कि लालकिले का सिंहासन हिल गया था। बताते हैं कि महाराजा सूरजमल के जैसी तोप किसी राजा के पास न थीं । यह तोप महाराजा सूरजमल ने खासतौर पर दुश्मनों का प्रतिकार करने के लिए बनवायी थी और इसका निशाना दिल्ली का लालकिला था ।
Notable persons
- Viri Singh Punia (ठाकुर वीरीसिंह), from Bharatpur was a Social worker in Rajasthan.
- Pushkar Singh Solanki (कुँवर पुष्कर सिंह) from Bharatpur was a Social worker in Rajasthan. [19]
- Dalip Singh (Parihar) - X.En. RSEB , Home District : Bharatpur, Date of Birth : 2-May-1951, Address : 20/148, Mansarowar, Jaipur, Phone: 0141-2392293, Mob: 9413335656
- Jag Mohan Singh (Agre) - RAS, Land Acquisition Officer, Udaipur, Address : Mohalla Gopalgarh,Bharatpur, Phone : 02942430907, Mob:9414072223
- P. M. Chouhan - Addl. Dir. ( Retd. ) Agriculture, Date of Birth : 30-January-1949, Home District : Bharatpur, Present Address : 1212/A-2, Barakat Nagar, Tonk Phatak, Jaipur, Raj. Mob: 9799496122
- Satendra Kumar (Sirohi) - X.En. PWD, Date of Birth : 23-September-1961, Permanent Address : 40, Geeta Colony, Agra Road, Bharatpur, Present Address : KR-356, Chambal Garden Road , Kota, Phone: 0744-2501297, Mob: 9829113596
- Thakur Bhola Singh
- Jagdish Kuntal: RJS 2011 batch, Posted at Mundawar, Alwar. From Bharatpur, Rajasthan, M: 9414909010
- Kapil Chaudhary (): From Bharatpur, Danics/SDM (p) Delhi, 2014 batch, M: 9818149967
- Mahavir Singh Dagar - IAS 1984 batch , P S Narmada and Water Resources Department, Gujarat, Add Chief Secretary, Gujarat, From Bharatpur, M: 9978406129
- Mahendra Solanki: RJS, from Bharatpur, Posted at Rajgarh Alwar, M:+91 93 51 493850
- Shailendra Singh Indoliya: IRS (C&CE) 2016 Batch, From Bharatpur, Rajasthan, M:97013 47407
- Sudarshan Singh Tomar: RAS Batch-2011, SDM- Mundawar (Alwar), From- Bharatpur, M: 9828410620
Gallery of Jats from Bharatpur
-
Than Singh Sinsinwar, Dahra
Misc. Gallery
-
Coat of Arms of Bharatpur State
-
अल्लाऊद्दीन को पद्मिनी नहीं मिली तो चित्तौड़ के अष्ट-धातु गेट को उखाड़कर दिल्ली ले गया, 462 साल बाद भरतपुर के जाट राजा लड़कर वापस लाये
-
Sawai Maharaja Brijendra Niwas at Ganga Bagh Mathura, Uttar Pradesh. It has 108 doors, 60 doors on ground floor and 48 doors on first floor. The Niwas Built by H.H. Maharaja Sawai Brijendra Singh of Bharatpur Jat kingdom.
-
Col.H.H Yadukul Maharajadhiraj Sawai Kishan Singhji of Bharatpur along with Yuvraj Brijendra Singhji ,Rajkumar Girender raj Singhji. AD-1924.
-
Ganga Mandir Bharatpur
-
Laxmi Vilas Palace, Bharatpur ( Rajasthan)
-
Maharajkumari Pushpendra Kaur of Bharatpur, Maharaj kumari Renuka Kaur of Bharatpur, (later, who married Kunwar Mahendra Singh of Pisawa) and Rajmata Vijaya Raje Scindia of Gwalior at the marriage of Maharaj kumari Pushpendra Kaur to Krishna Shamsher Rana.
-
Moti Mahal Palace, Bharatpur. This palace was built by Sinsinwar Jat ruler H.H Maharaja Sawai Kishan Singhji, at present this Palace is Personal residence of H.H. Maharaja Sawai Vishvendra Singh of Bharatpur.
-
Kunwar Giriraj Singh of Gopalgarh, brother of Maharaja Kishan Singh of Bharatpur
-
Raja shri Anup Singhji of Bharatpur during College Days at Cornell University , New York
-
H.H. Maharaja Kishan Singh of Bharatpur (left side), Maharaja Brijendra Singh of Faridkot (right side), Raja Raghunath Singh of Bharatpur in centre standing at Faridkot wedding of H H. Maharaja Kishan Singh of Bharatpur 1914. Credit:- Raja Raghuraj Singh Of Bharatpur.
-
Rani Rita Singh of Bharatpur (left) Rajkumari Krishnendra Kaur of Bharatpur (also known as Deepa and at present she is Kunwarrani of Saidpur) Rajkumari Krishnendra Kaur was former member of Lok Sabha.
-
Rani Harinder Kaur W/o Raja Yaduraj Singh of Bharatpur in Ceremonial Dress , When she was attended the last durbar celebration 1948.
-
Yuvraj Kumari Shree Jaya Devi of Mysore, later Maharani Shree Jaya Devi of Bharatpur, second from left along with her sisters and mother. She married Yaduvanshi ruler H H Maharaja Sawai Brijendra Singh of Bharatpur in 1941. They had 5 daughters together.
-
Raja Anup Singh of Bharatpur (left side), Kunwar Uday Singh Jubbal (med) Tikka Shatrujit Singh of Kapurthala ( Right side). Credit:- Sahil Singh Baliyan.
-
Raghunath Niwas , Bharatpur
-
Rani Surinder Kaur of Bharatpur wife of Raja Anup Singh of Bharatpur (son of Rao Raja Giriraj Saran Singh = Bachchu Singh). Rani Surinder Kaur is daughter of Tikka Jagjit Singh Sandhu of Shahzadpur. The Shahzadpur Royal family are descendant of Baba Deep Singh Sandhu. अनूप सिंह, कुंवर अरुण सिंह के भाई, जो कि कपूरथला के राजा के यहां गोद गए। राजा बच्चू सिंह की जाट रानी से पैदा हैं। कुंवर अरुण सिंह भरतपुर में रह रहे अंग्रेज रेजिडेंट की पत्नी जिसको राजा बच्चूसिंह जी ने उससे छुड़ा लिया था, उससे पैदा थे। लगातार डीग विधान सभा से 7बार विधायक रहे। बड़े दबंग जाट थे। (Comment - Chaudhary Neeraj Singh) Source - Jat Kshatriya Culture
-
A very old pic of delhi darbar 1911, In Mid Rao Raja Raghunath Singh of Bharatpur, Choudhary Ram Singh Dhankar of Ucchain (Jagirdar Under Bharatpur state and Sitting 2nd From Right), Brother in Law of Maharaja Col. Sawai Kishan Singh, Maharaja of Bharatpur. Credit:- Choudhary Shashank Singh Dhankar (Great Great Grandson of Choudhary Ram Singhji of Ucchain). Source - Jat Kshatriya Culture
-
Maharaj Kumari Brijendra Kaur of Bharatpur (Later Rani Brijendra Kaur of Unchagaon), She was better known as "Rani Kusum". Source - Jat Kshatriya Culture
-
H.H Maharaja Sawai Brijendra Singh of Bharatpur second from right, standing between his brother and the Maharaja of Baroda at the wedding of the Maharaja of Gwalior, February 1941. Source - Jat Kshatriya Culture
-
Raja Anup Singh of Bharatpur and Rani Surinder Kaur
-
Maharani Kishori Mahal, Bharatpur
-
Moti Mahal, Bharatpur
-
Kiran Villa Palace, Bharatpur
-
Maharajkumari Rohini Kaur of Bharatpur and Kanwar Govind Singh Grewal ( daughter in law and Grandson of Maharajkumari Ruby Rajbir Kaur of Jind ) with Rani Inderbir Kaur of Jind, wife of late Maharajkumar Gajbir Singh of Jind.
-
Bharatpur Stadium ( Lohagarh Stadium)
-
Maharajkumari Pushpa Kaur of Bharatpur, Maharajkumari Rohini ( Ganga ) Kaur of Bharatpur , Maharajkumari Deergh Kaur of Bharatpur. (Rajmata Sahib of Nabha ) at the Mysore - Sailana Wedding. Source - Jat Kshatriya Culture
-
Laxmi Vilass Palace, Bharatpur
-
Kishori Mahal, Bharatpur
-
Rare Independence day picture: Independence day celebrations (August 15 1947) inside the Darbar-e -Aam of Bharatpur State. This Program Held by H.H. Maharaja of Bharatpur and H.H Maharaj Rana of Dholpur. Tiranga displayed against the wall under the canopy. Source - Jat Kshatriya Culture
-
Rolls-Royce of the Maharaja of Bharatpur outside Moti Mahal Palace. Seated next to the Maharaja is HRH, Prince Philip, The Duke Of Edinburgh, Husband of Her Majesty Queen Elizabeth. Source - Jat Kshatriya Culture
-
-
See also
- भरतपुर के जाट जन सेवक - पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580, संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर
- Maharaja Suraj Mal
- The Jat Uprising of 1669
- Lohagarh Fort
- History of Bharatpur
- The ancestry of Bharatpur rulers as par Ganga Singh
- The Principality of Fatehpur
External links
Further reading
- Parivar Vivaranika -2015: Directory of Jats of Bharatpur (p.220), can be obtained from Dr. Prem Singh Kuntal, 1-Shantinagar, Fatehpur Sikri Road, New Pushpwatika, Bharatpur, Mob: 9414026416
- Blog - Blast from the Past - Bharatpur Jats
- Brief history and detailed genealogy of the ruling chiefs of Bharatpur
- Genealogy of the ruling chiefs of Bharatpur
- Imperial Gazeteer of India Vol 8, P-73 Bharatpur State
- Dr. Raj Pal Singh, Rise of the Jat power, 1988, Delhi.
References
- ↑ Falling Rain Genomics, Inc - Bharatpur
- ↑ Girish Chandra Dwivedi, The Jats – Their role in the Mughal empire, Ed by Dr Vir Singh. Delhi, 2003, p. 15
- ↑ J.N.Sarkar, History of Auranzeb (Calcutta): 1912, I, Introduction, XI-XIII
- ↑ F.X. Wendel, Memoires des Jats, 10
- ↑ J.N. Sarkar, History of Auranzeb (Calcutta): 1912, I, Introduction, XXVIII f.
- ↑ Girish Chandra Dwivedi, The Jats – Their role in the Mughal empire, Ed by Dr Vir Singh. Delhi, 2003, p. 15
- ↑ Dr P.L. Vishwakarma, The Jats, Vol.I, Ed Dr Vir Singh, Delhi, 2004, p. 113
- ↑ G.C. Dwivedi: The Jats - Their Role in the Mughal Empire/Chapter XI,p.198
- ↑ G.C. Dwivedi: The Jats - Their Role in the Mughal Empire/Chapter XI,p.206
- ↑ History of the Jats/Chapter X,p. 172-174
- ↑ Baratpur—Indian Princely State—the only political entity ever to have a chartreuse colored flag:
- ↑ History of Bharatpur/Chapter III, p.54
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.13
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.660
- ↑ Col. G. B. Malleson: An historical sketch of the native states of India/Bharatpur,p.102
- ↑ जगदीश चंद्रिकेश: झूठ नहीं बोलता इतिहास, प्रकाशक : परमेश्वरी प्रकाशन, प्रकाशित जनवरी ०१, २००८
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.1,10
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.12-13
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.45
Back to History
- Jat History
- Jat History in Rajasthan
- Jat Villages
- Rajasthan Districts
- Rajasthan Tahsils
- Jat Villages in Rajasthan
- Villages in Bharatpur
- Jat States
- Cities and towns by Jats
- Cities and towns by Jats in Bharatpur
- Cities and towns by Jats in Rajasthan
- Jat Forts
- Jat Forts in Rajasthan
- Jat Forts in Bharatpur
- General History
- AS
- AS Rajasthan