Rana
Rana (राणा)[1] Rānā (राणा)[2] Rana (राना)/Raj Rana (राज राणा) is a title of some Jats in Punjab, Haryana, Rajasthan, Delhi, Uttar Pradesh and Madhya Pradesh in India. This gotra used as surname is based on title Rana. They were great warriors hence awarded this title. [3]
Rana Tittle
राणा एक खिताब या उपाधि है जो जाटों, राजपूतों तथा गोरखों में है। जाट क्षत्रियों में बहुत से गोत्र राणा उपाधि लगाते है उदाहरणार्थ - राजराणा ,काकराणा, आदराणा, तातराणा, शिवराणा, चौदहराणा आदि वंश अपनी राणा उपाधि पर गर्व करते हैं। गोहद और धोलपुर राज्य नरेशों की उपाधि राणा की थी। जाटों में इस राणा उपाधि वाले गोत्रों तथा उनकी जनसंख्या बहुत है।[4]
Ranas of Gohad
Bamraulia Rana is the ruling clan of Jat rulers of Gohad in Madhya Pradesh and Dholpur in Rajasthan. They were originally Bamraulias from Bamrauli village near Agra.
Jatranas
"Rana" is also used as a surname by Jatrana and Chaudaranasaroha
Chaugama Khap
Rana Khap is also known as Chaugama Khap which has a group of 40 villages of Rana Gotra in Distict Bagpat in Uttar Pradesh. The main villages of the khap are: Doghat (दोघट), Daha (दाहा), Bharal (भड़ल), Nirpura (निरपुड़ा), Gaidabra. This khap played an important role in vikram samvat 1455. A Sarva Khap was invited to fight against Timur. Dev Pal Rana was the commander of the army formed by the Maha Panchayat. [5]
चौगामा खाप
19. चौगामा खाप - यह जनपद बागपत में 40 गांव की खाप है. दोघट, दाहा, इसके प्रमुख गांव हैं. इस खाप के क्षेत्र में विक्रमी संवत 1455 में जाटों की सर्वखाप पंचायत हुई थी जिसमें तैमूर की सेना से युद्ध करने का फतवा जारी किया गया था. इस पंचायत के द्वारा बनाई गई सेना के देव पाल राणा सेनापति चुने गए थे. [6]
राणा खाप
63. राणा खाप - राणा गोत्र के जाटों की एक खाप उत्तर प्रदेश के जनपद बागपत में स्थित है. इसे चौगामा खाप भी कहते हैं. निरपुड़ा गांव इस खाप का मुख्यालय है जिसके जंगलों में सर्व खाप की समय-समय पर आततायियों के विरुद्ध लड़ने के लिए पंचायत हुआ करती थी. यह छोटी खाप जरूर है परंतु इसका गौरवमई इतिहास है.[7]
History
तोमर सम्राट द्वारा जयसिंह बमरौलिया को राणा की उपाधि - दिल्ली तोमर सम्राट अनंगपाल ने युद्धक्षेत्र में जयसिंह बमरोलिया को अदम्य साहस एवं वीरता प्रदर्शित करने के के उपलक्ष में आगरा के पास बमरौली कटारा की जागीर तथा राणा की उपाधि से नवाज़ा गया था. राणा जाट बहुत बलशाली, धार्मिक व सामाजिक प्रवृति के वंशज हैं. इनको सूर्यवंशी माना गया है. कहते हैं कि सिसोदिया व राणा एक ही वृक्ष की शाखाएं हैं. इनका मुख्य स्थान भिंड जिले में गोहद है. इनमें से कुछ राणा राजपूत बनगए हैं. राणा गोत्र के लोगों ने विदेशों में भी अपनी सत्ता स्थापित की थी. फिर ये इरान से वापिस लौटकर पंजाब में बसते हुए गुजरात व राजस्थान में भी बस गए तथा वहां अपनी सत्ता स्थापित की. राणा लोग बमरौली में भी आबाद हुए और फिर ग्वालियर तथा गोहद में अपना राज्य स्थापित किया. उसके बाद ये लोग कटारा, मथुरा में फ़ैल गए. अनेक यौद्धा राणा शब्द (उपधि) से भी सुशोभित हुए. काकराण, आदराण, तातराणा, जटराणा, शिवराणा, चोधराणा आदि कई वंश राणा नाम की उपाधि पर गर्व करते हैं. राणा वंश के राजा लोकेन्द्र सिंह के पूर्वजों ने ग्वालियर व गोहद पर प्रजातंत्री शासन किया तथा मराठों के साथ-साथ अंग्रेजों, मुग़लों व मुस्लिमों से टक्कर ली. इस राणा वंशी लोगों ने राश्ट्रीय कार्यों में भाग लेकर बड़ा यश प्राप्त किया है. आज वर्तमान में इस गोत्र के अनेक गाँव हैं. रोहतक में पकास्मा (किसरेंटी), फीरोजपुर, सैदपुर, गढ़ी कुंडल, कुण्डल, जटोला,सोहटी उत्तर प्रदेश में जिला मुजफ्फरनगर में दतियाना, खेडा गढ़ी आदि १२ गाँव हैं. बिजनौर में मायापुर, सोफतपुर, सहारनपुर में नगला, मन्नाखेड़ी, उदल हेडी, सलारू मेरठ में निरपुड़ा , भड़ल, दाहा, महनपुर अलीगढ में नन्द का नगला, गज्जू का नगला, भगवन्तपुर आदि राणा गोत्र के गाँव हैं. [8]
राणा वंश
धौलपुर के शासक जाट-कुल दिवाकर राणावंश के हैं। कहा जाता है कि राणा जाट सूर्यवंशी हैं। कुछ लोग कहते हैं कि राणा जाट शिशोदिया वंश के हैं। वास्तव में बात यह हो सकती है कि शिशोदिया और राणा एक ही वंश-वृक्ष की दो शाखाएं हों। रस्म-रिवाजों के अन्तर से कुछ लोग इनमें से राजपूत हो गए और शेष जाट कहलाते रहे।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-683
यह भिन्नता नवीन हिन्दु-धर्म के विस्तार के साथ हुई।
ठाकुर देसराज लिखते हैं -आगरे के पास बमरौली-कटारा स्थान इन लोगों द्वारा कटारे ब्राह्मणों को दिया गया था। कहा तो ऐसा जाता है कि राणा वंश के एक पुरुष को यहां के ब्राह्मण ने अपना जामात्रा बनाकर रक्षा की। यह गोत्र उपाधि वाची है। यह लोग सूर्यवंशी जाट हैं। धौलपुर का प्रसिद्ध राजवंश राणा है।
गोहद के राणा
राणा वंश के लोग गोहद में आकर आबाद हुए। वास्तव में ये लोग ईरान से लौटकर पंजाब में आबाद हुए थे और वहां से चलकर गुजरात होते हुए राजस्थान में आकर आबाद हुए। पुराने रस्म को मानते रहने वाले समुदाय ने गोहद में अपनी बस्ती आबाद की। बप्पा तथा उनके साथी हारीत नाम के साधु के उपदेश से नवीन हिन्दु-धर्म में दीक्षित होकर कालानुसार शिशोदिया नाम से प्रसिद्ध हुए। इस विषय में भाटों का जो कथन है, उससे हमारा कथन कहीं अधिक सही और बुद्धि-संगत है। राणा लोग आरम्भ में बमरौली में बसे थे। वहां से ग्वालियर पहुंचे। वहां उनका मुस्लिम सम्राटों के विरुद्ध युद्ध जारी रहा। ग्वालियर से हटकर गोहद में अपना राज स्थापित किया और अपने सरदार सुरजनसिंह देव को ‘राणा गोहद’ बनाया। यह घटना 1505 ई. की है।
अब से 150 वर्ष पूर्व तक वे शान्ति के साथ गोहद में प्रजा सत्तात्मक ढंग से शासन करते रहे। उनके कुछ दल आगरे के पास बमरौली कटरा, मथुरा जिले में झुड़ावई गांव में फेल गए।
मराठों के उत्कर्ष के समय में राणा वीर भी सचेत हुए। उन्होंने संतोष की वृत्ति को उस समय के लिए आग्राह्य समझकर तलवार संभाली। उधर जाटों की संख्या कम होने के कारण मराठों के साथ मिलकर ही वह अपनी वीरता के जौहर दिखाने लगे। उनके सहयोग से मराठा लोग खूब लाभ उठाते थे। विजय पाकर वे खुशी मनाते थे।
बाजीराव पेशवा को उन्होंने सहयोग दिया, इसलिए वे गोहद के हाकिम मराठों की ओर से भी मान लिए गए। यह घटना सन् 1735 व सन् 1740 ई. के बीच की है। जिस सरदार को मराठों ने गोहद को अधीश्वर स्वीकार किया था, वह अठारहवीं सदी के मध्य में स्वर्गवासी हो गए। उनके पश्चात् उनके भतीजे ने अध्यक्ष की कमान संभाली। चाचा से बढ़कर भतीजा निकला। उन्होंने अपने राज्य को खूब बढ़ाया। वह पूरे राजनीतिज्ञ थे। मराठों को वे परख चुके थे। मराठे जहां बहादुर थे, वहां स्वार्थी भी पूरे थे। मराठों की इसी मनोवृत्ति ने राणा वीरों को उनसे अलग हो जाने पर बाघ्य कर दिया। जब पानीपत का युद्ध हुआ तो गोहद के राणा भीमसिंह मराठों की सहायता से दूर रहे। उन्होंने मराठों के साथ जितना बलिदान किया था, उसका मूल्य मराठों ने कुछ नहीं के बराबर उनको चुकाया था। यही कारण था कि जब मराठे पानीपत की सन् 1761 ई. की लड़ाई में पराजित होने के बाद शक्ति-संचय करने में व्यस्त थे, राणा लोगों ने भीमसिंह की अध्यक्षता में ग्वालियर पर कब्जा कर लिया। ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने वाले राणा सरदार श्री लोकेन्द्रसिंह के चाचा थे। श्री लोकेन्द्रसिंह (महाराजा छत्रसिंह राणा) ने अपने को गोहद का महाराज राणा होने की घोषणा कर दी।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-684
उनका ऐसा करना उचित ही था। जिस भांति मराठों को मराठा-साम्राज्य स्थापना का अधिकार था, उसी भांति जाटों को भी अधिकार था कि वे समस्त भारत पर जाट-शाही स्थापित करने की घोषणा कर लेते। सैनिक जातियां यदि संगठित रूप से अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहें तो किसी भी समय वे अपने उद्देश्य के लिए प्रयत्न कर सकती है। संसार भर में सदैव सैनिक-बल का शासन रहा है और शायद भविष्य में भी रहेगा. मराठे लोकेन्द्र सिंह की सैनिक-शक्ति से परिचित थे। उनमें उस समय इतना दम न था कि वे लोकेन्द्रसिंह और उनके साथी जाटों के साथ छेड़छाड़ करें। आगरे से इटावा तक इस समय भरतपुरी जाटी का बसन्ती झण्डा फहरा रहा था।
मराठे लगातार 6 वर्ष तक चुप रहे। इस बीच में शक्ति-संचय कर सन् 1767 ई. में उन्होंने राणा पर चढ़ाई की। इस बीच में मराठों का पेशवा रघुनाथ राव बन चुका था।
लोकेन्द्रसिंह ने पहले से ही इस युद्ध के लिए तैयारी कर ली थी। वह स्वयं भी प्रसिद्ध रण-बांके योद्धाओं में से थे। उन्हें तलवार पर विश्वास था। मराठे दिल तोड़कर लड़े, किन्तु जाट सिपाही हटना तो जानते ही नहीं थे । रघुनाथ राव पेशवा की समझ में आ गया कि जाट-मुगल और पठानों की भांति मराठों से भयभीत होने वाले सैनिक नहीं हैं। इसलिए उसने राजा के सामने तीन लाख रुपये की मांग पेश की। तीन लाख मिलने पर वह वापस लौट जाएगा और राणा को स्वतन्त्र राजा मान लेगा। इस प्रस्ताव से राणा भी सहमत क्यों न होते। उन्होंने तीन लाख रुपये रघुनाथराव को दे दिये। मराठे वापस लौट गए। खिराज देने की शर्त को राणा ने कभी नहीं निभाया।
अंग्रेज -सरकार ने ऐसे बहादुर और मराठों के विद्रोही राजा से लाभ उठाने की बात सोची। अंग्रेज सरकार को बम्बई हाते की ओर मराठों के आक्रमण का डर था। दिल्ली और बम्बई के बीच अंग्रेज अपना ऐसा दोस्त चाहते थे जहां बीच में उनकी फौज को आराम से ठहाराया जा सके। ऐसे ही राजनैतिक कारणों से प्रेरित होकर अंग्रेजों ने लोकेन्द्रसिंह से मैत्री-सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा प्रकट की। लोकेन्द्रसिंह और अंग्रेजों के बीच जो सन्धि हुई, उसका संक्षिप्त रूप यह है -
- धारा 1. धारा-आनरेबुल इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी व महाराज लोकेन्द्रसिंह बहादुर दोनों पक्षों के उत्तराधिकारियों में सदैव मित्रता रहेगी और निम्नलिखित कार्यों के लिए उनमें सदैव एकता रहेगी।
- धारा 2. -जब कभी दोनों पक्षों में से किसी की मराठों से लड़ाई होगी तब अगर महाराज लोकेन्द्रसिंह साहब अपने देश-विजय करने के लिए कम्पनी-सरकार से अंग्रेजी सेना चाहेंगे तो उनकी लिखित पत्रिका
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-685
- अंग्रेजी फौज के प्रधान सेनापति के पास पहुंचने पर आवश्यकतानुसार सेना उनके पास पहुंच जाएगी। जब तक उन्हें जरूरत होगी, उनके पास रहेगी। उनके विदा करने पर वापस आएगी। इस फौज का व्यय महाराज साहब से मछलीदार सिक्कों में बीस हजार मासिक लिया जाएगा। जिस समय फौज कम्पनी के मुल्क व नवाब अवध के मुल्क से कूंच करेगी और जिस समय उक्त स्थान पर वापस आ जाएगी, फौज के वेतन के दिन होंगे। मंजिल प्रतिदिन चार कोस की समझी जाएगी।
- धारा 3. यह सेना महाराज साहब को भीतरी-बाहरी शत्रुओं से सुरक्षित रखने और मराठों से विजय करके उनके देश की वृद्धि करने में संलग्न रहेगी।
- धारा 4. इस प्रतिज्ञा-पत्र के अनुसार जो प्रदेश-सेना सरकार कम्पनी या सेना महाराज साहब या दोनों सम्मिलित रूप से युद्ध द्वारा अथवा संधि द्वारा मराठों से हासिल करेंगें उन 56 मुहालों के समेत जो महाराज के कदीम मुल्क हैं और इस समय मराठों के अधिकार में हैं, बटवारा इस हिसाब से होगा कि एक रुप्ये में नौ आना कम्पनी सरकार सात आना महाराज बहादुर का होगा। कुल आमदनी की ओसत की जांच दोनों ओर के अमीन दो साल की जमाबन्दी से कर लेंगे। प्रदेश और दुर्ग महाराज साहब के अधिकार में ही रहेंगे। कम्पनी के हिस्से की रकम महाराज साहब वसूली में से खिराज के तौर पर कम्पनी-सरकार को देते रहेंगे।
- धारा 5. जब कभी महाराज तथा कम्पनी की सेना को महाराज साहब के प्रदेश से बाहर मराठों से लड़ना पड़ेगा, तो प्रार्थना-पत्र के पहुंचने पर महाराज साहब दस हजार सेना एकत्रित करेंगे। खर्च दोनों ओर अलग किया जाएगा और यदि वापसी के समय महाराज अंग्रेजी-सेना को रखने की इच्छा प्रकट करेंगे तो धारा दूसरी के अनुसार उन्हें फौज का खर्चा देना होगा। किन्तु कम्पनी-सरकार को अधिकार न होगा कि महाराज की फौज को उज्जैन वा द्वाबा इंदौर की सीमा के बाहर उनकी खास मंजूरी के बिना भेजे। इस विषय में उनसे प्रार्थना भी न करेंगे।
- धारा 6. जबकि अंग्रेजी सेना महाराज साहब के देश व सेना की रक्षा या अन्य प्रदेश के विजय करने में नियुक्त होगी, महाराज साहब उसे आज्ञा प्रदान करेंगे (अर्थात् वह सेना महाराज की अधीनता में रहेगी)। किन्तु अंग्रेजी सेना आज्ञा-पालन अंग्रेजी-कमान अफसर के द्वारा करेगी।
- धारा 7. जब कभी महाराज साहब और कम्पनी सरकार की फौजें दैवयोग से कहीं दूर की लड़ाई पर होंगी तब अंग्रेजी सेनापति उचित सेनाओं के लिए महाराज साहब की राय लेगा। किन्तु मत-विभिन्नता के समय पर अन्तिम निर्णय
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-686
- अंग्रेजी कमान-अफसर की राय पर होगा। परन्तु महाराज साहब अपनी फौज के स्वयं ही संचालक व नायक होंगे।
- धारा 8. जब कभी अंग्रेजी सरकार और मराठों के बीच सन्धि होगी, उस समय जो अहदनामा होगा, महाराज साहब बतौर एक फरीक के उसमें शामिल होंगे। उस अहदनामे में महाराज साहब के वर्तमान अधिकृत प्रदेश और किला ग्वालियर कदीम से महाराज साहब का खानदान उस पर अधिकारी रहा है। बशर्ते कि किला मजकूर उनके कब्जे में होगा। साथ ही अन्य प्रदेश भी जो विजय होने पर महाराज साहब के अधिकार में सिद्ध होंगे, पूर्वानुसार महाराज साहब के अधिकार में रहने की सम्मति दी जाएगी।
- धारा 9. महाराज साहब के मुल्क में कोई अंग्रेजी कोठी न बनाई जाएगी और न कोई आदमी अंग्रजों का जब तक कि गवर्नर जनरल व कौंसिल अंग्रेजी महाराज साहब से मंजूरी हासिल न कर लेगी उनके राज में पहुंचेगा। सेना की सेवाओं के लिए उनकी प्रजा बेगार में नहीं पकड़ी जाएगी और न महाराज साहब के अतिरिक्त कोई उन पर किसी तरह की हुकूमत करेगा।
- - बमुकाम फोर्ट विलियम किला कलकत्ता तारीख 2 दिसम्बर सन् 1778 ई. में मुहर व दसतखत निर्णय हुआ।
इस सन्धि-पत्र के अनुसार 1778 ई. में दो हजार चार सौ सैनिकों के साथ कप्तान पोफम की अधीनता में अंग्रेजों ने महाराज की सहायता के लिए फौज भेजी। कप्तान पोफम ने लहार के किले से मराठों को महाराज की फौज की सहायता से निकाल दिया। लहार पर महाराज राणा का अधिकार हो गया। इसी वर्ष चौथी अगस्त 1780 को किला ग्वालियर भी फतह कर लिया गया। राणा गोहद का ग्वालियर पर भी झण्डा गाड़ दिया गया।
13 अक्टूबर सन् 1781 ई. को जो अहदनामा अंग्रेजी सरकार और माधौजी सेंधिया के बीच हुआ, उसके अनुसार महाराणा को सम्मति दी गई थी कि जब तक अहदनामा सरकार अंग्रेजी पर वे कायम रहेंगे, ग्वालियर और अन्य प्रदेश उनकी सम्पत्ति समझे जाएंगे और सेंधिया उसमें हस्तक्षेप न कर सकेगा।
कहा जाता है कि सन् 1781 ई. व 1782 ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध जो संगठन हुआ था, राणा उसमें शामिल हुए थे। इसलिए अंग्रेजों ने अपनी ओर से सन्धि तोड़ दी। हो सकता है यह बात सही हो, क्योंकि स्वतन्त्रता की आग प्रत्येक देशवासी के हृदय में होती है। किन्तु बात यह थी कि सिंधिया से बार-बार राणा के पीछे अंग्रजों को टक्कर लेने में कठिनाई मालूम पड़ रही थी। सन 1782 ई. के मई महीने में सलवाई के स्थान पर सन्धि करके सिंधया ने जब अंग्रजों के युद्ध से छुट्टी पाई तो उसने ग्वालियर को वापस लेने के लिए राणा पर चढ़ाई कर दी। सिंधया जैसे प्रचण्ड आदमी का बड़ी बहादुरी के साथ महाराणा ने मुकाबला किया।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-687
किन्तु, आखिकार उन्हें ग्वालियर खाली करना पड़ा। गोहद भी उनके हाथ से निकल गया। अंग्रेजों ने कुछ भी मदद न की। राणा साहब भी कैद हो गये। महाराणा को तथा उनके साथियों को 22 वर्ष तक परेशानी उठानी पड़ी।
राजा रणपुर
राजा रणपुर (Raja Ranapur) या रणपुरगढ़ (Ranapurgada) भारत के ओड़िशा राज्य के नयागढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। नयागढ़ जिले का यह महत्वपूर्ण नगर है। मणिनाग पर्वत के तलहटी में बसा हुआ यह शहर पुरी से 63 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है और सीधा न्यू जगन्नाथ सड़क मार्ग से जुड़ा है। शहर को बसाने वाले राजा का नाम राणासुर था जिनके नाम पर यह पहले राणासुरपुर कहलाता था जो बाद में रणपुर नाम से जाना जाने लगा।
Distribution in Punjab
Rana Jat gotra found in Nawanshahr, Garhshankar, Jullundhar and Hoshiarpur disrtict.
Distribution in Haryana
Rana Jat gotra is found in Sonipat, Panipat, Rohtak, Kaithal and Gurgaon districts.
Distribution in Uttar Pradesh
Rana Khap has 6 villages in Mathura district and 5 villages in Agra district. [9]
Villages in Bagpat district
In District Bagpat in UP, there are four huge villages, famous as Chaugama, where Jat of Gotra Rana, live.
Bhadal, Chandan Heri[10], Daha, Doghat Nirpura, Gaidabra,
Villages in Aligarh district
Bhagwantpur, Gajju Ka Nagla, Nand Ka Nagla, Roopnagar,
Villages in Agra district
Agra, Bamrauli Ahir, Jarua Katra, Pali Kiraoli,
Villages in Muzaffarnagar district
Athain (Bhopa), Bhumma, Gahadbara, Khanjahanpur, Basera,
Villages in Shamli district
Villages in Meerut district
Gaonri, Chandna, Ikla Rasulpur,
Villages in Bulandshahr district
mainly two villages in Bulandshahr District are- Alawa Rahimpur, Pasauli,
Villages in J.P. Nagar district
Villages in Saharanpur district
Villages in Gautam Budh Nagar district
Villages in Shamli district
Villages in Ghaziabad district
Villages in Bijnor district
Distribution in Rajasthan
Bharatpur, Dholpur, Chittorgarh, Gangapur City (Sawai Madhopur), Banswara,
Villages in Bharatpur district
Barauli Ran (बरौली राण), Katara Bharatpur, Paharsar Bharatpur,
Villages in Alwar district
Locations in Jaipur city
Jalebi Chowk, Jhotwara, Mansarowar Colony, Sanjay Colony,
Villages in Nagaur district
Villages in Tonk district
Distribution in Madhya Pradesh
Bhind, Birlanagar Gwalior, Gohad,
Villages in Gwalior district
Bagthara, Bijoli Gwalior, Chitohra, Ghosipura Morar, Gwalior, Kaimpara (Morar), Kheria Baraitha (Maharajpur), Morar (Gwalior), Pali Dirman, Sahona,
Villages in Sheopur district
Villages in Shivpuri district
Villages in Bhopal district
Villages in Vidisha district
Distribution in Delhi
1. Bijwasan, 2. Khera Garhi, 3. Khera Kalan, 4. Kutabgarh, 5. Mukhmail Pur, 6. Mungespur, 7. Nangli Poona, 8. Shahbaad Daulatpur, 9. Siraspur, 10. Kadi Pur, 11. Budh Pur, 12. Jindpur. They all write Rana but they all are Jatrana villages.
Notable persons from this gotra
Rana rulers of Gohad, Madhya Pradesh
- Sinhandev,(1505 - 1524)
- Devi Singh, (1524 - 1535)
- Udyaut Singh,(1535 - 1546)
- Rana Anup Singh, (1546 - ?)
- Sambhu Singh,
- Abhay Chand, (1604 - 1628)
- Ram Chand, (1628 - 1647)
- Ratan Singh, (1647 - 1664)
- Uday Singh, (1664 - 1685)
- Bagh Raj, (1685 - 1699)
- Gaj Singh, (1699 - 1704)
- Jaswant Singh, (1704 - 1707)
- Bhim Singh Rana, (1707-1756)
- Girdhar Pratap Singh, (1756-1757)
- Chhatra Singh Rana, (1757-1785)
- Kirat Singh Rana, (1803 - 1805)(moved to Dholpur in 1805)
Rana rulers of Dholpur, Rajasthan
- Rana Kirat Singh, 1806 - 1836
- Rana Pohap Singh, 1836 - 1836
- Rana Bhagwant Singh, 1836 - 1873
- Rana Nihal Singh, 1873 - 1901
- Rana Ram Singh, 1901 - 1911
- Rana Udaybhanu Singh, 1911- 1948
Others
- Dev Pal Rana (देवपाल राणा) was the commander of the army formed by the Sarvakhap Panchayat of Chaugama in Bagpat district in VS 1455 (=1398 AD) to fight against Timur. [11] He was born in a Jat family of Nirpura village in Baraut tehsil of Bagpat district in Uttar Pradesh.[12]
- स्वामी आनन्द मुनि सरस्वती - राणा गोत्री (उत्तरप्रदेश)
- ठाकुर अलबेलसिंह राना - [पृ.569]: आप राना गोत्र के जाट सरदार ठाकुर उत्तमसिंह जी के सुपुत्र हैं। जन्म आपका लगभग आज से 30-32 वर्ष पहले हुआ है। ग्वालियर राज्य में गांव आपका चित्तौरा है और इस समय धौलपुर राज्य में तहसीलदार हैं। सर्विस में रहते हुए भी कौम की सामाजिक स्थिति को सुधारने की आप हमेशा कोशिश करते रहते हैं। आप दो भाई हैं। छोटे बृजेंद्रसिंह जी इस समय अंग्रेजी की नवमी कक्षा में पढ़ते हैं। वह एक होनहार व सीधी प्रकृति के बच्चे हैं।[13]
- ठाकुर जाहरसिंह - [पृ.570]: आप मुडैना के रहने वाले हैं जोकि जिला भिंड में अवस्थित है। गोत्र आपका राणा है। आप समझदार हैं। छोटे भाई का नाम मनोहरसिंह जी है। अवस्था आपकी इस समय लगभग 50 साल होगी। जाट क्षत्रिय सभा की कार्यकारिणी के आप मेंबर हैं। आपके एक भतीजे हैं जिन्होंने हिंदी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की है और इस अवसर पर घर का कामकाज देखते भालते हैं। [14]
- ठाकुर गंधर्वसिंह – [पृ.571]: आप चितोरा के रईस ठाकुर रघुवीरसिंह के सुपुत्र हैं। शिक्षा आपकी हिंदी माध्यमिक है। गोत्र आपका राणा है। उम्र लगभग 36-37 साल है। आप ग्वालियर जाट क्षत्रिय सभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं और एक उत्साही आदमी हैं। आप के सबसे छोटे भाई निहाल सिंह जी अध्यापक हैं। [पृ.572]: दूसरे और तीसरे भाइयों के नाम क्रमशः जोहारसिंह और पंचमसिंह है जोहार सिंह एक अच्छे पहलवान हैं। [15]
- ठाकुर हुकमसिंह - [पृ.572]: आप चित्तौरा के रहीस हैं। गोत्र आपका राणा है। उम्र आपकी लगभग 56-57 वर्ष होगी। शरीर से आप हृष्ट-पुष्ट आदमी हैं। दिल के भी आप मजबूत हैं। जाट सभा की ओर से बिरादरी के लोगों ने आपकी सेवाओं से प्रभावित होकर आप को सरदार की उपाधि दी है। इस समय जाट सभा ग्वालियर राज्य के प्रेसिडेंट है। आप एक अच्छे जमीदार खेतिहर हैं। आपके पुत्र अजमेर सिंह जी हैं जो घर के कामकाज को बुद्धिमानी के साथ संभालते हैं।[16]
- Major Vinod Kumar Rana
- N S Rana - IPS Delhi is from JATRANA
- S S Rana - IRS Delhi IS FROM JAT RANA
- Pravesh Rana - Model
- Sachin Rana - Cricketer
- CA.Kapil Rana - Chartered Accountant at New Delhi is from Nirpura (Baghpat)
- Satendra Singh Rana - IRS Ghaziabad
- Sat Parkash Rana - MLA, Delhi Assembly
- Prem Singh Rana - IAS Himachal Pradesh
- Satinder Singh Rana - Senior IAS officer, M/o Agriculture FROM JATRANA
- Vir Bhupendra Singh Rana - Addl.Chief Engineer(Retd.),PWD,Rajasthan
- Brigadier S S Rana - Senior Army officer
- Ch. Hira Singh
- Jitendar Singh Rana - Deputy Commissioner, Uttrakhand is from RANA GOTRA
- Wing Commander Jagbir Singh Rana from Kundal Village.
- Capt Priyanka Rana - Army officer Ghevera vill.
- Swami Anandmuni Sarswati - Rana Gotra
- Anju Singh Rana: Currently Assistant Commissioner in EPFO. Got IRTS-2014 batch with subject to change, M: 8800206869
- Jitender Rana: IPS 2005 batch Bihar Cadre, SP East Champaran, M: 9771045009
- Manoj Rana: Civil Judge JMIC Faridabad, From village Nangli Poona, Delhi, M: 8930444325
- Monika Rana, IRS (Income Tax)- 2007, Currently posted as Joint Commissioner, Panipat, From: Panipat, Haryana
- Sandeep Rana: IRS 2012 batch, Assistant Director, Income Tax, Investigation, New Delhi, Jhandewalan Extension, New Delhi, M: 9013851315
- Dr. R K Rana - Mob: 9896047181, Retd. Prof and Head, Dept. of Plant Breeding
College of Agriculture, CCS HAU, Hisar, Haryana. Email: "Dr. R.K. Rana" <rana.ramkanwar@gmail.com>
- Vivek Rana Indian Airforce from Alawa Rahimpur,Bulandshahr, UP Mob: 8171054357
- Iqbal Singh Rana-Dy Dir Delhi Jal Board (Horticulture Department, South)
- Lt Col Tarush Rana - Indian Army, Village-Nirpura, Baghpat.
- Balwan Singh Rana (Subedar) (02.01.1940 - 26.01.1988) became martyr on 26.01.1988 during Operation Pawan in Srilanka. He was from Pakasma village, tehsil Sampla district Rohtak, Haryana.
- Unit - 14 Jat Regiment
- Srishti Rana - Miss Diva - Miss Universe India 2013 & Miss Asia Pacific World 2013
See also
References
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.242, s.n.185
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. र-32
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 277
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter II
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 15-16
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 15-16
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 20
- ↑ भलेराम बेनीवाल :जाट योद्धाओं का इतिहास , पृ. ६९७
- ↑ Jat Bandhu, Agra, April 1991
- ↑ User:Shivanshrana99
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, Agra, 2004, p. 15-16
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV (Page 379)
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.569
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.570
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.571-72
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.572
- ↑ 'Jat Privesh', July 2015,p. 18
- ↑ 'Jat Privesh', July 2015,p. 18
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