Jat Jan Sewak/Bharatpur

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

भरतपुर के जाट जन सेवक

भरतपुर का प्राचीन इतिहास

[पृ.13]:

भरतपुर पवित्र ब्रज-भूमि का एक भाग है। ब्रज में आरंभ में मधु लोगों का राज्य था। सूर्यवंशी राजा शत्रुघ्न ने मधु लोगों के नेता लवण को मारकर अपना राज्य जमाया। सूर्यवंशी राजाओं से पुनः चंद्रवंशी राजाओं ने इस भू-भाग को छीन लिया। भोजकुल के राजा कंस को मारकर वृष्णी कुलीय कृष्ण ने इस भू-भाग को अपने प्रभाव में लिया। द्वारिका ध्वंस और यादवों के प्रभास क्षेत्र महा युद्ध के बाद भगवान कृष्ण के पौत्र व्रज को यह प्रदेश शासन के लिए मिला। तबसे यह भूभाग न्यूनाधिक 17 मार्च 1948 तक इसी वंश के हाथ में रहा। भरतपुर के वर्तमान महाराजा ब्रजेन्द्र सवाई ब्रजेन्द्र सिंह भगवान कृष्ण की 195 वीं पीढ़ी में माने जाते हैं।

भरतपुर की जाट प्रगतियाँ

1925: महाराजा श्री कृष्णसिंह पुष्कर जाट महोत्सव के प्रेसिडेंट बने और तबसे भरतपुर में बराबर जाट महासभा की मीटिंग हुई।

1929: भरतपुर में मेकेंजी शाही आतंक की परवाह किए बिना सूरजमल जयंती मनाई। इसी अपराध में ठाकुर देशराज की दफा 124ए में गिरफ्तारी हुई।

[पृ.14]:

1933: सन् 1933 में पौष महीने में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी पड़ती थी। जाट महासभा ने इस पर्व को शान के साथ मनाने का निश्चय किया किन्तु भरतपुर सरकार के अंग्रेज़ दीवान मि. हेनकॉक ने इस उत्सव पर पाबंदी लगादी। इसके विरोध में बाहर से जत्थे भेजकर ठाकुर भोलासिंह के सभापतित्व में उत्सव मनाया गया।

1937: ठाकुर लक्ष्मण सिंह आजऊ, सूबेदार भोंदू सिंह गिरधरपुर, राजा गजेंद्र सिंह वैर, और पथेना के कुछ साहसी जाट सरदारों के प्रयत्न से भरतपुर राज जाटसभा की नींव डाली।

1941: पथेना में राजा गजेंद्र सिंह के तत्वावधान में सूरजमल जयंती मनाई गई जिसका आयोजन स्वर्गीय ठाकुर जीवन सिंह ने किया।

1942: बूड़िया (पंजाब) के चीफ राजा रत्न अमोल सिंह के सभापतित्व में भरतपुर राज जाट सभा का शानदार जलसा मनाया गया। इसमें सर छोटू राम, कुँवर हुकम सिंह, चौधरी मुख्तार सिंह, रानी साहिबा मनोश्री चिरंजी बाई, चौधरी रीछपाल सिंह और प्रो गण्डा सिंह पधारे। इसी वर्ष दिसंबर में जाट महा सभा का डेपुटेशन महाराजा बृजेन्द्र सिंह की शुभ वर्ष गांठ पर विवाह की बधाई देने आया जिसमें हिन्दू, सीख और मुस्लिम जाटों के सभी प्रमुख लीडरों ने भाग लिया।

1944: दिल्ली में जाट महा सभा के अधिवेशन का सभापतित्व महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह ने किया।

[पृ.15]:

1945: महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह के जन्म दिन पर जाट प्रीति भोज देने की परंपरा डाली।

1946: अखिल भारतीय जाट महासभा का सालाना जलसा भारत सरकार के रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह के सभापतित्व में मनाया।

मत्स्य राज्य का उदघाटन

1947: जाट महासभा की जनरल कमिटी ने काश्मीर युद्ध में पूर्ण सहयोग देने और भारत को सबल राष्ट्र बनाने की गतियों में राष्ट्रिय सरकार की नीति के समर्थन का निश्चय किया।

17 मार्च 1948 को जबकि मत्स्य राज्य के उदघाटन की रस्म भरतपुर के किले में की जा रही थी किसान लोगों के साथ मिलकर किले की फाटक पर जाटों ने धरणा दिया। भरतपुर किसान सभा की मांगों को पूर्ण करने के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया।

भरतपुर के जाट जन सेवकों की सूची

भरतपुर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)

  1. कुँवर रतनसिंह (पूनिया), रुदावल, रूपबास, भरतपुर ...p.16-17
  2. कर्नल घमंडीसिंह (भगोर), जघीना, भरतपुर ...p.17-18
  3. ठाकुर गजेंद्रसिंह (सिनसिनवार), वैर, भरतपुर ...p.18-19
  4. चौधरी रामसिंह (तांगड़), लुधाबई, भरतपुर ...p.19-21
  5. रायसाहब सू. चिरंजीसिंह (सिनसिनवार), नौह बछामदी, भरतपुर ...p.21
  6. ठाकुर वीरीसिंह (पूनिया), भरतपुर ...p.21-22
  7. ठाकुर जीवनसिंह (सिनसिनवार), पथेना, भरतपुर ...p.22-23
  8. ठाकुर मोतीसिंह (सिनसिनवार), पथेना, भरतपुर ...p.23-24
  9. ठाकुर घीसीसिंह (सिनसिनवार), पथैना, भरतपुर ...p.24
  10. ठाकुर सम्पतसिंह, (....), नगला बखता, भरतपुर ...p.25
  11. ठाकुर परमानंद (खूंटेला), सान्तरुक, भरतपुर ...p.25-26
  12. ठाकुर ग्यारसीराम (खूंटेला), अजान, भरतपुर ...p.26
  13. पहलवान गणेशीलाल (खूंटेला), गुनसारा, भरतपुर ...p.26-27
  14. ठाकुर मनीरामसिंह (सोगरवार), तुहिया, भरतपुर ...p.27-28
  15. ठाकुर घनश्यामसिंह (सोगरिया), तमरोली, भरतपुर ...p.28
  16. चौधरी गोवर्धनसिंह (सोगरिया), ----, भरतपुर ...p.28-29
  17. ठाकुर छिद्दासिंह ( सोगरवार), ----, भरतपुर ...p.29
  18. मुंशी निहालसिंह ( सोगरवार), जघीना, भरतपुर ...p.30
  19. ठाकुर कमलसिंह (सिकरवार), नगला हथैनी, भरतपुर ...p.30-31
  20. ठाकुर तेजसिंह भटावली (डागुर), भटावली, भरतपुर ...p.31
  21. ठाकुर रामसिंह (सिनसिनवार), खोहरा, भरतपुर ...p.31
  22. फ़ौजदार नारायनसिंह (....), कुरबारा, भरतपुर ...p.31
  23. फ़ौजदार चरनसिंह (सिनसिनवार), बहज, भरतपुर ...p.32
  24. ठाकुर चूरामन सिंह (....), बरौली चौथ, भरतपुर ...p.32-33
  25. चौधरी सूरजसिंह (....), सुजालपुर, भरतपुर ...p.33
  26. चौधरी गोवर्धनसिंह खरेटावाले (इन्दोलिया), भरतपुर, मुडियापुरा, आगरा ...p.33-34
  27. ठाकुर नारायनसिंह (....), भरतपुर ...p.34
  28. ठाकुर रामसिंह (इन्दोलिया), भरतपुर, मुडियापुरा, आगरा ...p.34-35
  29. ठाकुर फतहसिंह (....), भरतपुर, मुडियापुरा, आगरा ...p.35
  30. ठाकुर लालसिंह (....), पैगोर, भरतपुर ...p.35-36
  31. ठाकुर तेजसिंह रायसीस (सिनसिनवार), रायसीस, भरतपुर ...p.36
  32. कुँवर लक्ष्मणसिंह (सिनसिनवार), आजऊ, भरतपुर ...p.37
  33. लेफ्टिनेंट हुकमसिंह , खेरली गड़ासिया, भरतपुर ...p.37
  34. सूबेदार पदमसिंह (सिनसिनवार), गादौली, भरतपुर ...p.37
  35. ठाकुर ज्वाला सिंह , रुदावल, भरतपुर ...p.37-38
  36. सूबेदार भोंदूसिंह (हंगा), गिरधरपुर, भरतपुर ...p.38
  37. सूबेदार तोतासिंह (सिनसिनवार), दांतलोठी, भरतपुर ...p.38
  38. ठाकुर विजयसिंह (सिनसिनवार), भरतपुर ...p.39
  39. ठाकुर रतनसिंह (सिनसिनवार), मालौनी, भरतपुर ...p.39
  40. कुँवर रामचंद्रसिंह (सिनसिनवार), पैगोर, भरतपुर ...p.39
  41. चौधरी तेजसिंह (दिनकर), बरकौली, भरतपुर ...p.40
  42. चौधरी देवीसिंह (दिनकर), बरकौली, भरतपुर ...p.40-41
  43. चौधरी रणधीरसिंह (.....), भरतपुर, कुरमाली, U.P. ...p.41-42
  44. ठाकुर कुमरपालसिंह जेलदार (....), कुम्हा, भरतपुर ...p.42
  45. बोहरे शंकर सिंह (....), महगंवा, भरतपुर ...p.42-43
  46. ठाकुर महाराजसिंह (सिनसिनवार), वैर, भरतपुर ...p.43
  47. मुंशी रामप्रसाद (डागुर), गोपालगढ़, भरतपुर ...p.43
  48. सरदार नारायणसिंह (गिल), इकरन, भरतपुर ...p.44-45
  49. सरदार इंदर सिंह, बयाना, भरतपुर ...p.45
  50. कुँवर पुष्करसिंह (सोलंकी), ----, भरतपुर ...p.45
  51. ठाकुर किरोड़ीसिंह (सिकरवार), सूती, भरतपुर ...p.46
  52. हवलदार गुलाबसिंह (डागुर), खंसवारा, कुम्हेर, भरतपुर ...p.46
  53. ठाकुर धांधूसिंह (बिसाती), कुरका, रुपबास, भरतपुर ...p.47
  54. कुंवर हरीसिंह (चाहर), भरतपुर ...p.47-48
  55. ठाकुर भोलासिंह (खूंटेल), भरतपुर ...p.48
  56. ठाकुर जियालाल (.....), अघावली, भरतपुर ...p.48
  57. कुँवर दयाल सिंह (.....), कसौदा, भरतपुर ...p.49
  58. ठाकुर हुकमसिंह (परिहार), कठवारी (आगरा), भरतपुर ...p.49
  59. ठाकुर किशनसिंह (....), सीसबाड़ा, भरतपुर ...p.49-50
  60. ठाकुर दामोदरसिंह (सिनसिनवार), साबोरा, कुम्हेर, भरतपुर ...p.50
  61. ठाकुर टीकमसिंह (.....), बिरहरू, कुम्हेर, भरतपुर ...p.50
  62. मास्टर अमृतसिंह (.....), विजवारी, वैर, भरतपुर ...p.50-51
  63. ठाकुर स्यामलाल (सिकरवार), कवई, नदबई, भरतपुर ...p.51
  64. ठाकुर चरणसिंह (सिनसिनवार), बयाना, भरतपुर ...p.51
  65. ठाकुर रामखिलारीसिंह (.....), सीही, कुम्हेर, भरतपुर ...p.51-52
  66. राजा किशन आजऊ (.....), आजऊ, भरतपुर ...p.52
  67. जमादार घनश्यामसिंह (.....), सिनसिनी, भरतपुर ...p.53
  68. ठाकुर रामस्वरूपसिंह (सिनसिनवार), मवई, डीग, भरतपुर ...p.53
  69. पहलवान भरतीसिंह (.....), सिनसिनी, भरतपुर ...p.53-54
  70. ठाकुर गिरवरसिंह (.....), सिनसिनी, भरतपुर ...p.54
  71. ठाकुर निनुवासिंह (सिनसिनवार), कसोट, भरतपुर ...p.54
  72. बोहरे नत्थी सिंह (....), पंघोर, भरतपुर ...p.55
  73. ठाकुर जोतिराम (....), पंघोर, भरतपुर ...p.55
  74. ठाकुर रामसिंह (खूंटेल), पेंघोर, भरतपुर ...p.55-56
  75. ठाकुर फूलीसिंह-मूलीसिंह (सिनसिनवार), बैलारा, भरतपुर ...p.56
  76. रामसिंह बैलारा (सिनसिनवार ), बैलारा, भरतपुर ...p.57
  77. जमादार करनसिंह फौजदार (....), कुम्हा, भरतपुर ...p.57
  78. सूबेदार भूराराम (....), पेंघोर, भरतपुर ...p.57-58
  79. ठाकुर सदनसिंह (खूंटेल), सान्तरुक, भरतपुर ...p.58
  80. ठाकुर किशनसिंह (....), नगला बरताई, भरतपुर ...p.58-59
  81. ठाकुर कन्हैयासिंह बहनेरा (सिनसिनवार ), बहनेरा, भरतपुर ...p.59
  82. ठाकुर कन्हैयासिंह धनागढ़ (सिनसिनवार ), धनागढ़, भरतपुर ...p.59
  83. टीकम सिंह (....), अजान, भरतपुर ...p.59-60
  84. ठाकुर जुगलसिंह (....), अवार, भरतपुर ...p.60
  85. ठाकुर अतरसिंह (....), सुरौता, भरतपुर ...p.60-61
  86. ठाकुर कल्लनसिंह (....), पेंघोर, भरतपुर ...p.61
  87. ठाकुर गंगादानसिंह (....), कुरबारा, भरतपुर ...p.61
  88. ठाकुर ध्रुवसिंह (सिनसिनवार), पथेना, भरतपुर ...p.61-63
  89. कुँवर सेन, ----, भरतपुर ...p.63
  90. गोरधन सिंह चौधरी, (----), भरतपुर ...p.64-65
  91. ठाकुर भगवतसिंह (सिनसिनवार), बुड़वारी, भरतपुर ...p.65
  92. ठाकुर यादरामसिंह (बिसाती), भौसिंगा, भरतपुर ...p.65
  93. ठाकुर पूरनसिंह (----), हलेना, भरतपुर ...p.65
  94. जेलदार अंगदसिंह (----), बरौलीछार, भरतपुर ...p.66
  95. कुँवर हिम्मतसिंह (----), कासगंज, भरतपुर ...p.66
  96. कुँवर महेंद्रसिंह (----), गादौली, भरतपुर ...p.66-67
  97. चरण सिंह (----), सहना, भरतपुर ...p.67
  98. धर्म सिंह (----), सहना, भरतपुर ...p.67
  99. जमादार धर्मसिंह (----), एकटा, भरतपुर ...p.67
  100. ठाकुर बालूराम (----), बसेरी, भरतपुर ...p.67
  101. ठाकुर ब्रजलाल (सोगरिया), डीग, भरतपुर ...p.68
  102. ठाकुर मेवाराम, ----, भरतपुर ...p.68
  103. ठाकुर सभाराम (----), नगला सभाराम, भरतपुर ...p.68-69
  104. ठाकुर नत्थासिंह (----), पीरनगर, भरतपुर ...p.69
  105. पूरनसिंह खेरली (----), खेरली, भरतपुर ...p.69
  106. नत्थीसिंह बेधड़क (----), मालौनी, भरतपुर ...p.69-70
  107. कुँवर रणवीरसिंह, ----, भरतपुर ...p.70
  108. मास्टर ओंकारसिंह (----), अजरौदा, भरतपुर ...p.70-71
  109. मथुरालाल (----), अरौदा, भरतपुर ...p.71-73

भरतपुर के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी

कुंवर रतनसिंह

1. कुंवर रतनसिंह - [पृ.16]: उन्हें तमाम हिंदुस्तान के जाट जानते हैं। जाट सेवा में मैं उनसे बहुत पीछे आया। मेरा उनके साथ अधिक से अधिक प्रेम और विरोध रहा है। स्नेह के दिनों में उन्होंने मुझे आगे बढ़ाया था। कर्मवीर तपस्वी की उपाधियां उन्होंने मुझे दी थी और विरोध में जमीन में गाड़ देने की कोशिश की। यह उनकी आदत ही है कि वे जो कुछ भी करते हैं चरम सीमा तक करते हैं। मैं उनकी कौमी सेवाओं की कदर करता हूं। उन्होंने जब से होश संभाला है कौम की सेवा की है।

सन् 1925 में पुष्कर में स्वर्गीय महाराजा श्रीकृष्णसिंह जी के सभापतित्व में जाट महोत्सव हुआ। उसमें आप अखिल भारतीय विद्यार्थी कांफ्रेंस के स्वागताध्यक्ष थे। राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा के वर्षों से प्रेजिडेंट और अखिल भारतीय जाट महासभा के उपमंत्री रहे हैं। यह भी हमारी कौम में कुंवर हुकम सिंह जी के बाद आपको ही सौभाग्य प्राप्त है कि अखिल भारतवर्षीय आर्य कुमार परिषद के आप मंत्री रहे हैं। सीकर का जाट आंदोलन आपकी सेवा में स्मरणीय है। भरतपुर में आरंभ से लेकर आपने अंत तक जाट विरोधी हुकूमत का विरोध किया है।

सन् 1940 से अब तक भरतपुर प्रजापरिषद में एक अगुआ रहे हैं। सन् 1942 के चुनाव में प्रजा परिषद को सफल बनाने में आप ने रात दिन एक कर दिए। इस समय भरतपुर राज्य किसान सभा के एक प्रमुख लीडर हैं।

चौधरी झांगीरसिंह जी आपके पिता हैं और पूनिया गोत्र है। मेयो कॉलेज में आपने शिक्षा पाई। रुदावल में आप की जमीदारी है।


[पृ.17]: दो बार भरतपुर म्युनिसिपल के आप मेंबर रह चुके हैं। पिछले दिनों आप भरतपुर असेंबली के सदस्य थे।

आप अखिल भारतीय ख्याति के आदमी हैं और उन योद्धाओं में से हैं जिनके कारण शत्रु हमेशा कांपता रहता है।

सन् 1948 में चलने वाले भरतपुर किसान आंदोलन के आप साथियों द्वारा युद्ध प्रमुख चुने गए थे। आप के ऊपर राजस्थान से जाट गर्व करते हैं और सभी राजस्थानी नेता आप का आदर करते हैं।............ (ठाकुर देशराज की कलम से)

2. कर्नल घमंडीसिंह - [पृ.17]: अभी थोड़े वर्ष पहले विनोद में एक प्रजापरिषद के लीडर ने कहा था कि भरतपुर की हुकूमत तो जघीना वालों के हाथ है क्योंकि होम मिनिस्टर जघीना का, हुजूर सेक्रेटरी जघीना का और असेंबली के प्रेसिडेंट और डिप्टी प्रेसिडेंट जघीना के हैं। वास्तव में जघीना एक भाग्यशाली गांव है। उसमें हर समय कोई न कोई नामी आदमी होता आया है। गोल खाने के बाद बीरबल चौथईया और अब यह ऊपरवाले महानुभाव।

आज से 53 वर्ष पहले चौधरी बीरबलसिंह जी के घर कर्नल धमंडीसिंह जी का जन्म हुआ। जन्म के साथ ही ऊंचा भाग्य लेकर आए थे। पिता साधारण जमीदार और सिपाही थे। यह बात अलग है कि वे महाराजा जसवंतसिंह जी के रिश्तेदार थे। लेकिन कर्नल घमंडी सिंह जी जो कुछ भी बने अपने भाग्य से। भाग्य ने उन्हें काफी आगे बढ़ाया और जब जब भी उन पर संकट आए उन्होंने बड़ी गंभीरता के साथ यह कहकर उन्हें बर्दाश्त किया कि यह भी जो हमारे भाग्य में


[पृ.18]: बदा है वह होना है। यह कहा जा सकता है कि उन्होंने सक्रिय रुप में कौम की ज्यादा सेवा नहीं की है लेकिन उनके दिल में हमेशा कौम को ऊंचा देखने की इच्छा रही है और कौम के लिए काम करने वालों के साथ प्रेम और शांति रखी है।

गत 2 साल से जाट सभा भरतपुर के संपर्क में रहकर अपने कौम की सक्रिय सेवा की है। भरतपूर में एक जाट भवन बनाने की स्कीम आपके हाथ है और उसमें आप प्रयत्नशील भी हैं। आप का गोत्र भगोर है। इस समय आप चार भाई हैं। आपसे छोटे मेजर गोविंदसिंह जी सेशन जज हैं और उनसे छोटे लेफ्टिनेंट साहबसिंह। साहब सिंह से छोटे लक्ष्मणसिंह जी हैं जो कि पुलिस में इंस्पेक्टर है। सबसे छोटे सरदारसिंह हैं। कर्नल साहब सब तरह से भरे पूरे हैं। राज में जहां सम्मान है पैसे की भी कमी नहीं है। सौ सवासौ आदमियों का आपका कुटुंब है। भरतपुर के जाट जमीदारों में आप सबसे बड़े जमीदार हैं। स्वभाव में मीठे और सर्व प्रिय हैं।

3. ठाकुर गजेंद्रसिंह - [पृ.18]: भरतपुर के संस्थापक वीरवर महाराजा सूरजमल जी के छोटे भाई का नाम राजा प्रतापसिंह था। उन्होंने राज्य की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर वेर में अपने लिए एक सुंदर किला बनाया था जो आज भी उनके पौरुष की साक्षी देता है। उन्हीं के वंशजों में ठाकुर गजेंद्र सिंह हैं। अब से चार पांच साल तक आप वेर वाले राजा जी के नाम से प्रसिद्ध थे और सरकारी कागजातों में भी राजाजी ही लिखे जाते थे। अब राजा जी का खिताब तो नहीं रहा किंतु आम जनता आज भी उन्हें राजा


[पृ.19]: ही कहती है। आपके पिता राजा समुंद्रसिंह जी के चार पुत्र थे जिनमें आपसे बड़े बृजेंद्र सिंह जी और दो छोटे नरेंद्रसिंह और सुरेंद्रसिंह हैं। सार्वजनिक जीवन में ठाकुर गजेंद्रसिंह जी स्वर्गीय महाराज श्रीकृष्ण सिंह जी के समय से दिलचस्पी लेने लगे हैं। जब से भी भरतपूर राज्य जाट सभा की स्थापना हुई है आप उसके प्रमुखों में रहे हैं। अखिल भारतीय जाटमहासभा के आप उपप्रधान रह चुके हैं।

मैं उनके संपर्क में सन् 1942 से हूं। वह परिश्रमी और समय को पहचानने वाले आदमी है। एक सरदार परिवार में जन्म लेकर भी आपने राजा महेंद्र प्रताप जी द्वारा संस्थापित प्रेम महाविद्यालय में दस्तकारी का प्रशिक्षण लिया है। आप चित्रकला में भी प्रवीण हैं। सबके साथ मिलकर चलने की उनकी नीति है। इरादा कर लेने पर भी वे कड़वी बात नहीं कर सकते हैं। यह उनका सबसे बड़ा गुण है।

उनके दो संताने हैं। एक पुत्री और एक पुत्र। पुत्र का नाम भूपेंद्रसिंह है। सन 1942 में भरतपुर में जो शानदार जाट महोत्सव स्थानीय जाट सभा का हुआ था यह आपके अधिक परिश्रम का फल था।

4. चौधरी रामसिंह - [पृ.19]: आगरा जिला तहसील फिरोजपुर में जिरौली एक गांव है। ठाकुर गंगाराम जी यहां के प्रसिद्ध रईस थे। आगरा जिला में यह वह घर है जहां जिले के हाकिम कलेक्टर से लेकर प्रांत के शासक गवर्नर तक पधारें हैं। चौधरी गंगाराम जी के बड़े पुत्र लायकसिंह अत्यंत योग्य और मिलनसार आदमी हैं।


[पृ.20]: तमाम जिला अधिकारियों पर उनका असर है। चौधरी रामसिंह जी उन्हीं लायकसिंह जी के छोटे भाई हैं। अमीर बाप के बेटे होने के कारण आपने पैसे को खर्च करने में कभी भी हाथ को तंग नहीं किया। अब से 10-15 साल पहले आपने रियासत भरतपुर में प्रवास आरंभ किया और उसके कुछ दिन बाद तहसील ड्योढ़ी के लुधावई गांव में एक अच्छी जमीदारी खरीद ली। तबसे आप लुधाबई में ही रहते हैं।

मेरा उनके साथ, सन 1942 में जबकि भरतपुर राज्य जाट सभा की तरफ से एक कॉन्फ्रेंस भरतपुर में शालिग्राम पर हुई, निकट संपर्क है। भरतपुर राज्य जाट सभा के वे प्रधानमंत्री और उपप्रधान रह चुके हैं। इस समय जमीदार किसान सभा की हाई कमांड में आपका प्रमुख स्थान है। आप अच्छे वक्ता और विचारक हैं। अपने ख्यालात और रास्ते के दृढ़ हैं। साहस आपका अदम्य है। किसी दबाव और भय से दबना आपने कभी भी सीखा नहीं।

3-4 साल के संपर्क के बाद मैं कह सकता हूं कि वह एक पक्के और विश्वसनीय साथी हैं। अनुशासन पसंद है। और अपनी तरफ से जिसके साथ दोस्ती करते हैं कभी तोड़ते नहीं। बिगड़ने पर आप हमेशा ईट का जवाब पत्थर से देने को तैयार रहते हैं। विरोधी अगर हथियार डाल दे तो उसे क्षमा कर देने की क्षमता रखते हैं।

आप के एक पुत्र हैं। नाम उनका विक्रम सिंह है जो विनय और शीलवान है। व्यापारिक क्षेत्र में योग्यता प्राप्त कर रहे हैं।

सन 1947-48 चौधरी जी को तीन बार जेल यात्रा करनी पड़ी। वे राजतंत्र और प्रजातंत्र दोनों ही सरकारों


[पृ.21]: के काम माजब रहे हैं किंतु उन्होंने कभी भी अपने मार्ग को नहीं छोड़ा।

नोट - चौधरी रामसिंह के गोत्र का उल्लेख ठाकुर देशराज द्वारा पुस्तक में नहीं किया गया था। यह जानकारी श्री चंद्रवीरसिंह निवासी लुधावई (मो:9414001203) से प्राप्त की गई है। उनका गोत्र तांगड़ था। Laxman Burdak (talk) 11:20, 24 January 2018 (EST)

5. रायसाहब सू. ठा. चिरंजी सिंह

5. रायसाहब सू. ठा. चिरंजी सिंह – [पृ.21]: कर्नल गिरधरसिंह जी सीआई के बाद आप भरतपुर के जाटों में दूसरे खिताबधारी जाट सरदार है। आपका जन्म नौह बछामदी में अब से 57-58 साल पूर्व हुआ था। आप कोठर बंद सिनसिनवार हैं। इस समय आप भरतपुर में रहते हैं।

पेंशन पाने के बाद से आप सार्वजनिक कामों में हिस्सा ले रहे हैं। भरत भरतपुर राज्य जाटसभा के जन्म काल से ही साथ हैं। ऑनरेरी मजिस्ट्रेट है। भरतपुर म्युनिसिपालिटी में कमिश्नर भी रह चुके हैं। जमीदार किसान सभा के साथी हैं। इस समय भरतपुर की असेम्बली के सदस्य रहे हैं। हर दिल अजीज हैं। मेहनती आप बहुत ज्यादा हैं। हम कभी कभी उनसे कहा करते हैं कि मेजर साहब भरततपुर में आपके साथ ही मेहनत भी मर जाएगी।

इस युद्ध के दौरान में आप भरतपुर सोल्जर बोर्ड के ज्वाइंट सेक्रेटरी व वारफ्रंट के अफवाह खंडक लीडर रहे हैं। आप की स्पीच विनोदपूर्ण होती हैं। कौम की सेवा के हर काम में आप रस लेते हैं। देहातों से आने वाले लोगों की शिकायतों को दूर कराने के लिए हाकिम हुक्कामों तक पहुंचते हैं। आपके तीन पुत्र हैं: भूपसिंह जी, जगदीशसिंह और बृजेंद्रसिंह जी।

6. ठाकुर वीरीसिंह - [p.21]: भरतपुर राज्य का कोई शायद ही ऐसा जाट परिवार होगा जो ठाकुर वीरीसिंह को नहीं जनता होगा। मैं यह कह


[p.22]: सकता हूँ कि उनका घर भरतपुर में जाटों का विश्रामगृह है। जिसे कहीं भी सहारा नहीं मिलता वह आपके यहाँ पहुँच जाता है। सोने को चारपाई पाता है। पीने को तंबाकू और जल और यथासंभव भोजन भी। अपनी छोटी सी आमदनी में वह सब का सत्कार करते हैं। कौम के हर काम में हिस्सा लेते हैं। उनके चार पुत्र हैं। बड़े भीम सिंह जी हैं जिन्होंने सन 1942 के जाट उत्सव में स्वयंसेवक का कार्य बड़ी लगन से किया था। आप पूनिया जाट हैं।

7. ठाकुर जीवनसिंह – [पृ.22]: भरतपुर राज्य में अलवर और जयपुर से मिलने वाली सीमाओं पर एक पथेना गांव है। यह गांव इतिहास में एक बहादुराना पृष्ठभूमि, अपने अक्खड़पन और जवांमर्दी के लिए प्रसिद्ध है। मैं यह कह सकता हूं कि तालीम के लिहाज से भी यह गांव भरतपुर के तमाम जाट गांवों में अग्रणीय है। कप्तान सुग्रीवसिंह, कप्तान रामजीलाल, ठाकुर मेवाराम और सूबेदार कोकीसिंह बगैर अफसरान इसी गांव के हैं। इसी मरदाने गांव में विक्रम की 20वीं सदी के पहले चरण में ठाकुर जीवनसिंह जी का जन्म हुआ था।

मैंने उन्हें यूं तो कई बार देखा किंतु उनके अंतर के जाट के दर्शन सन 1941 के जाड़ों में सूर्यमल जयंती पथैना में मनाने के अवसर पर हुए थे। जब महाराजा सूरजमल जी का चित्र एक सुसज्जित चौकी पर रखकर नगर कीर्तन के लिए उठाया गया तो उन्होंने गदगद होकर वह प्रतिमा सिंहासन अपने सिर पर रख लिया और तमाम गांव की परिक्रमा में सिर पर ही रखे रहे। यह उनके अंदर की श्रद्धा थी जो अपनी कौम के महान उदाहरण सूरजमल


[पृ.23]: के चित्र का सम्मान करने के लिए साकार हो पड़ी थी।

उनके चेहरे से रोब और तेज बरबस टपकते थे और लोग उनसे अनायास डरते थे। वह पथेना के इस युग के शेर थे। नाबालिग की भारतपुरी हुकूमत उनसे सदैव डरती थी।

यही कारण था कि जब सन 1938 में शासन सुधारों के अनुसार एडवाइजरी कमेटियां बनी तो भरतपुर सरकार ने उन्हें सेंट्रल एडवाइजरी कमेटी का सदस्य नामजद किया। डर उन्हें छू नहीं गया था। कौन से सच्चा प्यार था।

सन 1942 में ठाकुर जीवनसिंह इस आसार संसार से उठ गए। अपने पीछे उन्होने 4 पुत्र छोड़े हैं। बड़े कुंवर परशुरामसिंह जी हैं जिन्हें स्वर्गीय अलवर महाराज ने जागीर बख्शी थी। अब भरतपुर सेना में मेजर हैं। दूसरे ध्रुवसिंह जी हैं। पहले अलवर में रिसालदार थे और अब भरतपुर किसानों के एक प्रमुख लीडर है और किसान जमीदार सभा के अंग हैं। ध्रुवसिंह जी का बनाया जवाहर साखा एक ओजस्वी पुस्तक है। आप अच्छे और खरे लेक्चरार हैं।

तीसरे कुंवर गंगासिंह जी तहसीलदार है। अल्पभाषी मीठापन उनका ईश्वरदत्त स्वभाव है। चौथे जगतसिंह जी हैं।

8. ठाकुर मोतीसिंह जी - [पृ.23]: "राजा बली ने यज्ञ किए थे स्वर्ग प्राप्त करने के लिए किन्तु हरि ने उन्हें पाताल भेज दिया" जब मैं इस कथा कौन सुनता हूं तो मोती सिंह जी के बारे में भी सही उतरते देखता हूं। मैंने उन्हें काफी निकट से देखा और पढ़ा है। भरतपुर के जाटों में वे किसी से भी कम न रहने वाले कौम परस्त हैं। आप आरंभ में भरतपुर में गौशाला और ग्रासफार्म


[पृ.24]: अफसर रहे थे। महाराजा किशन सिंह के निर्वासन के बाद उन पर भी आपत्तियाँ आई और बाहर चले गए। बाहर से भी उन्होने भरतपुर के जाटों के लिए और भरतपुर राजगद्दी की मान मर्यादा बनाये रखने के लिए जो कुछ बन सकता था वह किया। शाहदरा में महाराजा सूरजमल के चबूतरे पर मेला लगता है वहाँ आप कई वर्ष तक प्रबन्धक रहे। बाहरी जाट लीडरों को भरतपुर की समस्याओं के प्रति आपने सदैव आकर्षित किया। राय बहादुर चौधरी सर छोटूराम का झुकाव भरतपुर की तरफ करने में आपका काफी हाथ था। आपके बड़े भाई कप्तान सुग्रीवसिंह भी भरतपुर के जाटों की तरक्की के कामों में प्रसन्नता से भाग लेते रहे हैं। ठाकुर मोतीसिंह जी की हमेशा पथेना के लोगों के आपसी झगड़ों को मिटाने की इच्छा रही है।

9. ठाकुर घीसीसिंह - [पृ.24]: आरंभ में आप भरतपुर केसरी ठाकुर ध्रुवसिंह जी के लेफ्टिनेंटों में थे। आपसी रंजिश से लगाए गए एक केस में आप की गिरफ्तारी के वारंट फिरते थे। मैंने उनकी थोड़ी बहुत मदद की थी। उन्होंने कौम के लिए दिल में प्रेम रखा है। इसे मैं खूब जानता हूं। इस समय भरतपुर की राजनीति में वह जाट विरोधियों की कतार में हैं और वे ओछा से ओछा हथियार भी फेंकने से बाज नहीं आते हैं। किंतु अब उनकी आंखे खुलने लगी हैं।

ठाकुर घीसीसिंह भरतपुर की असेंबली 'ब्रज जाया समिति' के सदस्य रहे हैं।


10. ठाकुर सम्पतसिंह - [पृ.25]: सन् 1935-36 में मेरे पास एक भारतपुरी जाट नौजवन सम्पतसिंह पहुंचा था वह रास नगला बखता गाँव का था। टीका राम गिरदावर ने बताया कि राज से इन्हें खान-पान मिलता था। सदावर्त में ये मुलाजिम थे। आप वाटर शाही के कौप के शिकार हैं। आपने ठाकुर देशराज से सहायता मांगी। उन दिनों मैं आगरा में रहता था। 'गणेश' नाम का साप्ताहिक पत्र अपना अखबार था। हम लोगों के पास तोप के मुक़ाबिल अखबार ही होते हैं। मैंने आप पर हुये जुल्मों का प्रकाशन 'गणेश' अखबार में किया गया। उनके साथ हुये अत्याचारों की काफी आलोचना की। वह काफी दिन मेरे पास रहे फिर आप भरतपुर चले आए। यहाँ गिरफ्तार हुये और छुट भी गए। बस यहाँ से आपकी चर्चा भरतुर के जाटों में फ़ेल जाती है। और वे भी इसके बाद जितना उनकी बुद्धि और सामर्थ्य ने साथ दिया कौम के कार्य करने लगे।

11. ठाकुर परमानंद - [पृ.25]: भरतपुर राज्य की पूर्वी उत्तरी सीमा पर सान्तरुक एक गाँव है। खूंटेला जाटों की बस्ती है। नंबरदार चिरंजीसिंह के घर में अब से 41-42 साल पहले इस नौजवान ने जन्म लिया था। मैं उन दिनों एक अत्यंत साधारण आदमी था। जब तक किसी को यह ख्याल भी न था कि यह साधनहीन लड़का जो कनेर के पेड़ के नीचे चने अथवा अरहर की रोटियों को बिना साग चटनी के रारह के हिंदी मिडिल स्कूल में पढ़ते समय खाकर अपना जीवन बिता रहा है एक दिन लीडर भी


[पृ.26]: होगा। उस समय से परमानन्द से मेरी दोस्ती है। ओल केस में परमानंद के पिताजी को कारावास हुआ। उस मुकदमे में उनकी आर्थिक दशा अत्यंत गिर गई। गांव के प्रतिद्वंदियों ने उसे जड़ से मिटाने की कोशिश की। सन् 1924 से आई हुई विपति ने परमानंद को सन 1938 का पेला। इस पर भी सन 1939 में वह मेरे साथ भरतपुर की जेल में गए। सन् 1939 के भरतपुर सत्याग्रह को सफल बनाने में भी कृष्णलाल जी जोशी, पंडित दौलतराम और ठाकुर परमानंद से अधिक परेशानियां शायद ही किसी दूसरे ने उठाई हो।

12. ठाकुर ग्यारसीराम [पृ.26]: भरतपुर से गोवर्धन जाने वाली सड़क पर अजान खुंटेला जाटों का एक गांव है। इसमें ठाकुर ग्यारसीराम जी रहते हैं। आपने कुछ दिनों फौजी सर्विस भी की थी। उदेराम उन्हीं के चचेरे भाई हैं जो सन् 1939 के सत्याग्रह में जेल गए थे। उस समय इस गांव से कंचनसिंह, कमल सिंह, टीकमसिंह भी जेल गए थे। आप अपनी बात के धनी और एक मार्ग पर चलने वाले आदमी हैं। और मैं कह सकता हूं कि आप और आपके भाई मेरे सच्चे साथियों में से हैं। सन 1942 के किसान सत्याग्रह में आप प्रथम जत्थे के नायक की हैसियत से जेल भी हो आए हैं।

13. पहलवान गणेशीलाल - [पृ.26]: महाराजा किशन सिंह के जमाने में गणेशीलाल पहलवानी करते थे। वे ब्रज के उच्च कोटी के पहलवान थे। गुनसारा उनकी जन्म भूमि थी और खूंटेला उनका गोत्र था।


[पृ.27]: सन् 1939 में पहले जत्थे में भरतपुर सत्याग्रह में जेल भेजे गए। आज वे इस संसार में नहीं हैं। किन्तु उनकी मुझे बार-बार याद अति है। सिद्धांतों पर कुर्बान होने वाला इतना दृढ़ आदमी भरतपुर में मैंने दूसरा नहीं देखा। कठवारी जिला आगरा की 1940 की जाट कानफेरेंस में शुद्ध हुये मलिकाने जाटों के साथ शादी-व्यवहार की बात हुई। आपने अपनी पुत्री का वचन खडवाई के ठाकुर गुलाब सिंह के पुत्र के लिए दे दिया। तमाम गोत्र के लोगों ने विरोध किया। अपने जान की भी परवाह न करते हुये शादी करदी। ऐसे थे वे बात के धनी। आपके बड़े भाई ठाकुर चरणसिंह जी हैं वे भी इसी स्वभाव के हैं। कुँवर वासदेव सिंह पहलवान जी के भतीजे हैं। जो अपनी नौकरी को छोडकर जेल गए थे। और जमीदार किसान सभा की ओर से भरतपुर असेंबली के मेम्बर रहे हैं। आपका सारा परिवार सुधारक खयालात का है और आर्य समाजी है।

14. ठाकुर मनीरामसिंह - [पृ.27]: भरतपुर तहसील के तुहिया गाँव के बोहरे गंगाराम का नाम बहुत प्रसिद्ध है। लोग उनके घर के बारे में अनेक अटकलें लगाया करते थे। उन्ही बोहरे गंगारामसिंह जी के ठाकुर मनीरामसिंह और दुलीचंद दो लड़के हुये। ठाकुर मनीराम सिंह पढ़ लिख कर आगे बढ़े।

महाराजा किशन सिंह के जमाने में वे कई गाँव के सरपंच बनाए गए। और शासन समिति का कार्य करनेवाली कमेटी में भी नाम रखा गया। जिन दिनों राय बहादुर लालचंद जी भरतपुर में माल मंत्री थे आपकी पूछ बढ़ गई थी। आपने अपने लड़कों को


[पृ.28]: भी अच्छी तालीम दिलाई। कौम के कामों में उन्होने काफी समय तक सहयोग दिया। आप सोगरवार जाट हैं।

15. ठाकुर घनश्यामसिंह - [पृ.28]: भरतपुर तहसील के तमरोली गाँव के बोहरे हरिभजन की उदारता बहुत प्रसिद्ध है। ठाकुर घनश्यामसिंह उन्हीं हरिभजन के पुत्र हैं। इस समय आपकी उम्र 50 से ऊपर है। किन्तु तंदुरुस्ती तीस वर्ष के नौजवानों से भी अच्छी है। महाराजा किशन सिंह पर जब विपत्ति आई तो रिश्तेदार होने के कारण पुलिस ने आपको भी तंग किया।

भरतपुर में जबसे जाट सभा बनी तभी से आप उसके साथ हैं। 1947 में आपके ऊपर कुछ शहरी गुंडों ने इसलिए हमला किया था कि आप एक मजबूत जाट थे और उनके गुंडेपन का मुक़ाबला करने आ डेट थे। आप अतिथि सत्कार के लिए काफी मशहूर हैं। आपने अपनी तरह अपने लड़कों को पहलवान बनाने की कोशिश की। प्यारे लाल जी जो आपके बड़े लड़के हैं एक अच्छे पहलवान साबित हुये हैं। वैसे आपके गाँव में पहलवानी शौक काफी है। आपके चचेरे भाइयों में ठाकुर जोरावर सिंह, राम सरन सिंह, आदि ने भी पहलवानी की है। तमरोली के जाट मर्द जाट कहलाते हैं। गोत्र आपका सोगरिया है।

16. चौधरी गोवर्धनसिंह - [पृ.28]: आपका सोगरिया गोत्र है। इस समय सोगरिया जाटों में आप ऊंची आर्थिक स्थिति के बोहरे हैं। आपके बड़े पुत्र विजय सिंह जी अत्यंत विजयी और सच्चे सीधे आदमी


[पृ.29]: आपकी रुचि जाट कौम के भले के लिए बराबर प्रयत्न करते रहने में है। आप शांत तरीके से कौम में मदद भी देते हैं। अपने परिश्रम और खेती से आपने अच्छी स्थिति बनाकर जाटों के सामने अच्छा उदाहरण पेश किया है।

17. ठाकुर छिदासिंह - [पृ.29]: जहा दौपहर का धौंसा बजकर खेमकरण का भोजन होता था और जिसकी वजह से सोगरवार जाटों का सिर गर्व से ऊंचा हुआ था उसी वीर खेमकरण की जन्मभूमि में पैदा होने वाले जिस नोजवान ने 17.3.1948 को भरतपुर के किले में नई सरकार के सैनिकों के सामने छाती अड़ाकार, बंदूकों के हूदे खाकर और सेरों शरीर का खून बहाकर बहदुरी का परिचय दिया था उस का नाम ठाकुर छिदासिंह है। वह सिर्फ 27-28 साल का नोजवान है। किन्तु उसमें पानी है। सन् 1942 से ही वह किसान सभा का न डिगने वाला साथी है।

वीर खेमकरण की जन्मभूमि में ठाकुर पदमनसिंह (सुपुत्र ठाकुर रामचन्द्रसिंह), ठाकुर गिरराजसिंह (सुपुत्र ठाकुर गुलजारासिंह) और जमादार भगवान सिंह आदि दूसरे जाट जन सेवक हैं। जो आपस में लाख मतभेद होने पर भी कौम की सेवा में एक मत हैं।

नगला केसरिका में ठाकुर पंजाब सिंह, और नगला संता में ठाकुर पदमसिंह शांत ढंग से मदद देने वाले और कौम से मोहब्बत करनेवाले सभी कामों में दिलचस्पी लेते हैं।


18. मुंशी निहालसिंह - [पृ.30]: सोगरियों के बड़े गाँव जघीना में अनेक प्रसिद्ध जाट हुये हैं। गोलखाने के सदावर्त की बात काफी मशहूर है। पदमा के भजन आज भी दूर-दूर तक गए जाते हैं। ठाकुर बीरबलसिंह चौथईया का नाम दूर-दूर तक मशहूर है। आगरा मथुरा के जिलों में बड़े जाटों में उनका दब-दबा था। वे स्वर्ग वासी हो गए और अपने कुँवर महेंद्र सिंह जी को अपनी यादगार छोड़ गए।

उसी जघीना में ठाकुर देशराज के बाल-सखाओं में निहालसिंह भी हैं। आप 1924 से 1927 तक तमाम सुधार कार्यों में ठाकुर देशराज के साथ रहे। फिर बंबई चले गए। आप एक अच्छे कवि हैं। 17.3.1948 को आपको भी काफी चोटें आई थी।

आपके सभी पुत्र आज्ञाकारी और समझदार हैं। उनमें भगवान सिंह रेलवे में मालगाड़ियों के एग्जामिनर हैं।

ठाकुर रामलाल जी भवनपुरा और ठाकुर जंगलियासिंह जी जघीना के दूसरे जाट सेवक हैं जो सभा सोसायटियों के कामों में दिलचस्पी लेते हैं और उनकी उन्नति के लिए परिश्रम भी करते हैं।

19. ठाकुर कमलसिंह [पृ.30]: आपका सिकरवार गोत्र है। आपके पिताजी का नाम बोहरे पीताम्बर सिंह था। अबसे लगभग 45 साल पहले आपका जन्म संवत 1960 (1903 ई.) में नगला हथैनी में हुआ। रारह स्कूल में आपके सहपाठी थे। आपने किशोरावस्था से लेकर 32-33 साल तक पहलवानी की। आपको जवानी के आरंभिक


[पृ.31]: दिनों में गाने का बड़ा शौक था। आप आर्य समाजी खयालात के हैं। इस समय आप ब्रज-जया समिति के प्रतिनिधि और जेलदार दोनों हैं।

20. ठाकुर तेजसिंह भटावली

20. ठाकुर तेजसिंह भटावली - [पृ.31]: आपका डागुर गोत्र है। आपके पिता खूबीराम जी डागुर भटावली गाँव के हैं। इस समय आप 50 साल से ऊपर हैं। आस-पास के गाँव में आपकी बड़ी साख है। आप नर्म-प्रकृति के आदमी हैं और सच्चे साथी हैं। सभी जतियों के लोग आपसे मोहब्बत करते हैं। जमादार किसान सभा के सच्चे भक्त हैं। भारी बहुमत से अपने विरोधियों को हराया था। ब्रज-जय समिति के तो आप मेंबर थे। तहसील सुधार कमेटी के भी आप मेम्बर हैं।

21. ठाकुर रामसिंह - [पृ.31]: बयाना तहसील में खोहरा सिनसिनवार गोत्र का गाँव है। ठाकुर रामसिंह वहीं के रहने वाले थे। पहले आप फौज में थे। सर्विस छोडकर आपने घर का काम-काज संभाला। इस समय आप जेलदार हैं और ब्रज-जया समिति के प्रतिनिधि हैं। जाट समाज और किसान दोनों के वफादार हैं। आपका सिनसिनवार गोत्र है।

22. फ़ौजदार नारायनसिंह - [पृ.31]: सन् 1942 के असेंबली के चुनाव में मैंने एक ओर नया साथी और साथी भी वफादार और सच्चा पाया। वह फौजदार नारायण सिंह है। आप कुम्हेर तहसील में कुरवारे गाँव के रहने वाले फ़ौजदार हैं। आपका जन्म 22.7.1915 को हुआ। पिता का नाम फौजदार निहाल सिंह था।


[पृ.32]: भाइयों में बदनसिंह, रघुनाथ सिंह, सगे कमाल सिंह, दुर्ग सिंह चचेरे भाई हैं। सभी कौमी सेवक हैं। विरोधियों को मुंह तौड़ जवाब देने में असेंबली में ठाकुर चमनसिंह के बाद आपका नंबर रहा है। आप जमींदार किसान सभा के इस समय ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं। अपनी तहसील में आपका काफी नाम और सम्मान है। आपने 1948 के सत्याग्रह में जेल यात्राएं की। कांग्रेसी हुकूमत ने आपको दो बार गिरफ्तार किया। एक बार दफा-144 और दूसरी बार सेफ़्टी एक्ट में।

23. फ़ौजदार चरनसिंह - [पृ.32]: ब्रज-जया समिति में फ़ौजदार चरनसिंह किसान पार्टी के जामवंत हैं। विरोधी उनके करारे प्रहारों से चक्र जाते हैं। डीग तहसील में बहज गाँव में बीरबल सिंह सिनसिनवार के घर संवत 1944 में आपका जन्म हुआ। अत्यंत परिश्रमी और लग्न वाले हैं। वे अपनी कौम से ज्ञान-पूर्वक मोहब्बत करते है। किसान सभा को जाटों की हितकारी संस्था मानते हैं। डीग तहसील के बड़े-बड़े और समझदार आदमियों में आपका स्थान है। 1948 के किसान आंदोलन में आप जेल यात्रा कर आए हैं।

24. ठाकुर चूरामनसिंह - [पृ.32]: आपका जन्म डीग तहसील के गाँव बरौली चौथ में हुआ। आप यहाँ के नामी ठाकुर गंगाधर सिंह के भतीजे हैं। आप नौजवान और अडिग साथी हैं। किसी के लाख बहकाने और दबाव देने पर भी आपने पार्टी का साथ दिया।


[पृ 33]: उम्र रखते हुये भी आप बात पर जमने वाले हैं। आप काम से काम रखते हैं।

25. चौधरी सूरजसिंह - [पृ 33]: आपका जन्म नागर तहसील के गाँव सुजालपुर में हुआ। आपके पिता का नाम रईस चौधरी रघुवीरसिंह है। आप इस समय 35 साल के हैं। आप 1940 के चुनाव में मेवात में बड़ी सफलता से विजयी हुये। तभी से आप किसान सभा के सदस्य हैं।

26. चौधरी गोवर्धनसिंह खरेटावाले - [पृ.33]: भरतपुर शहर में जमने और अपने मिशन को आगे बढ़ाने में मुझे सबसे अधिक मदद चौधरी गोवर्धनसिंह खरेटावाले से मिली। आपकी फूफी रानी गुमान कौर महाराजा बलवंत सिंह को ब्याही थी। इससे आप राज्य के पुराने रिश्तेदार हैं। आपके पिता चौधरी गोविंद सिंह राज्य में अच्छी सर्विस में थे। आप भी नायाब तहसीलदार रह चुके हैं। वाटराशाही के आप शिकार बने तबसे राज्य सेवा से अलग रहे। आप पर अनेकों मुसीबतें आई हैं। कौम की जितनी सेवा बन पड़ी है बिना किसी के कहे और आकांक्षा के की है। आपके बड़े पुत्र कुँवर इंदर सिंह जी फाइजी सेवा में देहांत हो गए। छोटे कुँवर निहाल सिंह अलवर राज्य की जय फलटन में जमादार हैं। आपका खानदान सरदार खानदान रहा है। ग्वालियर, अलवर आदि में बड़े-बड़े घरों में रिश्तेदारी है। राजा साहब पिछोर के खानदान में आपकी बहन ब्याही गई थी। जिनके सुपुत्र राजाजी ठाकुर निरंजन सिंह हैं।


[पृ.34]: निरंजन सिंह एक योग्य पुरुष हैं। उन्होने राज सेवा में मुंशिफ के पद से प्रवेश किया फिर रेवेन्यू कमिशनर भी रहे। निहायत संजीदा और गंभी व्यक्ति हैं। इस समय आप धौलपुर में प्रांतीय और राष्ट्रीय सर्विस के लिए जिस योग्यता की जरूरत होती है वे आपमें हैं।

आपका जन्म गाँव मुडियापुरा, तहसील बाह, जिला आगरा के इंदोलिया घराने में ठाकुर पीतम सिंह के यहाँ करीब 50 साल पहले हुआ।

27. ठाकुर नारायनसिंह - [पृ 34]: आप की जाट सेवाओं से भरतपुर का हर जाट परिचित है। भाय के वातावरण में भी अलग रहकर जिसने भरतपुर के जाट मुलाजिमान में से कौम से मोहब्बत की हो उनमें सबसे प्रमुख ठाकुर नारायण सिंह हैं। स्वर्गीय महाराजा भरतपुर के निर्वासन के बाद उनके साथ सहानुभूतु रखने के कारण मैकेञ्जीशाही ने आप को सर्विस से अलग कर दिया किन्तु आप दृढ़ रहे और अच्छे काम की सफाई सामने आई। वे फिर भरतपुर बुला लिए गए। इस समय आप इंस्पेक्टर हैं।

28. ठाकुर रामसिंह - [पृ.34]: खतरे से बचते हुये संजीदगी के साथ और अपना खयाल रखते हुये जिस ढंग से कौम की सेवा की जा सकती है उस ढंग से आपने सदा की भांति सेवा की। पुलिस में प्रवेश करने के बाद से आपने अच्छे काम के कारण हमेशा


[पृ.35]: तरक्की पाई। यहाँ तक कि आप भरतपुर के सुपरिटेंडेंट के पद तक पहुंचे।

भरतपुर पर विपत्ति आने पर आप पर भी भार और संघ के संदेहजनक कामों की जांच के समय में आपको मुअत्तिल कर दिया गया है। जिसमें एक लंबे अरसे के बाद निर्दोष घोषित किया जा चुका है।

आपका जन्म गाँव मुडियापुरा, तहसील बाह, जिला आगरा के इंदोलिया घराने में ठाकुर बालूराम के यहाँ हुआ।

29. ठाकुर फतहसिंह - [पृ.35]: आपका जन्म गाँव मुडियापुरा, तहसील बाह, जिला आगरा में ठाकुर सामल सिंह के यहाँ हुआ। आपके पिता एक लंबे अरसे से भरतपुर के वासिंदे हो चुके थे। आपने भरतपुर के नोबिल स्कूल से शिक्षा पाई और फिर पुलिस में भर्ती हो गए। पुलिस में इंस्पेक्टर के पद तक पहुंचे। भरतपुर पर विपत्ति आने पर आप को भी समस्या का सामना करना पड़ा है। इस वर्ष सन् 1948 में भी उन्हें मुअत्तिल किया गया किन्तु जिन कारणों से मुअत्तिल किया गया वे निराधार निकले। आपने लगन और हार्दिक सच्चाई से कौम की तरक्की के काम में सहयोग दिया है।

30. ठाकुर लालसिंह - [पृ.35]: आपका जन्म गाँव पैंगोर के पास ढांह, तहसील नदबई, जिला भरतपुर में ठाकुर श्रीराम के यहाँ लगभग 40 साल पहले हुआ।


[पृ.36]: वह आजकल लालसिंह के नाम से मशहूर हैं। पिता ने अकेले पुत्र को लाड़ प्यार से पाला और उसे पहलवान बनाने की कोशिश की।

ठाकुर लालसिंह को बहादुरी के तमाम काम पसंद हैं। इसलिए वे 1939 के सत्याग्रह में भरतपुर जेल भी गए। किसान सभा के गठन के बाद लगातार इसमें रहे। सन् 1948 के किसान आंदोलन में उनको और ठाकुर राम सिंह को अधिक नुकशान उठाना पड़ा। अब तक 3-4 जेल यात्रा कर चुके हैं।

वे एक हंसमुख नौजवान हैं। और अंगद की भांति दृढ़ता से एक जगह पैर जमाये हुये हैं। (ठाकुर देशराज जी कलाम से)

31. ठाकुर तेजसिंह रायसीस - [पृ.36]: आपका जन्म गाँव रायसीस, तहसील नदबई, जिला भरतपुर में बोहरे जीतीसिंह के यहाँ हुआ। आपका गोत्र सिनसिनवार है। भरतपुर के जाटों में बोहरे जीतीसिंह काफी मशहूर हैं। तमाम तहसील में आपकी इज्जत है। इस समय जबकि श्री महाराज साहब दौरे पर थे आपके यहाँ तशरीफ़ ले गए और और आपकी होसला अफजाई की। आप टंटे बखेड़ों से दूर रहने वाले आदमी हैं। कौम से सच्ची मोहब्बत रखते हैं और यथा शक्ति कौम की सेवाओं में खर्च भी करते हैं। जमींदार किसानसभा के आप साथी हैं। लोग आप में विश्वास करते हैं।


32. कुँवर लक्ष्मणसिंह आजऊ - [पृ.37]: आपका जन्म गाँव आजऊ, तहसील कुम्हेर, जिला भरतपुर में हुआ। आपका गोत्र सिनसिनवार है। पहले आप महकमा जंगलात के नायब अफसर थे। बातराशाही में आप अलग कर दिये गए।

आप आरंभ से ही जाट सभा भरतपुर के उपमंत्री हैं। मीठा स्वभाव और मेहनती हैं। पिछले सालों से जो जाट भोज महाराजश्री के सम्मान में उनके वर्ष गांठ पर हो रहे हैं उनमें आपने बड़े परिश्रम और प्रेम से काम किया है। अनुशासन पसंद हैं। बिना किसी लोभ लालच के चुप-चाप अपने काम से चिपटे रहने वाले आदमी हैं। अच्छा व्यक्तित्व और शांत स्वभाव आपको ईश्वर की तरफ से धरोहर के रूप में मिला है।

33. लेफ्टिनेंट हुकमसिंह - [पृ.37]: आपका जन्म गाँव खेरली गड़ासिया, तहसील बयाना, जिला भरतपुर में हुआ। इस समय गोपालगढ़, भरतपुर में रहते हैं। सेना में आप लेफ्टिनेंट के औहदे से रिटायर हुये हैं पेंशन पाते हैं। शांत मिजाज के आदमी हैं। पार्टी पॉलिटिक्स से दूर रहते हैं। कौम की सेवाओं के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। संजीदगी और मेहनत से काम करते हैं।

34. सूबेदार पदमसिंह - [पृ.37]: आपका गादौली, जिला भरतपुर में कोठरीबंद सिनसिनवार ठाकुर हैं। इस समय गोपालगढ़ भरतपुर में रहते हैं। कौमी हलचलों में बराबर दिलचस्पी लेते हैं। पिता का नाम श्यौबक्स है।

35. ठाकुर ज्वालासिंह - [पृ.37]: जिसने मैकेन्जी शाही के जलते-बलते दिनों में भी कौम का काम किया। और जो श्री महाराजा किशन सिंह के


[पृ.38]:निर्वासन के बाद उनके पक्ष में काम करने के अपराध में निकाला गया और आज भी वह उसी अपराध में दुख भरता है वह है मर्दाना ठाकुर ज्वालासिंह। आप पुलिस में हेड कांस्टेबल थे। रुदावल में उन्हें यज्ञोपवीत ग्रहण करवाया और कौम की सेवा की तरफ आकर्षित किया। श्री महाराजा कृष्ण सिंह के निर्वासन के बाद ठाकुर ज्वाला सिंह जी ने अवश्य ही उन षडयंत्रों में शामिल होने से इंकार कर दिया जो यहाँ की पुलिस भी महाराजा कृष्ण सिंह जी को बदनाम करने के लिए रच रही थी।

36. सूबेदार भोंदूसिंह - [पृ.38]: भरतपुर तहसील में गिरधरपुर गाँव में आपकी जमीदारी है। आप गोत के हंगा जाट हैं। आपने अपने को फौजी सर्विस में पेश करके उन्नति की है। आप इस समय पेंशन पर हैं। आप भरतपुर राज जाट सभा के कई वर्ष तक मंत्री रहे।

आप गंभीर प्रकृति के आदमी हैं हंगा आपका गोत है। आप हरदिल अजीज हैं। पवित्र हृदय और मिलनसारी आपके विशेष गुण हैं। आप माने हुये समाज सुधारक और शिक्षा प्रेमी हैं।

37. सूबेदार तोतासिंह - [पृ.38]: आपका जन्म गाँव दांतलोठी, तहसील डीग, जिला भरतपुर में हुआ। आपका गोत्र सिनसिनवार है। आपने पेंशन लेने के बाद से ही जाटों में फिजूल खर्ची रोकने और शिक्षा लेने पर ज़ोर दिया। पशुओं की नस्ल सुधारकर उत्तम बनाने के व्यावहारिक आदर्श प्रस्तुत किए। आपके पुत्र दीपसिंह नायब तहसीलदार हैं।


38. ठाकुर विजयसिंह - [पृ.39]: आप जाट सभा भरतपुर के प्रधानमंत्री पिछले 2 साल से हैं। आपका गोत्र सिनसिनवार है। आपके बुजुर्ग मथुरा जिले में हसनपुर चले गए थे। पिछले 2 वर्ष से आप भरतपुर में वकालत कर रहे हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश में तहसीलदार और कोर्ट ऑफ वार्ड्स के मैनेजर रह चुके हैं। इस समय राजा महेंद्र प्रताप जी के सहकारियों में से हैं।

39. ठाकुर रतनसिंह - [पृ.39]:आपने कौमी हलचलों में जिस बहादुरी के साथ हिस्सा लिया और उसके लिए वातरा साहब भूतपूर्व रेवेन्यू मिनिस्टर का जो कौपभाजन भी रहा, वह तहसीलदारों में ठाकुर रतनसिंह हैं। मानुष्य में गुण-अवगुण सभी होते हैं। यह उनका गुण है जिसकी सराहना करनी ही चाहिए। बुरे दिनों में जाट दीपक को तेल देने में ठाकुर रतनसिंह हमेशा आगे रहे। हर एक हुकूमत ने इन्हें सताया और आगे बढने से रौका। आप बयाना तहसील में मलोनी के सिनसिनवार जाट हैं।

40. कुँवर रामचंद्रसिंह - [पृ.39]: कुम्हेर तहसील में Pingora (पैगोर) का एक बास भदेया आपका गाँव है। आप के पिता सूबेदार भूराराम हैं। आपका गोत्र सिनसिनवार है। आपने भरसक अपने इलाकों में अपने भाइयों की तरक्की के लिए कोशिशें की। आदत और स्वभाव से आप कानूनगो के इन शब्दों में पक्के जाट हैं - जाट टूट जाएगा लेकिन झुकेगा नहीं।


41. चौधरी तेजसिंह - [पृ.40]: आपका जन्म भरतपुर राज्य में रुपबास तहसील के गाँव बरकौली में प्रसिद्ध जाट सरदार कर्नल रामचन्द्र सिंह के यहाँ हुआ। आपका गोत्र दिनकर है। आपने हिन्दी अङ्ग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त करके सरकारी सर्विस में प्रवेश किया और इस समय तहसीलदार के पद पर हैं।

आप सरस्वती देवी के उपासक हैं। समय की गति के साथ चलने की कोशिश करते हैं। किन्तु स्वभाव के अधिक स्पष्ट होने के कारण आपको घाटा भी उठाना पड़ता है। आपके सभी पुत्र योग्य और नेक हैं। उनमें बड़े कुँवर वीरेंद्रसिंह बीए, एलएलबी हैं। जो पढ़ने में निहायत तेज और स्वभाव के अत्यंत मीठे हैं। 1942 में भरतपुर में होने वाले जाट महोत्सव में आपके पुत्र कुँवर वीरेंद्रसिंह ने बड़ी दिलचस्पी से भाग लिया। वे एक होनहार युवक हैं। चौधरी तेजसिंह का गुण यह है कि वे लोभ पर कंट्रोल कर सकते हैं और एक निर्लिप्त अफसर का पार्ट अदा कर सकते हैं। कौम के लिए बिना झगड़े में पड़े जो भी कुछ बन सकता था उन्होने अपने फर्ज को पूरा किया है।

42. चौधरी देवीसिंह - [पृ.40]: आप चौधरी तेजसिंह के भतीजे हैं। आप भी इस समय तहसीलदार के ओहदे पर काम कर रहे हैं। आपको बातराशाही के जमाने में आगे बढने से रोका गया। वरना अब तक वे और भी ऊंचे ओहदे पर होते। आप शांत स्वभाव के और संजीदा नौजवान हैं। एक सिविलियन में जो आरंभिक गुण


[पृ.41]: होने चाहिए वे आप में हैं। आप बहुत कम बोलते हैं लेकिन जब लेक्चर देने खड़े होते हैं तब काफी अच्छा बोलते हैं। आप ठीक तरीके पर कौम की उन्नति करने के तरीकों में विश्वास करते हैं।

आपका गोत्र दिनकर है। आपका जन्म भरतपुर राज्य में रुपबास तहसील के गाँव बरकौली में प्रभावशाली व्यक्ति टीकम सिंह के यहाँ हुआ था।

43. चौधरी रनधीरसिंह

43. चौधरी रनधीरसिंह - [पृ.41]: मुजफ्फरनगर जिले में कुरमाली एक जाटों का प्रसिद्ध गाँव है। यहाँ प्रकृति ने एक सी सूरत शक्ल के दो हरीराम सिंहों को जन्म दिया। दोनों ही खेती के महकमे में सुपरिन्टेंडेंट से ऊंचे पदों पर काम किया। एक के बड़े पुत्र का नाम वारसेन जी और दूसरों के बड़े पुत्र का नाम रणधीरसिंह जी है। चौधरी रणधीर सिंह ने अपनी योग्यता, ईमानदारी और कार्यशीलता के कारण भरतपुर में नाम पाया है।

आप साधुमना श्री रत्नाकर जी शास्त्री के दामाद हैं। जाट लोगों का सिर कभी भी रिश्वत न लेकर और ईमानदारी के साथ काम करके श्री सास्त्री जी ने ऊंचा किया था उसको चौधरी रणधीरसिंह जी ने और भी ऊंचा किया है। आपसे पितृ और श्वसुर दोनों कुल उज्जवल हुए हैं। उन्होंने किसी भी जाट संस्था में क्रियात्मक भाग नहीं लिया है किंतु अपने लिए आदर्श योग्य साबित करके जाट लोगों को यह गर्व करने का मौका दिया है कि हमारे अंदर इस प्रकार के संजीदा और ईमानदार आदमी भी पैदा होते हैं जो दूसरों के लिए उदाहरण हैं।


[पृ.42]: चौधरी रणधीर सिंह BA, LLB हैं। इन्होने भरतपुर की सर्विस में मुंसिफ़ के ओहदे से प्रवेश किया है और आज एडीएम हैं।

44. ठाकुर कुमरपालसिंह जेलदार - [पृ.42]: भरतपुर के समस्त जाटों में कुम्हा घराना अत्यंत सम्पन्न और सही समझा जाता है। ठाकुर ..... के घर में आपका जन्म आज से कोई 54-55 वर्ष पहले हुआ। ठाकुर कुमरपालसिंह जी इस घर के मुखिया हैं। आप एक विश्वसनीय और साखमंद आदमी हैं। अपने परिश्रम और बुद्धि से बहुत धन भी आपने कमाया है। आपका अपने तहसील में कितना असर है इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि आपके भतीजे ठाकुर मुहकमसिंह जी ने ब्रजजया समिति के चुनाव में ठाकुर देशराज जी से भी 10 वोट अधिक प्राप्त किए थे।

अतिथि सत्कार में जेलदार साहब का नाम है। स्वभाव से गंभीर और झगड़ालू पन से दूर रहने वाले आदमी हैं। जाटों के आपसी मुकदमे कम करने की आपने हमेशा कोशिश की। रियासत भर में जब दो जाट खानदान आपस में लड़ते थे तो समझौते के लिए आपको बुलाया जाता था। हर किसी के आप काम आते हैं। आप का खानदान भरा पूरा है। आप के पुत्रों में कुंवर हीरासिंह सबसे बड़े हैं और पूर्णसिंह जी इंग्लैंड रिटर्न इंजीनियर है।

45. बोहरे शंकरसिंह - [पृ.42]: रियासत भरतपुर में भरतपुर तहसील का गाँव महगंवा सेठों का गाँव है।


[पृ.43]:भरतपुर में जो बड़े सेठ हैं उनमें महगंवाइयों की काफी ऊंची स्थिति है। इसी महगंवा में दो जाट सरदार हैं। बोहरे शंकरसिंह और टीकमसिंह। शंकरसिंह बड़े परिश्रमी, ईमानदार और सच्चे तथा हरिभक्त जाट हैं। आरंभ से ही आप जाट सभा के साथी हैं। सन् 1939 के प्रजा परिषद के सत्याग्रह में आपके भतीजे रोशन सिंह जेल गए थे। इस वर्ष 1948 के सत्याग्रह में आप जेल जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन यह स्थगित हो गया था। टीकमसिंह जी गरम प्रकृति के आदमी हैं किन्तु अपने ढंग से वे भी कौम के बड़े भक्त हैं।

46. ठाकुर महाराजसिंह - [पृ.43]: वैर सुहास की कोठरी के आप कोठरिबंद सिनसिनवार जाट हैं। सेंट्रल एडवाईजरी कमिटी में आप मेम्बर थे अब जेलदार हैं। तहसील के जाटों में आपकी इज्जत है। आप गंभीर और समझदार व्यक्ति हैं। कौमी सेवा में सबके साथ हैं।

47. मुंशी रामप्रसाद - [पृ.43]: संकट के दिनों में जिन्होने अपनी कौम के लिए डटकर मोर्चा लिया और जाट संगठन के लिए आप कोशिश करते रहे। जाटों के साथ न्याय हो यह आपकी बातराशाही में आवाज रही। छोटी आमदनी और स्थिति में भी आपका उत्साह किसी से कम नहीं रहा। गोपालगढ़, भरतपुर में आपकी रिहायस है। आप डागुर सरदार हैं।


सिख सरदार

48. सरदार नारायणसिंह - [पृ.44]: भरतपुर राज्य में जितने सिख जाट अब तक यहां की जनता के सामने आए हैं उनमें से यहां के जाट सरदार नारायणसिंह जी को एक लंबे अरसे तक याद रखेंगे। वह पुलिस थानेदार और कोतवाल रहे। उन्होंने यहाँ के जाटों में जाटपन की भावना उस समय भरी जबकि यहां के सिनसिनवार जाट भी अपने को जाट कहलाने में सकुचाते थे। उनकी कौम परस्ती की अनेक दंतकथाएं गांव में मशहूर हैं।

सरदार करतारसिंह जी उन्हीं के सुपुत्र हैं जिन्होंने अपनी योग्यता से हर काम में पैने होने का सबूत दिया। आप की इकरन में किशनपुराचक में अच्छी जमीदारी है। सरदार करतारसिंह लीडर टाइप के आदमी हैं जो किन्हीं परिस्थितियों में अपने को आगे बढ़ाने के लिए समर्थ बनाता है। आप गिल जाट हैं। इस समय एसडीओ हैं।

सरदार गुलाबसिंह कस्टम में इंस्पेक्टर हैं। वे यहां के जाटों में मौजूदा सभी जाटों से अधिक प्रिय हैं। यह उनकी कौम परस्ती का सबसे बड़ा उदाहरण है। आप पंजाबी आदत से वियूद्ध हैं। आपके भाई सरदार बलवंतसिंह जी खुशमिजाज आदमी हैं और पुलिस में सब इंस्पेक्टर हैं।

सरदार सिकंदरसिंह बाहर इंजीनियर थे। यहां आपकी तहसील कुम्हेर और भरतपुर में बड़ी-बड़ी जमीदारी है। आप निहायत नेक और सज्जन पुरुष हैं। भरतपुर राज जाट सभा के संरक्षक हैं।

सरदार साधूसिंह जी यहां की जाट हलचलों में सक्रिय हिस्सा लेते हैं। आप रिसालदार के ओहदे से रिटायर हुए हैं।


[पृ.45]: आपकी स्पीच दिल पसंद होती है। भरतपुर जाट सभा के आप प्रमुख लीडर हैं। आप का गोत्र..... है।

49. सरदार इंदरसिंह - [पृ.45]: सरदार इंदरसिंह जी पहले भरतपुर में पुलिस सुपरिन्टेंडेंट थे । बीच के दिनों में वे घर बैठा दिये गए। कांग्रेस मिनिस्ट्री ने उन्हें फिर बहाल कर दिया। बयाना के पास भीमनगर में आपकी जमीदारी है। भाग्य ने उनका साथ बहुत कम दिया। वे जिस टहनी को पकड़ते हैं झुक जाती है। पंजाब में आपने चौधरी छोटू राम के मिशन में पूरी सहायता दी।

50. कुंवर पुष्करसिंह - [पृ.45]: भरतपुर में एक जाट हाकिम थे शास्त्री रत्नाकर जी जिनको भरतपुर का प्रत्येक समझदार आदमी सम्मान करता है। और जिन्होंने कभी भी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की कुर्सी पर बैठकर हिंदी लिपि को नहीं छोड़ा। न कभी भी किसी की खुशामद की। उन्हीं रत्नाकर जी जज के भतीजे हैं कुंवर पुष्करसिंह। आप सोलंकी जाट हैं। मैं उनसे बचपन से परिचित हूं। उन्होंने जो भी तरक्की की है नेतिकूल परिस्थितियों में की है। संघर्ष मय उनका जीवन है और यहां उनके जीवन का महत्व है। बचपन से लेकर अब तक आत्मविश्वास पर वे आगे बढ़े हैं। और कुछ समय वे भरतपुर में पब्लिसिटी अफसर रहे हैं। 30 साल के करीब उनकी उम्र है। वह अब तक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रह चुके हैं। सफल लेखक और वक्ता हैं। मां दुर्गा के के वे परम उपासक और शाक्त धर्म में विश्वास रखने वाले आदमी हैं। उन्होंने जेल यात्रा भी की है।


51. ठाकुर किरोड़ीसिंह - [पृ.46]: भरतपुर राज्य की पूर्वी सीमा पर गाँव सूती नाम का एक गाँव है। ठाकुर किरोड़ीसिंह यहीं के रहने वाले हैं। आपका गोत्र सिकरवार है। आप देहाती ढंग के बहुत अच्छे गाने बनाते हैं। कविता भी पिंगल के अनुसार करते हौ। आपने आर्य समाज शुद्धि सभा और जाट सभा आदि सभी कौमी और धार्मिक संस्थाओं में काम किया है। आपकी उम्र 50 के ऊपर है। किन्तु 30 वर्ष के जवानों से दुगुना उत्साह रखते हैं और चौगुना परिश्रम करते हैं। सन् 1942 के भरतपुर असेंबली के चुनाओं में आपने जमादारा किसान सभा के लिए बड़ा काम किया। आपके परिश्रम को देखकर मास्टर फूलसिंह जी ने आपको कर्मठ कहना आरंभ कर दिया। आपके 4 पुत्र है: ज्ञानसिंह, रामखिलाड़ी, प्रेम।

52. हवलदार गुलाबसिंह - [पृ.46]: तहसील कुम्हेर में खेसवारा नामक डागुर जाटों का गाँव है। हवलदार गुलाबसिंह यहीं के रहने वाले हैं। आपकी उम्र इस समय 58 साल है। आपने और हवलदार बल्लाराम जी ने जो कि आपके ही खानदान के किन्तु बड़े भाई हैं। आपने इस इलाके में जाटों को जगाने का बड़ा काम किया है। ठाकुर पूरन सिंह की प्रेरणा से अपने गाँव में आर्यसमाज की स्थापना की। एक पाठशाला भी चलाई। भरतपुर राज जाट सभा में भी आपने काफी काम किया। समाज सुधार के लिए आप काफी कोशिशें करते हैं। आपके पुत्र और पुत्रियाँ सभी पढे लिखे हैं।


53. ठाकुर धांधूसिंह - [पृ.47]: आपका गोत्र बिसाती है। ठाकुर धांधूसिंह भरतपुर राज्य की रुपबास के गाँव कुरका के रहने वाले धनी जाट हैं। रियासत में जब बड़े-बड़े जाटों की गिनती होती है तब आपको भी याद किया जाता है। उनकी मदद से सन् 1923-24 से मैंने (ठाकुर देशराज) ने उनके आस-पास के गांवों में उन बातों को लोगों तक पहुंचाया जो समाज सुधार से संबंध रखती हैं। आप झगड़े टंटों से दूर रहकर खेती के काम को बढ़ाने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं।

54. कुंवर हरीसिंह - [पृ.47]: शहर भरतपुर के जाटों में कर्नल गिरवरसिंह सीआई का माना हुआ खानदान है। उनके दूसरे पुत्र कुंवर हरीसिंह चाहर हैं। आप इस समय महकमा कोपरेटिव में इंस्पेक्टर हैं। कौमी अखबारों और कौमी संस्थाओं से आपको प्यार है। कौम के लिए आप तन, मन धन से सहयोग करते हैं। आपके भतीजे कुँवर ब्रिजराजसिंह काफी समझदार और संजीदा आदमी हैं।

आपका गोत्र चाहर है। आप आगरा जिले के गाँव बेरी के रहने वाले हैं। भरत्पुर में आपकी सकूनत पुरानी है। कालेज से निकलते ही आपने भरतपुर में वकालत शुरू की। इसके डेट केनसीलेशन बोर्ड के चेयरमेन हुये। पश्चात मुंशीफ और जेल सुपरिन्टेंडेंट हैं। आप कालेज जीवन से कौमी कामों में दिलचस्पी लेते रहे हैं। फूँक-फूँक कर कदम रखना और छन-छान कर पानी पीना आपका सिद्धान्त है। इस समय आप नाज़िम से मुंशिफ


[पृ.48]:बना दिये गए हैं। स्वभाव आपका सौम्य और पादरिक करने वाले हैं।

55. ठाकुर भोलासिंह - [पृ.48]: ठाकुर भोलासिंह का जन्म मथुरा जिले के गाँव मगोर्रा में आजसे 50 साल पहले ठाकुर गुलाब सिंह खूंटेल के घर हुआ। आपका गोत्र खूंटेल है।

आपने जवानी के आखिरी दिनों में कौमी सेवा का व्रत लिया। जाट महासभा के तत्वावधान में आपने राजस्थान को जगाना शुरु किया और लगभग इस वर्ष तक शेखावाटी को जगाने का काम पूरा किया। 1923 ई. में भरतपुर में महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी मनाई जाने वाली थी किन्तु वहाँ के अंग्रेज़ दीवान ने रोक दिया। जाट महासभा की नौजवान पार्टी ने कानून तोड़कर शताब्दी मनाने का निश्चय किया। ठीक समय पर जत्थे भेजकर आपके सभापतित्व में वह जयंती मनाई गई।

आप एक अच्छे वैद्य हैं और गुजरात के अहमदाबाद में प्रेक्टिस करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। आप शांत स्वभाव के आदमी हैं।

56. ठाकुर जियालाल - [पृ.48]: ठाकुर जियालाल का जन्म भरतपुर जिले के तहसील बयाना में गाँव अघावली में हुआ। । आप फौजदार निहाल सिंह के साथियों में थे। आपने किसान सभा और किसान अख़्तियार की मदन की थी। जाट सभा भरतपुर के कामों में भी दिलचस्पी से भाग लेते थे।


57. कुँवर दयालसिंह - [पृ.49]: कुँवर दयाल सिंह का जन्म भरतपुर जिले के तहसील बयाना में गाँव कसौदा में सूबेदार प्यारे लाल के यहाँ हुआ। कुँवर दयाल सिंह ने 15 मार्च को राजा मान सिंह की सभा का ऐलान किया। जिसके अपराध में आपको प्रथम जेल यात्रा करनी पड़ी। अभी वे एक नौजवान लड़के हैं। आगे चलकर मजबूत व्यक्ति बनेंगे।

58. ठाकुर हुक्मसिंह परिहार - [पृ.49]: ठाकुर भोला सिंह का नाम लेते ही हुकमसिंह का नाम अपने आप सामने आ जाता है। उन दोनों ने ही सीकर शेखावाटी में नाम कमाया है। कठवारी जिला आगरा में ठाकुर दौलतसिंह के यहाँ आज से 37-38 वर्ष पहले जन्म हुआ था। पंडित लालाराम, जो आजकल मध्यभारत में हिन्द अबलाओं के रक्षक समझे जाते हैं, के साथ रहकर उनसे गान विद्या सीखी। शुद्धि सभा आगरा के वे एक अच्छे उपदेशक समझे जाते थे। इसके बाद उन्होने ठाकुर भोला सिंह के साथ मिलकर राजस्थान को जगाया। वर्ष 1940 ई. से अबतक उन्होने भरतपुर के प्रोपेगेंडा विभाग में काम करके देहाती जनता को जगाया है।

ईश्वर ने उन्हें दो चीजें विशेष रूप में दी हैं अच्छा गला और निरंतर चलने वाली नींद।

59. ठाकुर किशनसिंह - [पृ.49]: सीसबाड़ा के जेलदार छीतर सिंह के पड़ौस में एक शिक्षित नौजवान ठाकुर किशनसिंह हैं। आपने काफी दिनों तक विधानसभा में काम किया है। वे एक अच्छे कवि और वाचक हैं।


[पृ.50]: [उनके बनाए हुये भजन देहात के लोग बहुत गाते हैं और पसंद करते हैं। आपकी उम्र इस समय 36 साल है।

60. ठाकुर दामोदरसिंह - [पृ.50]: साबोरा सिनसिनवार लोगों का एक प्रसिद्ध गाँव है। उसमें ठाकुर जोरावरसिंह एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं और उनके पुत्र हैं ठाकुर दामोदरसिंह। इसी गाँव में ठाकुर दामोदरसिंह का जन्म हुआ।

ठाकुर दामोदरसिंह का मान न केवल रियासत में है बल्कि बाहर के जिलों में भी उनका नाम है। वे अच्छे गायक और प्रसिद्ध नृत्यकार हैं। सन् 1942 से वे किसान सभा भरतपुर के प्रचारक और कार्यकर्ता रहे हैं। ठाकुर हुकम सिंह और किरोड़ी सिंह के साथ मिल कर उन्होने किसान संघ को ऊंचा उठाया। इसी वर्ष सन् 1948 के किसान सत्याग्रह में जेल गए। कौमी गौरव से उनका हृदय भरा हुआ है।

61. ठाकुर टीकमसिंह बिरहरू - [पृ.50]: बिरहरू के ठाकुर भूपसिंह को सभी लोग जानते हैं। उन्हीं के बड़े पुत्र ठाकुर टीकमसिंह आजकल जेलदार हैं। इससे पहले वे सरकारी सर्विस में थे। आपने सरकारी काम को ईमानदार से पूरा करने के अलावा आपने हमेशा कौम की शिक्षा संबंधी तरक्की के लिए और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए कोशिश की है।

62. मास्टर अमृतसिंह - [पृ.50]: बिजवारी के ठाकुर चन्दन सिंह हैं और उनके पुत्र हैं मास्टर अमृतसिंह जो पहले शिक्षा विभाग में कृषि अध्यापक थे। उनका रईस घराना है।


[पृ.51]: आप कर्नल घमंडी सिंह के रिश्तेदार हैं। किन्तु इससे ही वे मशहूर नहीं बल्कि आपकी रुचि आरंभ से ही कौमी सेवा में रही है। इस समय वे किसान सभा के साथी हैं। कुँवर शेरसिंह आप ही के कुटुंबी हैं जो प्रजा परिषद में काम करते हैं और कौम से उन्हें भी मोहब्बत है।

63. ठाकुर श्यामलाल कवई

63. ठाकुर श्यामलाल कवई - [पृ.51]: सिकरवारों का यह घराना पुराने घरों में से है। कवई सिकरवार लोगों का एक प्रसिद्ध गाँव है। उसमें ठाकुर स्यामलाल जी का जन्म हुआ है। ठाकुर स्यामलाल जी आरंभ से ही आर्य समाजी खयालात के आदमी रहे हैं। 1942 ई. में वे प्रजा परिषद में शामिल हो गए। लेकिन आजकल उन्हें उससे उदासीनता है। उसके जनरल सेक्रेटरी पद से इस्तीफा दे दिया है।

64. ठाकुर चरनसिंह - [पृ.51]: बयाना में जाटों का एक प्रसिद्ध घराना है ठाकुर चरणसिंह सिनसिनवार का। 50 के करीब आपकी उम्र है। ठाकुर चरणसिंह सन् 1942 से किसान सभा के साथ हैं। उससे पिछले चुनाओं में अपने खूब मदद की। आजकल भी भरसक मदद सभा के कामों में देते हैं।

65. ठाकुर रामखिलारीसिंह - [पृ.51]: आजऊ के पास ही एक गाँव है सीही। यहाँ के प्रमुख सज्जन ठाकुर रामखिलारीसिंह मशहूर हैं। आपकी अवस्था लगभग 50 है। ठाकुर रामखिलारीसिंह इस समय मण्डल किसान कमेटी के प्रधान हैं। आपके गाँव के ही ठाकुर नाहरसिंह मंत्री हैं।


[पृ.52]:आपने हैदराबाद के आर्य सत्याग्रह में भी भाग लिया था। इस वर्ष किसान सत्याग्रह में जेल जाने के इच्छुक थे। आसपास के गांवों में आपकी इज्जत है। आप बात के पक्के आदमी हैं।

आपके साथी आजऊ के ठाकुर नाहर सिंह भी एक कौमी सेवक और साहसी आदमी हैं। इसमें संदेह नहीं सभी नाहरसिंह हिम्मत के आदमी होते हैं। आजऊ के ठाकुर नाहर सिंह सदैव जाट सभा की हलचलों में शामिल रहे हैं। आप ठाकुर लक्ष्मणसिंह जी के साथियों में से हैं।

66. राजा किशन - [पृ.52]: श्री महाराजा किशन सिंह के समय में आजऊ का नौजवान राम किशन फौज में भर्ती हुआ और जमादार के ओहदे पर पहुँच गया। महाराजा किशन सिंह के बीमारी के समय उनकी सेवा करने के कारण अपने स्टाफ में ले लिया और चीफ अफसर मुकर्रिर कर दिया। वही नौजवान आगे चलकर राजा किशन के नाम से मशहूर हुआ।

श्री महाराजा किशन सिंह साहब के बुरे दिन आए और उन बुरे दिनों में राजा किशन की गलतियाँ भी सहायक हुई। राजा किशन पर नए एडमिनिस्ट्रेटर मेकेंजी के समय अनेक मुकदमे चले और उन पर 28 साल की सजा ठोक दी। राजा किशन 16 साल का कारावास भुगतकर आए और तभी से जाट सभा की प्रगतियों में साथ जुड़ गए। आजकल अपने गाँव में शांति का जीवन बिताते हैं। आपके साथियों में ठाकुर रामहंस मुख्य हैं जो सदा से कौम को चाहते हैं।


67. जमादार घनश्यामसिंह - [पृ.53]: जवानी के आरंभिक दिनों मे ठाकुर घनश्यामसिंह भरतपुर की पलटण में थे। आप सिनसिनी के खास लोगों में से हैं। वैसे तो सिनसिनी में एक समय स्वर्गीय ठाकुर कन्हैयासिंह की अच्छी चलती थी। उसके बाद दूसरे कन्हैयासिंह और ठाकुर शेरसिंह की पूछ हुई। नई पौध में जमादार घनश्यामसिंह की अच्छी पूछ है। आप आर्य समाजी खयालात के जाट हैं।

68. ठाकुर रामस्वरूपसिंह - [पृ.53]: जिसने प्रजापरिषद भरतपुर का दिल खोलकर साथ दिया किन्तु उसे पता चला कि यह संस्था किसानों और खास तौर से जाटों का दिल तोड़ दुश्मन है तो उसे लाट मार दी। और किसान सभा में शामिल हो गए। आप मवई, डीग के एक खाते पीते सिनसिनवार परिवार में पैदा हुये। इस वर्ष (1948) के किसान सत्याग्रह में आप जत्थेदार की हैसियत से जेल जाकर आए। धूप, लू, की कुछ भी परवाह न करके आपने किसान सभा को मजबूत बनाने के बहुत प्रयास किए। इस समय आप 30-32 वर्ष के होनहार युवक हैं।

69. पहलवान भरतीसिंह - [पृ.53]: सिनसिनी में हमेशा पहलवान पैदा होते आए हैं। वह वीरों की खान है। उसका छोटा सा सिर्फ पचास हाथ लंबा चौड़ा किला मुगल बादशाहों को डराता रहा है। यहाँ पर घंटोली नाम के एक पहलवान 1947 ई.


[पृ.54]: के मेव विद्रोह में दुश्मनों का सामना करते हुये वीरगति को प्राप्त हुये। पहलवान घंटोलीसिंह ठाकुर ध्रुवसिंह की सेना में खास स्थान रखते थे। उन्होने सदा उनकी आज्ञा में रहकर किसान सभा का काम किया। पहलवान भरतीसिंह उन्हीं के साथी हैं। उनमें पहलवान घटोली से समझ कहीं अधिक है। सन् 1948 ई. के किसान सत्याग्रह में सिनसिनी से करीब 50 आदमी सत्याग्रह के लिए डीग और भरतपुर आए। आखिरी जत्थे के नायक पहलवान भरतीसिंह ही थे। आपकी उम्र इस समय करीब 45 साल है। आप साँवले रंग के हंसमुख और हट्ठे-कट्ठे आदमी हैं।

70. ठाकुर गिरवरसिंह - [पृ.54]: रंग गौरा और भेष बाबूशाही बड़ी और सुंदर मूंछे। इस तरह के एक जवान ठाकुर गिरवरसिंह सिनसिनी के रहने वाले हैं। ठाकुर गिरवरसिंह ने 1948 के किसान आंदोलन में जेल यात्रा भी की और उसे सफल बनाने के लिए बराबर परिश्रम किया। वे एक लगनशील शख्स हैं।

71. ठाकुर निनुवासिंह कासौट - [पृ.54]: आपका जन्म संवत 1960 में ठाकुर कुन्दन सिंह के यहाँ कासोट में हुआ था। आप सिनसिनवार जाट हैं। आपने आरंभ से ही प्रजा परिषद में काम किया। जब यह देखा कि यह संस्था जाट विरोधी है तो आप जाट सभा और फिर किसान सभा में काम कर रहे हैं। 1948 ई. के किसान आंदोलन में दफा-144 तोड़ने के कारण जेल भी हो आए। इससे पहले आप कांग्रेस की ओर से मथुरा में जेल जा चुके थे। आप दो भाई हैं। छोटे घूरेसिंह हैं।


[पृ.55]:आपके साथ किसान सत्याग्रह में कासौट के ठाकुर करनसिंह जी भी जेल गए थे। करनसिंह जी ठाकुर जुगलराम जी के लड़के हैं। अभी नौजवान हैं।

72. बोहरे नत्थीसिंह - [पृ.55]: बिना पढे लिखे आदमी ने अपनी मेहनत से पैसा कमाया और संतानों को भी पढ़ाया हो तो उनमें पंघोर के बासकुम्हा के बोहरे नत्थीसिंह का नाम जरूर आएगा। आपने अपने भतीजों और लड़कों सभी को पढ़ाया है। आप अजाठन और कल्लनसिंह जी के मित्रों में से हैं। इस समय आपके साथी ठाकुर माधोसिंह और जोतिराम जी हैं जो आपकी भांति जाट सभा और किसान सभा में रुचि लेते हैं। पेंघोर के कंचन गोली कांड में पुलिस का मुक़ाबला करने के बहाने आपके एक लड़के को गिरफ्तार किया गया है। आप चतुर इतने हैं कि पढे लिखे भी बहुत से मामलों में आपकी बराबरी नहीं कर पाते।

73. ठाकुर जोतिराम - [पृ.55]: जो अजीठन, कल्लन सिंह की तरह एक ही बात पढे हैं अर्थात कौम की सेवा, ऐसे पेंघोर के बास खान के ठाकुर जोतिराम हैं। ठाकुर जोति राम के साथियों में जमादार कारेसिंह और रामप्रसाद जी हैं। आप समाज सुधारक और सीधे साधे आदमी हैं।

74. ठाकुर रामसिंह खूंटेल - [पृ.55]: पेंघोर में बास दांदू के ठाकुर रामसिंह काफी समझदार इंसान हैं। आपके एक भतीजे कुँवर दामोदर सिंह


[पृ.56]: कस्टम इंस्पेक्टर हैं। दूसरे लड़के पढ़ रहे हैं। आपके भाई विपती सिंह 11.4.1948 को किसान आंदोलन के सिलसिले में जत्थेदार की हैसियत से जेल यात्रा की है। यह कहा जा सकता है कि इस वर्ष (सन 1948) के किसान आंदोलन में जितना घाटा ठाकुर रामसिंह खूंटेल को पड़ा है उतना शायद किसी देहाती किसान लीडर को न पड़ा हो। आपके परिवार के सारे पुरुष सदस्य जेल में ठूंस दिये गए और कुँवर दामोदरसिंह को मअत्तिल कर दिया गया। चौबे जुगल किशोर शिक्षा मंत्री से, जो खूंटेला के पुरोहित भी हैं, जब यह कहा गया कि ठाकुर रामसिंह का क्या दोष है जो उनको तबाह करने की कोशिश की जा रही है। तो उन्होने जबाव दिया कि उन्होने हमारी पुलिस का सामना किया। इन भले आदमियों से यह कौन कहे कि पुलिस का सामना करने का दंड तो तुम दे रहे हो किन्तु इन्होने जो तुम्हारी मदद खाना खिलाकर, ठंडाई पिलाकर और चंदा देकर पूरे 7 साल तक की उसका उन्हें क्या इनाम दिया गया ? खैर ठाकुर रामसिंह एक मजबूत और खरे आदमी हैं !

75. ठाकुर फूलीसिंह-मूलीसिंह - [पृ.56]: ठाकुर फूलीसिंह-मूलीसिंह की जुगल जोड़ी कुम्हेर तहसील की गाँव बैलारा की है। इनमें ठाकुर फूलीसिंह जेलदार हैं। दोनों ही सम्पन्न और समझदार आदमी हैं। भरतपुर में जाट भवन बनवाने के सिलसिले में आप दोनों ने कोशिश की और चंदा इकट्ठा किया। कौमी सुधार के हर काम में आप हिस्सा लेते हैं। दोनों ही अभी जवान हैं और दिल से जाति सेवा के इच्छुक हैं। आप दोनों सिनसिनवार हैं।


76. ठाकुर रामसिंह बैलारा - [पृ.57]: ठाकुर रामसिंह सिनसिनवार बैलारा गाँव के हैं। उनकी उम्र अभी 60 साल है। आप स्वभाव के सरल और वाणी के खरे हैं। आपने इसी वर्ष कुम्हेर की एक बड़ी किसान सभा में बोलते हुये कहा कि भरतपुर के कांग्रेसी तो बड़े खोटे निकले। आपके पुत्र कुँवर गुलाब सिंह सायर में इंस्पेक्टर हैं। कांग्रेसी मंत्री मण्डल ने आप जैसे नेक और अपनी कमाई पर गुजर करने वाले नौजवान को संदेह में अलग कर दिया। आप सिनसिनवार जाट हैं।

77. जमादार करनसिंह फौजदार - [पृ.57]: गाँव पेंघोर के पास कुम्हा में फौजदार करणसिंह एक जाति हितेषी सज्जन हैं। बिना जोखिम के कौमी सेवा के हर काम में हिस्सा लेते हैं। आप बोहरे नत्थी सिंह के पड़ौसी हैं। जवानी में आप फौज में भर्ती हो गए और विदेश में जाकर शत्रुओं से मोर्चा लिया। जामदारी के ओहदे से पेंशन लेकर आए। आपके एक पुत्र कुँवर ब्रजेन्द्रसिंह पुलिस में थानेदार हैं। आपको भी कांग्रेसी मंत्री मण्डल ने निलंबित किया हुआ है।

78. सूबेदार भूराराम - [पृ.57]: पेंघोर के बास अधैया के सूबेदार भूराराम ब्रिटिश फौज में भर्ती हुआ और वहाँ बहादुरी दिखाई और सूबेदार के ओहदे से पेंशन लेकर आए । आप बहुत परिश्रमी आदमी हैं।


[पृ.58]: आपके पुत्र रामचन्द्र सिंह जिन्हें दिक करने के लिए कांग्रेसी मंत्री मण्डल ने शरणार्थी विभाग में तब्दील किया हुआ है। सूबेदार भूराराम जी स्पष्ट आदमी हैं। इसी प्रकार उनके लड़के भी हैं। आपका परिवार दबना और खुशामद करना नहीं जानता।

79. ठाकुर सदनसिंह - [पृ.58]: जब भरतपुर के बड़े जाट परिवारों में सान्तरुक के ठाकुर सदनसिंह खूंटेल को नहीं भुलाया जा सकता। ओल केश में जिसे धार्मिक युद्ध कहा जाता है ठाकुर सदनसिंह खूंटेला और उनके पिता लक्ष्मन सिंह दोनों ही फांस लिए गए थे। यह उनके कृष्ण भवन जाने का चांस था। उसके बाद ठाकुर सदनसिंह ने सहायक रूप से सामाजिक कार्यों में भाग लिया। आप एक बुद्धिमान आदमी और अपने गोत्र खूंटेला में सर्वोपरि व्यक्तियों में गिनती होती है। आपकी उम्र 50 के आस पास है।

आपके साथियों में ठाकुर छप्पन सिंह, राम सिंह और मुंशी सिंह आदि रहे हैं।

सान्तरुक की नई पौध में ठाकुर बालेसिंह और पूरनसिंह किसान सभा के साथी और उत्साही युवक हैं। किसान सभा को आगे बढ़ाने के लिए ठाकुर बालेसिंह ने बीरबलसिंह और पूरनसिंह को साथ लेकर अनेक मीटिंगों में भाग लिया।

80. ठाकुर किशनसिंह - [पृ.58]: नगला बरताई में ठाकुर समंदरसिंह काफी जनप्रिय आदमी थे। वे जाट समाज की तमाम हलचलों में भाग लेते थे।


[पृ.59]:उन्हीं के भाई ठाकुर किशनसिंह हैं। आप 1942 ई. में प्रजापरिषद के टिकट से भरतपुर असेंबली के लिए खड़े हुये थे किन्तु परिषद से प्रेम आपको कभी नहीं हुआ। आप सदैव ही जाट कौम की भलाई के लिए काम करते हैं। आपके साहबजड़े भी कौम भक्त हैं। आपका जन्म संवत 1961 को हुआ। अभी आपकी उम्र 45 साल है। आपके पिताजी का नाम ठाकुर भमरसिंह था। आपके 4 पुत्र हैं- 1. नौनिहालसिंह, 2. भीमसिंह, 3. लोकेन्द्रसिंह, 4. भरतसिंह

81. ठाकुर कन्हैयासिंह - [पृ.59]: बहनेरा के ठाकुर कन्हैयासिंह और धनागढ़ ठाकुर कन्हैयासिंह दोनों ही सिनसिनवार हैं। दोनों ही धनी आदमी हैं बड़े मजेदार हैं। समझदार हैं। दोनों ही जाट सभा के कमों में हिस्सा लेते हैं। दोनों एक दूसरे के मित्र हैं।

धनागढ़ में एक ठाकुर थानसिंह हैं। आप नई उम्र के आदमी हैं। किसान सभा के पक्ष में आरंभ से ही हैं। ऊदर के ठाकुर टुंडासिंह जी के सत्संग से आपकी रुचि सभा के कामों की ओर विशेष रूप से हुई है। ठाकुर टुंडासिंह जी बहुत दिन से समाज सुधारक और कौमी कामों में हिस्सा लेते रहे हैं। चिचाने में आपकी जमीदारी है।

82. ठाकुर कन्हैयासिंह - [पृ.59]: बहनेरा के ठाकुर कन्हैयासिंह और धनागढ़ ठाकुर कन्हैयासिंह दोनों ही सिनसिनवार हैं। दोनों ही धनी आदमी हैं बड़े मजेदार हैं। समझदार हैं। दोनों ही जाट सभा के कमों में हिस्सा लेते हैं। दोनों एक दूसरे के मित्र हैं।

धनागढ़ में एक ठाकुर थानसिंह हैं। आप नई उम्र के आदमी हैं। किसान सभा के पक्ष में आरंभ से ही हैं। ऊदर के ठाकुर टुंडासिंह जी के सत्संग से आपकी रुचि सभा के कामों की ओर विशेष रूप से हुई है। ठाकुर टुंडासिंह जी बहुत दिन से समाज सुधारक और कौमी कामों में हिस्सा लेते रहे हैं। चिचाने में आपकी जमीदारी है।

83. टीकमसिंह - [पृ.59]: अजान के उदयराम और कंचन सिंह 1939 ई. में मेरे साथ भरतपुर जेल में रहे। तभी से वे मेरे सहयोगी हैं। दोनों नौजवान हैं और बहुत उत्साही हैं। इनके पिता ठाकुर गोविंदराम किसान सभा के पक्के हितेषी हैं।


[पृ.60]: ठाकुर गोविंदराम किसान सभा के लिए सब कुछ करने को तैयार रहते हैं। आप भी इस वर्ष सत्याग्रह में शामिल हुये।

अजान के पास ही एक नगला है उसी के हंसमुख नौजवान टीकमसिंह है जो अभी 27-28 साल का है। वह जितना खुश मिजाज है उतना ही साहसी और सच्चा भी है। किसान सभा को वह बहुत प्यार करता है। उसके चाचा, पिता और भाई उसे जाति हित के कामों में हमेशा मदद देते हैं।

84. ठाकुर जुगलसिंह - [पृ.60]: कुम्हेर तहसील के अवार गाँव में एक पतले और लंबे आदमी ठाकुर जुगलसिंह रहते हैं। अभी वे 50 के आस-पास उम्र के हैं। लोग उनको बाबा कहकर पुकारते हैं। साख में अपने से बड़ी उम्र के लोगों के भी बाबा हैं। इन्हीं बाबा साहब का नाम जुगला है। ये पिछले कई वर्ष से हमारे संपर्क में हैं। ठाकुर जुगलसिंह कई वर्ष से किसान सभा के अडिग सदस्य हैं। बिना जोखिम के सभी कामों में आगे रहते हैं। अपने गाँव में बहुत असर रखते हैं। विरोधियों को खत्म करने और मित्रों को दिल से मदद देने की आपकी आदत है।

85. ठाकुर अतरसिंह - [पृ.60]: अवार के पास सुरौता एक गाँव है। यहाँ के नौजवान ठाकुर अतरसिंह से इसी वर्ष हमारा ताल्लुक बढ़ा है। कम और मीठा बोलना उनका स्वभाव है। आप दिल से अपनी कौम और किसान वर्ग की सफलता के इच्छुक हैं। इस वर्ष (1948 ई.) के किसान सत्याग्रह में


[पृ.61]: भाग लिया उसमें आप जेल जाने के इच्छुक थे। आपने चंदे से सभा की सहायता कराई।

86. ठाकुर कल्लनसिंह

86. ठाकुर कल्लनसिंह - [पृ.61]: साँवले और इकहरे लंबे कद का एक बहादुर सैनिक पेंघोर के बास इन्दु में अजीठन कल्लन सिंह के नाम से मशहूर हैं। उन्होने अपने जवानी के दिनों में विदेशों में जाकर मोर्चे लिए और प्रौढ़ावस्था से पेंशन लेकर जमीदारी संभाली। सभी पुत्रों को योग्य बनाया। जिनमें एक पुत्र हुक्म सिंह बीए एलएलबी हैं। दूसरे कुँवर होती सिंह एमए में पढ़ रहे हैं। इन दोनों से बड़ों में एक खेती संभालते हैं और एक फलटण में सूबेदार हैं। ठाकुर कल्लनसिंह निरे जाट धातु के बने हैं। जिस सभा में जाटपन की गंध न होवे उसके पास भी नहीं जाते। यह उनका अनौखापन है। इस वर्ष के किसान आंदोलन में आपके चौथे पुत्र होती लाल जी ने पूर्ण भाग लिया।

87. ठाकुर गंगादानसिंह - [पृ.61]: ठाकुर नारायनसिंह के गाँव कुरवारा में दूसरे कुटुंब में एक पढे लिखे और रईस टाइप के नौजवान गंगादानसिंह हैं। आप उन तमाम कौमी कामों में हिस्सा लेते हैं जिनमें किसी जोखिम की आशा न हो।

88. ठाकुर ध्रुवसिंह - [पृ.61]: मेरे अनेकों साथी रहे हैं। सार्वजनिक जीवन ऐसा है जिसमें आज जो साथी है कल वह दूसरी कतार में दिखाई देता है। मैंने अनेकों कार्यकर्ता ढाले जिनमें से कई तो आज


[पृ.62]: सरदार हरलाल सिंह की तरह महा नेता (!) हैं। भरतपुर की प्रजापरिषद के नेता उपनेताओं में आधे दर्जन से ऊपर आदमी ऐसे हैं जिनको मैं ढालने का दावा कर सकता हूं। किंतु अपने आप ढला हुआ हमें जो एक साथी मिला है उस पर मुझे अत्यंत गर्व है। वह पहाड़ की चट्टान की तरह मजबूत और संतरी की भांति अनुशासन पसंद आदमी है ठाकुर ध्रुवसिंह

भरतपुर की किसान सभा का वह स्तंभ है। निर्भीकता उसका गुण है। ठाकुर ध्रुवसिंह का जन्म अब से 30-32 साल पहले पथेना में ठाकुर जीवनसिंह जी के घर में हुआ था। गांव के स्कूल में शिक्षा पाई और फिर अपने स्वभाव के अनुकूल अलवर के मंगल रिसाले में नौकरी कर ली। जहां रिसालदार के ओहदे पर अवस्थित हुए। मैं पहले से भी उन्हें जानता था किंतु गाढा परिचय सन् 1932 में झुंझुनू जाट महोत्सव के अवसर पर हुआ।

बत्राशाही के समय में पुलिस की उन पर कोप दृष्टि रही। और पुलिस के महान आदमियों ने उन्हें एक कत्ल केस में धर फाँसा। किंतु सांच को आंच कहां। वे हाईकोर्ट से बरी हुए। आप आत्मविश्वासी इतने हैं कि काल कोठरी में और सेशन जज के यहां से फांसी का हुक्म सुनने पर भी आपका वजन बढ़ा ही घटा नहीं।

वे हृदय से जाट हैं लेकिन इस बात को पसंद नहीं करते कि भरतपुरी जाटों का हिस्सा बाहरी जाट खा जाएँ। इसलिए उन्होने चौधरी जगरामसिंह आईजीपी का विरोध आरंभ किया। जिसका नतीजा हुआ कि उनको भरतपुर ऑर्डिनेंस के मातहत जेल की हवा खानी पड़ी।


[पृ.63]: सन् 1946 और 1947 में जब भरतपुर सरकार लगान में कंट्रोल रेट पर गल्ला खरीदना चाहती थी तो आपने आवाज बुलंद की और किसानों के गिरोह के साथ काउंसिल के सामने प्रदर्शन कराये जिसका नतीजा यह हुआ कि भरतपुर का किसान बच गया और लगान में गल्ला देने की आफत टल गई।

इस समय 4 महीने से उनके लिए वारंट हैं। जब मत्स्य में किसान राज्य होगा तब ध्रुवसिंह जी का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।

भगवानदास मारवाड़ा जिसने 17.3.1948 को किले के सत्याग्रह में माड़ापुरिया करण सिंह का जैसा नाम हासिल किया। पिछले महीने 2 बार जेल हो आए। ये आप ही के लेफ्टनेंट हैं।

89. कुँवर सेन - [पृ.63]: पुष्करसिंह जी के कारखाने से जो मानव रूपी हथियार हमें इस वर्ष मिले उनमें 20 वर्षीय और गौर वर्ण एक नौजवान कुंवरसेन जी हैं। वह होनहार लड़कों में से हैं। उनके पिता एक पक्के कांग्रेसी हैं और सन् 1942 के चुनाव में एक किसान उम्मीदवारों के खिलाफ खड़े भी हुए थे। आप इस समय बीए में पढ़ रहे हैं। आपने गर्मी भर किसान सभा का कार्य किया और अपने स्वतंत्र विचारों और कार्यों से सभा को मदद पहुंचाई है। आप ही 22 मई को मत्स्य के एडमिनिस्ट्रेटर से पंडित हरीशचंद्र जी के साथ किसान मांगों का स्पष्ट जवाब लेने अलवर गए थे।

आपके कुटुंबी चाचा फौजदार गणेशीसिंह जो हमेशा से जाट सभा के सहायक रहे हैं वे एक बार मिनिस्ट्री के


[पृ.64]: लिए भी खड़े हुए थे किंतु वह खेल बिगड़ गया। गणेशीसिंह जी जमीदारी के अलावा व्यापारी दिमाग के भी आदमी हैं।

पहलवान कारेसिंह राजपूताने और यूपी में सर्वोपरि पहलवान हैं आप ही लोगों के खानदान का है जिसने दूर-दूर तक कुस्तियाँ लड़कर जाट कौम का नाम ऊंचा किया है।

90. चौधरी गोरधनसिंह - [पृ.64]: सोगरिया फ़ौजदारों में हम पहले ही बता चुके हैं कि तमरौली के ठाकुर घनश्यामसिंह, सोगर के ठाकुर गिर्राजसिंह और तुहिया के ठाकुर मनीराम सिंह कौम का थोड़ा बहुत काम करते आ रहे हैं। सन् 1948 में ठाकुर घनश्याम जी के साथ प्रजा परिषद के कुछ गुंडों ने काफी शरारत की थी। आपके बड़े पुत्र प्यारेलाल जी निहायत एक भले और सज्जन पुरुष हैं। ठाकुर गिर्राजसिंह ठाकुर गुलजारीसिंह के पुत्र हैं जिनका नाम आज तक लिया जाता है। ठाकुर मनीरामसिंह जी की राजनीति बहस मुबाहिसे तक सीमित है। महाराजा किशनसिंह जी के समय में आप शासन सुधार कमेटी के मेंबर और देहाती पंचायत के सरपंच चुने गए थे।

आजकल तुहिया के ठाकुर गजपतसिंह किसान सभा के कामों में अच्छी दिलचस्पी लेते हैं। सोगर में पहले जमादार भगवतसिंह और फौजदार राम चंद्रसिंह का सितारा बुलंद था। अब पदमनसिंह की पूछ है। ठाकुर पंजाबीसिंह नगला पंजाबी बड़े समझदार आदमी हैं। नगला संता में खड़गसिंह और पदमसिंह का नाम था। अब जोड़ी फूटकर दूसरा हंस उद गया है। इसी गाँव में एक चतुर और ठंडे दिमाग के चौधरी हैं


[पृ.65]:गोरधनसिंह जो चुपचाप कौम के कामों में रुचि लेते हैं। आपके पुत्र कुँवर विजेसिंह जी हैं।

91. ठाकुर भगवतसिंह - [पृ.65]: बुड़वारी के ठाकुर भगवतसिंह रईस टाईप आदमी हैं। इलाके में आपकी इज्जत है। बिना जोखिम के कामों में वे हमेशा जाट सभा की सहायता करते हैं।उनका सच्चा प्रेम अपनी सभा के सिवाय और किसी सभा से नहीं है। आपकी उम्र 50 के करीब है। आप सिनसिनवार गोत्र के सरदार हैं।

92. ठाकुर यादरामसिंह - [पृ.65]: ठाकुर ध्रुव सिंह के साथियों में उन्हीं का जैसी हिम्मत और मजबूत शरीर का एक ही सुंदर नौजवान है - ठाकुर यादरामसिंह। आपका गाँव भौसिंगा है और गोत्र बिसाती है।

आप काम करते हैं नाम के भूखे नहीं हैं। वैसे कम बोलते हैं पर जब भाषण देने खड़े होते हैं तो बहुत अच्छा बोलते हैं। अबकी साल आपने किसानसभा का काफी काम किया है। आप 26-27 वर्ष के दृढ़ विश्वासी नौजवान हैं। आपके पिताजी का नाम ठाकुर गोवर्धनसिंह है। आप दो भाई हैं। छोटे भाई का नाम नाहरसिंह है।

93. ठाकुर पूरनसिंह - [पृ.65]: हलेना में ठाकुर पूरनसिंह, सावल सिंह, और इंछाराम किसान सभा के पूर्ण हितेषियों में से हैं। आप आरंभ से ही इसी रास्ते पर हैं। तीनों सम्पन्न और समझदार आदमी हैं। ठाकुर पूरनसिंह व सावल सिंह ठाकुर ध्रुव सिंह के अपने आदमियों में एक हैं।


[पृ.66]:और उनके आदेश से किसानों के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। ठाकुर पूरनसिंह हलेना के बड़े जमीदार हैं।

94. जेलदार अंगदसिंह - [पृ.66]: बरौलीछार गाँव में जाटों की पुरानी वेषभूषा की जागती मूर्ति जेलदार अंगदसिंह हैं। उन्हीं के पौत्र हरेकृष्ण जी हैं जो अपने काम में काफी निपुण हैं। ईमानदारी और सच्छाई के लिए जेलदार अंगदसिंह का नाम मशहूर है। आपकी अवस्था करीब 65 वर्ष होगी परंतु शरीर से अभी मजबूत हैं। ईश्वर भक्त हैं। आपका गोत्र ---- है।

95. कुँवर हिम्मतसिंह - [पृ.66]: आप कर्नल घमंडी सिंह के बहनोई हैं। पुलिस में इंस्पेक्टर रह चुके हैं लेकिन स्वास्थ्य अच्छा न रहने के कारण अवकाश ले लिया। कासगंज, तहसील नदवई , आपकी जन्म भूमि है। स्वभाव से अत्यंत सौम्य हैं सुंदर और गौरा आपका रंग है और सरल स्वभाव है। कौम से हमदर्दी रखने के कारण मोहम्मद नकी के जमाने में परेशानी उठा चुके हैं।

96. कुँवर महेंद्रसिंह - [पृ.66]: गादौली के कप्तान नवाब सिंह अपने अच्छे स्वभाव के लिए मशहूर थे। उन्हीं के पुत्र हैं महेंद्र सिंह। वे नई उम्र के जवान हैं । हिन्दी-अङ्ग्रेज़ी की तालीम पाने के कारण वैसा ही इनका जीवन स्टैंडर्ड है। 17 मार्च के सत्याग्रह में उन्होने सैंकड़ों आदमियों के साथ अच्छे कर्तव्य का पालन किया। वे जत्थों के साथ दफा-144 को भंग करने के भी इच्छुक


[पृ.67]:थे किन्तु ऐसा मौका नहीं आया। वे हृदय से किसान सभा के अनुयाई हैं।

97. चरनसिंह और 98. धर्मसिंह - [पृ.67]: ये दोनों ही सरदार सहना गाँव के रहने वाले हैं। सन् 1942 से ही बाबू फकीरचंद की कोशिश से ये किसान सभा में शामिल हुये। तभी से बराबर उसके साथ हैं। भरतपुर की धारा सभा के चुनाओं में रुपबास तहसील से खड़े होने वाले किसान उम्मीदवारों का आपने समर्थन किया। भरतपुर की सभी बड़ी मीटिंगों में वे शामिल हुये और अपने आस-पास के गांवों में किसान सभा की बातें फैालते रहे।

99. जमादार धर्मसिंह - [पृ.67]: एकटा खरेटा के जमादार धर्म सिंह अपने इलाके में मशहूर आदमी हैं। वे जेलदार कुँवर पालसिंह के लेफ्टिनेंट हैं। आपकी अवस्था इस समय 50 वर्ष से ऊपर है। आप तहसील एड्वायजरी कमेटी भरतपुर के वर्षों तक मेम्बर रहे हैं और गांवों में आपसी झगड़े निपटाने के सिलसिले में जेलदार कुँवर पालसिंह के साथ आपने काफी काम किया है।

100. ठाकुर बालूराम बसेरी - [पृ.67]: जिन दिनों आर्य समाजी बनना बुरा समझा जाता था मैं तभी से उन्हें जनता हूँ। ठाकुर पूरनसिंह यादव की सहायता से उनके गाँव में हमने उस समय 1927 ई. में आर्य समाज की स्थापना कराई थी। तब से बराबर जाति सुधार और समाज सुधार के कामों में भाग लेते हैं।


101. ठाकुर ब्रजलाल जी - [पृ.68]: डीग में शाहपुरा मोहल्ले में खेमकरण के वंशजों का एक खानदान रहता है। ठाकुर ब्रजलाल उसके सदस्य हैं। आपके पुत्र शिक्षित हैं। आपके पुत्र हैं: 1. कुँवर नन्नू सिंह और 2. जोध सिंह। ठाकुर ब्रजलाल सर्व प्रिय व्यक्ति हैं और कौमी सेवा में प्रसन्न रहने वाले आदमी हैं।

102. ठाकुर मेवाराम - [पृ.68]: कर्नल घमंडी सिंह से ही ठाकुर मेवाराम ने सीखा कि हरेक परिस्थिति से सही सलामत कैसे निकला जय। आप जहां एक चतुर अफसर हैं वहाँ एक कुशल व्यवसायी भी हैं। आपके भाई कुँवर बृजेन्द्रसिंह महाराजा भरतपुर के प्रायवेट सेक्रेटरी रहे हैं। जिनकी जगह पर उन्हीं के गाँव के ठाकुर कोकी सिंह के पुत्र बलबीर सिंह हैं जो एक होनहार युवक हैं।

ठाकुर मेवा राम ने जोखिम रहित कामों में सदा कौम की सहायता दी है। इसमें कोई संदेह नहीं ढोनों भाई अपने कामों में चतुर और धोखा न खाने वाले साबित हुये हैं।

103. ठाकुर सभाराम - [पृ.68]: डीग तहसील के नगला सभाराम के संस्थापक ठाकुर सभाराम अब इस संसार में नहीं हैं किन्तु उनकी दृढ़ता और धर्म प्रियता की कहावतें अब तक अमर हैं। आज से 40 साल पहले वे आर्य समाज में दीक्षित हुये। अब उनके साथियों में से पंडित कल्लूराम खेड़ा और नगला चाहर के पटवारी


[पृ.69]:कल्याण सिंह जी दाहे हैं। इन लोगों ने डीग के शेखों को सिनसिनावार बनाकर एक जाति पैदा की और वर्षों उसके दंड में जाति से बाहर रहे। ठाकुर सभाराम के पुत्रों में बड़े ठाकुर ब्रजलाल जी काफी समझदार और सरल प्रकृति के सज्जन पुरुष हैं।

104. ठाकुर नत्थासिंह - [पृ.69]: पीरनगर के जेलदार ठाकुर रामसिंह के छोटे भाई ठाकुर नत्थासिंह निहायत विनयशील आदमी हैं। उनके भाई सदा ही कौम के सच्चे भक्त रहे और किसान सभा के शुभ चिंतक। सन् 1942 ई. के चुनाओं में जेलदार कुँवरपाल सिंह के गुस्से की परवाह न करते हुये उन्होने किसान सभा की मदद की। मीठा स्वभाव और मिलनसारिता आपका गुण है।

105. चि. पूरनसिंह - [पृ.69]: खेरली, तहसील बयाना में नवकुमार लड़के पूरन सिंह को मैंने इसी वर्ष फरवरी में देखा था जब मैं रेवेन्यू मिनिस्टर था। वह नौकरी के लिए आता था परंतु उसे कहीं नहीं लगा सका।

17 मार्च के बाद पूरन सिंह को मैंने किसान सभा के उत्साही कार्यकर्ताओं में देखा। उसका बाप जब मर गया था तो भी महाराज ने उसे पालन पोषण के लिए कुछ मदद की थी। यह एक हौनहार लड़का है।

106. नत्थीसिंह बेधड़क - [पृ.69]: तहसील बयाना के मालौनीपुरा के में ठाकुर नत्थीसिंह बेधड़क


[पृ.70]:ध्रुव सिंह के बनाए आदमियों में से हैं। आप जो भी कुछ सभा सोसायटियों में गाते हैं उसकी तुकें तुरंत तैयार करते हैं। वे कड़े आलोचक हैं और किसानों के लिए पूर्ण सहानुभूति रखते हैं।

107. कुँवर रणवीरसिंह - [पृ.70]: वे इस समय प्रजा परिषद में काम करते हैं।प्रजा परिषद में रहने के कारण उन्होंने नुकसान भी बहुत उठाया है। उनके पिता ठाकुर कप्तान रामजीलाल जी शांत पुरुष हैं। किन्तु महाराज साहब के समय में कुछ गलत फहमियों ने उन्हें प्रजा परिषद में जा पटका। कुँवर रणवीर सिंह लेफ्टिनेंट के ओहदे पर वर्मा के मोर्चे पर गए थे। वहाँ से लौटने पर उन्हें भरतपुर फौजी सर्विस से अलग कर दिया। तभी से वे प्रजा परिषद के साथी हो गए।

वे प्रजा परिषद में हैं परंतु एक किसान का हृदय लेकर। वे आँख मीच कर प्रजा परिषद के शहरी और बेऊसूली लीडरों की बात नहीं मानते। वे अपना एक स्वतंत्र व्यक्ति रखते हैं और इस बात को माह शूस करते हैं कि प्रजा परिषद द्वारा निकट भविष्य में किसानों का भला होने वाला नहीं है।

108. मास्टर ओंकारसिंह - [पृ.70]: जयपुर रोड पर हलेना के पूर्व की ओर में अजरौदा में मास्टर ओंकारसिंह का जन्म हुआ। उन्होने अपनी माली हालत बाहुबल से सुधारी। और अपने पसीने की कमाई में से सार्वजनिक कामों के लिए भी दिल खोलकर धन दिया।


[पृ.71]: मास्टर ओंकार सिंह ने अहमदाबाद जाकर मिल में काम किया। वहाँ 10 वर्ष के लगभग रहे। 1939 ई. में जब भरतपुर में सत्याग्रह चला तो आपने अहमदाबाद में स्थित भरतपुरी मजदूरों से पैसे की सहायता भिजवाई। जाट-वीर और जाट-जगत अखबारों की भी अपने सदा मदद की। इस समय आप अपने गाँव में ही रहते हैं।

आपके अहमदाबाद के साथियों में ठाकुर रामसिंह अरौदा और ठाकुर पौथीसिंह पथेना मशहूर हैं।

109. श्री मथुरालाल जी

109. श्री मथुरालाल जी - [पृ.71]: भरतपुर राज्य में जयपुर रोड पर हलेना के पूर्व की ओर अजरौदा गोधारा जाटों का एक पुराना मशहूर गाँव है। गाँव की नींव सन् 1590 ई. में पड़ी थी। राया से चलकर आए कुछ लोगों ने इसे आबाद किया। आबाद करने वालों का सरदार कुवेर गोधारा था। जिस समय वीर गोकुला ने मुगल अत्याचारों के खिलाफ तलवार उठाई थी उस समय गुलाब का लड़का सम्पत यहाँ का जवाँमर्द आदमी था। उसने गोकुला की सेना में अपना नाम लिखाकर जाति भक्ति का परिचय दिया था। सम्पत का लड़का माधोसिंह हुआ। इसी माधोसिंह की तीसरी पीढ़ी में ठाकुर नानगराम हुये। उनके दो पुत्र हुये - 1. चतुर्भुज सिंह और 2. मथुरा लाल

मथुरा लाल की यौवन से ही रुचि जाति सेवा की ओर थी। आज से 53 साल पहले सन् 1895 ई. के दिसंबर महीने में मथुरा लाल का जन्म हुआ। मोहनसिंह और विजयसिंह उनके दो लड़के हैं। मोहनसिंह ने कृषि कालेज कानपुर और बलवंत कालेज


[पृ.72]: आगरा में कृषि की सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त की है। विजैसिंह जी हाई स्कूल में पढ़ते हैं। आपकी दो पौत्रियों में बड़ी दरयाव कौर भी हाई स्कूल में शिक्षा पा रही हैं।

सन् 1877 ई. में आपके पिता अरौदा से कोटा राज्य में पहुंचे। वहाँ आपके पितामह ने देहात में खेती का धंधा अपनाया था। क्योंकि कोटा की भूमि उपजाऊपन के लिए मालव भूमि है। सन् 1901 में आपके पितामह कोटा की सेना में मुलाजिम हो गए। तभी से आपका परिवार कोटा का वाशिंदा हो गया।

शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप बारां में टीचर नियुक्त हुये। पढ़ाई में आप सदैव फ़र्स्ट रहे। कुछ वर्ष के बाद मथुरा लाल कस्टम और एक्साइज के इंस्पेक्टर हो गए। आपको काम के सिलसिले में महकमों के अफसरों, दीवानों और खुद महाराज साहब ने सर्टिफिकेट बक्से हैं।

आपके काम से आप जहां भी रहते हैं जनता के लोग भी निहायत खुश रहे।

आपकी धर्मपत्नी श्रीमति कंचन कुमारी धार्मिक वृति की स्त्री हैं। व्रत-उपवास और पूजा पाठ में उनकी रुचि है। कौम के कामों की तरफ भी स्नेह रखती हैं।

मथुरालाल जी एक्साइज के इंस्पेक्टर रहे हैं किन्तु शराब, गाँजा और भांग का नशा करना तो दूर आप पान, बीड़ी और तंबाखू से भी दूर भागते हैं।

सन् 1917 से आपकी रुचि जाति सेवा में हुई। सन् 1925 ई. में जब 'जाट-वीर' शुरू हुआ तो हाड़ौती भर में आपने इसके ग्राहक बनाए। जहां जहां जाट जलसे हुये आप सपरिवार पहुँचने


[पृ.73]: की कोशिश की। पुष्कर जाट महोत्सव 1925 संबंधी जो साहित्य मिला उसे आपने हाड़ौती के जाटों में वितरण करवाया।

आपकी इच्छा बारां में एक जाट छात्रावास देखने की थी। सन् 1942 में जब देवी सिंह बोचल्या उधर गए तो आपने देहात में घूमकर बड़े-बड़े जाटों से उनका परिचय करवाया।

कोटा के देहातों में करीब 11,000 जाट आबाद हैं। उनमें सैकड़ों रईस हैं जिनके यहां 50-50 बैल, हजारों बीघा जमीन और बड़े-बड़े अन्न भंडार रहते आए हैं। उनमें शिक्षा प्रचार और कुरीति निवारण के लिए आपने भरपूर कोशिश की हैं।

मथुरालाल जी की ईमानदारी की प्रशंसा जहां उनके अफसरों ने की है वहां मिलनसारी की प्रशंसा जनता ने की है। उनके हाथ सिर्फ यश ही रहा है रुपया नहीं क्योंकि रुपया तो बेईमानी से पैदा होता है। वे चाहते तो लाखों कमा सकते थे। किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।

उनकी लोगों में कद्र है यही उनकी सबसे बड़ी संपत्ति है। उन्हें इसके अलावा सुघड़ स्त्री और योग्य संतानों का भी महासुख है। यही मनुष्य जीवन की लौकिक सफलता है। और बड़ी बात तो यह है कि जिसका जाति हित में सब्र हो वह पुरुष सराहनीय है।


भरतपुर अध्याय समाप्त

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