Alwar

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District Map of Alwar

Alwar (अलवर) is a city and district in Rajasthan.

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History

V. S. Agrawala[1] writes that Ashtadhyayi of Panini mentions janapada Sālva (शाल्व) (IV.2.135). It was confined to limited geographical horizon in the central and north eastern Punjab. Shalva may coincide with the territory extending from Alwar to north Bikaner. Salvas were ancient people who migrated from west through Baluchistan and Sindh where they left traces in the form of Śālvakāgiri, the present Hala mountain, and then advancing towards north Sauvira and along the Saraswati and finally settled in north Rajasthan.


According to legend, the Pandavas took shelter in this region during the thirteenth year of their exile.

In the mediaeval period, Alwar was an important military post of the Mughal Empire. During this period Alwar was used as an important base to launch attacks on the fort of Ranthambore. It also served as an important halting station for the Mughal Emperors during their journeys between Agra and Ajmer. During the later Mughal period, it was annexed by Maharaja Suraj Mal, the Jat ruler of Bharatpur. A Kachhwaha Rajput, Pratap Singh of Machheri, captured it from the Jats in 1775 and laid the foundation of a separate state of Alwar.

Prithviraja III's kaka Kanhadadeva was a great warrior. He was known as Kaka Kanha and present Alwar district's northern part, Sambhal and Moradabad were in his Jagir. He constructed a Shiva tenmple at Saraneshwara. Kanha'd damad was killed in war with Kutubuddin and his daughter named Bela became a sati. There is a temple of Bela in Sambhal where a fair is organized every year.[2]

अलवर-शाल्व-शाल्वपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...अलवर का प्राचीन नाम शाल्वपुर था. किंवदंती के अनुसार महाभारतकालीन राजा शाल्व ने इसे बसाया था। अलवर शायद शाल्वपुर का अपभ्रंश है। महाभारत के अनुसार शाल्व ने जो मार्तिकावतक का राजा था तथा सौभ नामक अद्भुत विमान का स्वामी था, द्वारका पर आक्रमण किया था। मार्तिकावतक नगर की स्थिति अलवर के निकट ही मानी जा सकती है।

शाल्व-शाल्वपुर: विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...शाल्वपुर (AS, p.896): अलवर, राजस्थान के परवर्ती प्रदेश का प्राचीन नाम, जिसका उल्लेख महाभारत में भी है। माना जाता है कि महाभारत कालीन राजा शाल्व ने इसे बसाया था। अलवर शायद 'शाल्वपुर' का अपभ्रंश है। शाल्व नरेश ने काशी के राजा की सबसे बड़ी कन्या अंबा का, जो उससे विवाह करने की इच्छुक थी, भीष्म द्वारा हरण किये जाने पर उनके साथ युद्ध किया था, जिसका वर्णन महाभारत, आदिपर्व 102 में है। राजा शाल्व के पास 'सौभ' नामक एक अद्भुत नगराकार विमान था। इस विमान की सहायता से उसने श्रीकृष्ण की द्वारिका पर आक्रमण किया था। [5]

'बुद्धचरित' (बुद्धचरित 9,70) में शाल्वाधिपति 'द्रुम' का उल्लेख है- 'तथैव शाल्वाधिपतिर्द्रु माख्यो वनात् ससूनुर्तगरं विवेश।' महाभारत, वनपर्व (महाभारत, वनपर्व 294,7) के अनुसार, सावित्री के श्वसुर द्युमत्सेन शाल्व देश के राजा थे- 'आसीच्छाल्वेषु धर्मातमा क्षत्रियः पृथिवीपतिः द्युमत्सेन इतिख्यातः पश्चादन्धो बभूव ह।'

अलवर का प्रचीन नाम शाल्वपुर कहा जाता है। संभव है, अलबर 'शाल्यपुर' का अपभ्रंश हो। शाल्व निवासियों का विष्णुपुराण (विष्णुपुराण 2,3,17)में भी उल्लेख है- 'सौवीरा सैंधबाहूणाः शाल्वाः कोशलवासिनः।'

महाभारत में शाल्व को 'मार्तिकावतक' का राजा कहा गया है। इस देश की स्थिति अलवर के परिवर्ती प्रदेश में मानी जाती है। किंवदंती में प्राचीन शाकल या वर्तमान स्यालकोट से भी राजा शाल्व का संबंध बताया जाता है।

शाल्व का कृष्ण से युद्ध

शाल्व ‘सौभ’ नामक विमान के अधिपति एक राजा, जो काशीराज की पुत्रियों अम्बा आदि के स्वयंवर में उपस्थित हुए थे और फिर युद्ध में भीष्म द्वारा पराजित हुए थे। दमघोष के पुत्र तथा चेदि देश के राजा शिशुपाल के ये मित्र थे। जब शिशुपाल श्रीकृष्ण द्वारा मारा गया, तब शाल्व ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए द्वारिका पर धावा बोला, किन्तु वह स्वयं युद्ध में मारे गए।[6][7]

कृष्ण से युद्ध: कृष्ण के द्वारा शिशुपाल के मारे जाने पर शाल्व ने द्वारिका पर आक्रमण कर दिया। श्रीकृष्ण उन दिनों पांडवों के पास इन्द्रप्रस्थ गये हुए थे। उद्धव, प्रद्युम्न, चारुदेष्ण तथा सात्यकि आदि ने बहुत समय तक शाल्व से युद्ध किया। शाल्व मायावी प्रयोगों में चतुर था। प्रद्युम्न बहुत अच्छा योद्धा था। दोनों घायल होकर भी युद्ध में लगे रहे। प्रद्युम्न उस पर कोई विषाक्त बाण छोड़ने वाला था, तभी देवताओं के भेजे हुए वायुदेव ने प्रद्युम्न को संदेश दिया कि उसकी मृत्यु श्रीकृष्ण के हाथों होनी निश्चित है, अत: वह अपना बाण न छोड़े। प्रद्युम्न ने अपने बाण समेट लिये। शाल्व विमान में अपने नगर की ओर भाग गया। उसके पास आकाशचारी सोम विमान था, जिसमें रहकर वह युद्ध करता था।[8]

वध: 'शाल्व' शिशुपाल के मित्रों में से था। शिशुपाल के वध के उपरांत उसने घोर तपस्या से शिव को प्रसन्न करके वरदान स्वरूप ऐसा विमान प्राप्त किया था, जो चालक की इच्छानुसार किसी भी स्थान पर पहुंचाने में समर्थ था तथा अंधकार की अधिकता के कारण किसी को दिखायी नहीं पड़ता था। वह यदुवंशियों के लिए त्रासक था। उस सोम वाहन का निर्माण मय दानव ने लोहे से किया था। शाल्व ने उस विमान पर अनेक सैनिकों को सवार करके द्वारिका पर चढ़ाई कर दी। वहां प्रद्युम्न से उसका घोर युद्ध हुआ। द्वारकावासी बहुत त्रस्त थे। उधर यज्ञ की समाप्ति पर अपशकुनों का अनुभव करते हुए कृष्ण और बलराम द्वारिका पहुंचे। बलराम को नगर की रक्षा का भार सौंपकर कृष्ण युद्ध क्षेत्र में पहुंचे। उन्होंने शाल्व के सैनिकों को क्षत-विक्षत कर दिया। शाल्व घायल होकर अंतर्धान हो गया। एक अपरिचित व्यक्ति ने उसका दौत्य कर्म संपन्न करते हुए कृष्ण से कहा कि शाल्व ने उनके पिता को कैद कर लिया है। कुछ क्षण तो कृष्ण उदास रहे, फिर अचानक विमान पर शाल्व को वसुदेव के साथ देख वे समझ गये कि यह सब शाल्व नहीं, माया मात्र है। उन्होंने सुदर्शन चक्र से शाल्व को मार डाला। विमान चूर-चूर होकर समुद्र में गिर गया। शाल्व के वध और सोम विमान के नाश के उपरांत क्रमश: तदंवक्त्र तथा विदूरक भी कृष्ण के हाथों मारे गये।[9]

अन्य प्रसंग: शाल्व म्लेच्छों का राजा था। शल्य के वधोपरांत शाल्व ने पांडवों से युद्ध किया था। उसका हाथी अत्यंत बलशाली था। धृष्टद्युम्न से युद्ध करते हुए पहले तो उसका हाथी थोड़ा पीछे हटा, फिर क्रुद्ध होकर उसने धृष्टद्युम्न के रथ को सारथि सहित कुचल डाला, फिर सूंड़ से उठाकर पटक दिया। उसका क्रोध देखकर ही धृष्टद्युम्न रथ से नीचे कूद गया तथा अपनी गदा उठाकर मारी, जिससे हाथी का मस्तक विदीर्ण हो गया, तभी सात्यकि ने एक तीखे मल्ल से शाल्व का सिर काट दिया।[10]

संदर्भ:- भारतकोश-शाल्व

अलवर परिचय

अलवर शहर, पूर्वोत्तर राजस्थान राज्य के पश्चिमोत्तर भारत में स्थित है। अलवर का क्षेत्र दक्षिण से उत्तर में लगभग 13 किलोमीटर तथा पूर्व में लगभग 110 किलोमीटर तक फैला हुआ हैं। अलवर का प्राचीन नाम शाल्वपुर था। चारदीवारी और खाई से घिरे इस शहर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार पहाड़ पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था।[11]

अरावली पर्वत श्रेणियों की तलहटी में बसा अलवर पूर्वी राजस्थान में 'काश्मीर' नाम से जाना जाता है तथा पर्यटकों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। दिल्ली से क़रीब 100 मील दूर बसा राजस्थान का 'सिंहद्धार' अलवर ज़िला अपनी प्राकृतिक सुषमा के कारण अन्य ज़िलों से अपना अलग अस्तित्व बनाए हुए है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर की सीमायें:- उत्तर एवं पूर्वोत्तर में हरियाणा के गुड़गाँव से। पूर्व में राजस्थान के भरतपुर से। पश्चिम में जयपुर से। दक्षिण में यह दौसा से लगती हैं। पश्चिमोत्तर में हरियाणा राज्य का महेन्द्रगढ़ ज़िला इससे लगा हुआ है। अलवर ज़िले का मध्य भाग अरावली पहाडियों से घिरा हुआ हैं। अलवर जयपुर से 150 किलोमीटर दूर स्थित है।[12]

भारतीय संस्कृति का परचम फहराने वाले स्वामी विवेकानन्द अलवर में पहली बार वर्ष 1891 ई. में आए। अलवर आने के बाद अलवर के चिकित्सालय में कार्यरत बंगाली चिकित्सक से उनकी मुलाकत हुई और चिकित्सक ने बाद में उन्हें वर्तमान में मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में स्थित एक कोठरीनुमा कमरे में ठहरने के लिए जगह दी। यहाँ प्रवास के दौरान उनके कम्पनी बाग़ में उस मिट्टी के टीले पर प्रवचन होते थे जहाँ वर्तमान में शिवाजी की मूर्ति है। इसी दौरान उनकी शहर के कई लोगों से पहचान हो गई थी। इसके बाद वे पैदल चलकर सरिस्का गए। स्वामी विवेकानंद अलवर में दो बार आए थे। पहली बार वे 28 फ़रवरी 1891 में अलवर आए और पूरे एक महीने तक यहाँ रहे तथा दूसरी बार में 1897 ई. में अलवर आए थे। यह यात्रा उन्होंने अमेरिका से वापस लौटने के बाद की थी। [13]

जाट इतिहास

ठाकुर देशराज[14] ने लिखा है ....अलवर राज्य में जाटों की आबादी लगभग चालीस हजार है। पंजाब में 2500 ईसा पूर्व कठ लोगों का एक गणराज्य था। जिनके यहाँ बालकों के स्वास्थ्य और सौन्दर्य पर विशेष ध्यान दिया जाता था। सिकन्दर महान से इन लोगों को कड़ा मुक़ाबला करना पड़ा। उसके बाद उनका एक समूह बृज के पश्चिम सीमा पर आ बसा। वह इलाका काठेड़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलवर के अधिकांश जाट जो देशवाशी नहीं हैं उन्हीं बहादुर कठों की संतान हैं।

Jat Gotras

Notable persons

  • अलवर में ठाकुर पूर्णसिंह जी, चौधरी रामस्वरूप सिंह के घर पैसे और शिक्षा दोनों में चोटी के समझे जाते हैं[15]
  • K.L.Choudhary (Bhonkar) - Irrigation Deptt, Joint Director, Date of Birth : 13-December-1956, Home District : Alwar, Present Address : 38, Luv Kush Nagar-II, Tonk Phatak, Jaipur,Phone: 0141-2592970, Mob: 9414584613, Email: klcjaipur@yahoo.co.in
  • Khem Singh Choudhary (Kasinwar) - Junior Engineer PHED , Date of Birth : 5-May-1970,Address : 3/736, Kala Kuan ,Housing Board, Alwar, Rajasthan. Phone: 0144-2348917, Mob: 9929869285, Email : Arun3.736@gmail.com
  • Manvendra Choudhary (Takas) - Central Excise & Customs , Date of Birth : 6-May-1962, Permanent Address : 40, Moti Dungri, Alwar, Present Address : 3/9, Agerwal Farm, SFS Mansarovar, Jaipur, Phone Number : 0141-2397159, Mob: 9414483965
  • Ms Ashu Choudhary (Dudi) - RAS, Date of Birth : 16-April-1975, Permanent Address : 190, Mangal Vihar, Scheme No-5, Alwar, Rajasthan, Present Address : E-40, Sector-b, Malaviyanagar, Jaipur, Phone Number : 0141-2550579, Mob: 9413305233, Email: ashee@live.in
  • Rajneesh Kundu - Technical Associate Tech - Mahindra, Date of Birth : 20-July-1983,A-145, Budh Vihar, Alwar, Present Address : C-154, Pocket-1, Kandriya Vihar-2, Sector-82, Noida (UP), Mob: 9999033379, Email : rajneesh.mnit@gmail.com
  • Ramesh Khairiya - Dy. Manager SBI, Date of Birth : 20-July-1962, B-75, Budh Vihar, Alwar Raj. Present Address : D-234, S.B.I. Officers Flats, Hasanpura, Jaipur,Phone Number : 0141-2450142, Mob: 9414447198
  • प्रो. सी.एस.सांगा, पोली टैक्नीकल कॉलेज, 77 अलकपुरी, अलवर[16]
  • Satyendra Singh (): IPS, SP Sawai Madhopur, From Alwar, Rajasthan, M: 9829058100

External links

Gallery

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.55
  2. K. Devi Singh Mandawa, Prithviraja, p. 106
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.42
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.896-97
  5. महाभारत, वनपर्व 14 से 22 तक
  6. महाभारत वनपर्व, अध्याय 15 से 22 तक।
  7. पौराणिक कोश |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संपादन: राणा प्रसाद शर्मा |पृष्ठ संख्या: 493 |
  8. महाभारत, वनपर्व, अध्याय 15-22
  9. श्रीमद् भागवत, 10।76-77, 10।78।1-16
  10. महाभारत, शल्यपर्व, 20
  11. भारतकोश-अलवर
  12. भारतकोश-अलवर
  13. भारतकोश-अलवर
  14. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.74
  15. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.528-529
  16. http://www.swamikeshwanand.com/Donors%20List.aspx sn 459

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