Ramswarup Singh Mahla

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Author: Laxman Burdak IFS (R)

Ramswarup Singh Mahla
Ramswarup Singh Mahla

Ramswarup Singh Mahla (born:1867-) (लेफ्टिनेंट चौधरी रामस्वरूपसिंह महला), from Jat Behror (जाट बहरोड़), Mandawar Alwar, was a Social worker in Alwar, Rajasthan. [1] He was Awarded with Victoria Cross during the First World War.

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है .... लेफ्टिनेंट चौधरी रामस्वरूपसिंह - [पृ.79]: यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि कछवाहों की धाक की कुछ भी परवाह न करके पुष्कर का डंके की चोट स्नान करने वाला और दिल्ली का अनुपम विजेता! हां उस दिल्ली, जिसमें घुसने से मराठे डरते थे और जिसके मुगल सिंहासन के आगे राजपूत करबद्ध अभिवादन करते, का विजेता महाराज जवाहरसिंह लंगड़ा था।

मुझे भी चौधरी राम स्वरूपसिंह जी बहरोड के बारे में, जबकि लोगों से मैं उनके कुछ समाज सुधार संबंधी कार्यों की प्रशंसा सुना करता था, यह पता नहीं था कि


[पृ.80]: चौधरी रामस्वरूपसिंह एक टांग से लंगड़े थे। इस फौजी सरदार को देखकर हम सहज ही अनुमान करते है कि यह यौद्धा जाति का सच्चा वारिस (प्रतिनिधि) है।

मैंने (ठाकुर देशराज) इन्हें अत्यंत निकट से सन् 1937 में कांकरा जाट उत्सव में ही देखा था। इससे पहले शेखावाटी में मैं उनके नाम की चर्चा कई बार सुन चुका था।

आपका जन्म बहरोड़ जाट गाँव में महला गोत्र के चौधरी जीवराज के यहाँ विक्रम संवत 1924 में हुआ। आपके पिता पुराने ढंग के जमीदार थे। उस समय शिक्षा का कोई साधन नहीं था। आपकी शिक्षा का कोई प्रबंध नहीं हो सका।

18 वर्ष की उम्र में, जबकि आपके दूध के दाढ़ भी भलीभाँति न उखड़ पाये हों, आप फौज में भर्ती हो गए।

देखा यह गया है कि हमारे तमाम पुराने जाट सरदार जो फौज में गए वहाँ से आर्य समाजी होकर लौटे है। और साथ ही कुछ न कुछ शिक्षित होकर भी। रोहतक के जाट लोगों ने फ़ौजों में आर्य समाज का जो प्रचार किया उससे प्रत्येक इलाके में दृढ़ आर्यों की बढ़ोतरी हुई। उनकी तरह चौधरी रामस्वरूप सिंह भी फौज से लौटने पर समाज सुधार, कौमी सेवा और शिक्षा के महत्व की अनेक पवित्र भवनाएं लेकर लौटे।

फौज में वे सिपाही के पद पर भर्ती हुये थे और अपने पौरुष तथा रणचातुर्य से लेफ्टिनेंट का ओहदा प्राप्त किया। कल बीतने वाले युद्ध में लेफ्टिनेंटी की बड़ी सस्ती बटाई हुई थी। बनियों के छोरे भी घर से लेफ्टिनेंट बनाकर फौज में


[पृ.81]: लिए गए थे। किंतु उस लेफ्टिनेंटी का मौल बड़ा तगड़ा था। बाजी पर बाजी मारने पर वर्षों में यह ओहदा प्राप्त होता था।

अलवर की जाट जागृति के लिए अलंकार के रूप में कहना हो तो मैं यह कह सकता हूं कि वहां की जागृति के चौधरी नानकचंद जी दिमाग हैं तो चौधरी रामस्वरूपसिंह जी दिल और यह भी सच है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अलवर की जाट जागृति में आपने बहुत काम किया। आरंभ से ही आप "अलवर राज्य जाट क्षत्रिय सेवा संघ" के प्रधान हैं। आपकी लोकप्रियता ही है कि लगातार 4 बार इसके प्रधान चुने गुए। सभी लोग आपमें समान आदर और श्रद्धा रखते हैं।

अपनी संतानों को पढ़ने और योग्य बनाने में आपने भरपूर प्रयत्न किया है। आपके 2 भाई हैं और 3 पुत्र हैं: 1. लेफ्टिनेंट कर्नल घासीराम, 2. कुँवर सूरजभान, 3. ओमप्रकाश सिंह

चौधरी रामस्वरूप सिंह समय के बड़े पाबंद हैं। मीटिंग में ठीक समय पर पहुँचते हैं और ठीक समय पर काम चाहते हैं। अलवर की जाट धर्मशाला का शिलारोहण 5.3.1946 को आप के ही हाथों हुआ था।

आपमें वे सभी गुण मौजूद हैं जो पुराने जाट सरदारों में मिलते हैं। कम बोलना और सीधा साफ कहना। सीधी भाषा में कहना। गलतियों से बचना और बिरादरी के आगे झुकना। यह उनकी मुख्य आदतें हैं।

अपनी सेवाओं का कौम से कोई बदला लेना जहां


उनके दिमाग में नहीं है, वहाँ वे अपने कामों का विज्ञापन नहीं चाहते हैं।

राजनीतिक प्रवृतियों की ओर उनका झुकाव नहीं है। वह केवल कौम में सामाजिक सुधार और शिक्षा प्रचार पर ही जोर देते हैं। यह बात नहीं कि राजनीतिक पार्टियों से किसी भय और आशंका के कारण दूर रहना चाहते हैं बल्कि सच यह है कि उनका स्वाभाविक ध्यान ही उधर नहीं है।

अभिमान उन्हें छू नहीं गया है। रहन सहन उनका सादा है। चेहरे से वह सहज ही पहचाने जा सकते हैं उनकी मूंछें, पगड़ी और चाल-ढाल को देखकर अनजान भी यह कह सकता है यह सज्जन कोई जाट और फौजी जाट सरदार हैं।

जीवन परिचय

विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित

श्री रामस्वरूप सिंह जी महला निवासी जाट बहरोड़(अलवर) सेकंड वर्ल्ड वॉर में यूरोप में जर्मनी में मोर्चे पर तैनात थे...उनकी असाधारण वीरता के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार 'विक्टोरिया क्रॉस' से सम्मानित किया था, जो कि वर्तमान में दिए जाने वाले परमवीर चक्र के समकक्ष था...

गैलरी

संदर्भ


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