Nanak Chand Jakhad
Author: Laxman Burdak IFS (R) |
Nanak Chand Jakhad (born:1901-) (चौधरी नानकचन्द जाखड़), from Alwar was a Social worker in Alwar, Rajasthan. [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है....चौधरी नानकचन्द - [पृ.74]: शिशिर ऋतु के प्रभात में बात सन् 1923 ई. की है जब मैंने सुनहरे रंग और उठती जवानी के उस नौजवान को भरतपुर आर्य समाज में वहां के पदाधिकारियों से बातें करते देखा, जो आज तमाम राजपूताना के जाट हलकों में चौधरी नानकचंद जी के नाम से मशहूर हैं।
इकहरे बदन का यह नौजवान अपनी बहन के लिए इधर कोई वर तलाश करने आया था।
यह उनका मेरे लिए प्रथम दर्शन था। मैं उन्हें तभी से जान गया। वह मुझे नहीं जानते क्योंकि उन दिनों मैं सार्वजनिक स्थिति में बहुत छोटा था। केवल ₹10 माहवार का समाजी पाठशाला का अध्यापक मात्र।
[पृ.75]: मुझे वह शायद सन् 1931 से जानने लगे थे जबकि जाट-वीर में मेरी गिरफ्तारी के 108 दिनों की कहानी प्रकाशित हो रही थी।
चौधरी नानकचंद जी का जन्म अब से 46 वर्ष पूर्व है अर्थात सन् 1901 में हुआ था। आपके पिता चौधरी हरिगोविंद जी साधारण स्थिति के जमीदार थे और अलवर में मिस्त्री का काम करते थे। गोत्र उनका जारपड़1 था। बाल्यकाल में आपने सरकारी स्कूलों से एंग्लो वर्नाकुलर मिडिल तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद आप कुछ दिनों तक घर रह कर दिल्ली चले गए और वहां सन 1922 रायसीना में सब ओवरशियर हो गए। इस से पहले आप अलवर सर्वेयार और असिस्टेंट ट्रस्टमैन रह चुके थे।
अलवर के जाटों का भी भाग्य है वह आपको दिल्ली से फिर अलवर खींच लाया। यहां पर आप स्वतंत्र धंधे, ठेकेदारी द्वारा अपना, अपने परिवार का पालन पोषण करने लगे। समाज सुधार की ओर आपकी रुचि उस समय से थी जब से कि आपने होश संभाला है। सन 1923-24 में आप आर्य समाज अलवर के उपमंत्री थे। इसके बाद मंत्री और प्रधान भी रहे हैं। और इस समय तमाम अलवर राज्य के लिए आर्य समाज का जो आर्य प्रतिनिधि सभा संगठन है उसके आप प्रधान हैं।
अपनी कौम की उन्नति के लिए आपके दिल में सच्चा प्रेम है। सन् 1925 को पुष्कर जाट महोत्सव के बाद से हो आप कौम की सेवा में किसी न किसी रूप में संलग्न हैं।
अलवर में श्री सवाई जयसिंह जी महाराज शासनकाल आतंक काल के नाम से मशहूर है। निमूचाण कांड के
नोट: 1. जारपड़ शब्द गलती से प्रिंट हुआ है इसका सही रूप जाखड़ है। श्री आजाद चौधरी समाजसेवी अलवर (मो: 9784131700) से इस तथ्य की पुष्टि की गई। Laxman Burdak (talk)
[पृ.76]: बाद से प्रभु (;) जयसिंह जी के अच्छे कार्यों को भी कभी दाद नहीं मिली। अपने अंदर की अनेक कमियों के डरने उन्हें कभी भी अपने राज्य के अंदर सार्वजनिक जीवन को पनपने देने की हिम्मत नहीं होने दी। यही नहीं उन्होंने भरसक सार्वजनिक जागृति को कुचला ही फिर चाहे वह धार्मिक और सामाजिक ही क्यों न रही हो। आर्य समाज अलवर के बहादुर सिपाही लाला दुर्गाप्रसाद जी को जो यातनाएं उठानी पड़ी उस से अलवर की नवचेतना को बराबर धक्का लगता रहा है। इस बीच में कोई सभा संगठन जाटों का बनाने की अपेक्षा चौधरी नानकचंद जी ने यह उचित समझा कि उनमें शिक्षा प्रचार किया जाए क्योंकि वे समझते थे कि अनपढ़ लोगों का और अज्ञान में सिर से पैर तक जकड़े लोगों का संगठन आतंक काल में चलना कठिन ही है। अतः उन्होंने खानपुर नामक गांव में एक जाट पाठशाला की नींव डाली। इस पाठशाला को कायम हुए 12-13 साल हो गए। अनेक कठिनाइयों के आते रहने पर आपने इसे चलाया है। इस स्कूल की स्थापना 5 मई सन् 1933 को हुई थी। आरंभ में बड़ी मुश्किल से लड़कों को एकत्रित किया गया।
जिस क्षेत्र में यह पाठशाला है उसमें जाने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ है। यहां के लोग सहज विश्वास किसी पर नहीं करते। अत्यंत ही अंधविश्वास और रूढ़िवादी हैं। मैंने 1927 और उसके बाद सन 1942 में यहां के लोगों से साक्षात किया है। उन पर चमकती दुनिया का कोई भी असर मुझे दिखाई नहीं दिया।
चौधरी नानकचंद जी जबसे जाट महासभा के संसर्ग में आए उनकी नीति गर्म लोगों के साथ कभी नहीं
[पृ.77] रही। अधिकतर उन्होंने ठाकुर झम्मनसिंह जी के "रास्ता साफ करके चलने" के उसूल को अपनाया है। वह कछुए की चाल चले हैं किंतु निरंतर और बिना रुके और यही कारण है कि आज उन्होंने एक लंबी मंजिल बुढ़िया और घुड़सवार की गति के संतुलन से तय करती है।
5 मार्च 1946 को मैं अचंभित रह गया जब मैंने देखा जाट धर्मशाला के लिए इन गिने आदमियों ने जिनकी आमदनी 2-4 को छोड़कर पेट भरने लायक ही है ₹2700 तुरंत दे दिये और धर्मशाला का सिलारोहण समारोह भी हो गया।
आज का अलवर बदल गया है। उसके शासक महाराजा श्री तेजप्रतापसिंह जी जमाने के साथ चलने की कोशिश करते हैं। उनके महकमा राजस्व ने जाट जमीदारों पर लगान के समय एक आना प्रति रुपया जाट धर्म शाला के लिए वसूल करने का भार अपने ऊपर ले लिया है और यह काम हो भी रहा है।
आरंभ में आपका ख्याल यह था कि तमाम भारत में काम करने के लिए एक ही संगठन रहे और हम सब अखिल भारतीय जाटसभा को ही मजबूत बनावें। वही सारे भारत में उन्नति का काम करे किंतु उधर से आप जैसी आशा रखते थे उसके पूरी न होने पर आपने मार्च सन 1936 में "अलवर राज्य जाट क्षत्रिय सेवा संघ" की नींव डाली। जिसका पहला अधिवेशन सोडावास (निजामत मुंडावर) में हुआ। अलवर राज्य में जाटों का यह पहला शानदार उत्सव था जिसमें 202 गांव के जाट प्रतिनिधि शामिल हुए। इसके बाद का कांकरा में दूसरा अधिवेशन हुआ जिसमें राय साहब
[पृ.78]: चौधरी हरीरामसिंह जी कुरमाली इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे और बांके वीर गायक चौधरी ईश्वरसिंह थे इस उत्सव के जागनिक। जिन्होंने अपने वीररस से पूरे भजनों से इलाके के लोगों को एक बार की जगा डाला।
यह पहला अवसर था इस इलाके में एक जाट महिला मेरी पत्नी ठकुरानी त्रिवेदी देवी को मंच से बोलते हुए देखा। अब तो इस 10 वर्ष के अरसे में अलवर स्वयं इस योग्य हो गया है कि उसकी जाट पुत्रियां मंच पर खड़े होकर बोल सकती हैं। 5 मार्च सन 1946 को जब चौधरी नानकचंद जी की सुपुत्री और सूबेदार सिंहासिंह जी की पुत्रवधू सत्यवती ने मंच से कन्या शिक्षा पर एक गीत गाया तो मुझे लगा कि अलवर का जाट जमाने के साथ चलने की तैयारी कर रहा है। अब वह अधिक पीछे नहीं रहेगा।
अपने 10 वर्ष के जीवनकाल में 'अलवर राज जाट क्षत्रिय सेवा संघ' द्वारा चौधरी नानकचंद जी और उनके साथियों ने अलवर राज्य के जाटों की बहुत कुछ रचनात्मक सेवा की है। पाठशालाएं खोली गई हैं। विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां दी गई हैं। फिजूलखर्चियों को रोका गया है। कुरीतियां छुड़ाई गई हैं। जागृति और संगठन पैदा किया गया है। चौधरी नानकचंद जी एक खूबी यह भी है कि वे कहने से ज्यादा करते हैं और जिन ऊसूलोन पर दूसरों को चलने के लिए कहते हैं उन पर खुद भी अमल करते हैं। उन्होंने अपनी संतानों को अपने अनुरूप बनाने की कोशिश की है। अपनी लड़की की शादी अत्यंत साले ढंग से और तरुण अवस्था में की है।
अपनी सीमित आमदनी में से वह कौम के काम में
[पृ.79]: भी खर्च करते हैं और अतिथि सेवा में भी। इसके अलावा दूसरी संस्थाओं को भी वे रूखा जवाब नहीं देते।
मिष्ट भाषण, यथाशक्ति जनसेवा, शांत स्वभाव, निश्चल बर्ताव उनकी ऐसी आदतें हैं जो संपर्क में आने वाले को सहज ही अपनी ओर खींचती हैं। यही कारण है कि अलवर जैसे शहर में जहां जाट और जमीदार दोनों की संख्या अत्यंत कम है आप अपने वार्ड से म्युनिसपलिटी के सन् 1945 के चुनाव में अपने लखपति प्रतिद्वंदी को हराने में सफल हुए हैं। प्रजामंडल के बहुमत प्रांत बोर्ड ने आपको इमारती कमेटी का चेयरमैन चुना है।
आपके परिवार में आप और आपकी धर्मपत्नी के अलावा तीन भाई दो बहने और एक पुत्री तथा भाइयों के बाल बच्चे हैं। छोटे भाइयों में रणवीरसिंह जी भी ठेकेदार हैं और आपके सभी जनसेवी और पारिवारिक कार्य में आपका हाथ बटाते रहते हैं।
जीवन परिचय
निहालसिंह तक्षक से रिस्ता: ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....बीए परीक्षा पास करने के बाद 28 जून 1936 को निहालसिंह तक्षक का विवाह चौधरी नानकचंद जी ठेकेदार म्यूनिसिपल कमिश्नर अलवर की छोटी बहन श्रीमती दुर्गावती के साथ हुआ।
दलीप सिंह अहलावत[4]लिखते हैं की अलवर के चौ० नानकसिंह जाखड़ आर्यसमाज के सेक्रेटरी (मन्त्री) थे और जयपुर के माखर गांव के चौ० लाधूराम जाखड़ शेखावाटी जाट पंचायत के प्रधान थे।
ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है ....अबकी बार जब 5 मार्च 1948 को मैं अलवर गया चौधरी नानक चंद जी के घर पर एक नई उम्र के लड़के से भी परिचय हुआ। वह गुरुकुली ढंग के सफेद धोती कुर्ता पहने था। वह आर्य महाविद्यालय किरठल में पढता है। वह सिरोहड़ गाँव के सिंहासिंह के पुत्र थे, उन्हें मैं 1936 ई. से, जब वहां कांकरा में जाट संघ का दूसरा सालाना जलसा हुआ था, जानता हूं। पूछने पर उस युवक ने बताया कि उनके 3 भाई हैं - 1. शिवलाल जो घर पर जमीदारी करते हैं। 2. रामजी लाल जो आगरा यूनिवर्सिटी में एमए एलएलबी में पढ़ते हैं। 3. तीसरा मैं हूँ।
मुझे मालूम हुआ कि रामजीलाल के साथ चौधरी नानकचंद की सुपुत्री सत्यवती का विवाह हुआ है। बिना किसी भी प्रकार के दहेज का अनुकरणीय उदाहरण है।
गैलरी
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Jat Jan Sewak, 1949, p.74
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Jat Jan Sewak, 1949, p.75
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Jat Jan Sewak, 1949, p.76
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Jat Jan Sewak, 1949, p.77
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Jat Jan Sewak, 1949, p.78
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Jat Jan Sewak, 1949, p.79
संदर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.74-79
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.74-79
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.525
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.218
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.82-83
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