Hukam Singh Sikarwar

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kunwar Hukam Singh Angai

Kunwar Hukam Singh (कुंवर हुकम सिंह), Rais of Angai village in Mathura tahsil and district in Uttar Pradesh, was a famous person from Sikarwar gotra. He was one of the heroes of Shekhawati Kisan Andolan.

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Kunwar Hukam Singh Raīs was a close friend of Raja Mahendra Pratap. He was a strong follower of Arya Samaj. He was connected with All India Jat Mahasabha through out his life. He took part in the movement for awakening and uplift of farmers in Shekhawati region. When the British Government refused permission to celebration of Maharaja Suraj Mal Jayanti, he accompanied the procession celebrating his jayanti and courted arrest.

सिकरवार का इतिहास: ठाकुर देसराज

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है....सिकरवार - नवमी सदी में इनका राज्य सीकरी (आगरा जिला) में था। सन् 812 से 836 के बीच भारत पर एक प्रबल आक्रमण मुसलमानों का हुआ था। उन से मुकाबला करने के लिए उस समय के अनेक राजा मेदपाट में इकट्ठे हुए थे।


[पृ.126]: उसमें सीकरी के सिकरवार भी शामिल थे। आगे चलकर सिकरवार भी 10 वीं सदी में जाट और राजपूत दो भागों में बट गए। कुंवर हुकुम सिंह जी आंगई इन्हीं सीकरी के सिकरवार की विभूति हैं।

सीकर यज्ञ में योगदान

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर के आर्य महाविद्यालय के कर्मचारियों द्वारा सीकर यज्ञ आरंभ हुआ। उन दिनों यज्ञ भूमि एक ऋषि उपनिवेश सी जांच रही थी। बाहर से आने वालों के 100 तम्बू और और छोलदारियाँ थी और स्थानीय लोगों के लिए फूस की झोपड़ियों की छावनी बनाई।

20000 आदमी के बैठने के लिए पंडाल बनाया गया था जिसकी रचना चातुरी में श्रेय नेतराम सिंह जी गोरीर और चौधरी पन्ने सिंह जी बाटड़, बाटड़ नाऊ को है। यज्ञ स्थल 100 गज चौड़ी और 100 गज लंबी भूमि में बनाया गया था जिसमें चार यज्ञ कुंड चारों कोनों पर और एक बीच में था। चारों यज्ञ कुंड ऊपर यज्ञोपवीत संस्कार होते थे और बीच के यज्ञ कुंड पर कभी भी न बंद होने वाला यज्ञ।


[पृ.227]: 25 मन घी और 100 मन हवन सामग्री खर्च हुई। 3000 स्त्री पुरुष यज्ञोपवीत धारण किए हुये थे।

यज्ञ पति थे आंगई के राजर्षि कुंवर हुकुम सिंह जी और यज्ञमान थे कूदन के देवतास्वरुप चौधरी कालूराम जी। ब्रह्मा का कृत्य आर्य जाति के प्रसिद्ध पंडित श्री जगदेव जी शास्त्री द्वारा संपन्न हुआ था। यह यज्ञ 10 दिन तक चला था। एक लाख के करीब आदमी इसमें शामिल हुए थे। इस बीसवीं सदी में जाटों का यह सर्वोपरि यज्ञ था। यज्ञ का कार्य 7 दिन में समाप्त हो जाने वाला था। परंतु सीकर के राव राजा साहब द्वारा जिद करने पर कि जाट लोग हाथी पर बैठकर मेरे घर में होकर जलूस नहीं निकाल सकेंगे।

3 दिन तक लाखों लोगों को और ठहरना पड़ा। जुलूस के लिए हाथी जयपुर से राजपूत सरदार का लाया गया था, वह भी षड्यंत्र करके सीकर के अधिकारियों ने रातों-रात भगवा दिया। किंतु लाखों आदमियों की धार्मिक जिद के सामने राव राजा साहब को झुकना पड़ा और दशवें दिन हाथी पर जुलूस वैदिक धर्म की जय, जाट जाति की जय के तुमुलघोषों के साथ निकाला गया और इस प्रकार सीकर का यह महान धार्मिक जाट उत्सव समाप्त हो गया।

गोठडा (सीकर) का जलसा सन 1938

जयपुर सीकर प्रकरण में शेखावाटी जाट किसान पंचायत ने जयपुर का साथ दिया था. विजयोत्सव के रूप में शेखावाटी जाट किसान पंचायत का वार्षिक जलसा गोठडा गाँव में 11 व 12 सितम्बर 1938 को शिवदानसिंह अलीगढ की अध्यक्षता में हुआ जिसमें 10-11 हजार किसान, जिनमें 500 स्त्रियाँ थी, शामिल हुए. सम्मलेन में उपस्थ्तित प्रमुख नेताओं में आप भी थे. [3]

References

  1. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Shashtham Parichhed, p.125-126
  2. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.226-227
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 163

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