Jiwan Singh Sinsinwar
Jiwan Singh Pathena (born:?-death:1942) (ठाकुर जीवनसिंह), from Pathena (पथेना), Bharatpur was a Social worker in Rajasthan. [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....ठाकुर जीवनसिंह – [पृ.22]: भरतपुर राज्य में अलवर और जयपुर से मिलने वाली सीमाओं पर एक पथेना गांव है। यह गांव इतिहास में एक बहादुराना पृष्ठभूमि, अपने अक्खड़पन और जवांमर्दी के लिए प्रसिद्ध है। मैं यह कह सकता हूं कि तालीम के लिहाज से भी यह गांव भरतपुर के तमाम जाट गांवों में अग्रणीय है। कप्तान सुग्रीवसिंह, कप्तान रामजीलाल, ठाकुर मेवाराम और सूबेदार कोकीसिंह बगैर अफसरान इसी गांव के हैं। इसी मरदाने गांव में विक्रम की 20वीं सदी के पहले चरण में ठाकुर जीवनसिंह जी का जन्म हुआ था।
मैंने उन्हें यूं तो कई बार देखा किंतु उनके अंतर के जाट के दर्शन सन 1941 के जाड़ों में सूर्यमल जयंती पथैना में मनाने के अवसर पर हुए थे। जब महाराजा सूरजमल जी का चित्र एक सुसज्जित चौकी पर रखकर नगर कीर्तन के लिए उठाया गया तो उन्होंने गदगद होकर वह प्रतिमा सिंहासन अपने सिर पर रख लिया और तमाम गांव की परिक्रमा में सिर पर ही रखे रहे। यह उनके अंदर की श्रद्धा थी जो अपनी कौम के महान उदाहरण सूरजमल
[पृ. 23]: के चित्र का सम्मान करने के लिए साकार हो पड़ी थी।
उनके चेहरे से रोब और तेज बरबस टपकते थे और लोग उनसे अनायास डरते थे। वह पथेना के इस युग के शेर थे। नाबालिग की भारतपुरी हुकूमत उनसे सदैव डरती थी।
यही कारण था कि जब सन 1938 में शासन सुधारों के अनुसार एडवाइजरी कमेटियां बनी तो भरतपुर सरकार ने उन्हें सेंट्रल एडवाइजरी कमेटी का सदस्य नामजद किया। डर उन्हें छू नहीं गया था। कौन से सच्चा प्यार था।
सन 1942 में ठाकुर जीवनसिंह इस आसार संसार से उठ गए। अपने पीछे उन्होने 4 पुत्र छोड़े हैं। बड़े कुंवर परशुरामसिंह जी हैं जिन्हें स्वर्गीय अलवर महाराज ने जागीर बख्शी थी। अब भरतपुर सेना में मेजर हैं। दूसरे ध्रुवसिंह जी हैं। पहले अलवर में रिसालदार थे और अब भरतपुर किसानों के एक प्रमुख लीडर है और किसान जमीदार सभा के अंग हैं। ध्रुवसिंह जी का बनाया जवाहर साखा एक ओजस्वी पुस्तक है। आप अच्छे और खरे लेक्चरार हैं।
तीसरे कुंवर गंगासिंह जी तहसीलदार है। अल्पभाषी मीठापन उनका ईश्वरदत्त स्वभाव है। चौथे जगतसिंह जी हैं।
जीवन परिचय
गैलरी
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Jat Jan Sewak, p.22
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Jat Jan Sewak, p.23
References
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.22-23
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.22-23
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