Mackenzie
Mackenzie was Administrator in Bharatpur princely state. His actions were biased against Maharaja Kishan Singh. He harassed and punished all the Jats and non-Jats who supported Maharaja Kishan Singh.
मैकेंजीशाही से पीड़ित लोग
27. ठाकुर नारायनसिंह - [पृ 34]: आप की जाट सेवाओं से भरतपुर का हर जाट परिचित है। भाय के वातावरण में भी अलग रहकर जिसने भरतपुर के जाट मुलाजिमान में से कौम से मोहब्बत की हो उनमें सबसे प्रमुख ठाकुर नारायण सिंह हैं। स्वर्गीय महाराजा भरतपुर के निर्वासन के बाद उनके साथ सहानुभूतु रखने के कारण मैकेञ्जीशाही ने आप को सर्विस से अलग कर दिया किन्तु आप दृढ़ रहे और अच्छे काम की सफाई सामने आई। वे फिर भरतपुर बुला लिए गए। इस समय आप इंस्पेक्टर हैं। [1]
66. राजा किशन - [पृ.52]: श्री महाराजा किशन सिंह के समय में आजऊ का नौजवान राम किशन फौज में भर्ती हुआ और जमादार के ओहदे पर पहुँच गया। महाराजा किशन सिंह के बीमारी के समय उनकी सेवा करने के कारण अपने स्टाफ में ले लिया और चीफ अफसर मुकर्रिर कर दिया। वही नौजवान आगे चलकर राजा किशन के नाम से मशहूर हुआ।
श्री महाराजा किशन सिंह साहब के बुरे दिन आए और उन बुरे दिनों में राजा किशन की गलतियाँ भी सहायक हुई। राजा किशन पर नए एडमिनिस्ट्रेटर मेकेंजी के समय अनेक मुकदमे चले और उन पर 28 साल की सजा ठोक दी। राजा किशन 16 साल का कारावास भुगतकर आए और तभी से जाट सभा की प्रगतियों में साथ जुड़ गए। आजकल अपने गाँव में शांति का जीवन बिताते हैं। आपके साथियों में ठाकुर रामहंस मुख्य हैं जो सदा से कौम को चाहते हैं। [2]
10. बाबू हरिदत्त जी एडवोकेट - [पृ.538]: आज से 24-25 वर्ष पहले गोरे बदन और सफेद दाढ़ी वाले सज्जन भरतपुर में नाजिम थे। वे चेहरे-मोहरे से पुराने आर्यों के वारिस थे और ख्यालात से भी आर्य थे। उनके नाम को आज तक लोग नहीं भूल पाए हैं। वे रघुनाथसहाय जी के नाम से संबोधित होते थे। उन्हीं के लायक पुत्रों में बाबू हरिदत्त जी एडवोकेट हैं। आप पहले भारतपुरी हैं जो सेशन एंड डिस्ट्रिक्ट जज बनाए गए। जिन दिनों आप भरतपुर में जज थे उन दिनों यहां मिस्टर मैकेंजी की हुकूमत थी और बददिमाग नकीमुहम्मद सुपरिटेंडेंट पुलिस था। आप जन्म से ही स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति हैं। ईमानदारी व सच्चाई आपके धर्म हैं। यही कारण हैं कि आप पर हर एक हकूमत ने शक किया। मैकेंजी के जमाने में आपको कांग्रेसी समझा गया और आपको इसीलिए भरतपुर छोड़कर करौली जाना पड़ा। करौली में आपके मीठे स्वभाव की धाक महाराज साहब तक पर पड़ी। [3]
सूरजमल जयंती 6.1.1928 और भरतपुर-सप्ताह 30.1.1933 का आयोजन
ठाकुर देशराज [4] ने लिखा है:महाराज श्रीकृष्णसिंह के निर्वासन के समय से ही राजपरिवार और प्रजाजनों पर विपत्तियां आनी आरम्भ हो गई थीं। उनके स्वर्गवास के पश्चात् तो कुछेक पुलिस के उच्च अधिकारियों ने अन्याय की हद कर दी थी। सुपरिण्टेंडेण्ट पुलिस मुहम्मद नकी को तो उसके काले कारनामों के लिए भरतपुर की जनता सदैव याद रखेगी। धार्मिक कृत्यों पर उसने इतनी पाबन्दियां लगवाईं कि हिन्दु जनता कसक गई। यही क्यों, भरतपुर-राज्यवंश के बुजुर्गों के स्मृति-दिवस न मनाने देने के लिए भी पाबन्दी लगाई गई। जिन लोगों ने हिम्मत करके अपने राज के संस्थापकों की जयंतियां मनाई, उनके वारंट काटे गए। ऐसे लोगों में ही इस इतिहास के लेखक का भी नाम आता है। आज तक उसे भरतपुर की पुलिस के रजिस्टरों में ‘पोलीटिकल सस्पैक्ट क्लाए ए’ लिखा जाता है।1 उसका एक ही कसूर था कि उसने दीवान मैकेंजी और एस. पी. नकी मुहम्मद के भय-प्रदर्शन की कोई परवाह न करके 6 जनवरी सन् 1928 ई. को महाराज सूरजमल की जयंती का आयोजन किया और महाराज कृष्णसिंह की जय बोली। इसी अपराध के लिए दीवान मि. मैंकेंजी ने अपने हाथ से वारण्ट पर लिखा था
- “मैं देशराज को दफा 124 में गिरफ्तार करने का हुक्म देता हूं और उसे जमानत पर भी बिना मेरे हुक्म के न छोड़ा जाए।”
हवालातों के अन्दर जो तकलीफें दी गई, पुलिसमैनों के जो कड़वे वचन सुनने पड़े, उन बातों का यहां वर्णन करना पोथा बढ़ाने का कारण होगा। पूरे एक सौ आठ दिन तंग किया गया। सबूत न थे, फिर भी जुटाए गए। गवाह न थे, लालच देकर बनाए गए - उनको तंग करके गवाही देने पर
1. बीकानेर के सुप्रसिद्ध राजनैतिक केस में भरतपुर पुलिस के सी. आई. डी. इन्सपेक्टर ने यही बात अपनी गवाही में कही थी।
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विवश किया गया। किन्तु आखिर जज को यही कहना पड़ा कि पुलिस सबूत जुटाने में और देशराज से बहस करने में फेल हुई।
जिस किसी प्रजाजन और राजकर्मचारी पर यह सन्देह हुआ कि यह जाट-हितैषी और स्वर्गीय महाराज श्रीकृष्ण का भक्त है, उसे दण्ड दिया गया। दीवान ने महाराज और महारानी तथा बाबा साहब (श्री रामसिंह) के अंत्येष्ठि कर्मों के समय पर सम्मानित भाव से उपेक्षा की। आखिर जाटों के लिए यह बात असहय्य हो गई और सन् 1929 ई. के दिसम्बर के अन्तिम दिनों में भरतपुर-सप्ताह मनाने का आयोजन हुआ। सारे भारत के जाटों ने भरतपुर के दीवान मैंकेंजी और मियां नकी की अनुचित हरकतों की गांव-गांव और नगर-नगर में सभाएं करके निन्दा की। राव बहादुर चौधरी छोटूराम जी रोहतक, राव बहादुर चौधरी अमरसिंह जी पाली, ठाकुर झम्मनसिंह जी एडवोकेट अलीगढ़ और कुंवर हुक्मसिंह जी रईस आंगई जैसे प्रसिद्ध जाट नेताओं ने देहातों में पैदल जा-जा कर जाट-सप्ताह में भाग लिया। आगरा जिला में कुंवर रतनसिंह, पं. रेवतीशरण, बाबू नाथमल, ठाकुर माधौसिंह और लेखक ने रात-दिन करके जनता तक भरतपुर की घटनाओं को पहुंचाया। महासभा ने उन्हीं दिनों आगरे में एक विशेष अधिवेशन चौधरी छोटूराम जी रोहतक के सभापतित्व में करके महाराज श्री ब्रजेन्द्रसिंह जी देव के विलायत भेजने और दीवान के राजसी सामान को मिट्टी के मोल नीलाम करने वाली उसकी पक्षपातिनी नीति के विरोध में प्रस्ताव पास किए। इस समय भरतपुर के हित के लिए महाराज राजा श्री उदयभानसिंह देव ने सरकार के पास काफी सिफारिशें भेजीं।
आखिरकार गवर्नमेण्ट की आज्ञा से कुछ दिनों बाद दीवान मैकंजी साहब की भरतपुर से दूसरे स्थान की नियुक्ति का हुक्म हुआ। जबकि उन्हें शहर की म्यूनिस्पलटी की ओर से मान-पत्र दिया जा रहा था, पं. हरिश्चन्द्रजी पंघेरे ने उनको उसी समय छपा हुआ विरोध-पत्र देकर रंग में भंग और मान में अपमान का दृश्य उपस्थित कर दिया। मुकदमा चला और पं. जी को एक साल की सजा हुई। उसके थोड़े ही दिन बाद नरेन्द्रकेसरी (महाराज श्री कृष्णसिंह के जीवन चरित्र) को बेचते हुए बालक दौलतराम पंघोर को गिरफ्तार किया गया। कहा जाता है कि जिस समय श्रीमान् दीवान साहब भरतपुर से विदा हुए उस समय ठा. उम्मेदसिंह तुरकिया और पं. सामंलप्रसाद चौबे ने उन्हें काले झण्डे स्टेशन भरतपुर पर दिखाए। उनके बाद में भी मियां नकी अपनी चालें बराबर चलता रहा। भुसावर के आर्य-समाजियों को अनेक तरह से केवल इसलिए तंग किया कि वे उधर जोरों से वैदिक-धर्म का प्रचार कर रहे थे। पं. विश्वप्रिय, ला. बाबूराम, ला. रघुनाथप्रसाद, चौधरी घीसीराम पथैना पर केस भी चलाया गया। पेंघोर के पटवारी किरोड़सिंह और कमलसिंह पर तो ‘भरतपुर तू वीरों की खानि’
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जैसी भजन पुस्तकों के छापने के कारण मुकदमा चलाया गया और सजा दी गई। उनके भाई प्यारेलाल पटवारी को अलग किया गया। एक मास्टर और बीहरे पर केवल इस पुस्तक को रखने के कारण मुकदमा चला। सन् 1928 ई. से सन् 1933 ई. तक जब तक मियां नकी जी भरतपुर में रहे किसी को दफा 124 ए. व 108 में और किसी को दफा 153 में रगड़ते रहे। ऐसे लोगों में श्रीमान् गोकुलजी वर्मा और पं. गोकुलचन्द दीक्षित विशेष उल्लेखनीय हैं। वर्माजी को तो दो बार जेल पहुचाने से भी मियां साहब को संतोष नहीं हुआ। इसी प्रकार उसने राव राजा श्री रघुनाथसिंह जी के विरुद्ध भी मुकदमा बनाने की धृष्टता की। दीवानों को बना लेना उसके बाएं हाथ का काम था। भले से भले दीवान को उसने हिन्दुओं के विरुद्ध कर दिया। स्वर्गीय महाराज साहब द्वारा पेंघोर के जिन महंत श्री स्वामी सच्चिदानन्दजी को महामान्य की उपाधि मिली थी उन्हीं को राजद्रोही साबित करने की चेष्टा की गई। बाबू दयाचन्द, भोली नम्बरदार, जगन्नाथ, किशनलाल और उसके बूढ़े बाप आदि अनेक सीधे नागरिकों को तंग किया गया। यह सब कुछ महाराज श्री कृष्णसिंह के स्वर्गवास के बाद उनकी प्यारी प्रजा के साथ हुआ। यही क्यों, मेव-विद्रोह के लक्षण भी दीखने आरंभ हो गए थे। यदि दीवान श्री हैडोंक साहब थोड़े समय और सावधान न होते तो स्थिति भयंकर हो जाती।
इस एडमिन्सट्रेशनरी शासन में सबसे कलंकपूर्ण बात यह हुई कि ‘सूरजमल शताबदी’ जो कि बसंत पंचमी सन् 1933 ई. में भरतपुर की जाट-महासभा की ओर से मनाई जाने वाली थी, हेकड़ी के साथ न मनाने की आज्ञा दी गई। ठाकुर झम्मनसिंह और कुंवर हुक्मसिंह जैसे जाट-नेताओं को कोरा जवाब दे दिया गया। इस घटना ने जाट-जाति के हृदय को हिला दिया। यद्यपि महासभा नहीं चाहती थी कि कानून तोड़कर भरतपुर में ‘सूरजमल शताब्दी’ मनाई जाए। किन्तु उत्साह और जोश के कारण जाट लोगों के जत्थे बसंत-पंचमी 30 जनवरी सन् 1933 ई. को भरतपुर पहुंच गए और नगर में घूम-घूमकर उन्होंने ‘सूरजमल शताब्दी’ मनाई। इसी शताब्दी-उत्सव का ‘जाटवीर’ में इस भांति वर्णन छपा था - सूरजमल शताब्दी नियत समय पर मनाई गई।
जाट-जगत् यह सुनकर फूला नहीं समाएगा कि बसन्त पंचमी ता. 30 जनवरी सन् 1933 ई. को नियत समय पर भरतपुर में परम प्रतापी महाराज सूरजमल की शताब्दी अपूर्व शान और धूम-धाम के साथ मनाई गई।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-677
External links
- Social, Economic and Political Contribution of Caste Associations in ...By Brij Kishore Sharma,p.113
References
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak/Bharatpur, p.34
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.52
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak/Parishisht-Kh, p.538
- ↑ Thakur Deshraj: Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX ,p.675-682