Jat Jan Sewak/Parishisht-Kh
Digitized & Wikified by Laxman Burdak, IFS (R) |
पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580
संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर
परिशिष्ट (ख):कुछ इतर (गैर जाट) परिचय
[पृ.533]:राजस्थान की जाट प्रगतियों में जाटों के अलावा कुछ दूसरे लोगों ने भी सेवा कार्य किया है। कुछ तो उनमें से जाट प्रगतियों के साथ कितने घुल-मिल गए थे कि उन्हें जाट लोग अपने से आज तक भिन्न नहीं मानते हैं। यहां हम ऐसे ही कुछ लोगों का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हैं।
1. पंडित ताड़केश्वर जी शर्मा
1. पंडित ताड़केश्वर जी शर्मा: [पृ.533]: शेखावाटी में पचेरी एक छोटा सा ठिकाना है। ठिकाना छोटा था किंतु उसका आधीश्वर धोकलसिंह अपने रोब-दाब और आतंक के लिए शेखावाटी के बड़े से बड़े ठिकानेदारों में प्रमुख था।
पचेरी के उसी ठिकानेदार धोकलसिंह के रौब की कुछ भी परवाह न करने वाला एक तपस्वी ब्राह्मण उसी गांव में पंडित लेखराम के नाम से मशहूर था। उन्ही पंडित लेखराम के पुत्रों में एक ताड़केश्वर जी हैं। ताड़केश्वर जी सर्वप्रथम सन 1911 में बधाला की ढाणी के अध्यापक की हैसियत से जाट सेवा में प्रविष्ट हुए। इसके बाद शेखावाटी जाट किसान पंचायत के प्रकृति के सेक्रेटरी रूप में आगे
[पृ.534]: जाट कौम के महान ग्रंथ जाट इतिहास के लिखने में ठाकुर देशराज जी को आपने पूर्ण सहयोग दिया।
सन 1933-34 में उन्होंने सीकर के आंदोलन में पब्लिसिटी सेक्रेटरी का काम किया। जितना प्रकाशन उस समय इन आंदोलनों को मिला उस का अधिकांश श्रेय आपको है।
सन 1935 के आरंभ में आप आगरा से प्रकाशित होने वाले तेजस्वी साप्ताहिक ‘गणेश’ के संपादक बने और उस जमाने में आप खूब चमके। सारे पत्रकार जगत से आपका परिचय हो गया। गणेश के बंद होने पर आपन शेखावाटी चले गए और कुछ दिन के लिए आप पर उदासी वृत्ति छा गई। किंतु पुनः आपका औज चमक उठा।
आप शेखावाटी के आंदोलन में एक प्रमुख योद्धा साबित हुए जो सेठ जमनालाल बजाज के नेतृत्व में प्रजामंडल की ओर से लड़ा गया था।
जेल आप एक बार नहीं कई बार गए। सबसे पहले आप सन 1932 में नमक सत्याग्रह में जेल गए थे। उसके बाद जयपुर जेल के अभ्यस्त कैदी रह चुके हैं।
सन 1946 में आपने किसान सभा का झंडा उठाया किंतु यहां आपने अपने को परिस्थितियों के सामने विवश होने वाला सैनिक सिद्ध किया।
बुद्धि आपकी प्रखर और दिमाग उपजाऊ है। काफी मेहनत कर सकते हैं। त्याग का तो आपका जीवन ही है। इस समय आप जयपुर की असेंबली में कांग्रेस पार्टी के उपलीडर हैं। आपके बड़े भाई केदारनाथ जी अच्छे विचारक हैं।
2. श्री विजयसिंह जी पथिक
2. श्री विजयसिंह जी पथिक: [पृ.534]: राजस्थान के आदि नेता बीएस पथिक को सभी
[पृ.535]: जानते हैं आपने सीकरवाटी जाट आंदोलन को व्यवस्थित रूप देने के लिए सीकर का दौरा किया और सकीमें बनाई तथा अखबारी प्रोपेगंडा करके मदद दी। आप राजस्थान के बेजोड़ और पुराने लीडर हैं।
3. श्री राधावल्लभ जी: [पृ.535]: आप आप जयपुर के रहने वाले अग्रवाल वैश्य हैं। प्रगतिशील ख्यालात के नौजवान हैं। आपकी योग्यता की धाक जयपुर के तमाम कांग्रेसियों पर है। आप जयपुर में जाटों के संपर्क में एक किसान लीडर की हैसियत से आए हैं। सन 1946 के रींगस के किसान सम्मेलन के आप सभापति थे। कई बार जेल यात्रा कर चुके हैं। आप के साथियों में जयपुर के लाला दुर्गालाल जी का नाम उल्लेखनीय है।
4. बाबा नृसिंहदास जी: [पृ.535] आपकी जन्मभूमि नागौर है। आप अग्रवाल वैश्य किंतु जाति-पांति से आप बहुत अच्छे हैं। आपने अपना सर्वस्व कांग्रेस के पीछे स्वाहा कर दिया किंतु किसानों के आप आरंभ से ही हम दर्द रहे हैं।
सीकर शेखावाटी आंदोलन में आप ने सबसे अधिक लंबी सजा काटी और संकट भी काफी झेले। उस समय का आप का बयान काफी जोशीला और आतंक को भंग करने वाला था। खेद है कि हमारे पास उसकी कॉपी नहीं है किंतु उसका एक शेर उस सारे बयान का नक्शा सामने लाकर खड़ा कर देता है- “बूट डासन ने बनाए, मैंने एक मजमू लिखा। मुल्क में मजमून खेला और जूता चल गया।“
बाबाजी ने कई पुस्तक लिखी है। कई पत्रों का प्रकाशन किया है। जिनमें वीरभूमि और प्रभात के नाम उल्लेखनीय हैं।
[पृ.536]: आप स्वभाव के अत्यंत साफ हैं। कपट आपको छू नहीं गया है। राजस्थान के महारथियों में आप की गिनती है।
5. बाबू नाथमल - [पृ.536]: आप आगरा के मदिया कटरा के प्रसिद्ध वकील रामप्रसाद जी व डॉक्टर काशीनाथजी के जन्मदाता थे। सन 1933 में जब स्वामी श्रद्धानंद जी ने आगरा में शुद्धि सभा कायम की तभी से आप उसके अधिकारी रहे। आपको जाटों के साथ खास प्रेम था। उन्होंने भरतपुर जयपुर आदि की सभी जाट प्रगति में सदा मदद की थी। खेद है कि वह अब इस संसार में नहीं है। आप ही की भांति पंडित रेवतीशरण जी ने जो आपके सदैव सहकारी रहे, जाटों को आरंभ में तन मन से सहायता दी थी।
6. देवीबक्स जी सराफ़
6. देवीबक्स जी सराफ़ - [पृ.536]: मंडावा में एक अत्यंत दुबले पतले मारवाड़ी सज्जन थे- सेठ देवी बक्स जी सराफ़। शेखावाटी के वैश्यों में वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकाना शाही के कोप के सामने सिर उठाया और कानूनी तरीकों से उनके नाकों चने चबवा दिए।
उन्होंने जाटों में आर्य समाज के द्वारा जीवन पैदा किया। कुछ पाठशालाएं भी गांव में कायम कराई। वह एक निर्भीक आदमी थे। पक्के आर्य समाजी थे। उनके सुपुत्र श्री वासुदेव जी सराफ हैं जो कोलकाता में अपना व्यवसाय करते हैं। वह एक लंबे अरसे तक जिन्होंने विधवा विवाह का प्रचलन मारवाड़ी समाज में करने की कोशिश की है।
7. मूलचंद जी अग्रवाल - [पृ.537]: रींगस में खादी आश्रम के व्यवस्थापक की हैसियत से नीमच के लाला मूलचंद जी अग्रवाल ने भी खंडेलावाटी के जाटों की स्मरणीय सेवा की है। उन्होंने कई कार्यकर्ता भी ढाले। आपने ही खंडेलावाटी जाट पंचायत कायम कराई।
आप की तरह ही पंडित बंशीधर जी ने भी जाट बालकों में शिक्षा का प्रसार किया जो कि श्री माधोपुर में आश्रम बनाकर लोगों में त्याग भावनाओं का प्रचार करते थे। खोहरा के पंडित बद्रीप्रसाद जी ने भी आरंभ में जाटों को जगाने में पूर्ण भाग लिया।
8. पंडित हरिदत्त जी - [पृ.537]: पटियाला राज्य की नारनोल नगरी में एक उदार विचार का नौजवान ब्राह्मण पंडित हरिदत्त जी के नाम से मशहूर है। जिन दिनों सीकर में यज्ञ हुआ वह पुलिस में थे। उनकी सहानुभूति जाट आंदोलन के साथ थी। कठिन समय पर वे जाट कार्यकर्ताओं को सावधान भी करते थे। इसी अपराध में उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इसके बाद भी आंदोलन को सहायता पहुंचाते रहे। अब वे नारनोल में एक समाजसेवी के रूप में मशहूर थे। किंतु खेद है कि वह विभाजन के समय हिंदू-मुस्लिम दंगे में मारे गए।
9. मास्टर सागरमल जी - [पृ.537]: कुंवर पन्नेसिंह जी के आरंभिक सेक्रेटरी मास्टर सागरमल जी को देवरोड के चारों तरफ के लोग खूब जानते हैं। उन्होंने भी यथाशक्ति जाटों की सेवा की और उनमें शिक्षा प्रचार किया।
[पृ.538]: आपके अलावा पंडित प्यारेलाल जी सारस्वत यूपी वालों ने भी आरंभ में जाटों को जगाने का काम किया। तोड़फोड़ के मामले में सारस्वत जी काफी चतुर थे।
10. बाबू हरिदत्त जी एडवोकेट - [पृ.538]: आज से 24-25 वर्ष पहले गोरे बदन और सफेद दाढ़ी वाले सज्जन भरतपुर में नाजिम थे। वे चेहरे-मोहरे से पुराने आर्यों के वारिस थे और ख्यालात से भी आर्य थे। उनके नाम को आज तक लोग नहीं भूल पाए हैं। वे रघुनाथसहाय जी के नाम से संबोधित होते थे। उन्हीं के लायक पुत्रों में बाबू हरिदत्त जी एडवोकेट हैं। आप पहले भारतपुरी हैं जो सेशन एंड डिस्ट्रिक्ट जज बनाए गए। जिन दिनों आप भरतपुर में जज थे उन दिनों यहां मिस्टर मैकेंजी की हुकूमत थी और बददिमाग नकीमुहम्मद सुपरिटेंडेंट पुलिस था।
आप जन्म से ही स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति हैं। ईमानदारी व सच्चाई आपके धर्म हैं। यही कारण हैं कि आप पर हर एक हकूमत ने शक किया। मैकेंजी के जमाने में आपको कांग्रेसी समझा गया और आपको इसीलिए भरतपुर छोड़कर करौली जाना पड़ा। करौली में आपके मीठे स्वभाव की धाक महाराज साहब तक पर पड़ी।
दीवान रामनाथन के जमाने में आप फिर भरतपुर बुलाए गए और कंट्रोल के डायरेक्टर नियुक्त किए गए। इसके बाद रेवेन्यू कमिश्नर बनाए गए। आप चाहते तो लाखों रुपए इस वक्त में कमा लेते किंतु अपनी ईमानदारी ने आप को भूखा ही रखा और इसलिए आपको नौकरी छोड़कर
[पृ.539]: वकालत का धंधा अपनाना पड़ा। क्योंकि आपको इमानदारी की छाप महाराजा साहब भरतपुर पर पड़ चुकी थी इसलिए जब उन्होंने लोकप्रिय मंत्रिमंडल बनाया तो आपको भी उसमें लिया। आप यद्यपि वैश्य हैं किंतु जाट और दूसरे किसानों से हार्दिक प्रेम रखते हैं। किसान भी उन्हें अपने नेताओं में प्रमुख स्थान देते हैं। सन 1948 में भरतपुर में जितनी भी बड़ी-बड़ी किसान कान्फ्रेंस हुई उनमें आपको ही सभापति बनाया गया।
आप अत्यंत शांत और खुशमिजाज व्यक्ति हैं। किंतु अन्याय के साथ लड़ने से कभी पीछे नहीं हटते। यही कारण है कि अब तक भरतपुर में हैवियस कार्पस के जीतने मुकदमे लड़े गए हैं उनमें ज्यादा आपने ही पीड़ित लोगों का पक्ष लिया है।
आपकी सभी संताने योग्य हैं। विश्वेश्वर जी ग्रेजुएट हैं और पब्लिक सेवा को पसंद करते हैं। भरतपुर में जितनी संस्थाएं हैं उनके सभी आदमी बाबूजी को श्रद्धा की नजर से देखते हैं यही उनकी लोकप्रियता का नमूना है।
11. लाला बैजनाथ जी - [पृ.539]: भरतपुर के पुराने जनसेवकों में लाला बैजनाथ जी का नाम उल्लेखनीय है। आपके दूसरे भाई गुलाबसिंह जी भी सार्वजनिक जीवन के आदमी हैं। मैकेंजी के जमाने में आप को भी काफी तकलीफ उठानी पड़ी। आप पक्के आर्यसमाजी हैं। जाट हलचलों के साथ आपकी सहानुभूतु रही है और कुंवर रतन सिंह जी को आपने सदैव अपना सहयोग दिया है।
12. लाला चिरंजीलाल जी - [पृ.540]: भरतपुर के लोकप्रिय आदमियों में आपका स्थान सर्वोपरि है। भरतपुर की तीन चौथाई सार्वजनिक संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी हैं। म्युनिसिपलिटी के वर्षों से चले आ रहे चेयरमैन हैं। मिलनसारी, मिष्ठ भाषण और दूरंदेशी में आप बेजोड़ आदमी हैं। जब भी कभी प्रबंध संबंधी कामों में भरतपुर की जाट सभा और उसके लीडरों ने याद किया है आपने पूर्ण सहयोग दिया है।
13. लाला तुलसीराम जी - [पृ.540]: आप ठाकुर ध्रुवसिंह जी के पहचान से सार्वजनिक क्षेत्र में आए हैं। नव-जागृति पत्र को आरंभ में आपने ही जन्म दिया था। हिंदू हितों के लिए आपसे जो भी बन पड़ा है किया है। किसान सभा से भी आपकी हमदर्दी है।
14. लाला रामजीलाल जी - [पृ.540]: लाला रामजीलाल जी महंगहिया भरतपुर के साहसी आदमियों में से हैं। सन 1939 में ठाकुर देशराज जी के साथ आपने प्रजामंडल की ओर से जेल यात्रा की। जाट कार्यकर्ताओं के साथ आप देहात सुधार के मामलों में दिलचस्पी लेते रहे हैं।
15. श्री बख्शी रघुनाथसिंह जी - [पृ.540]: भरतपुर में जिसे जाट भी उसी प्रेम की निगाह से देखते हैं जिसे कि गुर्जर। ऐसे सर्वप्रिय व्यक्ति हैं श्री रघुनाथसिंह जी। आप सरदार टाइप के आदमी हैं। दोनों कौमौं
[पृ.541]: के बुजुर्ग लीडर हैं। आप का प्रसिद्ध मोटों यह है “सबसे हिलमिल चालिए लाख लोग हो संग”।
भरतपुर के राज खानदान से आपका सदैव संबंध रहा है और अन्य धाऊ वंशजों की तरह उस घर के वफादार रहे हैं।
16. मास्टर गिर्राजप्रसाद जी - [पृ.541]: हलेना में कास्तकारों की एक कौम पुष्पध है उसी में आज से 22-23 साल पहले आपका जन्म हुआ। आप एक अच्छे उपदेशक हैं। आप जहां गाते हैं कविता भी करते हैं। ध्रुवसिंह जी ने आपको किसान सभा में खींचा। तभी से आप सभा के साथ हैं। दूसरे लोगों के अनेक प्रलोभनों के होते हुए भी आपने किसान सभा को नहीं छोड़ा है।
देहात में आपके के भजन सुनने के लिए लोग उत्सुक रहते हैं।
17. बख्शी निहालसिंह - [पृ.541]: तहसील बयाना रायपुर में सालाबाद एक गांव है। बख्शी निहालसिंह जी यहां के रहने वाले हैं। आप कौम से गुर्जर हैं किंतु इधर के जाट आपको अपने से अलग नहीं मानते। आप सन 1942 ई से किसान सभा में हैं। प्रभावशाली आदमी है। ब्रज जया समिति के मेंबर रहे हैं।
जाट और गुर्जरों की एकता की कड़ी को मजबूत बनाने वालों में एक बक्शी बृजलाल जी पान्हौरा के जेलदार भी हैं। वे सन 1942 से किसान सभा में हैं। अपने इलाके के जाट गुजरो पर काफी असर है। भरतपुर असेंबली के चुनाव में आप भारी बहुमत से जीते हैं।
[पृ.542]: जैलदार भरतसिंह जी बरौली चौथ के गुर्जर नौजवान हैं और किसान सभा के साथी हैं। आप भी ब्रज जया समिति के मेंबर रहे हैं।
पटेल धर्मसिंह जी उच्चेना के रहने वाले बहादुर गुर्जर हैं। आप आरंभ से ही किसान सभा में हैं। दुख और सुख में सदा आपके साथ ही रहे हैं।
18. भगवानदास मारवाड़ी - [पृ.542]: कूम्हेर के है हैहय वंशी घराने में आपका जन्म हुआ। अभी आप एक नौजवान आदमी हैं। तीन बार किसान हलचलों में जेल हो आए हैं। इसमें जनता अखबार के संचालक हैं। विशेष परिचय आपका ध्रुव सिंह जी के जीवन परिचय में दे दिया गया है।
19. पंडित हरिश्चंद्रजी शर्मा
19. पंडित हरिश्चंद्रजी शर्मा - [पृ.542]: पंडित जी पेंघोर कुम्हेर तहसील के रहने वाले हैं। आपके पिता पंडित हरिबल्लभ जी रामायण के अच्छे पंडित थे। जब आपकी 13 वर्ष की आयु थी उसी समय आपके पिता स्वर्गारोहण हो गए। आपकी शिक्षा महामान्य श्री स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज के यहां हुई। आपके दो छोटे भाई केशवदेव और दौलतराम हैं। आपके बड़े भाई पंडित भमरसिंह जी थोड़े दिन बाद ही स्वर्गवासी हो गए। आप तीनों ही भाई धार्मिक राजनीतिक विचारों के हैं।
जब एक बार मैं पेंघोर गया तो आप से मेरी मुलाकात हुई। तभी से प्रवाहित होकर आपको मैं आगरा शुद्धि सभा में बुलाया और शुद्धि कार्य सौंपा। आपने अपने परिश्रम से सभा में 7000 शुद्धियाँ कराई। सैकड़ों बच्चों को विधर्मियों से
[पृ.543]: बचाया तथा 50 के करीब अबलाओं को मुसलमानों के घर से निकाल कर उनके धर्म की रक्षा की।
राजनीतिक कार्यों से आप बार बार जेल जा चुके हैं। जिस समय भरतपुर की जनता पुलिस सुपरिंटेंडेंट नक्कीमोहम्मद और दीवान मैकेंजी के अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर रही थी उस समय महात्मा गांधी का नाम लेना तथा फोटो रखना भी जुर्म था। उसी समय बोर्ड में हजारों की भीड़ पुलिस के कड़े प्रबंध के होते हुए आप ने दीवान के कारनामे छपे हुए रूप में दिए तथा हजारों की तादाद में बांटे और उन को काले झंडे दिखाए थे। आप उसी समय गिरफ्तार हो गए और एक वर्ष की जेल हुई। सन 1930 में आप जेल से छूटे और फिर राजनीतिक कार्य में जुट गए।
जब मैंने भरतपुर में सन 1939 में राज्य शासन के खिलाफ और उत्तरदाई शासन के लिए सत्याग्रह छेड़ा तो आप के घर से ही 6 व्यक्ति मेरे साथ जेल गए। आप सत्याग्रह के तीसरे डिक्टेटर थे। आपका छोटा भाई दौलतराम सातवां डिक्टेटर होकर जेल गया। भाई की धर्मपत्नी सत्यवती देवी जत्थेदार होकर गिरफ्तार हुई। जब मैंने सीकर का आंदोलन छेड़ा तब भी आपने काफी सहायता की। अजमेर में मेरे साथ कार्य करते रहे। अजमेर से आकर बाटरासाही के खिलाफ किसान आंदोलन में कार्य किया। अगर भरतपुर में पूछा जाए तो पंडित हरीशचंद्र जी दूसरे राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।
सन 1940 में मेरे साथ ही जेल से आप छूटे और भरतपुर प्रजा परिषद का कार्य जोरों से करने लगे। हजारों ही आपने बयाना निजामत में मेंबर बनाए। रमेश स्वामी को आप ही प्रजा परिषद में लाए थे। जब 1939 का प्रजा परिषद
[पृ.544]: आंदोलन चला था 700 गिरफ्तारी हुई थी। जिसमें 600 किसान गिरफ्तार हुए। फिर भी यहां के शहरियों की तरफ से किसानों की अवहेलना होती थी। इस अपमान को शर्माजी बर्दाश्त नहीं कर सके। शर्माजी ने कहा कि प्रजापरिषद के लोग शहरी-देहाती का भेद करते हैं। इसलिए परिषद से अलग हो जाना चाहिए। हम परिषद से अलग हो गए।
सन 1942 के मलेरिया में आपने किसान सभा की ओर से देहातों में औषधि वितरण किया। आप आरम्भ से अब तक किसान सभा के सेक्रेटरी हैं। सन 1948 के किसान आंदोलन में भी आप जेल हो आए हैं। नवजागृति के आप संपादक हैं।
20. पंडित दत्तुराम जी
पंडित दत्तुराम जी - [पृ.544]: आप हिसार जिले में डाबडी के रहने वाले पंडित मुकनाराम जी के सुपुत्र हैं। आपको कुंवर पन्ने सिंह जी ने बुलाकर राजस्थान जाट सभा में प्रचारक के तौर पर रखा। आप बड़े अच्छे भजनोपदेशक हैं। अपने झुंझुनू जलसे को तथा सीकर महायज्ञ को सफल बनाने के लिए अनेक भजन बनाए। लोगों पर आप का अच्छा प्रभाव पड़ता था। इसके बाद आपने मारवाड़ जाट सभा की ओर से दो-तीन साल मारवाड़ में काम किया। इस समय आप अपने गांव में ही रहते हैं।
21. पंडित खेमराज जी शर्मा - [पृ.544]: आप आरंभ में आर्य समाज मंडावा के मंत्री थे। उसी समय से जाटों के संस्कार कराने और उनमें से कुरीति निवारण करने में आपने अच्छा सहयोग दिया। इस समय जो भी बन पड़ता है वह जाटों के हित के लिए करते हैं।
22. पंडित हुकुमचंद जी भरतपुर - [पृ.545]: आप भी हरीपुरा ढाणी के अध्यापक के रूप में जाट आंदोलन में शामिल हुए थे। बड़ी मजबूती के साथ ढाणी रामगढ़ के और खूड़ के किसानों की हलचलों का आपने नेतृत्व किया। सीकर में अराजकता फैलने पर आप भरतपुर आ गए। भरतपुर में आप पंडित महेशकृपाल जी के पुत्र हैं और इस समय आरंभ की भांति कांग्रेस में काम करते हैं। आप एक स्वाभिमानी नौजवान हैं।
23. पंडित सामलप्रसाद जी चतुर्वेदी - [पृ.545]: आप भरतपुर राज्य में अभोरा के रहने वाले चौबे जाति के सुपुत्र हैं। आपने राजस्थान जाट सभा के उपदेशक की हैसियत से जाट जागृति में प्रवेश किया। एक डेढ़ साल तक जयपुर जोधपुर और मध्य भारत में काम किया। आप खरे, हंसमुख और धार्मिक हैं। आपकी धर्मपत्नी यमुना देवी जी भी आपके ही अनुरूप ही हैं। दोनों स्त्री-पुरुषों ने अजमेर में रहकर राजा थान जाटम को आगे बढ़ाया। इस समय आप भरतपुर में कांग्रेस में काम करते हैं।
24. पटेल गोपीसिंह जी - [पृ.545]: आपका जन्म जमीदार मीणा जाति में आज से लगभग 50 साल पहले देवली गांव में हुआ था। आप वैर तहसील की अपनी ही बिरादरी के नेता नहीं बल्कि तहसील भर की सभी किसान जातियां आप को हृदय से प्यार करती हैं। एक
[पृ.546]: मजबूत सच्चे और ईमानदार आदमी हैं। आरंभ से ही किसान सभा के साथ हैं। आप के प्रभाव के कारण आपकी जाति के तमाम लोग किसान सभा के सहयोगी हैं। टूण्डपुरा जनजीवनपुर के दोनों मांगिया पटेल भी आपकी तरह किसान सभा के साथी हैं।
25. ठाकुर रतन सिंह जी - [पृ.546]: तहसील भरतपुर में धोर नाम का एक गांव है। वही के आप रहने वाले हैं। आज से 25-26 वर्ष से पहले ठाकुर रामपाल जी के घर में आपका जन्म हुआ। आपको जाट जाति से विशेष प्रेम है। और सभी प्रकार जाति की उन्नति के कार्यों में सक्रिय सहयोग देते रहते हैं। आप प्रतिष्ठित घराने के सज्जन हैं।
26. प्यारेलाल जी - [पृ.546]: आप नगला घरसोनी तहसील वैर के नौजवान एवं उत्साही सज्जन हैं। आपके पिताजी ठाकुर गंगाधर जी बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे। आपको किसान सभा के कार्य में विशेष तौर पर रुचि है।
27. नवाबसिंह - [पृ.546]: नदबई तहसील में सिनसिनवार ठाकुरों का एक प्रसिद्ध गाम बछामदी है। यही के प्रसिद्ध रईस ठाकुर गंभीर सिंह जी के आप सुपुत्र हैं। आप शांत तरीकों से कौन की सेवा में चित देते रहे हैं।
28. ठाकुर विजयसिंह - [पृ.547]: बाछामदी के एक दूसरे प्रभावशाली जाट सरदार ठाकुर विजय सिंह हैं। आप कौम का और किसान सभा का काम आरंभ से ही दिलचसपी के साथ करते हैं। यहां के नौजवान कार्यकर्ताओं में दिगंबर सिंह और श्याम सिंह के नाम उल्लेखनीय हैं।
29. चौधरी लल्लूराम - [पृ.547]: आप पुष्पधा जाति में है। आपको सदा से ही किसान सभा से विशेष प्रेम रहा है। आपके पिताजी का नाम चौधरी परमाराम जी था। और आपके पितामाह चौधरी सोनपाल प्रसिद्ध धनी मानी प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।
30. ठाकुर मंगूसिंह जी - [पृ.547]: आप तहसील बयाना में बाजौली गांव के प्रतिष्ठित सज्जन हैं। और किसान सभा से सक्रिय सहयोग सदैव रखते हैं।